भारतीय राजनीति का संस्थान थे सरदार प्रकाश सिंह बादल

संपादीय
राजनीति के मायने अगर किसी ने इस देश को सिखाये और बताए उनमें पूर्व प्रधानमंत्री अटल वाजपेयी के बाद अगर किसी का नाम आता है तो वे हैं सरदार प्रकाश सिंह बादल। बादल साहब अपने आप में भारतीय राजनीति का एक संस्थान थे। वे देश के ऐसे राजनेता थे जिनकी सभी राजनीतिक दलों में स्वीकार्यता थी, उनके धुर विरोधी भी उनके चरणस्पर्श कर उनका आशीर्वाद लिया करते थे। मुलाकात के दौरान वे राजनीति मतभेद भुलाकर विरोधी को भी गले लगा लिया करते थे। जिन्होंने उन्हें 17 साल तक जेल में बंद रखा उनके प्रति दिल में कभी नफरत पैदा नहीं होने दी। उनका राजनीतिक और सामाजिक कद देश में कितना ऊंचा है वह इस बात से पता चला कि उन्हें श्रद्धांजिल देने के लिए गांव बादल में देश से पूर्व से पश्विम तक और उत्तर से दक्षिण तक के लोग आ रहे है। सभी राजनीतिक मतभेद भुलाकर लोग हजारों किमी की सफर कर उन्हें श्रद्धासुमन अर्पित करने आ रहे है।
श्रद्धाजंलि देेने पहुंचे लोग जब एक ही पंडाल के नीचे बैठकर उनको याद करते हैं तो हर व्यक्ति उनके साथ बिताये गए हर पल को एक दूसरे से सांझा करता हुआ दिखा। किसी की आंखे नम थी तो कोई रोने को तैयार दिख रहा था। हर जुबान पर एक ही बात निकल रही थी कि पंजाब की राजनीति के एक युग का अंत हो गया। वे भारतीय राजनीति के एक कद्दावार नेता थे। पंजाब और पंजाबियत के लिए दिया गया उनका योगदान हर किसी को प्रेरणा देता रहेगा। उनके निधन की खबर मिलते ही प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी चंडीगढ़ पहुंचे और उन्हें श्रद्धाजंलति देकर आए। मोदी सदैव उनके चरण छूकर उनसे आशीर्वाद लिया करते थे। कांगे्रस की नीतियां उन्हें कभी पंसद नहीं आई पर जब भी कांग्रेस नेताओं से मिलते तो उन्हें पूरा मान सम्मान दिया करते थे। कांगे्रस के राज में उन्होंनें कुल 17 सालों की जेल काटी। पर कांगे्रस के कद्दावर नेता भी दिल से उन्हें चाहते थे। उत्तर प्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री अखिलेश यादव, राजस्थान के मुख्यमंत्री अशोक गहलोत भी उन्हें नमन करने पहुंचे।
वर्ष 1947 में प्रकाश सिंह बादल ने राजनीति के क्षेत्र में प्रदार्पण किया था पर उन्होंने अपना पहला विधानसभा चुनाव वर्ष 1957 में जीता था। 1969 में वह दोबारा विधानसभा चुनाव में जीत गए। वर्ष 1969-1970 तक उन्होंने सामुदायिक विकास, पंचायती राज, पशुपालन, डेरी आदि से संबंधित मंत्रालयों में कार्यकारी मंत्री के रूप में कार्य किया। प्रकाश सिंह बादल 1970-71, 1977-80, 1997-2002 में पंजाब के मुख्यमंत्री और 1972, 1980 और 2002 में नेता विपक्ष रह चुके थे। मोरारजी देसाई के शासन काल में वह सांसद बने। उन्हें केन्द्रीय मंत्री के तौर पर कृषि और सिंचाई मंत्रालय का उत्तरदायित्व सौंपा गया था। इनका कार्यकाल 1 मार्च 2007 से 2017 तक रहा है इसके अलावा प्रकाश सिंह बादल पंजाब के सिख धर्म पर आधारित राजनीतिक दल शिरोमणि अकाली दल के अध्यक्ष भी थे। बादल साहब को साल 2015 में भारत सरकार ने दूसरे सर्वोच्च नागरिक पुरस्कार पद्म विभूषण से सम्मानित किया था। वर्ष 2011 में अकाल तख्त ने उन्हें पंथ रतन फखर-ए-कौम (सचमुच, धर्म का गहना और समुदाय का गौरव) की उपाधि दी थी।
प्रकाश सिंह बादल से सदा लोगों के दिलों में राज किया। देश में किसानों, खेत मजदूरों के हक में आवाज बुलंद करने वाले वे पहले नेता थे। किसानों को फसलों का मुआवजा देने की शुरूआत उन्होंनें ही की। देश की पहली हरिजन चौपाल का निर्माण 50 साल पहले उन्होंने अपने गांव में करवाया था इसके बाद गांवों में हरिजन पंचायत बनाने का सिलसिला शुरू हुआ। उन्होंने बच्चों,युवा और बुजुर्गो खासकर महिलाओं के लिए कल्याणकारी नीतियां लागू की। वे अपने व्यवहार से और अपनी नीतियों के चलते ही लोगों के दिलों पर राज करते थे और लोगों के दिलों में उनके लिए अलग ही ओहदा था। उनकी सबसे खास बात यह थी कि वे अपने छोटे से छोटे कर्मचारी और सेवादारों का पूरा ख्याल रखते थे। उनके सुख दुख में शामिल होते थे। ऊंच-नींच, जाति-पाति जैसे शब्द उनकी डिक्सनरी मे ही नहीं थे।
राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ भली-भांति जानता था कि की प्रक ाश सिंह बादल भले ही शिरोमणि अकाली दल के नेता थे पर राष्ट्रवाद की भावना उनमें कूट कूटकर भरी हुई थी, शिअद और भाजपा की नीतियोंं में समानता था यहीं कारण रहा कि शिअद की भाजपा से दोस्ती लंबी चली। उनके बीच बाद में नीतियों को लेकर मतभेद हुए पर मनभेद नहीं हुआ। आरएसएस के एक नेता ने कहा कि प्रकाश सिंह बादल ने महाराजा रणजीत सिंह के ध्येय वाक्य 'राज नहीं, सेवा को अपने राजनीतिक जीवन का उद्देश्य बनाया और उस पर चले। बादल साहब चाहे सत्ता में रहे या सत्ता से बाहर पर समय-समय पर पंजाब व देश का मार्गदर्शन करते रहे। आज देश आज जिन ऊंचाइयों पर है उसके पीछे बादल साहब जैसे वरिष्ठ नेताओं की भी अहम भूमिका रही है। पंजाब में वे सांप्रदायिक सौहार्द के झंडाबरदार थे और उन्होंने सदैव हिन्दू-सिख एकता को बनाए रखा।

---------------------------सुरेंद्र भाटिया

