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केजरीवाल सरकार के स्वास्थ्य मॉडल का काला चिट्ठा सीएजी रिपोर्ट ने खोला : पंकज सिंह

 
केजरीवाल सरकार के स्वास्थ्य मॉडल का काला चिट्ठा सीएजी रिपोर्ट ने खोला : पंकज सिंह
 नई दिल्ली, 3 मार्च  दिल्ली के स्वास्थ्य मंत्री पंकज सिंह ने सोमवार को विधानसभा सत्र में सीएजी की स्वास्थ्य संबंधी रिपोर्ट पर चर्चा करते हुए कहा कि केजरीवाल सरकार के स्वास्थ्य मॉडल का काला-चिट्ठा सीएजी की रिपोर्ट ने खोला है। उन्होंने बताया कि सीएजी रिपोर्ट में अस्पतालों में 21 फीसद स्टाफ की कमी और एंबुलेंस आवश्यक उपकरणों के बिना चलाने की बात है। इसके अलावा अस्पतालों में ब्लड बैंक, आईसीयू, शवगृह, ऑक्सीजन, एंबुलेंस जैसी लाइफ सपोर्ट सेवाएं उपलब्ध नहीं थी। सरकार द्वारा मरीजों को उपलब्ध कराए गए भोजन की गुणवत्ता की कभी भी जांच नहीं हुई। हीमोफीलिया और रेबीज जैसी घातक बीमारियों के लिए इंजेक्शन भी अस्पतालों में नहीं उपलब्ध थे।
पंकज सिंह ने कहा कि पिछली सरकार ने स्वास्थ्य देखभाल सेवाओं की कमी वाले जिला अनुसार क्षेत्रों का कभी आंकलन नहीं किया गया। न ही अस्पतालों में बेड और नये भवन की आवश्यकता का आंकलन करने के लिए अध्ययन किया गया। भगवान महावीर अस्पताल में स्थापित 25 डायलिसिस मशीनें उपयोग में नहीं थी। 10 डायलिसिस मशीनों को दूसरे अस्पतालों में भेज दिया गया और 15 वहीं पड़ी हुई खराब हो गईं। उन्होंने कहा कि जब पूरा देश कोरोना से त्रस्त था, तब कट्टर बेईमान आआपा सरकार ने दिल्ली की जनता को धोखा देकर मानवता को शर्मसार करने का काम किया है। उन्होंने कहा कि जांच के दोषियों को छोड़ा नहीं जाएगा।
स्वास्थ्य मंत्री ने कहा कि केजरीवाल सरकार उपकरण और दवाइयों की खरीद करने में पूरी तरह विफल रही है। केजरीवाल सरकार द्वारा काली सूची में शामिल कंपनियाें से दवाइयों की खरीद करने की बात सामने आई है। केंद्र सरकार द्वारा दिए गए बजट का पूर्ण उपयोग भी केजरीवाल सरकार नहीं कर पाई। उन्होंने कहा कि 100 दिन में दिल्ली के स्वास्थ्य में बड़ा बदलाव दिखेगा, जन औषधि योजना पर भी काम होगा और भ्रष्टाचार को रोका जाएगा।
भाजपा विधायक शिखा राय ने कहा कि केजरीवाल सरकार ने दिल्ली के स्वास्थ्य मॉडल को मजाक बनाकर रख दिया था। सीएजी रिपोर्ट से साफ है कि 43 प्राइवेट अस्पतालों के लिए सिर्फ 22 लाइजन ऑफिसर नियुक्त किए गए, 12 को एक से अधिक की देखरेख करने के लिए छोड़ दिया गया और 14 में कोई भी लाइजन ऑफिसर नियुक्त ही नहीं किया गया। दस लाख से ज्यादा शिकायतों का कोई निवारण नहीं किया गया। 2016 से 2022 तक लोकनायक अस्पताल द्वारा हर दिन एक व्यक्ति को निजी अस्पताल में रेफेर किया जाता था जबकि लोक नायक अस्पताल में तीन हजार मरीज ओपीडी में देखे जाते थे।