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शहीदों का तीर्थ अंडेमान निकोबार-31

अंडेमान निकोबार द्वीप समूह मिनी भारत

लेखक : सुरेन्द्र भाटिया

 
शहीदों का तीर्थ अंडेमान निकोबार-31

भारत के सांस्कृतिक मंत्रालय द्वारा वर्ष १९९५ में आरंभ किए गए द्वीप महोत्सव का साक्षी बनने का अवसर प्राप्त हुआ। मैं व मेरे तीन सहयोगी इस समारोह में भाग लेने के लिए पोर्ट ब्लेयर गए। इस यात्रा की वापसी पर एक यात्रा संस्मरण की लड़ी का लेखन मेरे द्वारा किया गया जिसे भारत सरकार के हिंदी निर्देशालय के सहयोग से एक पुस्तक का रुप दिया गया। अण्डमान-निकोबार द्वीप समूह -देश की मुख्य भूमि से 1200 कि.मी. दूर अण्डमान निकोबार द्वीप समूह में कुल 572 द्वीप हैं, जिनमें आबादी केवल 38 द्वीपों में ही है। अपने शानदार इतिहास और प्राकृति के बेशकीमती खजाने की बदोलत अण्डमान हमारे दिलों के बहुत करीब है। एक ओर लाखों साल पुराने आदि मानव की सजीव झांकी के समकक्ष होने का रोमांच तो दूसरी ओर नई दिल्ली के गणतंत्र दिवस उत्सव जैसे 'द्वीप समारोहÓ का उल्लास लेखक ने एक साथ अतीत और वर्तमान को हमारे सामने ला खड़ा किया है। कुछ जनजातियां आज भी सभ्यता से कटी हुई, घासफूस की झोंपडयि़ों में निर्वस्त्र रहते हुए शिकार और वनस्पति के सहारे जीवन व्यतीत कर रही हैं। कल का 'काला पानीÓ आज शहीदों के तीर्थ स्थल के रूप में हमारा प्रेरणास्रोत है। नवनिर्माण के कार्य में लगे वहां के मूल निवासी तथा अन्य राज्यों से आए लोग मिली-जुली संस्कृति का अनोखा उदाहरण है। दैनिक पल-पल के पाठकों की मांग पर इस पुस्तक को लड़ी वार प्रकाशित किया जा रहा है। भारत के सांस्कृतिक मंत्रालय द्वारा वर्ष १९९५ में आरंभ किए गए द्वीप महोत्सव का साक्षी बनने का अवसर प्राप्त हुआ। मैं व मेरे तीन सहयोगी इस समारोह में भाग लेने के लिए पोर्ट ब्लेयर गए। इस यात्रा की वापसी पर एक यात्रा संस्मरण की लड़ी का लेखन मेरे द्वारा किया गया जिसे भारत सरकार के हिंदी निर्देशालय के सहयोग से एक पुस्तक का रुप दिया गया। अण्डमान-निकोबार द्वीप समूह -देश की मुख्य भूमि से 1200 कि.मी. दूर अण्डमान निकोबार द्वीप समूह में कुल 572 द्वीप हैं, जिनमें आबादी केवल 38 द्वीपों में ही है। अपने शानदार इतिहास और प्राकृति के बेशकीमती खजाने की बदोलत अण्डमान हमारे दिलों के बहुत करीब है। एक ओर लाखों साल पुराने आदि मानव की सजीव झांकी के समकक्ष होने का रोमांच तो दूसरी ओर नई दिल्ली के गणतंत्र दिवस उत्सव जैसे 'द्वीप समारोहÓ का उल्लास लेखक ने एक साथ अतीत और वर्तमान को हमारे सामने ला खड़ा किया है। कुछ जनजातियां आज भी सभ्यता से कटी हुई, घासफूस की झोंपडयि़ों में निर्वस्त्र रहते हुए शिकार और वनस्पति के सहारे जीवन व्यतीत कर रही हैं। कल का 'काला पानीÓ आज शहीदों के तीर्थ स्थल के रूप में हमारा प्रेरणास्रोत है। नवनिर्माण के कार्य में लगे वहां के मूल निवासी तथा अन्य राज्यों से आए लोग मिली-जुली संस्कृति का अनोखा उदाहरण है। दैनिक पल-पल के पाठकों की मांग पर इस पुस्तक को लड़ी वार प्रकाशित किया जा रहा है। 

