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आतंकवाद की गांठ खोलती है 'द केरला स्टोरी'

 
आतंकवाद की गांठ खोलती है 'द केरला स्टोरी'
सनी राजपूत

भारत में आतंकवाद के जिस स्वरूप को केवल एक कथानक मानकर स्वीकार करने से परहेज किया जाता रहा है, उस आतंकवाद के घिनोने स्वरूप की गांठ खोलती है- 'द केरला स्टोरी'। जहां प्रेम करना भी हराम हो, वहां जिहाद के लिए 'लव' करना हलाल हो जाता है। 'द केरला स्टोरी' को कहानी तो नहीं कहा जा सकता क्योंकि यह तो सत्य घटना पर आधारित है। यह फिल्म परदा उठाती है कि कैसे भारत की हजारों हिंदू और सभी गैर इस्लामिक लड़कियों को इस्लामिक देशों में बैठे आतंकवादियों की शारीरिक भूख की पूर्ति के लिए वस्तु बनाकर उनके सामने फेंक दिया जाता है।

फिल्म में तीन कहानियां एक साथ आगे बढ़ती हैं। एक कहानी में अमेरिकी सेना ने एक महिला आतंकवादी को हिरासत में ले रखा हैऔर दो कहानियां फ्लैशबैक में चल रही हैं । एक कहानी सामान्य जीवन की है और एक है लव जिहाद के षड्यंत्र की। फिल्म में चार लड़कियों को दिखाया गया है, जो कि चार वर्गों का प्रतिनिधित्व कर रही हैं। पहली मूल हिंदू परिवार से है। यह परिवार हिंदू संस्कृति और परम्पराओं का निर्वहन कर रहा है, किन्तु नई पीढ़ी को उन परम्पराओं और रीति रिवाजों से कुछ विशेष लगाव नहीं है। दूसरी लड़की कम्युनिस्ट परिवार से है जो भगवान, संस्कृति और परम्पराओं को नहीं मानती। तीसरी लड़की कैथोलिक ईसाई है, जो अपने धार्मिक रीति-रिवाजों का अनुसरण करती है और अंत में है एक मुस्लिम लड़की। यह अपने मजहब के अनुसार जिहाद के रास्ते पर आगे बढ़ रही है।

फिल्म में चारों लड़कियां नर्सिंग की पढ़ाई के लिए अपने घर से दूर एक कॉलेज में आती हैं और वहां हॉस्टल में ही रहती हैं। चार में से तीन लड़कियां वास्तविक रूप से पढ़ने ही आई हैं। लेकिन आसिफा मजहब का अनुसरण करते हुए जिहाद के लिए भी काम कर रही है। आसिफा बार-बार बाकी तीनों से बातचीत करते हुए एक ही बात कहती है, जिसे हम सामान्य जीवन में दिन में पांच बार रोजाना सुनते हैं कि केवल एक ही ईश्वर है। यही बात आसिफा भी बार-बार दोहराती है। आसिफा कॉलेज के पास ही रहती है और हमेशा अपने घर वालों के संपर्क में रहती है और अपने मजहबी रीति-रिवाजों का पूरा अनुसरण करती है। ईद पर अपने घर जाती है। अपनी तीनों मित्रों को साथ ले जाती है। फिर कुछ ऐसा घटता है कि आसिफा बाकी तीनों लड़कियों को हिजाब पहनने के लिए भी तैयार कर लेती है।

इसमें दिखाया गया है कि कैसे आसिफा जहां अपने मजहबी त्योहार पर घर जाती है, वहीं बाकी दो हिंदू लड़कियां दीपावली पर भी घर न जाते हुए त्योहार पर होने वाली परेशानियों की बाते करने लगती हैं और कहती हैं कि भक्ति करने के लिए बुढ़ापे का समय पड़ा है। समय के साथ आसिफा अपने षड्यंत्र में सफल होती है और अपने मजहबी मित्रों के साथ लव जिहाद को अंजाम देती है। इसके बाद उन तीनों गैर इस्लामिक लड़कियों के साथ वही होता है जो हम वर्तमान में अपने आसपास देख रहे हैं।

अब प्रश्न यह आता है कि लव जिहाद के विषय में हमारे आसपास जो भी लव जिहाद से जुड़ी घटनाएं दिख रही हैं या फिल्म में भी जो दिखाया गया है, उसके बाद भी गैर इस्लामिक लड़कियां ऐसे घिनौने षड्यंत्र का शिकार कैसे बन रही हैं। ऐसे में इस फिल्म के एक दृश्य में है कि हिंदू लड़की को उसकी मां प्रसाद देती है तो लड़की का जवाब होता है कि ऐसे भगवान किस काम के हैं जो स्वयं की भी रक्षा न कर सकें तो मां की ओर से जवाब में एक थप्पड़ पड़ता है। यह एक थप्पड़ यहां हिंदू परिवार की लाचारी को प्रदर्शित करता है।

वास्तव में हिंदू परिवार में युवा पीढ़ी को उनके धार्मिक-संस्कृति रीति-रिवाज और कथाओं से कभी परिचित ही नहीं करवाया जाता है। केवल आधुनिक शिक्षा के नाम पर स्कूलों में डाल दिया जाता हैं और वहां पढ़ाकर नौकरी के लिए तैयार किया जाता है। न कोई सामाजिक जिम्मेदारी की बात की जाती है और न ही परिवार का मर्म समझाया जाता है। लव जिहाद में फंसने वाली लगभग अधिकांश लड़कियां अपने परिवार और मूल संस्कृति से दूर रहने वाली होती हैं। फिल्म के एक दृश्य में भाग्य लक्ष्मी का एक पात्र भी है, वो कहती है धर्म और जाति के चलते परिवार वाले किसी के भी पल्ले बांध देते हैं। उन्हें हमारे सच्चे प्रेम की कद्र नहीं होती और सच्चे प्रेम के लिए किसी भी सीमा तक जाया जा सकता है। यही भाग्यलक्ष्मी आतंकवादी कैम्प में फिर अपनी व्यथा सुनाती दिखती है।

लव जिहाद केवल आतंकवाद का भिन्न स्वरूप ही है जो हिंदू समाज समेत उन सभी समाजों को भीतर से तोड़ने का काम कर रहा है जोकि इस्लाम को नहीं मानते हैं । ऐसे में जो समझ आता है, वह यह है कि वास्तव में युवा पीढ़ी को इस विषय में गहराई से समझाने की आवश्यकता है। आतंकवादीयों और उनके रहनुमाओं के लिए गैर इस्लामिक लड़कियां केवल शारीरिक भूख की पूर्ति का एक साधन हैं, उससे अधिक और कुछ भी नहीं। छद्म प्रेम के षडयंत्र को पहचान कर सतर्क रहते हुए आगे बढ़ने की आवश्यकता है। 'द केरला स्टोरी' उसी उद्म को तोड़ने का काम कर रही है।

(लेखक, कानून विशेषज्ञ हैं )