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सरसों की फसल को ठंड व कुहासों से लाही कीड़ा का खतरा : डॉ. रीता सिंह

 
सरसों की फसल को ठंड व कुहासों से लाही कीड़ा का खतरा : डॉ. रीता सिंह
कटिहार, 17 जनवरी। सरसों की खेती किसानों के लिए बहुत लोक प्रिय होती जा रही है क्योंकि इससे कम सिंचाई व लागत में दूसरी फसलों की अपेक्षा अधिक मुनाफा हो रहा है।

सरसों रबी की प्रमुख तिलहनी फसल है जिसका भारत की अर्थ व्यवस्था में एक विशेष स्थान है। इसकी खेती बिहार, पश्चिम बंगाल, झारखंड, उत्तर प्रदेश, राजस्थान, मध्यप्रदेश व यूपी सहित देश के कई राज्यों में की जाती है। दिसम्बर माह के आखिरी सप्ताह से लेकर फरवरी-मार्च माह तक सरसों के फूल में लाही कीट का खतरा बढ़ जाता है। इन पर समय से ध्यान दे दिया जाए तो सरसों की फसल को बर्बाद होने से बचाया जा सकता है।

सरसों के फूल में लाही कीट का खतरा को लेकर कृषि विज्ञान केंद्र, कटिहार के वरीय वैज्ञानिक सह प्रधान डॉ. रीता सिंह ने सोमवार देर शाम बताया कि इस मौसम में बादल व कुहासा होने की वजह से खेतों में लाही कीड़ा का प्रकोप बढ़ जाता है। यह कीड़ा सरसो के प्रौढ़ एवं शिशु पत्तियों की निचली सतह और फूलों की टहनियों पर समूह में पाये जाते है। इसका प्रकोप दिसम्बर मास के अंतिम सप्ताह से (जब फसल पर फूल बनने शुरू होते हैं) शुरू होता है व मार्च तक बना रहता है। यह कीड़े प्रौढ़ व शिशु पौधों के विभिन्न भागों से रस चूसकर नुकसान पहुंचते है। लगातार नुकसान करने पर पौधों के विभिन्न भाग चिपचिपे हो जाते हैं, जिन पर काला कवक लग जाता है। जिसके कारण कभी-कभी तो फलियां भी नहीं लगती और यदि लगती हैं तो उनमें दाने पिचके व छोटे हो जाती है और पैदावार में कमी हो जाती है।

डॉ. रीता सिंह ने बताया कि किसानों को चाहिए कि लाही लगने के शुरुआती दौर में ही दवा का प्रयोग करें ताकि कम दवा में भी बेहतर उपचार हो सके और पौधे के स्वास्थ्य पर प्रतीकूल असर न पड़े। उन्होंने कहा कि कीट ग्रस्त खेतों में इमिडाक्लोरप्रिड नामक दवा 01 मिली/2.5 लीटर पानी घोलकर छिड़काव करने से लाही कीड़ा के प्रकोप से सरसों को बचाया जा सकता है।