पोर्ट ब्लेयर में द्वीप महोत्सव-2

विशाल मैदान बड़े करीने से सजाया गया था, मैदान के मुख्य द्वार को सुरक्षा कारणों से आधा घण्टा पूर्व ही बन्द कर दिया गया था इसलिए लेखक पीछे के द्वार से स्टेज के पास लगी कुर्सियों तक पहुंचा। इस कार्यक्रम के लिए एक बहुत बड़ा खुला मंच बनाया गया था तथा इस मैदान के चारों ओर विशेष प्रदर्शनी का आयोजन किया गया था। वहां पर अण्डेमान प्रशासन के कृषि मंत्रालय तथा अन्य मंत्रालयों द्वारा अपनी वस्तुओं का प्रदर्शन किया गया था। शाम के ठीक 5 बजे भारत के राष्ट्रपति डा० शंकर दयाल शर्मा अपनी पत्नी श्रीमती विमला शर्मा व अण्डेमान द्वीप समूह के उप राज्यपाल श्री वक्कम पुरूषोतमन के साथ पण्डाल में पहुंचे। उनके पहुंचते ही निकोबार प्रशासन के सचिव आर डी कपूर ने राष्ट्रपति का स्वागत किया। उन्होंने द्वीप समूह में पर्यटन के विकास और समुद्री सम्पदा के दोहन को और अधिक बढ़ावा देने की जरूरत पर बल देते हुए द्वीप महोत्सव को राष्ट्रीय अस्मिता का संदेश बताया। राष्ट्रपति डा० शंकर दयाल शर्मा ने दीप प्रज्वलित करके द्वीप पर्यटन उत्सव 1995 का विधिवत उद्घाटन किया। भारत की सुप्रसिद्ध भरत नाट्यम नृत्यांगना डा० पदंमा सुब्रामण्यम ने भरत नाट्यम नृत्य पेश किया। लगभग 50 वर्षीय डा० पदमा ने आधा घण्टा से अधिक भरत नाट्यम नृत्य पेश करके सभी को मंत्रमुग्ध कर दिया। उनके इस नृत्य के बाद देशभर से आयें कुलाकारों ने जिनमें तमिलनाडु, मध्य प्रदेश, लद्दाख, आंध्र प्रदेश, आसाम, सिक्किम, पश्चिम बंगाल के कलाकार शामिल थे, सांस्कृतिक कार्यक्रम पेश किया। जम्मू कश्मीर के लद्दाख क्षेत्र की नव यौवनाओं द्वारा नृत्य पेश किया गया। इस नृत्य में आठ युवतियां जो अपनी परंपरागत वेश-भूषा में थी, नृत्य करते हुए वे ईष्ट देवता को याद करती हैं। इस धीमें नृत्य को सभी ने बहुत सराहा।

