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देश-विदेश से आये कोरोना सैम्पल्स की होती है जहां जांच


नेशनल इंस्टीट्यूट आफ वायरोलॉजी, आसान नहीं है यह कार्य जहां होते हैं जानलेवा वायरस 
 
देश-विदेश से आये कोरोना सैम्पल्स की होती है जहां जांच 
विश्व का अचरज पुणे में: 
 


पुणे, 12 जनवरी (हि.स.)। पुणे नेशनल इंस्टीट्यूट आफ वायरोलॉजी यानी राष्ट्रीय विधि संस्थान जहां न सिर्फ भारत बल्कि चीन, इटली, जापान, ईरान और मालदीव जैसे देशों से आये कोरोना के लाखों सैंपल्स की भी जांच हुई है। यह जांच कार्य इतना भी आसान नहीं है क्योंकि यहां दुनिया के सबसे खतरनाक वायरस एवं बैक्टीरिया पर परीक्षण होता है जो जानलेवा भी होते हैं।

कड़ी सुरक्षा के बीच इस विश्वस्तरीय लैब के अंदर जाना खास आदमी के लिए भी मुमकिन नहीं है। यहां उन पैथोजन को रखा जाता है जिनका इलाज नहीं मिल सका और मेडिसन तैयार हो सके। यह लैब चार विशेष कैटेगरी में बंटी हुई है और यहाँ सेफ्टी प्रोटोकॉल बेहद सख्त होता है।

सेफ्टी प्रोटोकॉल

प्रारंभिक लैब में कुछ ऐसे पैथोजन होते हैं जिनसे कम खतरा होता है। बावजूद फेस शील्ड पहननी होती है। दूसरे स्तर की लैब जहां ज्यादा खतरनाक पैथोजन होते हैं, इनका इलाज होना संभव है। यहां बायोलॉजिकल सेफ्टी कैबिनेट में एक्सपेरिमेंट होता है। तीसरे लेवल में बेहद खतरनाक और अज्ञात पैथोजन पर काम चलता है। यहां वैज्ञानिक को फेस शील्ड से लेकर बॉडी और शू कवर भी पहनना होता है। इससे सांस लेने में दिक्कत होने के दौरान रेस्पिरेटर भी लगाना होता है।

सबसे खतरनाक पैथोजन पर होता है यहाँ परीक्षण

देश की इस महत्वपूर्ण वायरोलॉजी लैब में सबसे खतरनाक पैथोजन जिनसे होने वाली जानलेवा बीमारियां या जिनके बारे में कोई जानकारी ना हो उस पर परीक्षण कार्य होता है। इस लैब को बायोसेफ्टी लेवल फॉर नाम दिया गया है। पुणे स्थित यह लैब इसी श्रेणी की लैब है। इसी श्रेणी की लैब हैदराबाद और गुजरात बायोटेक्नोलॉजी रिसर्च सेंटर में भी बनाना प्रस्तावित है।

प्रोटोकॉल भी गजब के

एनआईवी निदेशक डॉ. प्रभा अब्राहम के अनुसार लेवल फॉर की लैब के सेफ्टी प्रोटोकोल बहुत सुरक्षित होते हैं, क्योंकि हादसे की संभावना में आबादी क्षेत्र को नुकसान न पहुंचे। यहां काम करने वाले वैज्ञानिक पूरे समय डेल्टा सूट पहने होते हैं, यह पीपीई सूट से बेहतर हैं। डिजाइन ऐसी होती है कि खतरनाक संक्रामक पैथोजन शरीर तक नहीं पहुंच पाए। सूट तभी उतारा जाता है जब वैज्ञानिक लैब कैंपस से बाहर निकलते हैं। सूट में सांस लेने के लिए एयर सप्लाई सिस्टम विशेष होता है जो एक तरह का ऑक्सीजन मास्क ही है। लैब से बाहर आने पर वैज्ञानिक के पूरे शरीर पर माइक्रो-केम-प्लस डिटर्जेंट छिड़का जाता है। यह किसी भी लेयर में छिपे वायरस को खत्म कर देता है। यह प्रक्रिया विशेष बाथरूम में होती है जिसका दरवाजा छह मिनट के लिए लॉक रहता है।