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मातृ दिवस पर विशेष "मांवां ठडियां छांवां , छांवां कौण करें"

 
मातृ दिवस पर विशेष "मांवां ठडियां छांवां , छांवां कौण करें" 

मातृ दिवस माता को सम्मान देने के लिए मनाया जाता है. एक मां का आँचल अपनी संतान के लिए कभी छोटा नहीं पड़ता। माँ का प्रेम अपनी संतान के लिए इतना गहरा और अटूट होता है कि माँ अपने बच्चे की खुशी के लिए सारी दुनिया से लड़ लेती है। एक मां का हमारे जीवन में बहुत बड़ा महत्व है, एक मां बिना ये दुनियां अधूरी है। मां शब्द अपने आप में एक मुकम्मल शब्द है मां शब्द जेहन में आते ही परमात्मा के  एक स्वरूप की तस्वीर नजर आती है मां एक बच्चा पैदा करने के लिए कितने  ही दुख और तकलीफ  सहन करती हैं परंतु औलाद को यह सिर्फ एक फर्ज नजर आता है  मां एक बच्चे को 9 महीने तक अपने पेट में, 3 साल तक अपनी बाहों में और सदा के लिए अपने दिल में स्थान देती है माता दस औलादो को इकट्ठा पाल सकती है परंतु आजकल औलादे इतनी नाशुक्री  हो गई है कि अपना मतलब समाप्त होते ही या बुढ़ापे में माओं को वृद्ध आश्रम पहुंचा दिया जाता है मां की औलाद के प्रति निभाए गए फर्जो का बदला औलाद सो जन्म लेकर भी नहीं उतार सकती 
जब दवा असर नहीं करती तो मां उतारती है
वह मां है जनाब वह कहां हार मानती है

हमारे जीवन में हर माँ की एक ही भूमिका होती है। वह हर परिवार की बुनियाद है। वह देख भाल करने वाली होती है और सभी को बिना शर्त प्यार देती है। माँ की परिभाषा हर व्यक्ति के लिए अलग हो सकती है, किसी के लिए वह एक देख भाल करने वाली हो सकती है, किसी के लिए वह सबसे अच्छी दोस्त हो सकती है और किसी के लिए वह सबसे अच्छी रसोइया हो सकती है। हम इस दुनिया में हर मां को कृतज्ञता और प्रशंसा देने के लिए मातृ दिवस मनाते हैं। एक माँ हम सब के लिए इतनी बड़ी प्रेरणा होती है कि माँ के प्रयासों की सराहना करने के लिए केवल एक दिन पर्याप्त नहीं होता है।
पहला मातृ दिवस वर्ष 1908 में अन्ना जार्विस द्वारा अपनी मां के लिए एक स्मारक के रूप में मनाया गया था। हर मां अपने बच्चों और परिवार  को एक साथ रखने के लिए कड़ी मेहनत करती है और सब को प्रोत्साहित करती है। मां को लेकर उत्सव मनाने के लिए सिर्फ़ एक दिन काफी नहीं है। मातृ दिवस दुनिया भर में अपनी मां के लिए अपने प्यार का इजहार करके मनाया जाता है।

पहला मातृ दिवस 1908 में फिलाडेल्फिया के अन्ना जार्विस द्वारा मनाया गया था। 12 मई 1998 को, उन्होंने वेस्ट वर्जीनिया के ग्राफ्टन चर्च में अपनी दिवंगत मां के लिए एक स्मारक रखा था। एना जार्विस ने सभी सफेद कार्नेशन पहने थे, लेकिन जैसे-जैसे यह रिवाज विकसित हुआ, लोगों ने जीवित मां का प्रतिनिधित्व करने के लिए लाल या गुलाबी रंग के कार्नेशन्स पहनना शुरू कर दिया। लोगों ने अपनी मृत मां की स्मृति लिए सफेद कार्नेशन्स पहनना शुरू कर दिया। इसके बाद इसे हर राज्य में एक रस्म बना दिया गया।
संसार की सभी माताओं को इसी दुआ के साथ शत शत नमन कि 
मांग  लु यह दुआ की फिर यही जहां मिले,
फिर वही गोद  मिले और फिर वही मां मिले।
-राकेश भाटिय़ा उप प्राचार्य श्रीराम न्यू सतलुज सीनियर सेकेंडरी स्कूल सिरसा