स्थानीय निकाय चुनाव में क्या कांगे्रस भाजपा का मुकाबला कर पाएगी?
क्या अपने चुनाव चिन्ह पर ही उम्मीदवारों को चुनाव लड़वाएगी कांगे्रस
Feb 5, 2025, 14:20 IST

चंडीगढ़, 05 फ रवरी। हरियाणा में स्थानीय निकाय चुनाव को बिगुल बज चुका है, जिसकी भाजपा ने विधानसभा चुनाव जीतने के बाद ही तैयारी शुरू कर दी थी और आज वह पूरी तरह से तैयार है। कांगे्रस अभी तक विधानसभा चुनाव में मिली हार से उबर नहीं पाई और न ही गुटों में कांगे्रस एकजुट हो पाई है। ऐसे हालात में एक ही सवाल उठता है कि क्या कांगे्रस इस चुनाव में भाजपा का मुकाबला करते हुए चक्रव्यूह को तोड़ पाएगी या भाजपा के तिलिस्म में फंसकर हार का इतिहास दोहराएगी। क्या कांगे्रस अपने चुनाव चिन्ह हाथ के निशान पर उम्मीदवारों को चुनावी जंग में उतारकर अपनी ताकत का अहसास करा पाएगी। कांगे्रस में अभी तक कुछ भी नहीं बदला है, एक दशक में संगठन खड़ा कर पाई है, जिला प्रभारियों की नियुक्ति से कांगे्रस का भला होने वाला नहीं हैं क्योंकि जब तक कांगे्रस में गुटबाजी हावी रहेगी वह उठ नहीं पाएगी, कांगे्रस का मुकाबला भाजपा से नहीं बल्कि कांगे्रस से ही होता दिख रहा है। इस जंग में भाजपा फिर बाजी मारने में सफल हो सकती है।
लंबे इंतजार के बाद आखिरकार हरियाणा में नगर निकाय चुनाव की घोषणा कर दी गई। राज्य निर्वाचन आयोग ने सात नगर निगमों, चार नगर परिषदों और 21 नगर पालिकाओं के लिए चुनावों की घोषणा कर दी। मतदान 02 मार्च को होगा और मतगणना 12 मार्च को होगी। चुनाव की घोषणा के साथ ही संबंधित नगर निकायों के अंतर्गत आने वाले क्षेत्रों में आदर्श आचार संहिता लागू हो गई है। फरीदाबाद, गुरुग्राम, मानेसर, हिसार, करनाल, रोहतक और यमुनानगर नगर निगमों के लिए मतदान 02 मार्च को होगा, जबकि पानीपत नगर निगम के लिए मतदान 9 मार्च को होगा। चार नगर परिषदों अंबाला सदर, पटौदी जटोली मंडी, थानेसर और सिरसा के लिए मतदान होगा। उन्होंने बताया कि नामांकन पत्र 11 फरवरी से 17 फरवरी तक दाखिल किये जायेंगे।
18 फरवरी को स्क्रूटनी होगी और 19 फरवरी को नाम वापस लिये जा सकते है। इस चुनाव का सभी को इंतजार था, जब कांग्रेस विधानसभा चुनाव में मिली हार के मंथन कर रही थी और तब भाजपा धरातल पर काम कर रही ही। भाजपा की टीम संभावित उम्मीदवारों के नाम का पैनल तक बना चुकी है और कांगे्रस अभी तक गुटबाजी में एक दूसरे के कपड़े फाडऩे में लगी हुई है। हाईकमान अभी तक कुछ नहीं कर पा रहा है। भाजपा के पास पन्ना प्रमुख है, हर बूथ पर कार्यकर्ताओं की एक टीम है, कांग्रेस के पास उसका संगठन तक नहीं है। अपनी ही गलतियों से कांग्रेस करीब एक दशक से पिछड़ती जा रही है, जो कि कांग्रेस के लिए निकाय चुनावों में भी सबसे बड़ी चिंता का विषय बन सकता है।
