बरनाला सीट पर आआपा को भारी पड़ी बगावत
हार-जीत के अंतर से ज्यादा बागी ने लिए वोट, पंजाब में भी कांग्रेस को ले डूबा परिवारवाद
Nov 23, 2024, 19:01 IST
भाजपा प्रत्याशियों ने भुगता अध्यक्ष की निष्क्रियता का खामियाजा
चंडीगढ़, 23 नवंबर । पंजाब में शनिवार को चार विधानसभा क्षेत्रों के उपचुनाव परिणाम ने प्रदेश के राजनीतिक समीकरण बदल दिए हैं। चुनाव परिणाम का ऐलान होने से ठीक एक दिन पहले ही मुख्यमंत्री भगवंत मान ने प्रदेश अध्यक्ष का पद छोड़ते हुए कैबिनेट मंत्री अमन अरोड़ा को प्रदेश अध्यक्ष नियुक्त किया था। पंजाब में जिन चार सीटों पर उपचुनाव हुआ है वह विधायकों के सांसद बनने के कारण रिक्त हुई थीं।
सामान्य चुनाव में इन चार में से तीन सीटाें पर कांग्रेस के विधायक थे। आज आए परिणाम में यह समीकरण बदल गया है। बरनाला में कांग्रेस के कुलदीप सिंह काला ढिल्लों काे जीत मिली है। यह सीट संगरूर से सांसद बने गुरमीत सिंह मीत हेयर का गढ़ रही है। वह लगातार 2 बार यहां से चुनाव जीते थे, लेकिन इस बार अपने करीबी को टिकट दिलाने के चक्कर में पार्टी में फूट पड़ गई। बरनाला सीट पर आप को टिकट वितरण के बाद गुरदीप बाठ की बगावत से उपचुनाव में नुकसान हुआ। बाठ ने टिकट न मिलने पर निर्दलीय चुनाव लड़ा। उन्हें चुनाव में 16 हजार 899 वोट मिले, जबकि आप उम्मीदवार की हार का अंतर करीब दो हजार वोटों का रहा। यहां से कांग्रेस के कुलदीप सिंह काला ढिल्लों जीते, जिन्हें 28,254 वोट मिले। दूसरे नंबर पर रही आआपा के हरिंदर सिंह धालीवाल को 26,097 तथा भाजपा के केवल सिंह ढिल्लों को 17 हजार 958 वोट मिले।
उपचुनाव वाली चारों सीटों पर भाजपा को झटका लगा है। वह किसी भी सीट पर दूसरे नंबर स्थान तक नहीं आ सकी। गिद्दड़बाहा सीट से दो बार के वित्तमंत्री रहे मनप्रीत बादल तीसरे नंबर पर रहे। उन्हें बादल परिवार की विरासत का भी फायदा नहीं मिला। बरनाला में 2 बार के विधायक रहे केवल ढिल्लो भी हार गए। वह तीसरे नंबर पर रहे। डेरा बाबा नानक और चब्बेवाल में भी भाजपा बुरी तरह से पिछड़ गई। भाजपा प्रत्याशियों ने यह चुनाव अपने बल पर लड़ा है। इस उपचुनाव में पार्टी की तरफ से कोई भी शीर्ष नेता यहां प्रचार के लिए नहीं भेजा गया।
प्रदेश अध्यक्ष सुनील जाखड़ की निष्क्रियता के चलते भाजपा प्रत्याशियों को यहां हार मिली है। सामान्य चुनाव जीतने के बाद उपचुनाव हारने वाली कांग्रेस को परिवारवाद ले डूबा। यहां पार्टी ने पुराने कार्यकर्ताओं की अनदेखी करते हुए विधायक से सांसद बने सुखजिंदर सिंह रंधावा की पत्नी जतिंद्र कौर रंधावा को डेराबाबा नानक से तथा लुधियाना से सांसद बने अमरिंदर सिंह राजा वडिंग की पत्नी अमृता वडिंग को गिद्दड़बाहा से टिकट दी थी। टिकट आवंटन के साथ ही यहां कांग्रेस का विरोध हुआ और परिवारवाद के आरोप खुलेआम लगे। कार्यकर्ताओं की अनदेखी के चलते कांग्रेस अपनी पुरानी सीटों को भी उपचुनाव में नहीं बचा पाई।
सामान्य चुनाव में इन चार में से तीन सीटाें पर कांग्रेस के विधायक थे। आज आए परिणाम में यह समीकरण बदल गया है। बरनाला में कांग्रेस के कुलदीप सिंह काला ढिल्लों काे जीत मिली है। यह सीट संगरूर से सांसद बने गुरमीत सिंह मीत हेयर का गढ़ रही है। वह लगातार 2 बार यहां से चुनाव जीते थे, लेकिन इस बार अपने करीबी को टिकट दिलाने के चक्कर में पार्टी में फूट पड़ गई। बरनाला सीट पर आप को टिकट वितरण के बाद गुरदीप बाठ की बगावत से उपचुनाव में नुकसान हुआ। बाठ ने टिकट न मिलने पर निर्दलीय चुनाव लड़ा। उन्हें चुनाव में 16 हजार 899 वोट मिले, जबकि आप उम्मीदवार की हार का अंतर करीब दो हजार वोटों का रहा। यहां से कांग्रेस के कुलदीप सिंह काला ढिल्लों जीते, जिन्हें 28,254 वोट मिले। दूसरे नंबर पर रही आआपा के हरिंदर सिंह धालीवाल को 26,097 तथा भाजपा के केवल सिंह ढिल्लों को 17 हजार 958 वोट मिले।
उपचुनाव वाली चारों सीटों पर भाजपा को झटका लगा है। वह किसी भी सीट पर दूसरे नंबर स्थान तक नहीं आ सकी। गिद्दड़बाहा सीट से दो बार के वित्तमंत्री रहे मनप्रीत बादल तीसरे नंबर पर रहे। उन्हें बादल परिवार की विरासत का भी फायदा नहीं मिला। बरनाला में 2 बार के विधायक रहे केवल ढिल्लो भी हार गए। वह तीसरे नंबर पर रहे। डेरा बाबा नानक और चब्बेवाल में भी भाजपा बुरी तरह से पिछड़ गई। भाजपा प्रत्याशियों ने यह चुनाव अपने बल पर लड़ा है। इस उपचुनाव में पार्टी की तरफ से कोई भी शीर्ष नेता यहां प्रचार के लिए नहीं भेजा गया।
प्रदेश अध्यक्ष सुनील जाखड़ की निष्क्रियता के चलते भाजपा प्रत्याशियों को यहां हार मिली है। सामान्य चुनाव जीतने के बाद उपचुनाव हारने वाली कांग्रेस को परिवारवाद ले डूबा। यहां पार्टी ने पुराने कार्यकर्ताओं की अनदेखी करते हुए विधायक से सांसद बने सुखजिंदर सिंह रंधावा की पत्नी जतिंद्र कौर रंधावा को डेराबाबा नानक से तथा लुधियाना से सांसद बने अमरिंदर सिंह राजा वडिंग की पत्नी अमृता वडिंग को गिद्दड़बाहा से टिकट दी थी। टिकट आवंटन के साथ ही यहां कांग्रेस का विरोध हुआ और परिवारवाद के आरोप खुलेआम लगे। कार्यकर्ताओं की अनदेखी के चलते कांग्रेस अपनी पुरानी सीटों को भी उपचुनाव में नहीं बचा पाई।