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बदलते मौसम व तापमान में गिरावट से आलू की फसल में झुलसा रोग लगने की संभावना

-आलू फसल का पछेती अंगमारी रोग बेहद विनाशकारी : डॉ. पंकज 
 
बदलते मौसम व तापमान में गिरावट से आलू की फसल में झुलसा रोग लगने की संभावना 
कटिहार, 18 जनवरी। सब्जी की फसल में आलू का एक विशेष महत्व है। सब्जी के अलावा आलू से निर्मित विभिन्न प्रकार के भोज्य पदार्थ जैसे चिप्स, पापड़, नमकीन इत्यादि अत्यंत लोकप्रिय हैं। इस फसल को अनेक रोग व कीट हानि पहुंचाते हैं और कई तो अतीत में फसल के लिए अत्यंत घातक रहे हैं।

जनवरी माह में लगातार बदलते मौसम व तापमान गिरावट से आलू की फसल में कई तरह के रोग लगने की संभावना बढ़ जाती है। अगर समय रहते इनका प्रबंधन न किया गया तो आलू की खेती करने वाले किसानों को नुकसान उठाना पड़ सकता है। आलू की सफल खेती के लिए आवश्यक है की समय से पछेती झुलसा रोग का प्रबंधन किया जाय। यह रोग फाइटोपथोरा इन्फेस्टेंस नामक कवक के कारण फैलता है।

कृषि विज्ञान केंद्र, कटिहार के वैज्ञानिक डॉ. पंकज कुमार ने बुधवार हिन्दुस्थान समाचार से बातचीत में बताया कि आलू का पछेती अंगमारी रोग बेहद विनाशकारी है। जब वातावरण में नमी व रोशनी कम होती है और कई दिनों तक बरसात या बरसात जैसा माहौल होता है, तब इस रोग का प्रकोप पौधे पर पत्तियों से शुरू होता है। यह रोग चार से पांच दिनों के अंदर पौधों की सभी हरी पत्तियों को नष्ट कर सकता है। पत्तियों की निचली सतहों पर सफेद रंग के गोले गोले बन जाते हैं, जो बाद में भूरे व काले हो जाते हैं।

डॉ. पंकज ने बताया कि पत्तियों के बीमार होने से आलू के कंदों का आकार छोटा हो जाता है और उत्पादन में कमी आ जाती है। इस के लिए 20-21 डिग्री सेंटीग्रेड तापमान मुनासिब होता है। आर्द्रता इसे बढ़ाने में मदद करती है। पछेती झुलसा के विकास को प्रभावित करने वाले सबसे महत्वपूर्ण पर्यावरणीय कारक तापमान और नमी हैं। उन्होंने बताया कि स्पोरैंगिया निचली पत्ती की सतहों और संक्रमित तनों पर बनते हैं जब सापेक्षिक आर्द्रता 90 प्रतिशत होती है। बीजाणु बनाने की प्रक्रिया (स्पोरुलेशन) 3-26 डिग्री सेल्सियस (37-79 डिग्री फारेनहाइट) से हो सकता है, लेकिन अधिकतम सीमा 18-22 डिग्री सेल्सियस (64-72 डिग्री फारेनहाइट) है। आलू एवं की सफल खेती के लिए आवश्यक है की इस रोग के बारे में जाने एवं प्रबंधन के लिए आवश्यक फफुंदनाशक पहले से खरीद कर रख ले एवं स-समय उपयोग करें अन्यथा रोग लगने के बाद यह रोग आप को इतना समय नहीं देगा की आप तैयारी करें।पूरी फसल नष्ट होने के लिए चार से पांच दिन पर्याप्त है।

पछेती झुलसा रोग का प्रबंधन को लेकर पंकज कुमार ने बताया कि जिन खेतों में झुलसा बीमारी नहीं हुई है, उन सभी किसानों को सलाह है कि मैंकोजेब युक्त फफूंदनाशक 0.2 प्रतिशत की दर से यानि दो ग्राम दवा प्रति लीटर पानी में घोलकर छिड़काव करें। एक बार रोग के लक्षण दिखाई देने के बाद मैनकोजेब नामक देने का कोई असर नहीं होगा इसलिए जिन खेतों में बीमारी के लक्षण दिखने लगे हों उनमें साइमोइक्सेनील मैनकोजेब दवा की 03 ग्राम मात्रा प्रति लीटर पानी में घोलकर छिड़काव करें। इसी प्रकार फेनोमेडोन मैनकोजेब 03 ग्राम प्रति लीटर में घोलकर छिड़काव कर सकते है। मेटालैक्सिल एवं मैनकोजेब मिश्रित दवा की 2.5 ग्राम मात्रा प्रति लीटर पानी में घोलकर भी छिड़काव किया जा सकता है। एक हेक्टेयर में 800 से लेकर 1000 लीटर दवा के घोल की आवश्यकता होगी।