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विभाजन का दंश झेलने वाले लाखों लोगों को कब मिलेगी पहचान

● कब बनेगा स्मारक, कब मिलेगा मान सम्मान, कब मिलेगा शहीद का दर्जा

 
 
विभाजन का दंश झेलने वाले लाखों लोगों को कब मिलेगी पहचान 

जीब विडंबना है कि भारत-पाक विभाजन के समय जिन लोगों ने जन्मभूमि-मातृभूमि के लिए प्राण न्योछावर कर दिए, भीषण परिस्थितियों में अपने देश की माटी को छूकर माथे पर लगाने की आस में मौत को गले लगा लिया, हजारों नहीं, लाखों की संख्या में देश की सरहद को पाने के लिए शहादत पा ली, उन बेबस, भावुक, स्वाभिमानी लोगों को देश की आजादी के 76 साल बाद भी  पहचान नहीं मिली, सम्मान नहीं मिला। रिफ्यूजी कह कर उनका मजाक उड़ाया गया, तिरस्कार किया गया। दो ईंट का स्मारक तक उन देशभक्त हिंदुओं की याद में नहीं बना जो भारत-पाकिस्तान के बंटवारे के वक्त जान हथेली पर लेकर पाकिस्तान से हिंदुस्तान के लिए रातों-रात निकल पड़े थे। ट्रेन, खस्ताहाल वाहन, बैलगाड़ी, खच्चर गाड़ी, कुछ नहीं मिला तो पैदल ही चल पड़े थे अंधेरे-डरावने सफर पर। अपने इलाके में भामाशाह जैसी हस्ती रखने वाले लोग सबकुछ छोड़कर फकीर की तरह चल पड़े अपने वतन के लिए। 
हजारों लोगों को गांव, ढाणी, कस्बे, शहर की मंजिल तो नहीं मिली। कदम-कदम पर घात लगाए बैठी मौत जरूर मिल गई। विभाजन की विभीषिका में दस से 30 लाख तक लोगों की मौत हुई, दो करोड़ से अधिक लोग विस्थापित हुए। विस्थापन के दौर में जान गंवाने वालों को शहीद का दर्जा कब मिलेगा।


ये कुछ मार्मिक बिंदु थे जो हरियाणा, पंजाब और राजस्थान के लोकप्रिय टीवी चैनल 'पल पल न्यूज' द्वारा शुक्रवार रात आयोजित लाइव चर्चा कार्यक्रम में भाग लेने वाले प्रतिभागियों द्वारा उठाए गए। 'पल पल न्यूज'  मीडिया समूह के संपादक सुरेंद्र भाटिया कार्यक्रम के होस्ट की भूमिका में थे और भाजपा नेता जगदीश चोपड़ा, वरिष्ठ पत्रकार नवीन मल्होत्रा, गुरजीत मान व गुलशन वर्मा प्रतिभागी बने। 


कार्यक्रम की शुरुआत करते हुए  समूह संपादक सुरेंद्र भाटिया ने बताया कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने दो वर्ष पूर्व ट्विटर पर घोषणा की थी कि विभाजन का दंश झेलने वालों की याद में हर वर्ष 14अगस्त को स्मृति दिवस मनाया जाएग। हरियाणा में पिछले वर्ष कुरुक्षेत्र यह आयोजन हुआ था और इस वर्ष फतेहाबाद में राज्य स्तरीय स्मृति दिवस मनाया जाएगा। श्री भाटिया ने कहा कि पाकिस्तान से विस्थापित होकर आए पंजाबी समुदाय के लोगों को रिफ्यूजी कह कर पुकारा जाता रहा। विस्थापन की सबसे अधिक पीड़ा पंजाबी समुदाय ने ही झेली, लाखों लोगों की शहादत हुई, पाकिस्तान में जमीन-जायदाद सब छोड़ कर भारत आए और  जहां जगह मिली, वहीं बस गए तथा जुझारू क्षमता, दशकों तक कड़ी मेहनत और कुशल व्यवहार के बलबूते पर फिर अपनी पहचान बनाई । उन्होंने मांग की कि विभाजन का दंश झेलने वाले  विस्थापितों की स्मृति में हर जिला मुख्यालय पर स्मारक बनना चाहिए। श्री भाटिया ने रिफ्यूजी शब्द पर रोक लगाने वाले एक विधेयक का भी उल्लेख किया।