कार्यक्रम की अगली पेशकश मध्य प्रदेश से थी। मध्य प्रदेश के छत्तीसगढ़ जिला के आदिवासी अंचल बस्तर क्षेत्र के कलाकारों ने झूमर-कर्मा नृत्य पेश किया। इस नृत्य के संबंध में कलाकारों ने अपना परिचय देते हुए, कर्मा नृत्य की पृष्ठभूमि नृत्य द्वारा बताई जिसके अनुसार कर्मा नृत्य कर्म प्रधान गीत हैं। ग्रामवासियों में श्रम का विशेष महत्व है, श्रम को ही लोग कर्म देवता के रूप में मानते हैं। पूर्वी मध्यप्रदेश में पूजा का उत्सव मनाया जाता है तथा उसी अवसर पर युवक युवतियों द्वारा अपने मन के उल्लास व उमंग को प्रस्तुत करते हुए, नृत्य प्रस्तुत किया जाता है। कर्मा नृत्य पेश करने वाले दल में भारत की प्रसिद्ध आदिवासी गायिका तीजन बाई की छोटी बहन रमा बाई भी थीं। यह दल श्रीमती तीजन बाई एवं श्री तुलसी राम देशमुख द्वारा संचालित था जिसमें 20 के लगभग कलाकार थे।

केरल की युवातियों द्वारा जिन्होंने सफेद साड़ियां पहन रखी थीं, वैलाकली नृत्य पेश किया गया। इस नृत्य में किसी प्रकार का साज प्रयोग नहीं किया गया। यह नृत्य केवल महिलाओं द्वारा पेश किया जाता है तथा इसे अच्छाई की बुराई पर जीत के प्रतीक के रूप में प्रस्तुत किया जाता है। केरल के कलाकारों के बाद आन्ध्र प्रदेश की राजस्थानी महिलाओं द्वारा सिद्धी नृत्य पेश किया गया। जैसे ही सिद्धी नृत्य को आन्ध्र प्रदेश का बताते हुए प्रस्तुत करने की घोषणा की गई, आठ महिलाएं जिन्होंने राजस्थानी लहंगा चुनरी व अपनी बाहों पर सफेद कपड़े (लाख के) पहने हुए थे, स्टेज पर आईं। सभी को ऐसा लगा जैसे घोषणा करने वाले ने गलत घोषणा कर दी है तथा ये महिलाएं राजस्थानी गीत प्रस्तुत करने वाली हैं। इसी बीच बताया गया कि सिद्धी लोग 11 सौ वर्ष पूर्व दक्षिण अफ्रिका से आकर राजस्थान में बस गए थे तथा बाद में यह राजस्थान से होते हुए आन्ध्र प्रदेश के आदिवासी क्षेत्रों में बस गए। इस प्रकार इस सिद्धी नृत्य में दक्षिण अफ्रीका, राजस्थान व आन्ध्र प्रदेश की मिली-जुली संस्कृति की छाप थी तथा इन महिलाओं ने, उसी के अनुरूप अपना नृत्य पेश किया। इसके बाद एक बार फिर मध्य प्रदेश के कलाकारों द्वारा पंथी नृत्य पेश करने की घोषणा की गयी। इस पंथी नृत्य में केवल पुरूषों द्वारा नृत्य किया गया। नृत्य करते हुए नर्तक एक दूसरे के कंधे के ऊपर चढ़ जाते हैं। इस प्रकार बनी तीसरी मंजिल पर खड़े नर्तक ढोलक बजाते हैं। देवदास बंजारे के निर्देशन में पंथी नृत्य दल, भारत का एक सुविख्यात सांस्कृतिक दल है तथा यह दल जो मध्य प्रदेश के दुर्ग जिला से संबंधित है, अब तक अमेरिका, फ्रांस सहित छब्बीस देशों में अपना कार्यक्रम पेश कर चुका है। नृत्य करते हुए दल के निर्देशक देवदास बंजारा ने “यह माटी के काया, यह माटी का चोलय कय दिन रहेगा, बता दे मेरे मौला" गाया। बिना किसी साजों की सहायता के यह गीत सबके मन को छू गया, सभी ने इसे बहुत सराहा।

