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विजय आनंद का विनोद खन्ना और दिलीप कुमार को साथ लाने का वो अधूरा सपना

(बॉलीवुड के अनकहे किस्से)  
 
विजय आनंद का विनोद खन्ना और दिलीप कुमार को साथ लाने का वो अधूरा सपना  
अजय कुमार शर्मा

अस्सी के दशक में देश-दुनिया में आचार्य रजनीश का बड़ा बोलबाला था। विदेशी और धनी भारतीय तथा हिंदी सिनेमा से जुड़ी कई फिल्मी हस्तियां उनके प्रभाव और संपर्क में थी। इनमें सबसे महत्वपूर्ण नाम अभिनेता विनोद खन्ना का था। निर्देशक महेश भट्ट सबसे पहले रजनीश उर्फ ओशो के प्रभाव में आए और फिर उनकी मित्रमंडली जिनमें विनोद खन्ना, विजय आनंद और परवीन बॉबी आदि शामिल थे भी रजनीश के आश्रम में आने जाने लगे।

विनोद खन्ना का फिल्मी दुनिया से संन्यास लेने और अमेरिका के रजनीश आश्रम में जाकर बसने का घटनाक्रम इसलिए भी सुर्खियों का विषय बना क्योंकि उस समय वे अपने कैरियर के टॉप पर थे और अमिताभ के साथ सुपर स्टार का दर्जा हासिल कर चुके थे। लेकिन चार साल में ही जब अमेरिकी सरकार ने रजनीश आश्रम में नशीले पदार्थों के चलन के कारण उस पर कानूनी कार्रवाई की तो सभी अनुयायी डर कर अपनी पहली दुनिया में लौट आने पर विवश हुए।

विनोद खन्ना भी जब वापस आए तो सबसे पहले अपने मित्र विजय आनंद उर्फ गोल्डी से मिले। दोनों की दोस्ती रजनीश के आश्रम में रहने के दौरान और गहरी हो गई थी, हालांकि राजपूत फिल्म के निर्माण के समय विनोद खन्ना ने गोल्डी को बहुत परेशान किया था। लेकिन इस बात को भूलकर गोल्डी ने विनोद खन्ना को बांद्रा स्थित अपने यूनियन पार्क वाले घर में आमंत्रित किया। गोल्डी से मिलते ही विनोद खन्ना फूट-फूट कर रोने लगे। गोल्डी ने उन्हें काफी देरतक रोने दिया और कुछ न बोले। रोते-रोते विनोद का मन जब हल्का हो गया तब विजय आनंद ने उन्हें फिल्मों में दोबारा लौट आने के लिए कहा। तब विनोद खन्ना का सवाल था कि क्या आप मेरे लिए कोई फिल्म बनाना पसंद करेंगे? गोल्डी ने तुरंत हामी भर दी।

विनोद खन्ना को डर था कि दर्शक उन्हें दोबारा पर्दे पर देखना पसंद करेंगे या नहीं। लेकिन गोल्डी को महसूस हुआ कि अमेरिका में चार साल फिल्मी दुनिया से दूर रहने पर भी विनोद खन्ना की सुंदरता बरकरार थी और वे अभी भी हीरो बनने के काबिल थे। हां उनके आत्मविश्वास में जरूर कमी आई थी। विनोद खन्ना के करियर को जीवनदान देने के लिए गोल्डी ने एक विशेष कहानी लिखी। कहानी का विषय कृष्ण-अर्जुन था। यानी एक व्यक्ति का मार्गदर्शन और दूसरे द्वारा उसका सच्चा अनुसरण कर सफलता पाना। अर्जुन की भूमिका विनोद खन्ना के लिए और कृष्ण की भूमिका के लिए उन्हें एक श्रेष्ठ और अनुभवी तथा वरिष्ठ कलाकार की जरूरत थी जो फिल्म के साथ साथ ही विनोद खन्ना को भी बड़ा सहारा दे सके ।

