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वागड़ अंचल में गूंजती हैं मणि बावरा की कविताएं

 
  वागड़ अंचल में गूंजती हैं मणि बावरा की कविताएं
बांसवाड़ा के साहित्यकाश में उदित होकर अपनी रचनाओं की चमक-दमक के साथ देश के साहित्य जगत में खासी भूमिका निभाने वाले मणि बावरा वागड़ अंचल के उन साहित्यकारों में रहे हैं जिन्हें अग्रणी पंक्ति का सूत्रधार माना जा सकता है। यशस्वी साहित्यकार मणि बावरा उस शख्सियत का नाम रहा है जिसने जीवन संघर्षों और परिवेशीय विषमताओं के बावजूद साहित्य जगत की सेवा की और बांसवाड़ा में साहित्य धाराओं को पुष्ट किया। इसके साथ ही अच्छे कवि के रूप में बांसवाड़ा और इससे बाहर भी खासी पहचान कायम की। बावरा का जन्म विपन्न परिवार में 23 जनवरी, 1935 को जगजीवन पटेल के घर हुआ। उन्होंने शिक्षा को अपनी आजीविका का जरिया बनाया और जीवनभर शिक्षक के रूप में उल्लेखनीय सेवाएं दीं तथा समाज-जीवन को अपने बहुआयामी मौलिक व्यक्तित्व की खूबियों से परिचित कराया।

उनकी धारदार गद्य कविताएं सामाजिक एवं परिवेशीय व्यवस्थाओं पर पैनी चोट करने में सक्षम हैं। अपनी कविताओं और व्यक्तिगत जिन्दगी में बेबाक बयानी उन्हें निर्भीक शख़्सियत के रूप में प्रतिष्ठित करने वाली रही। मणि बावरा का काव्य संकलन ‘अंधेरे के खिलाफ’ सन् 1999 में प्रकाशित हुआ। इसे बावरा ने उस आदमी को समर्पित किया है जो निरन्तर अंधेरे के खिलाफ विजय अभियान के प्रति समर्पित है। दीप शिखा साहित्य संगम द्वारा प्रकाशित इस काव्य संकलन में बावरा के समग्र काव्य जीवन की झलक देखने को मिलती है।

अपने जीवन ध्येय को उन्होंने चन्द लम्हों में अच्छी तरह व्यक्त किया है। अंधेरे के खिलाफ में एक जगह वह लिखते हैं - ‘‘कमबख्त यह जीवन! जटिलताओं और दुर्घटनाओं से आतट अमावसी जीवन को यही तो कहा जा सकता है। डरावनी/फरेबी दुनिया! ..... और इस दुनिया से कोई सच्चाई छिटक पड़ती तो लपकने का प्रयास करता। तब होता जीवंतता का अहसास। अरे! इस तरह मूर्तिमान होकर मेरे समक्ष क्यों खड़े हो? क्या आप दलित/पीड़ित संघर्षरत मानवता के खण्डहर हो? अपनी जिन्दगी को तलाश है? आखिर क्या कर सकते हैं हम!’’

मणि बावरा उन बिरले रचनाकारों में हैं जिनकी लेखनी ने कभी विराम नहीं लिया। उनकी रचनाएं स्थानीय समाचार पत्र-पत्रिकाओं, स्मारिकाओं से लेकर प्रदेश एवं राष्ट्रीय स्तर की पत्र-पत्रिकाओं में स्थान पाती रहीं। शिक्षा विभागीय पत्रिका शिविरा तथा शिक्षक दिवस के विभागीय प्रकाशनों में उनके निबंध, कविताएं, कहानियां, लघु कथाएं आदि साहित्य महत्वपूर्ण स्थान पाए बगैर नहीं रहता। बावरा ने वागड़ अंचल के प्रतिनिधि रचनाकार के रूप में खासी धाक कायम की। इस अंचल से प्रकाशित होने वाले कई पाक्षिक, साप्ताहिक, मासिक, त्रैमासिक पत्र-पत्रिकाओं, इनके प्रवेशांकों, विशेषांकों आदि का सम्पादन उन्होंने किया।