तमिलनाडु के कलाकारों द्वारा जैसे ही कड़गम नृत्य पेश करने की घोषणा की गई, यात्रियों ने करतल ध्वनि से तमिलनाडु के कलाकारों का स्वागत किया। कड़गम नृत्य टैम्पल-फेस्टीवल के अवसर पर तमिलनाडु, पांडिचेरी, आन्ध्र प्रदेश व कर्नाटक के अधिकांश क्षेत्रों में प्रस्तुत किया जाता है। इसमें कलाकारों की आखों व सिर के हैरतअंगेज हाव भावों का समावेश है। नृत्य की लय पर नाचते हुए कलाकार अनेक करतब दिखाते हैं जिसमें आंख की पुतली से सौ का नोट उठाना, सिर पर नारियल तोड़ना तथा पेट पर सब्जी रख कर तेज धार से काटना आदि शामिल है। तीन घण्टे तक चले इस कार्यक्रम में हजारों की संख्या में अण्डेमान निवासियों ने पूर्णतया शांति से बैठकर भारत के विभिन्न प्रदेशों की सांस्कृतिक धरोहर को देखा। इस कार्यक्रम से लगता था जैसे सारा भारत एक स्थान पर उमड़ आया हो । मुख्य भूमि से 1200 कि०मी० दूर, इस सांस्कृतिक झांकी में अण्डेमान निवासियों की रूचि देखते ही बनती थी। उन्होंने लद्दाख से लेकर केरल तक के कलाकारों को पूरी तरह सराहा। अण्डेमान प्रशासन ने 10 दिन तक चलने वाले इस द्वीप महोत्सव का कार्यक्रम विभिन्न स्थानों पर इस ढंग से तय किया था कि इसे पोर्ट ब्लेयर का हर व्यक्ति देख सके। जिन स्थानों पर कार्यक्रम आयोजित किए गए उनमें पुलिस मैदान के अतिरिक्त डा० अम्बेडकर हाल, नेताजी स्टेडियम तथा एम.बी थियेटर शामिल थे। डा० अम्बेडकर आडिटोरियम में रक्षा कर्मियों के लिए विशेष रूप से कार्यक्रम आयोजित किया गया था। द्वीप महोत्सव के अवसर पर उपस्थित लोगों को संबोधित करते हुए राष्ट्रपति डा० शंकर दयाल शर्मा ने कहा कि ऐसे आयोजनों से देश की मिली जुली सांस्कृति को बढ़ावा मिलता है तथा अपने देश को पूरी तरह जानने का अवसर भी मिलता है।

विशाल मैदान बड़े करीने से सजाया गया था, मैदान के मुख्य द्वार को सुरक्षा कारणों से आधा घण्टा पूर्व ही बन्द कर दिया गया था इसलिए लेखक पीछे के द्वार से स्टेज के पास लगी कुर्सियों तक पहुंचा। इस कार्यक्रम के लिए एक बहुत बड़ा खुला मंच बनाया गया था तथा इस मैदान के चारों ओर विशेष प्रदर्शनी का आयोजन किया गया था। वहां पर अण्डेमान प्रशासन के कृषि मंत्रालय तथा अन्य मंत्रालयों द्वारा अपनी वस्तुओं का प्रदर्शन किया गया था। शाम के ठीक 5 बजे भारत के राष्ट्रपति डा० शंकर दयाल शर्मा अपनी पत्नी श्रीमती विमला शर्मा व अण्डेमान द्वीप समूह के उप राज्यपाल श्री वक्कम पुरूषोतमन के साथ पण्डाल में पहुंचे। उनके पहुंचते ही निकोबार प्रशासन के सचिव आर डी कपूर ने राष्ट्रपति का स्वागत किया। उन्होंने द्वीप समूह में पर्यटन के विकास और समुद्री सम्पदा के दोहन को और अधिक बढ़ावा देने की जरूरत पर बल देते हुए द्वीप महोत्सव को राष्ट्रीय अस्मिता का संदेश बताया। राष्ट्रपति डा० शंकर दयाल शर्मा ने दीप प्रज्वलित करके द्वीप पर्यटन उत्सव 1995 का विधिवत उद्घाटन किया। भारत की सुप्रसिद्ध भरत नाट्यम नृत्यांगना डा० पदंमा सुब्रामण्यम ने भरत नाट्यम नृत्य पेश किया। लगभग 50 वर्षीय डा० पदमा ने आधा घण्टा से अधिक भरत नाट्यम नृत्य पेश करके सभी को मंत्रमुग्ध कर दिया। उनके इस नृत्य के बाद देशभर से आयें कुलाकारों ने जिनमें तमिलनाडु, मध्य प्रदेश, लद्दाख, आंध्र प्रदेश, आसाम, सिक्किम, पश्चिम बंगाल के कलाकार शामिल थे, सांस्कृतिक कार्यक्रम पेश किया। जम्मू कश्मीर के लद्दाख क्षेत्र की नव यौवनाओं द्वारा नृत्य पेश किया गया। इस नृत्य में आठ युवतियां जो अपनी परंपरागत वेश-भूषा में थी, नृत्य करते हुए वे ईष्ट देवता को याद करती हैं। इस धीमें नृत्य को सभी ने बहुत सराहा।