अब कांग्रेस के नेता निकाय चुनावों में लोगों से जुड़े विभिन्न मुद्दों को लेकर मैदान में उतरने की बात कर रहे हैं। वहीं, ये उम्मीद कर रहे हैं कि शायद लोगों के मुद्दे उठाने से जनता उसका साथ दे देगी। इधर भाजपा विधानसभा चुनाव में मिली जीत के बाद उत्साह से लबरेज है। पार्टी नेता लगातार जनता के बीच जा रहे हैं। ऐेसे मेंं लोगों के जहन में एक ही सवाल उठ रहा है कि इन हालातों में क्या कांगे्रस इस चुनाव में भाजपा का मुक ाबला कर पाएगी। क्या वह अपने चुनाव चिन्ह हाथ के निशान पर उम्मीदवारों को चुनाव मैदान में उतार पाएगी जबकि भाजपा इस मामले में सबसे आगे रहती है और उसे इसका लाभ भी मिलता है। कांग्रेस ने अपने जन्म से ही नीति बनाई थी कि बांटो और राज करो, कांग्रेस उसी बांटो और राज करो के काम में लगी हुई थी, लेकिन अब खुद बंट गई। धीरे-धीरे वो घट जाएगी और प्रदेश से मुक्त हो सकती है।
कांगेे्रस नेताओं खासकर हाईकमान को बार बार मिल रही हार के बाद कम से कम स्थानीय निकाय चुनावों की अहमियत को समझना चाहिए। अगर कांग्रेस गंभीरता से इसकी अहमियत को नहीं समझती है तो वक्त निकल जाएगा। भाजपा का शहरी स्थानीय निकायों पर अगर लंबे वक्त तक कब्जा रहेगा, तो इसका अन्य बातों पर भी असर पड़ेगा। इसलिए कांग्रेस के नेताओं को अपने हितों को दरकिनार कर एक-दूसरे से बात करनी होगी। बिना संगठन किसी भी दल के लिए चुनाव जीतना आसान नहीं होता इसका खामियाजा कांगे्रस को उठाना पड़ सकता है।
बॉक्स
राजनीतिक दलों में होगा गठबंधन या एकला चलो रे
कांगे्रस और आदम आदमी पार्टी के बीच कटुता इतनी बढ़ चुकी है कि उनमें गठबंधन की कोई संभावना नहीं दिख रही है, लोकसभा चुनाव में हुआ गठबंधन विधानसभा चुनाव में टूट गया। ऐसे में कांगे्रस और आप अपने दम पर चुनाव लड़ेगे। भाजपा अपने ही दम पर चुनाव लडऩे की तैयार कर चुकी है, वह सिरसा में हरियाणा लोकहित पार्टी के साथ गठबंधन कर सकती है, पर हलोपा सीटों के बंटवारे पर जिद करेगी जो भाजपा को मंजूर नहीं होगा ऐेसे में दोनों के बीच गठबंधन के आसार कम दिखाई दे रहे है। सिरसा में स्थानीय भाजपा नेता हलोपा के साथ चलने को किसी भी सूरत में तैयार नहीं है। इनेलो और बसपा के बीच गठबंधन की संभावनाएं खत्म हो चुकी है क्योंकि विधानसभा चुनाव के बाद बसपा ने साफ कर दिया था कि अब किसी के साथ मिलकर चुनाव नहीं लडेगी, जननायक जनता पार्टी मैदान में जरूर उतरेगी वह नगीना के सांसद चंद्रशेखर की पार्टी के साथ ही गठबंधन कर सकती है।
लंबे इंतजार के बाद आखिरकार हरियाणा में नगर निकाय चुनाव की घोषणा कर दी गई। राज्य निर्वाचन आयोग ने सात नगर निगमों, चार नगर परिषदों और 21 नगर पालिकाओं के लिए चुनावों की घोषणा कर दी। मतदान 02 मार्च को होगा और मतगणना 12 मार्च को होगी। चुनाव की घोषणा के साथ ही संबंधित नगर निकायों के अंतर्गत आने वाले क्षेत्रों में आदर्श आचार संहिता लागू हो गई है। फरीदाबाद, गुरुग्राम, मानेसर, हिसार, करनाल, रोहतक और यमुनानगर नगर निगमों के लिए मतदान 02 मार्च को होगा, जबकि पानीपत नगर निगम के लिए मतदान 9 मार्च को होगा। चार नगर परिषदों अंबाला सदर, पटौदी जटोली मंडी, थानेसर और सिरसा के लिए मतदान होगा। उन्होंने बताया कि नामांकन पत्र 11 फरवरी से 17 फरवरी तक दाखिल किये जायेंगे।