ऐसे में उनके सामने सबसे पहले दिलीप कुमार का नाम आया। सालों पहले दिलीप कुमार गोल्डी के साथ काम करने को तैयार हुए थे लेकिन बात आई गई हो गई थी। दिलीप साहब गोल्डी के काम के प्रशंसक थे। हिम्मत करके गोल्डी ने उनसे मिलने का समय लिया। मिलना बांद्रा के आर्ट्स क्लब में तय हुआ क्योंकि दोनों ही इसके सदस्य थे । जब यह बातचीत हुई तब दिलीप कुमार सुभाष घई की फिल्म विधाता कर रहे थे। गोल्डी ने बताया फिल्म अर्जुन-कृष्ण के संबंधों पर आधारित है। आपकी भूमिका कृष्ण की रहेगी और विनोद खन्ना जिनको वे दोबारा लॉन्च कर रहे हैं की भूमिका अर्जुन की होगी। हालांकि दिलीप कुमार को विनोद खन्ना की वापसी वाली बात पर शक था लेकिन वे कहानी सुनने को तैयार हो गए । कहानी सुनने के दौरान दिलीप कुमार ने उन्हें कई बार रोका और टोका कि तेरी कहानी बहुत तेज चल रही है। मुझे जरा आराम से सुना। कहानी समाप्त होने पर दिलीप साहब का कहना था कि पटकथा तो बहुत बढ़िया लिखी है पर मेरे विचार से यह इतनी ज्यादा चुस्त नहीं होनी चाहिए। वरना अभिनय के लिए समय, जगह ही नहीं मिलेगी। तब गोल्डी ने कहा कि आप तो जानते ही हैं मेरी सारी फिल्में तेज चलती हैं लेकिन गीत और फाइट भी उसी पेस में होने के कारण दर्शकों में रुचि बनी रहती है।

इस तर्क पर दिलीप साहब खामोश हो गए और गोल्डी को अपने सेक्रेटरी जॉन से बात करने के लिए कह दिया। विनोद खन्ना की सारी डेट्स उनके पास थी ही और वे उनकी डेट्स मिलते ही शूटिंग शुरू करना चाहते थे। इस बीच दिलीप साहब से पैसे की भी बात हुई तो उन्होंने कहा कि सुभाष घई से पूछ लो ,उसने विधाता के लिए जितना दिया है उतना ही दे देना। गोल्डी इसके लिए भी तैयार हो गए लेकिन शूटिंग की तारीख के लिए जब भी फोन किया गया कोई जबाब नहीं मिला।

डेढ़ महीने तक जब यह सब चलता रहा तब गोल्डी ने सायरा बानो से संपर्क कर उन्हें सारी बात बताई । अगले दिन दिलीप कुमार का फोन आया और उन्होंने उनसे यह कहते हुए माफी मांग ली कि यह कहानी बहुत तेज है और मैं थोड़ा इत्मीनान से काम करने का आदी हूं। इसलिए हम साथ काम नहीं कर पाएंगे। इस तरह गोल्डी का कृष्ण-अर्जुन बनाने का सपना अधूरा ही रह गया।

चलते-चलते

इस संबंध में गोल्डी ने अपनी आत्मकथा में लिखा है कि इस फिल्म में उनके काम न करने का मुख्य कारण यह था की वह जिस तरीके से निर्देशकों के काम में दखल देते थे वह उनके साथ संभव नहीं था। क्योंकि पटकथा सुनाने के दौरान भी उन्होंने भगवान मूर्ति के आगे शिकायत करने या भगवान से झगड़ा करने को जो सुझाव उन्हें दिए थे उन्हें उन्होंने तुरंत ही खारिज कर दिया था। कोई और निर्माता निर्देशक होता तो दिलीप कुमार के साथ काम करने के लालच में कोई भी समझौता कर लेता...। लेकिन गोल्डी तो निराले थे । उन्होंने तो अपने भाई देवानंद तक की दखल को कभी नहीं स्वीकारा जो कि उन फिल्मों के निर्माता भी थे ।



(लेखक, वरिष्ठ कला समीक्षक हैं।)