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शहीदों का तीर्थ अंडेमान निकोबार-26

अंडेमान निकोबार द्वीप समूह मिनी भारत

लेखक : सुरेन्द्र भाटिया

 
शहीदों का तीर्थ अंडेमान निकोबार-26

भारत के सांस्कृतिक मंत्रालय द्वारा वर्ष १९९५ में आरंभ किए गए द्वीप महोत्सव का साक्षी बनने का अवसर प्राप्त हुआ। मैं व मेरे तीन सहयोगी इस समारोह में भाग लेने के लिए पोर्ट ब्लेयर गए। इस यात्रा की वापसी पर एक यात्रा संस्मरण की लड़ी का लेखन मेरे द्वारा किया गया जिसे भारत सरकार के हिंदी निर्देशालय के सहयोग से एक पुस्तक का रुप दिया गया। अण्डमान-निकोबार द्वीप समूह -देश की मुख्य भूमि से 1200 कि.मी. दूर अण्डमान निकोबार द्वीप समूह में कुल 572 द्वीप हैं, जिनमें आबादी केवल 38 द्वीपों में ही है। अपने शानदार इतिहास और प्राकृति के बेशकीमती खजाने की बदोलत अण्डमान हमारे दिलों के बहुत करीब है। एक ओर लाखों साल पुराने आदि मानव की सजीव झांकी के समकक्ष होने का रोमांच तो दूसरी ओर नई दिल्ली के गणतंत्र दिवस उत्सव जैसे 'द्वीप समारोहÓ का उल्लास लेखक ने एक साथ अतीत और वर्तमान को हमारे सामने ला खड़ा किया है। कुछ जनजातियां आज भी सभ्यता से कटी हुई, घासफूस की झोंपडयि़ों में निर्वस्त्र रहते हुए शिकार और वनस्पति के सहारे जीवन व्यतीत कर रही हैं। कल का 'काला पानीÓ आज शहीदों के तीर्थ स्थल के रूप में हमारा प्रेरणास्रोत है। नवनिर्माण के कार्य में लगे वहां के मूल निवासी तथा अन्य राज्यों से आए लोग मिली-जुली संस्कृति का अनोखा उदाहरण है। दैनिक पल-पल के पाठकों की मांग पर इस पुस्तक को लड़ी वार प्रकाशित किया जा रहा है। 

अण्डेमान की राजनीतिक व्यवस्था

प्रारंभ में अण्डेमान की कैदी बस्ती का प्रशासन वैसे तो औपचारिक दृष्टि से मौलिहीन (बर्मा) के कमिश्नर के अधीन था किन्तु वास्तव में सीधे भारत सरकार के आदेशानुसार कार्य कर रहा था। बाद में तो यह औपचारिकता भी छोड दी गई । तत्कालीन वायसराय लार्ड मेयो की हत्या के बाद प्रशासन का विकेन्द्रीकरण किया गया तथा एक नव सृजित पद चीफ-कमिश्नर के सीधे नीचे रखा गया। विभिन्न चीफ कमिश्नरों ने अपनी तत्कालीन आवश्यकताओं के अनुसार यहां का बहुत अच्छा विकास किया। कैदी बस्ती होने के कारण, किसी गैर सरकारी लोगों या संस्थाओं को सत्ता के हस्तान्तरण का प्रश्न ही नहीं था । पोर्ट ब्लेयर के शहर का प्रशासन सीधे डिप्टी कमिश्नर के अधीन था और गैर सरकारी लोग स्थानीय निकायों से कभी भी संबंधित नहीं रहे । जापानी अधिपत्य के दिनों में प्रारम्भ में वे प्रशासन के लिए एक परिषद के गठन पर विचार कर रहे थे किन्तु जब उन्हें पता चला कि स्थानीय जनता में एकता नहीं है तो उन्होनें वह प्रस्ताव स्थगित कर दिया। जापान सरकार ने इस आशय की औपचारिक घोषणा कर दी थी कि ये द्वीप नेताजी सुभाष चन्द्र बोस की आजाद हिन्द सरकार को विधिवत हस्तान्तरित कर दिए गये हैं। लाल किले पर आजाद हिन्द के जवानों के विरूद्ध चलाए गए मुकदमों में देश के विख्यात. वकीलों ने यही तर्क उठाया कि यह मामला अर्न्तराष्ट्रीय है तथा भारतीय अदालतों को इन मुकदमों की सुनवाई का कोई अधिकार नहीं है क्योंकि आजाद हिन्द फौज ने विधिवत लड़ाई की घोषणा की थी, किन्तु यह सच है कि हस्तान्तरण केवल कागजी कार्यवाई थी ।

