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नोटबंदी को लेकर चिदंबरम ने सुप्रीम कोर्ट में केंद्र को घेरा

नोटबंदी के खिलाफ याचिकाओं पर चिदंबरम की दलीलें पूरीं
 
नोटबंदी को लेकर चिदंबरम ने सुप्रीम कोर्ट में केंद्र को घेरा

नई दिल्ली, 24 नवंबर (हि.स.)। नोटबंदी के खिलाफ दाखिल याचिकाओं पर सुनवाई के दौरान याचिकाकर्ता की ओर से वरिष्ठ वकील पी चिदंबरम ने सुप्रीम कोर्ट की पांच सदस्यीय संविधान बेंच के समक्ष नोटबंदी के फैसले की आलोचना की। उन्होंने कहा कि नोटबंदी के नतीजों के बारे में न तो आरबीआई के सेंट्रल बोर्ड को पता था और न ही केंद्रीय कैबिनेट को कोई जानकारी थी। चिदंबरम ने अपनी दलीलें पूरी कर लीं। चिदंबरम ने कहा कि सरकार ने ये फैसला लेने से पहले पुराने और नये नोटों के बारे में कुछ नहीं सोचा। कोई आंकड़ा नहीं जुटाया गया। उन्होंने सवाल उठाया कि क्या नोटबंदी का फैसला 24 घंटे के अंदर लिया जा सकता है। चिदंबरम ने कहा कि नोटबंदी के बाद ज्यादातर नोट वापस आ गए। नोटबंदी के लिए जो प्रक्रिया अपनाई गई वह कानूनी तौर पर उल्लंघन है। चिदंबरम ने कहा कि सरकार कहती है कि नोटबंदी जैसा कदम कालेधन को बाहर निकालने के लिए उठाया गया, लेकिन दो हजार रुपये का नोट शुरू करने के बाद तो कालेधन की जमाखोरी करना और ज्यादा आसान हो गया है। चिदंबरम ने वरिष्ठ वकील स्वर्गीय रामजेठमलानी से जुड़े एक केस का उदाहरण दिया जिसमें उन्होंने अपने दावे को सही साबित करने के लिए कहा था कि एक सूटकेस में एक करोड़ रुपये आ सकते हैं। चिदंबरम ने कहा कि दो हजार का नोट आने के बाद जेठमलानी को एक करोड़ रखने के लिए आधा सूटकेस ही बहुत होता। चिदंबरम ने कहा कि सरकार दलील दे रही है कि नोटबंदी का फैसला आतंकवाद, ड्रग तस्करी और कालेधन को काबू करने के लिए ये फैसला लिया गया था, लेकिन ड्रग्स का करोबार बदस्तूर जारी है। केंद्र सरकार का हलफनामा हास्यास्पद है। हलफनामे में कहीं कोई जिक्र नहीं है कि नोटबंदी का फैसला लेते वक्त कौन मौजूद था और कौन नहीं। इस फैसले को लेने में रिजर्व बैंक की क्या भूमिका ता। जो बैठक हुई उसका कोरम पूरा भी था या नहीं। हलफनामे के मुताबिक सब कुछ दो घंटे में हो गया। बता दें कि 12 अक्टूबर को जस्टिस एस अब्दुल नजीर की अध्यक्षता वाली बेंच ने इस मामले में दायर सभी 59 याचिकाओं पर नोटिस जारी किया था। सुनवाई के दौरान चिदंबरम ने कहा था कि ये मामला अकादमिक नहीं है। उनकी इस दलील पर अटार्नी जनरल आर वेंकटरमणी ने आपत्ति जताते हुए कहा था कि ये बिल्कुल अकादमिक प्रक्रिया है। चिदंबरम ने कहा था कि नोटबंदी के समय 86.4 फीसदी नोट ले लिए गए। अगर कल वे 99.9 फीसदी नोट ले लें तब क्या होगा। क्या ये कोर्ट शक्तिविहीन है। ये सही या गलत आर्थिक नीति की तरह लगती है लेकिन इस पर हमारी दलील सुनी जाए तब फैसला किया जाए। उल्लेखनीय है कि 500 और 1000 के पुराने नोट बंद होने को लेकर 2016 में कई याचिकाएं दाखिल हुई थीं। 16 दिसंबर 2016 को सुप्रीम कोर्ट ने नोटबंदी को चुनौती देने वाली याचिकाओं को पांच जजों की बेंच को रेफर कर दिया था। सुप्रीम कोर्ट ने विभिन्न हाई कोर्ट में दायर सभी याचिकाओं को सुप्रीम कोर्ट में ट्रांसफर कर दिया था और सभी याचिकाकर्ताओं को नोटिस जारी किया था। इसके साथ ही हाई कोर्ट में चल रहे मामलों पर कार्यवाही पर रोक लगा दिया गया था।

सुप्रीम कोर्ट ने पांच जजों की बेंच को आठ सवाल तय किये थे जिसके तहत संविधान बेंच फैसला करेगी। कोर्ट ने पांच जजों की संविधान बेंच के समक्ष जो सवाल रखे थे उनमें पहला ये कि क्या नोटबंदी का फैसला आरबीआई एक्ट की धारा 26 का उल्लंघन है। दूसरा क्या नोटबंदी के 8 नवंबर 2016 और उसके बाद के नोटिफिकेशन असंवैधानिक हैं। तीसरा कि क्या नोटबंदी संविधान के दिए समानता के अधिकार और व्यापार करने की स्वतंत्रता जैसे मौलिक अधिकारों का उल्लंघन है। चौथा कि क्या नोटबंदी के फैसले को बिना तैयारी के साथ लागू किया गया जबकि ना तो नई करेंसी का सही इंतजाम था और ना ही देशभर में कैश पहुंचाने का। पांचवां सवाल कि क्या बैंकों और एटीएम से पैसा निकालने की सीमा तय करना अधिकारों का हनन है।

छठा सवाल जिस पर संविधान बेंच को विचार करना है कि क्या जिला सहकारी बैंको में पुराने नोट जमा करने और नए रुपये निकालने पर रोक सही नहीं है। सातवां प्रश्न कि क्या कोई भी राजनीतिक पार्टी जनहित के लिए याचिका डाल सकती है या नहीं। आठवां और अंतिम सवाल ये कि क्या सरकार की आर्थिक नीतियों में सुप्रीम कोर्ट दखल दे सकता है। संविधान बेंच में जस्टिस एस अब्दुल नजीर के अलावा जस्टिस बीआर गवई, जस्टिस एएस बोपन्ना, जस्टिस वी रामासुब्रमण्यम और जस्टिस बी वी नागरत्ना शामिल हैं।