दुल्हन के हाथों में खनकती हैं 'जीविका' दीदियों द्वारा बनाई गई लहठी
Aug 9, 2023, 10:46 IST

बेगूसराय, 09 अगस्त। राष्ट्रीय ग्रामीण आजीविका मिशन (जीविका) से जुड़ी दीदी और स्वयं सहायता समूह (एसएचजी) ने हर गांव-घर की महिलाओं को एक नया रास्ता दिखा दिया है। महिलाएं ना सिर्फ स्वरोजगार और घरेलू रोजगार के माध्यम से आत्मनिर्भर हो रही हैं। बल्कि, पारंपरिक घरेलू उद्योगों को भी बढ़ावा मिल रहा है।
ऐसा ही एक उद्योग है लाह से बनी लहठी का निर्माण। एक समय था जब गांव में लहेरी समुदाय के लोग घरों में लहठी बनाते थे और उसे गांव-गांव में घूम कर बेचा जाता था। 90 के दशक के दिनों में आर्टिफिशियल आइटम ने इनके रोजगार पर आक्रमण कर दिया तो यह घरेलू उद्योग धीरे-धीरे कम होते चला गया। गांव में बने सस्ते और टिकाऊ लहठी के बदले आर्टिफिशियल लहठी की मांग बढ़ गई।
लेकिन जीविका ने इस लहठी उद्योग को एक बार फिर बढ़ावा दिया। साधन और संसाधन उपलब्ध कराए गए। आज बेगूसराय जिला के भगवानपुर प्रखंड की जीविका दीदी कौशल्या देवी अपने पूरे परिवार के साथ लहठी निर्माण कार्य से जुड़ी हुई हैं। वहीं, जीविका से जुड़ी पड़ोस की चार महिलाएं भी इनके साथ इन गतिविधियों में लगी हुई हैं।
लहठी बनाने के बाद इसे स्थानीय दुकानदारों को दे दिया जाता है और उसके बदले जीविका दीदियों को निर्धारित कीमत 35 से 50 रुपए दर्जन मिल जाता है। लहठी निर्माण से जुड़ी महिलाओं के अनुसार जयपुर, मुंबई, दिल्ली और कोलकाता से चूड़ियों में इस्तेमाल होने वाले नग, मेटल, केमिकल, स्टोन, प्लास्टिक डिजाइन मंगाए जाते हैं।
लहठी निर्माण कार्य से जुडी जीविका दीदी कौशल्या देवी की पुत्र वधू ने बताया कि शीशा जड़ित लहठी, दुल्हन, कश्मीरी, जीरा पानी का निर्माण सुबह से शाम सभी महिलाएं मिलकर करती हैं। आज इन्हीं लहठियों एवं चूड़ियों की मांग भी बाजार में अधिक है। वहीं, चार दीदियों के साथ मिलकर एक सौ दर्जन चूड़ियों का निर्माण कर लेती हैं।
वह बताती हैं कि आर्थिक रूप से काफी कमजोर होने के कारण उन्होंने जीविका के माध्यम से एक प्रतिशत ब्याज पर ऋण लेकर अपने इस कारोबार को शुरू किया और सफलता पूर्वक इसका संचालन कर रही हैं। इस कार्य से सभी जीविका दीदियों को पांच सौ रुपये से लेकर सात सौ रुपये तक रोजाना की आमदनी हो जाती है।
शादी सहित अन्य सभी शुभ कार्य को लेकर महिलाओं के सजने और संवरने के लिए बाजार में एक से बढ़कर एक खूबसूरत गहने और श्रृंगार का सामान उपलब्ध रहता है। लेकिन इनमें सबसे अलग और खूबसूरत श्रृंगार लहठी को माना जाता है। लाह को आग में तपाकर घरों में बनाया गया लहठी महिलाओं की पहली पसंद होती है।
इस लहठी को शुभ भी माना जाता है। लहठी में प्रयोग होने वाला लाह पश्चिम बंगाल से खरीदकर बेगूसराय लाया जाता है। बिहार के ग्रामीण इलाकों में लाह से बनी इस लहठी को सहना लहठी के नाम से भी जाना जाता है। इसे देखते ही महिलाएं खरीद लेना चाहती हैं, खासकर यदि त्योहारी सीजन हो तो महिलाएं सहना लहठी विशेष रूप से खरीदती हैं।
दूर्गा पूजा, सरस्वती पूजा, वट सावित्री व्रत सहित देवी पूजन के सभी अवसर और उत्सव में पूजन के लिए सिर्फ इस लहठी का ही उपयोग रहता है। जिसके कारण भारी डिमांड रहती है। लहठियां महिलाओं के सौभाग्य और सुहाग का प्रतीक माना जाता है। इसलिए सुहागिन महिलाओं के श्रृंगार में लहठियां जरूर शामिल रहता है।