कार्यक्रम की अगली पेशकश मध्य प्रदेश से थी। मध्य प्रदेश के छत्तीसगढ़ जिला के आदिवासी अंचल बस्तर क्षेत्र के कलाकारों ने झूमर-कर्मा नृत्य पेश किया। इस नृत्य के संबंध में कलाकारों ने अपना परिचय देते हुए, कर्मा नृत्य की पृष्ठभूमि नृत्य द्वारा बताई जिसके अनुसार कर्मा नृत्य कर्म प्रधान गीत हैं। ग्रामवासियों में श्रम का विशेष महत्व है, श्रम को ही लोग कर्म देवता के रूप में मानते हैं। पूर्वी मध्यप्रदेश में पूजा का उत्सव मनाया जाता है तथा उसी अवसर पर युवक युवतियों द्वारा अपने मन के उल्लास व उमंग को प्रस्तुत करते हुए, नृत्य प्रस्तुत किया जाता है। कर्मा नृत्य पेश करने वाले दल में भारत की प्रसिद्ध आदिवासी गायिका तीजन बाई की छोटी बहन रमा बाई भी थीं। यह दल श्रीमती तीजन बाई एवं श्री तुलसी राम देशमुख द्वारा संचालित था जिसमें 20 के लगभग कलाकार थे। केरल की युवातियों द्वारा जिन्होंने सफेद साड़ियां पहन रखी थीं, वैलाकली नृत्य पेश किया गया। इस नृत्य में किसी प्रकार का साज प्रयोग नहीं किया गया। यह नृत्य केवल महिलाओं द्वारा पेश किया जाता है तथा इसे अच्छाई की बुराई पर जीत के प्रतीक के रूप में प्रस्तुत किया जाता है। केरल के कलाकारों के बाद आन्ध्र प्रदेश की राजस्थानी महिलाओं द्वारा सिद्धी नृत्य पेश किया गया। जैसे ही सिद्धी नृत्य को आन्ध्र प्रदेश का बताते हुए प्रस्तुत करने की घोषणा की गई, आठ महिलाएं जिन्होंने राजस्थानी लहंगा चुनरी व अपनी बाहों पर सफेद कपड़े (लाख के) पहने हुए थे, स्टेज पर आईं। सभी को ऐसा लगा जैसे घोषणा करने वाले ने गलत घोषणा कर दी है तथा ये महिलाएं राजस्थानी गीत प्रस्तुत करने वाली हैं। इसी बीच बताया गया कि सिद्धी लोग 11 सौ वर्ष पूर्व दक्षिण अफ्रिका से आकर राजस्थान में बस गए थे तथा बाद में यह राजस्थान से होते हुए आन्ध्र प्रदेश के आदिवासी क्षेत्रों में बस गए। इस प्रकार इस सिद्धी नृत्य में दक्षिण अफ्रीका, राजस्थान व आन्ध्र प्रदेश की मिली-जुली संस्कृति की छाप थी तथा इन महिलाओं ने, उसी के अनुरूप अपना नृत्य पेश किया। इसके बाद एक बार फिर मध्य प्रदेश के कलाकारों द्वारा पंथी नृत्य पेश करने की घोषणा की गयी। इस पंथी नृत्य में केवल पुरूषों द्वारा नृत्य किया गया। नृत्य करते हुए नर्तक एक दूसरे के कंधे के ऊपर चढ़ जाते हैं। इस