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सिख धर्म में दीवाली पर मनाया जाता है बंदी छोड़ दिवस

 
 सिख धर्म में दीवाली पर मनाया जाता है बंदी छोड़ दिवस
चंडीगढ़, 12 नवंबर  भारत विभिन्न जाति व धर्मों का देश है। जहां प्रत्येक त्यौहार को अलग-अलग तरीके से मनाए जाने की परंपरा है। आज देश में जहां दीपावली की धूम है वहीं पंजाब समेत समूचे विश्व में बसे सिख समुदाय के लोग दिवाली के दिन बंदी छोड़ दिवस के रुप में मनाते हैं। बंदी छोड़ दिवस का संबंध सिखों के छठे गुरू गुरू हरगोबिंद सिंह से है। माना जाता है गुरू हरगोबिंद सिंह जी की इस दिन जहांगीर द्वारा रिहाई की गई थी। इसीलिए सिख समुदाय के लोग बंदी छोड़ दिवस को दिवाली के समान ही मनाते हैं और घरों और गुरुद्वारों को रौशन करते हैं।
पौराणिक कथा के अनुसार मुगलों ने ग्वालियर के किले को जेल में तबदील कर दिया। इस किले में मुगल सल्तनत के लिए खतरा कहे जाने वाले लोगों को कैद करके रखा जाता था। मुगल बादशाह जहांगीर ने यहां 52 राजाओं के साथ छठे सिख गुरु हरगोबिंद साहिब को भी कैद रखा था। ऐसा माना जाता है जहांगीर को सपने में एक रूहानी हुक्म के कारण गुरु हरगोबिंद साहिब को रिहा करना पड़ा।
जब मुगल बादशाह को जब अपनी गलती का अहसास हुआ, तो उन्होंने हरगोबिंद साहिब से लौटने का आग्रह किया। गुरु हरगोबिंद साहिब ने अकेले जानें से मना कर दिया और अपने साथ के सभी 52 कैदियों की भी रिहाई करवाई। गुरु साहिब के लिए 52 कली का चोला बनवाया। 52 राजा जिसकी एक-एक कली पकडक़र किले से बाहर आ गए। इस तरह उन्हें कैद से मुक्ति मिल सकी थी।
इसीलिए इस दिन को बंदी छोड़ दिवस यानि बंधनों से मुक्ति दिलाने वाला दिन कहा जाता है। ऐसा माना जाता है गुरु हरगोबिंद सिंह जी दिवाली वाले दिन 52 राजाओं को जहांगीर की कैद से मुक्त कराकर अकाल तख्त साहिब, अमृतसर पहुंचे थे। इस मौके पर पूरे अमृतसर शहर को दीयों से सजाया गया।
रविवार को भी दीपावली व बंदी छोड़ दिवस के अवसर पर दरबार साहिब में संगत अल सुबह से नतमस्तक हो रही है। भारी संख्या में श्रद्धालु रविवार की रात यहां होने वाली आतिश्बाजी का नजारा देखने के लिए जमा हैं।