Pal Pal India

पंचकोसी वारुणी यात्रा में उमड़ा श्रद्धा का सैलाब

 
पंचकोसी वारुणी यात्रा में उमड़ा श्रद्धा का सैलाब
उत्तरकाशी, 19 मार्च। जनपद की पंचकोसी वारुणी यात्रा पड़ाव पर विभिन्न मंदिर श्रद्धालुओं के दर्शन के लिए सजे हैं। रविवार को एक दिवसीय पंचकोसी यात्रा में हजारों श्रद्धालु शामिल हुए। यात्रा पड़ावों पर पड़ने वाले गांव में ग्रामीणों और मंदिरों में बहुत भीड़ लगी हुई है। पंचकोसी वारुणी यात्रा एक दिन की होती है, जो वरुणा और भागीरथी के संगम बड़ेथी से शुरू होती है।

इस पंचकोसी यात्रा में गंगा स्नान करने के बाद भक्त पद यात्रा के लिए निकल पड़ते हैं। करीब 15 किमी लंबी इस पद यात्रा के पथ पर श्रद्धालु बड़ेथी संगम स्थित वरुणेश्वर, बसूंगा में अखंडेश्वर, साल्ड में जगरनाथ और अष्टभुजा दुर्गा, ज्ञाणजा में ज्ञानेश्वर और व्यास कुंड, वरुणावत शीर्ष पर शिखेरश्वर, विमलेश्वर महादेव, संग्राली में कंडार देवता, पाटा में नरवदेश्वर मंदिर के दर्शन के बाद गंगोरी पहुंचते हैं। असी गंगा और भागीरथी में स्नान के बाद विश्वनाथ मंदिर में जलाभिषेक करते हैं और जलाभिषेक के साथ यात्रा का समापन होता है।

शिव वाराणसी छोड़ उत्तरकाशी में देंगे भक्तों को दर्शन-

गंगा जी की गोद में बसा जनपद उत्तरकाशी पर्यटक और तीर्थ यात्रियों के लिए आकर्षक का केंद्र है। प्राकृतिक सौंदर्य के कारण देश ओर विदेशों के अनेक पर्यटक सुंदर ओर मनमोहक दृश्य शांति की प्राप्ति करते हैं। भगीरथ की तपस्थली के इस क्षेत्र की महिमा वर्णन स्कन्द पुराण के केदारखण्ड में किया गया है।

सौम्यकाशी ते विख्याता गिरी वरणावते, यत्र ब्रह्मा च विष्णुश्च यत्र ऋषिआश्रमश्च।

इयं उत्तरकाशी प्राणीनां मुक्तिदायिनी, धन्या लोके महाभागा कलौयेषामहि स्थिति।।

अर्थात कलियुग में वे लोग धन्य हैं जो लोग अस्सी और वरुणा के संगम गंगा तट पर वरुणावत पर्वत के मध्य उत्तरकाशी नगर में निवास करते हैं। पौराणिक आस्थाओं के साथ प्राचीन काल से ही यह स्थान भगवान शिव की तपस्थली रहा है। मान्यता है कि कलिकाल में पूर्व काशी में पाप के आधिक्य होने पर भगवान शिव सौम्यकाशी उत्तरकाशी में ही निवास करेंगे ।

भगवान शिव की आराधना के लिये महत्वपूर्ण माने जाने वाले इस नगर के प्रमुख त्योहारों में पंचकोसी वरुणावत पर्वत की परिक्रमा को एक विशेष त्योहार के रूप में मनाया जाता है। वरुणावत परिक्रमा का अपना विशेष धार्मिक महत्व है। जनपद मुख्यालय के पार्श्व भाग में अवस्थित वरुणावत पर्वत की पांच कोस की पंचकोसी परिक्रमा में प्रतिवर्ष हजारों श्रद्धालु अपनी मन इच्छा लिये भगवान शिव की जयघोष करते हुए यात्रा करते हैं।

वरुणावत पर्वत की परिक्रमा की यह परम्परा काफी प्राचीन काल से चली आ रही है। स्थानीय जनश्रुति के अनुसार यह माना जाता है कि कोई भी श्रद्धालु यदि सच्चे मन से शिवशक्ति पर विश्वास रखते हुए इस पांच कोष की वरुणावत परिक्रमा को पूरी करता है तो निश्चित ही उसकी मन इच्छा पूर्ण होती है।

वसन्त ऋतु में चैत्र मास के कृष्ण पक्ष में वारुणी पर्व मनाया जाता है। बड़ेथी में वरुणा गंगा संगम से प्रारम्भ होने वाली और अस्सी गंगा संगम तक समाप्त होने वाली इस पंचकोस अर्थात 15 किमी की पैदल यात्रा का वर्णन केदार खण्ड में भी मिलता है। यात्रा का प्रारम्भ प्रातः वरुण गंगा त्रिवेणी संगम में स्नान से होता है। हजारों की संख्या में बच्चों से लेकर वृद्ध स्त्री पुरुष और श्रद्धालु त्रिवेणी संगम में स्नान कर मन में शिव नाम का जाप करते हुए यात्रा के लिये चलते हैं।