प्रकार बनी तीसरी मंजिल पर खड़े नर्तक ढोलक बजाते हैं। देवदास बंजारे के निर्देशन में पंथी नृत्य दल, भारत का एक सुविख्यात सांस्कृतिक दल है तथा यह दल जो मध्य प्रदेश के दुर्ग जिला से संबंधित है, अब तक अमेरिका, फ्रांस सहित छब्बीस देशों में अपना कार्यक्रम पेश कर चुका है। नृत्य करते हुए दल के निर्देशक देवदास बंजारा ने “यह माटी के काया, यह माटी का चोलय कय दिन रहेगा, बता दे मेरे मौला" गाया। बिना किसी साजों की सहायता के यह गीत सबके मन को छू गया, सभी ने इसे बहुत सराहा। तमिलनाडु के कलाकारों द्वारा जैसे ही कड़गम नृत्य पेश करने की घोषणा की गई, यात्रियों ने करतल ध्वनि से तमिलनाडु के कलाकारों का स्वागत किया। कड़गम नृत्य टैम्पल-फेस्टीवल के अवसर पर तमिलनाडु, पांडिचेरी, आन्ध्र प्रदेश व कर्नाटक के अधिकांश क्षेत्रों में प्रस्तुत किया जाता है। इसमें कलाकारों की आखों व सिर के हैरतअंगेज हाव भावों का समावेश है। नृत्य की लय पर नाचते हुए कलाकार अनेक करतब दिखाते हैं जिसमें आंख की पुतली से सौ का नोट उठाना, सिर पर नारियल तोड़ना तथा पेट पर सब्जी रख कर तेज धार से काटना आदि शामिल है। तीन घण्टे तक चले इस कार्यक्रम में हजारों की संख्या में अण्डेमान निवासियों ने पूर्णतया शांति से बैठकर भारत के विभिन्न प्रदेशों की सांस्कृतिक धरोहर को देखा। इस कार्यक्रम से लगता था जैसे सारा भारत एक स्थान पर उमड़ आया हो । मुख्य भूमि से 1200 कि०मी० दूर, इस सांस्कृतिक झांकी में अण्डेमान निवासियों की रूचि देखते ही बनती थी। उन्होंने लद्दाख से लेकर केरल तक के कलाकारों को पूरी तरह सराहा। अण्डेमान प्रशासन ने 10 दिन तक चलने वाले इस द्वीप महोत्सव का कार्यक्रम विभिन्न स्थानों पर इस ढंग से तय किया था कि इसे पोर्ट ब्लेयर का हर व्यक्ति देख सके। जिन स्थानों पर कार्यक्रम आयोजित किए गए उनमें पुलिस मैदान के अतिरिक्त डा० अम्बेडकर हाल, नेताजी स्टेडियम तथा एम.बी थियेटर शामिल थे। डा० अम्बेडकर आडिटोरियम में रक्षा कर्मियों के लिए विशेष रूप से कार्यक्रम आयोजित किया गया था। द्वीप महोत्सव के अवसर पर उपस्थित लोगों को संबोधित करते हुए राष्ट्रपति डा० शंकर दयाल शर्मा ने कहा कि ऐसे आयोजनों से देश की मिली जुली सांस्कृति को बढ़ावा मिलता है तथा अपने देश को पूरी तरह जानने का अवसर भी मिलता है।