सुप्रीम कोर्ट ने बड़ी संख्या में चेक बाउंस मामलों के लंबित होने पर जताई चिंता
सुप्रीम कोर्ट की सलाह, दोनों पक्षों में समझौता के आधार पर ख़त्म होने चाहिए चेक बाउंस के मामले
Jul 19, 2024, 20:08 IST
नई दिल्ली, 19 जुलाई सुप्रीम कोर्ट ने बड़ी संख्या में चेक बाउंस मामलों के लंबित होने पर चिंता जताई है। चेक बाउंस के एक मामले की सुनवाई करते हुए जस्टिस सुधांशु धुलिया की अध्यक्षता वाली बेंच ने कहा कि अदालतों को उन मामलों को खत्म करना चाहिए, जिनमें दोनों पक्ष समझौता करना चाहते हैं।
सुप्रीम कोर्ट ने याचिकाकर्ता को चेक बाउंस मामले में बरी करते हुए ये टिप्पणी की। इस मामले में दोनों पक्षकारों के बीच सवा पांच लाख रुपये में समझौता हो चुका था। कोर्ट ने कहा कि बड़ी संख्या में चेक बाउंस के मामलों का लंबित होना न्यायिक प्रक्रिया के लिए चिंता की बात है। अगर पक्षकार आपसी सहमति से समझौते पर पहुंचते हैं तो अदालतों को निरोधात्मक नजरिया अपनाने की बजाय सुधारात्मक नजरिया अपनाना चाहिए।
इस मामले में याचिकाकर्ता पीके कुमारस्वामी ऊर्फ गणेश ने 2006 में ए सुब्रमण्यम से सवा पांच लाख रुपये का कर्ज लिया। इसके बदले में उसने सवा पांच लाख रुपये का चेक दिया लेकिन चेक बाउंस हो गया। ट्रायल कोर्ट ने 2012 में कुमारस्वामी को दोषी करार देते हुए एक साल की सजा सुनाई। इस सजा को कुमारस्वामी ने सेशंस कोर्ट में चुनौती दी, जहां उसे बरी कर दिया गया। सेशंस कोर्ट के फैसले को हाई कोर्ट में चुनौती दी गई, जहां हाई कोर्ट ने सेशंस कोर्ट के फैसले को निरस्त करते हुए ट्रायल कोर्ट के आदेश पर मुहर लगा दी। हाई कोर्ट के इसी फैसले को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी गई थी।
सुप्रीम कोर्ट ने याचिकाकर्ता को चेक बाउंस मामले में बरी करते हुए ये टिप्पणी की। इस मामले में दोनों पक्षकारों के बीच सवा पांच लाख रुपये में समझौता हो चुका था। कोर्ट ने कहा कि बड़ी संख्या में चेक बाउंस के मामलों का लंबित होना न्यायिक प्रक्रिया के लिए चिंता की बात है। अगर पक्षकार आपसी सहमति से समझौते पर पहुंचते हैं तो अदालतों को निरोधात्मक नजरिया अपनाने की बजाय सुधारात्मक नजरिया अपनाना चाहिए।
इस मामले में याचिकाकर्ता पीके कुमारस्वामी ऊर्फ गणेश ने 2006 में ए सुब्रमण्यम से सवा पांच लाख रुपये का कर्ज लिया। इसके बदले में उसने सवा पांच लाख रुपये का चेक दिया लेकिन चेक बाउंस हो गया। ट्रायल कोर्ट ने 2012 में कुमारस्वामी को दोषी करार देते हुए एक साल की सजा सुनाई। इस सजा को कुमारस्वामी ने सेशंस कोर्ट में चुनौती दी, जहां उसे बरी कर दिया गया। सेशंस कोर्ट के फैसले को हाई कोर्ट में चुनौती दी गई, जहां हाई कोर्ट ने सेशंस कोर्ट के फैसले को निरस्त करते हुए ट्रायल कोर्ट के आदेश पर मुहर लगा दी। हाई कोर्ट के इसी फैसले को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी गई थी।