18 फरवरी को स्क्रूटनी होगी और 19 फरवरी को नाम वापस लिये जा सकते है। इस चुनाव का सभी को इंतजार था, जब कांग्रेस विधानसभा चुनाव में मिली हार के मंथन कर रही थी और तब भाजपा धरातल पर काम कर रही ही। भाजपा की टीम संभावित उम्मीदवारों के नाम का पैनल तक बना चुकी है और कांगे्रस अभी तक गुटबाजी में एक दूसरे के कपड़े फाडऩे में लगी हुई है। हाईकमान अभी तक कुछ नहीं कर पा रहा है। भाजपा के पास पन्ना प्रमुख है, हर बूथ पर कार्यकर्ताओं की एक टीम है, कांग्रेस के पास उसका संगठन तक नहीं है। अपनी ही गलतियों से कांग्रेस करीब एक दशक से पिछड़ती जा रही है, जो कि कांग्रेस के लिए निकाय चुनावों में भी सबसे बड़ी चिंता का विषय बन सकता है।
अब कांग्रेस के नेता निकाय चुनावों में लोगों से जुड़े विभिन्न मुद्दों को लेकर मैदान में उतरने की बात कर रहे हैं। वहीं, ये उम्मीद कर रहे हैं कि शायद लोगों के मुद्दे उठाने से जनता उसका साथ दे देगी। इधर भाजपा विधानसभा चुनाव में मिली जीत के बाद उत्साह से लबरेज है। पार्टी नेता लगातार जनता के बीच जा रहे हैं। ऐेसे मेंं लोगों के जहन में एक ही सवाल उठ रहा है कि इन हालातों में क्या कांगे्रस इस चुनाव में भाजपा का मुक ाबला कर पाएगी। क्या वह अपने चुनाव चिन्ह हाथ के निशान पर उम्मीदवारों को चुनाव मैदान में उतार पाएगी जबकि भाजपा इस मामले में सबसे आगे रहती है और उसे इसका लाभ भी मिलता है। कांग्रेस ने अपने जन्म से ही नीति बनाई थी कि बांटो और राज करो, कांग्रेस उसी बांटो और राज करो के काम में लगी हुई थी, लेकिन अब खुद बंट गई। धीरे-धीरे वो घट जाएगी और प्रदेश से मुक्त हो सकती है।
कांगेे्रस नेताओं खासकर हाईकमान को बार बार मिल रही हार के बाद कम से कम स्थानीय निकाय चुनावों की अहमियत को समझना चाहिए। अगर कांग्रेस गंभीरता से इसकी अहमियत को नहीं समझती है तो वक्त निकल जाएगा। भाजपा का शहरी स्थानीय निकायों पर अगर लंबे वक्त तक कब्जा रहेगा, तो इसका अन्य बातों पर भी असर पड़ेगा। इसलिए कांग्रेस के नेताओं को अपने हितों को दरकिनार कर एक-दूसरे से बात करनी होगी। बिना संगठन किसी भी दल के लिए चुनाव जीतना आसान नहीं होता इसका खामियाजा कांगे्रस को उठाना पड़ सकता है।
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राजनीतिक दलों में होगा गठबंधन या एकला चलो रे
कांगे्रस और आदम आदमी पार्टी के बीच कटुता इतनी बढ़ चुकी है कि उनमें गठबंधन की कोई संभावना नहीं दिख रही है, लोकसभा चुनाव में हुआ गठबंधन विधानसभा चुनाव में टूट गया। ऐसे में कांगे्रस और आप अपने दम पर चुनाव लड़ेगे। भाजपा अपने ही दम पर चुनाव लडऩे की तैयार कर चुकी है, वह सिरसा में हरियाणा लोकहित पार्टी के साथ गठबंधन कर सकती है, पर हलोपा सीटों के बंटवारे पर जिद करेगी जो भाजपा को मंजूर नहीं होगा ऐेसे में दोनों के बीच गठबंधन के आसार कम दिखाई दे रहे है। सिरसा में स्थानीय भाजपा नेता हलोपा के साथ चलने को किसी भी सूरत में तैयार नहीं है। इनेलो और बसपा के बीच गठबंधन की संभावनाएं खत्म हो चुकी है क्योंकि विधानसभा चुनाव के बाद बसपा ने साफ कर दिया था कि अब किसी के साथ मिलकर चुनाव नहीं लडेगी, जननायक जनता पार्टी मैदान में जरूर उतरेगी वह नगीना के सांसद चंद्रशेखर की पार्टी के साथ ही गठबंधन कर सकती है।