तकरीबन 300 से अधिक पुस्तकों और पत्र-पत्रिकाओं में उनकी कविताएं, कहानियां, लघु कथाएं आदि का प्रकाशन हुआ है। बांसवाड़ा, उदयपुर एवं अन्य आकाशवाणी केन्द्रों से शताधिक अवसरों पर उनकी रचनाओं का प्रसारण हो चुका है। खासकर नई कविता का प्रयोग करने वाले बावरा इस अंचल के प्रथम पंक्ति के कवि रहे हैं। उनकी कविता में प्रतीक तथा बिम्ब उनकी अनूठे लहजे वाली सम्प्रेषण क्षमता के कारण प्रभावी बन पड़ते हैं। यह कहा जा सकता है कि यह फक्कड़ शब्द शिल्पी बिरला ही था। पढ़ने-लिखने के शौक के मामले में मणि बावरा का कोई सानी नहीं। होली चौक स्थित उनका निवास इस दृष्टि से साहित्य केन्द्र था जहां पुराना साहित्य, पत्र-पत्रिकाएं और पुस्तकों का भण्डार उनकी स्वाध्याय रुचि को अच्छी तरह दर्शाता है। साहित्य की विभिन्न विधाओं में देश के विभिन्न हिस्सों में प्रकाशित पुस्तकों, सामयिक पत्र-पत्रिकाओं की उन तक पहुंच थी और इनमें उनकी रचनाओं को अहम स्थान भी मिलता रहा।

बावरा का ज्यादातर समय नियमित रूप से इन साहित्यिक पुस्तकों के अध्ययन में गुजरा। उन्होंने अपने काव्य में साहित्य की विभिन्न शैली का बखूबी प्रयोग भी किया। नई कविता के सशक्त हस्ताक्षर के रूप में चर्चित रहे बावरा ने अपनी रचनाओं में आम आदमी की जिजीविषा और जमीनी जिन्दगी से रूबरू कराया। साहित्यिक मूल्यों के संरक्षण और साहित्यधाराओं के प्रोत्साहन की दिशा में बावरा के कार्य नई पीढ़ी के लिए प्रेरणा स्रोत हैं। राजकीय नगर उच्च माध्यमिक विद्यालय में शिक्षकीय दायित्वों के निर्वहन के साथ ही शिक्षा विभागीय सांस्कृतिक-साहित्यिक गतिविधियां और बावरा वर्षों तक एक दूसरे के पूरक रहे हैं।

साहित्य और संस्कृति के संरक्षण, संवर्द्धन तथा निरन्तर अनथक सृजन के लिए बावरा को विभिन्न अवसरों पर सम्मान प्रदान किया गया। मार्च 2002 में माँ सरस्वती साहित्य परिषद, बाँसवाड़ा द्वारा उन्हें ‘अंधेरे के खिलाफ’ पुस्तक के लिए कृतिकार सम्मान प्रदान किया गया। सन् 1996 में जिला प्रशासन द्वारा गणतंत्र दिवस पर उन्हें तीन दशकों से सुभाष जयन्ती के नियमित आयोजन के लिए जिलास्तरीय सम्मान प्रदान किया गया। सृजन साहित्य सेवा संस्था, बड़ी उदयपुर द्वारा सन् 1983 में उन्हें राष्ट्रवाणी हिन्दी के उन्नयन, सृजन, विकास एवं प्रचार-प्रसार के क्षेत्र में उल्लेखनीय योगदान के लिए लोकमान-83 अलंकरण प्रदान किया गया। साहित्य में उल्लेखनीय सेवाओं के लिए वागड़ विकास संस्थान ने कर्मवीर अलंकरण से सम्मानित किया।

साहित्य जगत की सेवाओं तथा साहित्य के नवांकुरों के प्रोत्साहन की दृष्टि से मणि बावरा ने खूब प्रयास किए। उन्होंने विभिन्न स्तरों पर रचनाधर्मियों को संगठित होकर आगे बढ़ने की प्रेरणा दी और हरसंभव सम्बल प्रदान किया। बांसवाड़ा के साहित्य जगत को नवीन आयाम देने के लिए उनकी पहल पर ही दीप शिखा साहित्य संगम की स्थापना की गई। मणि बावरा ने अपने साहित्यिक मित्रों के सहयोग से ‘शेष यात्राएं’’ काव्य संग्रह का सम्पादन किया। त्रैमासिक वाग्वर तथा ‘साहित्य कलश’ के संपादन मण्डल में उनकी भूमिका महत्वपूर्ण रही। अपने 67 वर्षीय सफर में बावरा ने बांसवाड़ा में साहित्य जगत को नवीन पहचान तो दी ही, अपनी अनथक साहित्यिक यात्रा और नियमित सृजन-प्रकाशन की बदौलत बांसवाड़ा को प्रदेश-देश के साहित्याकाश में भी नाम दिया। सन 2002 की 4 जुलाई को यह अजीम शख्सियत कई यादगार लम्हों भरा साहित्यिक इतिहास छोड़ अलविदा कह गई। उनकी जयन्ती पर श्रद्धांजलि।