छत्तीसगढ़ में 15 दिनों से मुर्दाघर में रखे शव को दफनाने की मांग पर फैसला सुरक्षित
Jan 22, 2025, 20:23 IST
नई दिल्ली, 22 जनवरी सुप्रीम कोर्ट ने छत्तीसगढ़ में 15 दिनों से मुर्दाघर में रखे एक शव को गांव के कब्रिस्तान में दफनाने की मांग पर फैसला सुरक्षित रख लिया है। जस्टिस बीवी नागरत्ना की अध्यक्षता वाली बेंच ने फैसला सुरक्षित रखने का आदेश दिया।
मामला छत्तीसगढ़ के छिंदवाड़ा गांव के एक हिन्दू आदिवासी से धर्मांतरित ईसाई का है, जो पादरी हो गया था। पादरी की मौत 7 जनवरी को हो गई। पादरी के बेटे रमेश बघेल ने ग्राम पंचायत के कब्रिस्तान में अपने पिता को दफनाना चाहा था लेकिन गांव वालों ने उसके पिता को दफनाने का विरोध किया। यहां तक कि उनकी निजी भूमि में भी शव को दफनाने नहीं दिया जा रहा है।
याचिकाकर्ता ने अपने पिता को गांव के कब्रिस्तान या अपनी निजी भूमि पर दफनाने की मांग करते हुए छत्तीसगढ़ हाई कोर्ट का रुख किया था। छत्तीसगढ़ हाई कोर्ट ने याचिका खारिज कर दिया था। हाई कोर्ट ने कहा था कि गांव में ईसाईयों के लिए कोई अलग से कब्रिस्तान नहीं है, ऐसे में उन्हें गांव के कब्रिस्तान में दफनाने की इजाजत नहीं दी जा सकती है। हाई कोर्ट के फैसले को चुनौती देते हुए रमेश बघेल ने सुप्रीम कोर्ट का दरवाजा खटखटाया है।
सुनवाई के दौरान छत्तीसगढ़ सरकार की ओर से पेश सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने कहा कि ईसाईयों के लिए अलग कब्रिस्तान गांव से 20 किलोमीटर की दूरी पर है। वहां जाकर शव को दफनाने के लिए याचिकाकर्ता को एंबुलेंस भी उपलब्ध करा दिया जाएगा। उन्होंने कहा कि याचिकाकर्ता का गांव के कब्रिस्तान में दफनाने की जिद करना गांव में कानून-व्यवस्था की स्थिति उत्पन्न कर सकता है। उन्होंने कहा कि गांव का कब्रिस्तान हिन्दू आदिवासियों के लिए है न कि ईसाईयों के लिए।
याचिकाकर्ता की ओर से पेश वरिष्ठ वकील कॉलिन गोंजाल्वेस ने कहा कि गांव का कब्रिस्तान सभी समुदाय के लिए है। उसी कब्रिस्तान में उसके परिवार के दूसरे सदस्य उसी कब्रिस्तान में ईसाईयों के लिए मिले स्थान पर दफनाये गए थे। अगर याचिकाकर्ता धर्मांतरित ईसाई है तो उसे गांव के कब्रिस्तान में दफनाने देने की अनुमति
मामला छत्तीसगढ़ के छिंदवाड़ा गांव के एक हिन्दू आदिवासी से धर्मांतरित ईसाई का है, जो पादरी हो गया था। पादरी की मौत 7 जनवरी को हो गई। पादरी के बेटे रमेश बघेल ने ग्राम पंचायत के कब्रिस्तान में अपने पिता को दफनाना चाहा था लेकिन गांव वालों ने उसके पिता को दफनाने का विरोध किया। यहां तक कि उनकी निजी भूमि में भी शव को दफनाने नहीं दिया जा रहा है।
याचिकाकर्ता ने अपने पिता को गांव के कब्रिस्तान या अपनी निजी भूमि पर दफनाने की मांग करते हुए छत्तीसगढ़ हाई कोर्ट का रुख किया था। छत्तीसगढ़ हाई कोर्ट ने याचिका खारिज कर दिया था। हाई कोर्ट ने कहा था कि गांव में ईसाईयों के लिए कोई अलग से कब्रिस्तान नहीं है, ऐसे में उन्हें गांव के कब्रिस्तान में दफनाने की इजाजत नहीं दी जा सकती है। हाई कोर्ट के फैसले को चुनौती देते हुए रमेश बघेल ने सुप्रीम कोर्ट का दरवाजा खटखटाया है।
सुनवाई के दौरान छत्तीसगढ़ सरकार की ओर से पेश सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने कहा कि ईसाईयों के लिए अलग कब्रिस्तान गांव से 20 किलोमीटर की दूरी पर है। वहां जाकर शव को दफनाने के लिए याचिकाकर्ता को एंबुलेंस भी उपलब्ध करा दिया जाएगा। उन्होंने कहा कि याचिकाकर्ता का गांव के कब्रिस्तान में दफनाने की जिद करना गांव में कानून-व्यवस्था की स्थिति उत्पन्न कर सकता है। उन्होंने कहा कि गांव का कब्रिस्तान हिन्दू आदिवासियों के लिए है न कि ईसाईयों के लिए।
याचिकाकर्ता की ओर से पेश वरिष्ठ वकील कॉलिन गोंजाल्वेस ने कहा कि गांव का कब्रिस्तान सभी समुदाय के लिए है। उसी कब्रिस्तान में उसके परिवार के दूसरे सदस्य उसी कब्रिस्तान में ईसाईयों के लिए मिले स्थान पर दफनाये गए थे। अगर याचिकाकर्ता धर्मांतरित ईसाई है तो उसे गांव के कब्रिस्तान में दफनाने देने की अनुमति