भाजपा के वरिष्ठ नेता जगदीश चोपड़ा ने विभाजन के दौर की बेहद मर्मस्पर्शी घटनाओं का और पंजाबी समुदाय के स्वाभिमान का विस्तार से उल्लेख किया। उन्होंने स्मृति दिवस के आयोजन की पहल का स्वागत किया और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोहन का हृदय से आभार व्यक्त किया । उन्होंने बताया कि हरियाणा सरकार भी विस्थापितों को मान सम्मान देने में कोई कसर नहीं छोड़ रही। मुख्यमंत्री मनोहर लाल स्वयं पंजाबी समुदाय से हैं, वह विस्थापितों के दुख दर्द में शरीक होने के लिए सदैव सबसे आगे रहते हैं। चर्चा के दौरान उन्होंने रामायण के भी एक प्रसंग की बहुत सुन्दर व्याख्या की। श्री चोपड़ा ने कहा कि अखंड भारत का सपना फिर साकार होगा।


कार्यक्रम में वरिष्ठ पत्रकार नवीन मल्होत्रा ने कहा कि पंजाबी समुदाय ने निरंतर असंख्य पीड़ा झेली है। पाकिस्तान में भामाशाह जैसी हैसियत रखने वाले पंजाबियों को सबकुछ छोड़कर बिल्कुल खाली हाथ भारत आना पड़ा था। उन्होंने बताया कि जो लोग भारत से विस्थापित होकर पाकिस्तान गए थे,उनको वहां हमेशा शक की नजर से देखा गया। श्री मल्होत्रा ने अपने पाकिस्तान दौरे का भी उल्लेख किया।


वरिष्ठ पत्रकार गुरजीत मान ने चर्चा में भाग लेते हुए कहा कि विभाजन का दंश लाखों लोगों ने झेला, चाहे वे पाकिस्तान से भारत आए या भारत से पाकिस्तान गए। सभी को प्रयास करना चाहिए कि ऐसी भयावह स्थिति किसी को दोबारा न देखनी पड़े। श्री मान ने कहा कि अंग्रेज जाते -जाते ऐसा विष बीज बो गए जो सदियों तक   मानवता को शूल की तरह पीड़ा पहुंचाता रहेगा। उन्होंने कहा कि बंटवारे के बाद के  हालात का न तो अंग्रेजों ने अनुमान  लगाया और न ही वे  कानून व्यवस्था को संभाल पाए। 

वरिष्ठ पत्रकार गुलशन वर्मा ने विभाजन की विभीषिका, बंटवारे का कारण, अंग्रेजों की  फूट डालो राज करो नीति, अराजकता की शुरुआत, दंगा प्रभावित क्षेत्र, विभाजन लाइन, हताहतों की संख्या, महिलाओं पर क्रूरतम अत्याचार आदि पर क्रमबद्ध तरीके से विस्तार से चर्चा की। उन्होंने बताया कि ऐसे हजारों लोग थे जो पैदल ही अपने वतन के लिए निकले थे लेकिन पहुंचे नहीं, उनका कोई रिकार्ड भी उपलब्ध नहीं । मन का बैर खाइयों से भी गहरा था। हर मोड़ पर ऐसी खाई थी जो हजारों पंजाबियों व अन्य समुदायों के लोगों को खा गई। गुलशन वर्मा ने मांग की कि विस्थापितों की पीड़ा को समझते हुए केंद्र व राज्य सरकार उनके मान सम्मान का विशेष प्रबंध करे। हर वर्ष हर जिले में 15 अगस्त के समारोह में ऐसे विस्थापितों के परिजनों, वंशजों का सम्मान सरकार की ओर से किया जाना चाहिए।