भारतीय ज्ञान की समृद्धि उसके परस्पर जुड़ाव में निहित है : उपराष्ट्रपति
Jan 20, 2025, 20:26 IST
नई दिल्ली, 20 जनवरी उपराष्ट्रपति जगदीप धनखड़ ने सोमवार को यहां भारतीय विद्या भवन में नंदलाल नुवाल इंडोलॉजी सेंटर की आधारशिला रखने के बाद कहा कि भारतीय ज्ञान की समृद्धि उसके परस्पर जुड़ाव में निहित है। उन्होंने कहा कि हम अलग-थलग देश नहीं हैं बल्कि हम पूरी दुनिया को एक मानते हैं।
उपराष्ट्रपति ने कहा कि यदि हम इंडोलॉजी को ध्यान में रखें तो आज हम जिन समस्याओं का सामना कर रहे हैं उनमें से अधिकांश का त्वरित आधार पर समाधान हो जाएगा। उन्होंने शोधकर्ताओं और शिक्षाविदों को प्रोत्साहित करते हुए कहा कि वे अपने अध्ययन के लिए बहु-विषयक दृष्टिकोण अपनाएं। भारतीय ज्ञान की समृद्धि इसकी परस्पर संबद्धता में निहित है। हम अलग-थलग देश नहीं हैं, हम पूरी दुनिया को एक मानते हैं, जी-20 की थीम एक धरती, एक परिवार, एक भविष्य ने इसे स्थापित किया है। भारतीय ज्ञान की समृद्धि परस्पर संबद्धता, सभी के कल्याण में निहित है।
उपराष्ट्रपति ने कहा कि यह हास्यास्पद है कि अज्ञानी लोग अपने संकीर्ण दृष्टिकोण से हमें समावेशिता के बारे में जागरूक करने की कोशिश कर रहे हैं। देश के इतिहास का पहला मसौदा उपनिवेशवादियों के विकृत दृष्टिकोण से आया था। हजारों लोगों ने स्वतंत्रता संग्राम में योगदान दिया, लेकिन केवल कुछ को ही बढ़ावा दिया गया। यहां तक कि स्वतंत्रता के बाद भी इसे जड़ें जमाने की अनुमति दी गई। उन्होंने कहा कि इससे हमारी ज्ञान प्रणाली का जैविक विकास बाधित हुआ।
उन्होंने कहा कि दुनिया की कोई भी सभ्यता इतने मिथकों और असत्य के अधीन नहीं रही जितनी हमारी सभ्यता रही है। यह अकल्पनीय अनुपात की त्रासदी और उपहास है। भारत की सामूहिक चेतना के 5000 साल के विकास को उलटने का प्रयास किया गया। उपराष्ट्रपति ने कहा कि हमें औपनिवेशिक विरासत और मानसिकता से खुद को मुक्त करना होगा। उन्होंने जोर देकर कहा कि वेदांत, जैन धर्म, बौद्ध धर्म और अन्य दार्शनिक विचारधाराओं ने हमेशा संवाद और सह-अस्तित्व को प्रोत्साहित किया है।
उपराष्ट्रपति ने युवाओं से भारत के गणितीय योगदान पर गर्व करने का आग्रह करते हुए कहा कि अब समय आ गया है कि भारत की विरासत फले-फूले तथा इसके लिए इससे उपयुक्त समय नहीं हो सकता।
उपराष्ट्रपति ने कहा कि यदि हम इंडोलॉजी को ध्यान में रखें तो आज हम जिन समस्याओं का सामना कर रहे हैं उनमें से अधिकांश का त्वरित आधार पर समाधान हो जाएगा। उन्होंने शोधकर्ताओं और शिक्षाविदों को प्रोत्साहित करते हुए कहा कि वे अपने अध्ययन के लिए बहु-विषयक दृष्टिकोण अपनाएं। भारतीय ज्ञान की समृद्धि इसकी परस्पर संबद्धता में निहित है। हम अलग-थलग देश नहीं हैं, हम पूरी दुनिया को एक मानते हैं, जी-20 की थीम एक धरती, एक परिवार, एक भविष्य ने इसे स्थापित किया है। भारतीय ज्ञान की समृद्धि परस्पर संबद्धता, सभी के कल्याण में निहित है।
उपराष्ट्रपति ने कहा कि यह हास्यास्पद है कि अज्ञानी लोग अपने संकीर्ण दृष्टिकोण से हमें समावेशिता के बारे में जागरूक करने की कोशिश कर रहे हैं। देश के इतिहास का पहला मसौदा उपनिवेशवादियों के विकृत दृष्टिकोण से आया था। हजारों लोगों ने स्वतंत्रता संग्राम में योगदान दिया, लेकिन केवल कुछ को ही बढ़ावा दिया गया। यहां तक कि स्वतंत्रता के बाद भी इसे जड़ें जमाने की अनुमति दी गई। उन्होंने कहा कि इससे हमारी ज्ञान प्रणाली का जैविक विकास बाधित हुआ।
उन्होंने कहा कि दुनिया की कोई भी सभ्यता इतने मिथकों और असत्य के अधीन नहीं रही जितनी हमारी सभ्यता रही है। यह अकल्पनीय अनुपात की त्रासदी और उपहास है। भारत की सामूहिक चेतना के 5000 साल के विकास को उलटने का प्रयास किया गया। उपराष्ट्रपति ने कहा कि हमें औपनिवेशिक विरासत और मानसिकता से खुद को मुक्त करना होगा। उन्होंने जोर देकर कहा कि वेदांत, जैन धर्म, बौद्ध धर्म और अन्य दार्शनिक विचारधाराओं ने हमेशा संवाद और सह-अस्तित्व को प्रोत्साहित किया है।
उपराष्ट्रपति ने युवाओं से भारत के गणितीय योगदान पर गर्व करने का आग्रह करते हुए कहा कि अब समय आ गया है कि भारत की विरासत फले-फूले तथा इसके लिए इससे उपयुक्त समय नहीं हो सकता।