गटर में घुसते दलित आदमी को मैला साफ करते देखा हैं मैने

78 साल हो लिए हमने दुनिया भर की बड़ी बड़ी बातें कर ली तकनीक विकसित कर ली लेकिन गटर सफाई के लिए अभी भी मैला साफ़ करने गटर में सिर्फ़ दलित ही घुसेगा ये माइंड सेट नहीं बदल पाए।
पहले पिता, फ़िर उसका बेटा, फिर बेटे का बेटा
हमे गटर में घुस कर सफाई करने बाले दलित सफाई सैनिक की कोई परवाह नहीं पर हम मायावती जी के हीरे के गहनों को देखदेख कर गदगद है। भगवान वाल्मीकि जयंती के जलूस में मेरे स्वर्गवाशी पिता उस समय अकेले व्यक्ति हुआ करते थे जो उनके प्रतिनिधियों को फूलों का हार पहनाते थे लेक़िन ज़ब कुछ लोग पीठ पीछे बोलते थे कि क्या मेल हमारा और उनका? वो सम्मान के लायक नहीं।
कोई भी समाज का ठेकेदार चाहे लाख ड्रामा करे ये सेक्युलरिज्म का हैं तो सारे हिंदू ही लेक़िन उस समय कोई नहीं आता था स्वागत करने कि ये हमारा फंक्शन नहीं दलित समाज का है।
लिखकर ले लो कुछ समाज के ठेकेदारों की मानसिकता अगले 100 साल भी नहीं बदलनी ऐसे कूड़ मगज है हम ! अंग्रेजो की रेलगाड़ी ने 50 साल की कमी पूरी कर दी, सबको एक ही डिब्बे में बिठाकर क्या स्वर्ण क्या दलित। 50 साल अभी भी पीछे थे फिर फ्लश टॉयलेट और सीवर सिस्टम ने 25 साल और कम कर दिए 25 साल अभी भी पीछे है लेक़िन दो पुराने बड़े नेता सौ साल पीछे कर गये थे हमे इस मामले में।
ये कमी भी तकनीक पूरा करेगी समाज के ठेकेदारों के बस की बात नहीं अब क्या करे उनकी सोच ही ऐसी है, जो कभी बदल ही नहीं सकती। मेरे लिए कोई जज दलित है, कुछ भी मायने नहीं रखता। मेरे लिए वो गटर वाला मायने रखता है, - जो मुझे राह चलते आहत करता है। तैजी से तरक्की करते भारत में मुझे उसकी हालत की फिकर है।
60 साल अपनी पहचान की राजनीति करने वाले इसे कभी समझ नहीं सकते। हां, जब मोदी ने सफाई कर्मियों के पैर धुलने का का किया था तब भी मैने कहा था कि इससे बेहतर होता कि देशभर के स्थानीय निकाय के लिए अनिवार्य किया जाय कि वे नाला साफ करने वाले लोगों को लांग बूट और दस्ताने उपलब्ध करायें।
और कुछ बदलाब भी हुए हैं वहीं, बंद न होना दुखद है लेक़िन इतना परिवर्तन जरूर दिखा कि अब बड़ी मैन रोडस् पर सुपर सुकर मशीन दिखती हैं और छोटे रोड्स पर एक रस्सी वाली मशीन दिखती है, जो गटर के बाहर गंदगी निकाल कर ट्राली में गेर देती है। पर 100% जगह पर ये होना चाहिए क्योंकि मानव को गटर में घुसना पड़े ये बहुत ही अमानवीय है।
ज़ब मोदी दलितों को अपना सकते हैं तो - समाज में ये अपने अपने नियम वाले चन्द समाज के ठेकेदार इन कमजोर ग़रीब दलितों को क्यों नहीं अपना रहें हैं? आज़ भी यह सबसे बडा सवाल हैं