उन्होंने बताया कि इसके साथ ही पूरी तरह से प्राकृतिक यह लाह महिलाओं की त्वचा के लिए भी सुरक्षित होता है। इसके उपयोग से हाथ में त्वचा से जुड़ी समस्याएं नहीं होती है। रोजाना लहठी का निर्माण कर उसे बिक्री के लिए बाहर भेजा जाता है। कुल मिलाकर कहें तो लहठी ने दीदियों का जीवन पूरी तरह बदल गया है।
ऐसा ही एक उद्योग है लाह से बनी लहठी का निर्माण। एक समय था जब गांव में लहेरी समुदाय के लोग घरों में लहठी बनाते थे और उसे गांव-गांव में घूम कर बेचा जाता था। 90 के दशक के दिनों में आर्टिफिशियल आइटम ने इनके रोजगार पर आक्रमण कर दिया तो यह घरेलू उद्योग धीरे-धीरे कम होते चला गया। गांव में बने सस्ते और टिकाऊ लहठी के बदले आर्टिफिशियल लहठी की मांग बढ़ गई।
लेकिन जीविका ने इस लहठी उद्योग को एक बार फिर बढ़ावा दिया। साधन और संसाधन उपलब्ध कराए गए। आज बेगूसराय जिला के भगवानपुर प्रखंड की जीविका दीदी कौशल्या देवी अपने पूरे परिवार के साथ लहठी निर्माण कार्य से जुड़ी हुई हैं। वहीं, जीविका से जुड़ी पड़ोस की चार महिलाएं भी इनके साथ इन गतिविधियों में लगी हुई हैं।
लहठी बनाने के बाद इसे स्थानीय दुकानदारों को दे दिया जाता है और उसके बदले जीविका दीदियों को निर्धारित कीमत 35 से 50 रुपए दर्जन मिल जाता है। लहठी निर्माण से जुड़ी महिलाओं के अनुसार जयपुर, मुंबई, दिल्ली और कोलकाता से चूड़ियों में इस्तेमाल होने वाले नग, मेटल, केमिकल, स्टोन, प्लास्टिक डिजाइन मंगाए जाते हैं।
लहठी निर्माण कार्य से जुडी जीविका दीदी कौशल्या देवी की पुत्र वधू ने बताया कि शीशा जड़ित लहठी, दुल्हन, कश्मीरी, जीरा पानी का निर्माण सुबह से शाम सभी महिलाएं मिलकर करती हैं। आज इन्हीं लहठियों एवं चूड़ियों की मांग भी बाजार में अधिक है। वहीं, चार दीदियों के साथ मिलकर एक सौ दर्जन चूड़ियों का निर्माण कर लेती हैं।
वह बताती हैं कि आर्थिक रूप से काफी कमजोर होने के कारण उन्होंने जीविका के माध्यम से एक प्रतिशत ब्याज पर ऋण लेकर अपने इस कारोबार को शुरू किया और सफलता पूर्वक इसका संचालन कर रही हैं। इस कार्य से सभी जीविका दीदियों को पांच सौ रुपये से लेकर सात सौ रुपये तक रोजाना की आमदनी हो जाती है।
शादी सहित अन्य सभी शुभ कार्य को लेकर महिलाओं के सजने और संवरने के लिए बाजार में एक से बढ़कर एक खूबसूरत गहने और श्रृंगार का सामान उपलब्ध रहता है। लेकिन इनमें सबसे अलग और खूबसूरत श्रृंगार लहठी को माना जाता है। लाह को आग में तपाकर घरों में बनाया गया लहठी महिलाओं की पहली पसंद होती है।
इस लहठी को शुभ भी माना जाता है। लहठी में प्रयोग होने वाला लाह पश्चिम बंगाल से खरीदकर बेगूसराय लाया जाता है। बिहार के ग्रामीण इलाकों में लाह से बनी इस लहठी को सहना लहठी के नाम से भी जाना जाता है। इसे देखते ही महिलाएं खरीद लेना चाहती हैं, खासकर यदि त्योहारी सीजन हो तो महिलाएं सहना लहठी विशेष रूप से खरीदती हैं।
दूर्गा पूजा, सरस्वती पूजा, वट सावित्री व्रत सहित देवी पूजन के सभी अवसर और उत्सव में पूजन के लिए सिर्फ इस लहठी का ही उपयोग रहता है। जिसके कारण भारी डिमांड रहती है। लहठियां महिलाओं के सौभाग्य और सुहाग का प्रतीक माना जाता है। इसलिए सुहागिन महिलाओं के श्रृंगार में लहठियां जरूर शामिल रहता है।
उन्होंने बताया कि इसके साथ ही पूरी तरह से प्राकृतिक यह लाह महिलाओं की त्वचा के लिए भी सुरक्षित होता है। इसके उपयोग से हाथ में त्वचा से जुड़ी समस्याएं नहीं होती है। रोजाना लहठी का निर्माण कर उसे बिक्री के लिए बाहर भेजा जाता है। कुल मिलाकर कहें तो लहठी ने दीदियों का जीवन पूरी तरह बदल गया है।