आजादी के बाद भी एक लम्बे समय तक अडमान निकोबार द्वीप समूह में सत्ता के विकेन्द्रीकरण तथा प्रशासन में जन प्रतिनिधियों को सम्मिलित नहीं किया गया। प्रारंभ में 1857 के स्वतन्त्रता सेनानी का पोता लक्ष्मण सिंह का नामांकन संविधान सभा में एक सांसद के रूप में किया गया और बाद में बिशप रिचर्डसन को सांसद के रूप में मनोनीत किया गया, किन्तु समय पर जहाजरानी की सेवा उपलब्ध न होने के कारण वह संसद की कार्यवाई में बहुत कम भाग ले सके। इन द्वीपों में उपनिवेशीय पद्धति का प्रशासन चलता रहा। चीफ कमिश्नर द्वीपों के मामले में सर्वशक्तिमान अधिकारी था। बाद में चीफ कमिश्नर सलाहकार समिति गठित की गई किन्तु इन द्वीपों के मामले में ये कोई खास बात कहने में स्वंय को असमर्थ पाते। सच बात तो यह है कि अधिकांश सदस्य नामांकन द्वारा लिए जाते थे जो चीफ कमिश्नर की जी हजूरी करने वाले होते थे। बाद में कुछ चुने हुए व्यक्ति भी गए किन्तु उनका कार्य भी वैसा ही रहा क्योंकि कोई भी प्रशासन को नाराज करने का साहस नहीं जुटा पाता था सरकारी कर्मचारी जो एक बड़ी संख्या में हैं उन्होंने यहां के लोगों को राजनीति में बहुत अच्छी तरह प्रशिक्षित किया। यहां के मजदूर संगठनों ने में जिसमें वामपंथी लोगों का प्रभुत्व है, विशेष रूप से सी. पी. आई (एम०) का, राजनीतिक जागृति फैलाने की दिशा में महत्वपूर्ण भूमिका निभायी है। केन्द्र पर सत्तासीन कांग्रेस पार्टी इन द्वीपों में सदैव प्रभावशाली रही है। चूंकि ये द्वीप केन्द्र द्वारा शासित हैं, अत: उनके लिए आवश्यक था कि वे दिल्ली के साथ कदम से कदम मिलाकर चलें। के आर गणेश, भूतपूर्व मंत्री, भारत सरकार ने प्रारंभ में कांग्रेस के संगठन का अच्छा कार्य किया।

नवंबर 1982 में एक सौ दस वर्ष बाद मुख्य आयुक्त के पद का उच्चीकरण कर उपराज्यपाल बना दिया गया और एम. एल. कम्पानी प्रथम उप-राज्यपाल बनें तथा जनरल तीरथ सिंह ओबराय दूसरे उप-राज्यपाल बने। इस परिवर्तन के साथ यहां पर लोकतंत्र की दिशा में प्रदेश परिषद का गठन तथा पांच पार्षदों की उप राज्यपाल की सहायता के लिए नियुक्त होना एक शुभारंभ है। यद्यपि शक्ति का केन्द्र बिन्दु अभी भी उप-राज्यपाल बना हुआ है और पार्षदों का काम मुख्य रूप से सलाहकार का है किन्तु इस केन्द्र शक्ति पर उनकी उपस्थिति मात्र से निरंकुश शासन पर रोक लगती है। पार्षदों को बंगले, कार, वातानुकुलित कार्यालय, मुख्य भूमि जाने के लिए वायुयान से यात्रा आदि की अनेक सुविधाएं भी मिली हैं। लगभग सभी राष्ट्रीय स्तर की तथा कुछ क्षेत्रीय राजनैतिक दलों की शाखाएं इन द्वीपों में विद्यमान हैं।