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सिरसा का इतिहास : प्राचीन एवं आधुनिक सिरसा-22

लेखक एवं संकलन सुरेन्द्र भाटिया व डॉ. रविन्द्र पुरी
 
सिरसा का इतिहास : प्राचीन एवं आधुनिक सिरसा-22

इतिहास समाज को संस्कृति व विकास की जानकारी देता है 

सिरसा नगर एक ऐतिहासिक नगर है। इतिहासकारों द्वारा समय-समय पर सिरसा के इतिहास के संबंधित अनेक दस्तावेजों को लिखा गया मगर सिरसा के इतिहास के संबंध में एक राय नहीं है कि यह नगर कब व किसने बसाया मगर अनेक इतिहासकारों का मानना है कि ईसा से १३०० वर्ष पूर्व राजा सरस ने सिरसा नगर की स्थापना की। कुछ लोगों का मानना है कि सरस्वती के किनारे होने के कारण इस नगर का नाम सिरसा रखा गया वहीं अनेक लोग बाबा सरसाईंनाथ की नगरी के रुप में सिरसा को जानते हैं मगर प्राचीन नगर के संबंध में अनेक मान्यताएं होने के बावजूद वर्तमान नगर १८३८ में अंग्रेज अधिकारी थोरबाये द्वारा बसाया गया तथा यह नगर जयपुर के नक्शे पर अंग्रेज अधिकारी द्वारा ८ चौपट 16 बाजार के स्थान पर ४ चौपट 8 बाजार स्थापित किए गए। सिरसा के इतिहास से जुड़े विभिन्न पहलुओं को लेकर पल पल के संपादक सुरेन्द्र भाटिया व मनोविज्ञानी डॉ. रविन्द्र पुरी द्वारा वर्ष २०१६ में प्राचीन एवं आधुनिक सिरसा नामक एक पुस्तक का लेखन किया गया। इस पुस्तक का विमोचन हरियाणा के मुख्यमंत्री श्री मनोहर लाल १३ फरवरी २०१६ को चंडीगढ़ में किया गया। पुस्तक की प्रस्तावना नागरिक परिषद के अध्यक्ष व उस समय मुख्यमंत्री के राजनीतिक सलाहकार श्री जगदीश चोपड़ा द्वारा लिखी गई। इसके अतिरिक्त पूर्व मंत्री स्व. श्री जगदीश नेहरा द्वारा सिरसा तब व अब नामक एक लेख इस पुस्तक में शामिल किया गया। उनके अतिरिक्त नामधारी इतिहासकार चिंतक श्री स्वर्ण सिंह विर्क का एक लेख भी पुस्तक में प्रकाशित किया गया। प्रस्तुत है इस पुस्तक के विभिन्न अध्यायों को क्रमवार प्रकाशित किया जा रहा है।

सिरसा व रानिया के बीच हैं चार थेह
सिरसा के गुरुद्वारे में कुछ दिलचस्प सिख अवशेष सुरक्षित है जो हरिशुर की हाल में हुई खुदाईयों में प्राप्त एक लोहे के सन्दूक में बंद मिले थे। इन अवशेषों में भोगपत्र पर लिखा हुआ एक हस्तलेख भी है जो किसी सिख गुरू तथा नेता का है। गुरूमुखी लिपी में लिखे गए इस लेख में ईश्वर की पूर्ण तथा नित्य भक्ति पर जोर दिया जाता है तथा इस प्रतिज्ञा के नीचे कि 'गुरू नैषिक भक्तों को अपना दर्शन देंगे' गुरू के अपने हस्ताक्षर तथा मोहर (सील) है। इस लेख पर 1756 विक्रमी या 1700 ईस्वी सन की तारीख है और यह हस्तलेख किसी ब्रुश या काफी मोटी कलम के साथ लिखा हुआ प्रतीत होता है। इसके अतिरिक्त कुछ शिलालेख हैं। सफेद संगमरमर के एक छोटे से चौरसा फलक पर छोटे छोटे पदचिन्ह खुदे हुए हैं। जिन्हें 'गुरू पाद' कहा गया है। ये चिन्ह आसपास के सिख भक्तों तथा ग्रन्थियों द्वारा बहुत पूज्य समझे जाते हैं। गुरूद्वारा के उत्तर में अवस्थित सरोवर या सरवर बहुत प्राचीन माना जाता है। कहा जाता है कि यह सरोवर अगाध है तथा इसका निर्माण 315 विक्रमी संवत् (258 ऐ.डी.) में पुराने किले के निर्माण के साथ ही साथ हुआ था। इस तालाब की दीवारें बहुत विशाल तथा मोटी हैं और बड़ी बड़ी ईंटों से बनी है। दक्षिण दीवार स्पष्टतः गुरू द्वारा भवन के नीचे तथा धंसी हुई है। विश्वसनीय जानकारी रखने वालों ने मुझे बताया कि किले की दीवारों से सात भूमिगत सुरंगे तालाब तक गई है। जब मैं सिरसा गया था उस समय वे सुरंगें दृष्टि गोचर नहीं हो रही थी जिसका कारण मुझे उस समय तालाब में पानी की अधिकता बताया गया। मुझे उन लोगों ने यह भी बताया कि इन सुरंगों का मुखद्वार उस समय स्पष्टतः देख जा सकता है जब तालाब में पानी बहुत कम होता है। सिरसा में एक नगरपालिका भवन भी है जिसके सामने एक छोटा सा सुन्दर बगीचा है तथा एक फव्वारा भी है। इस भवन में अधिकारियों ने हरिपुरा और शायद सुकन्दपुर के भी टीलों पर हुई खुदाईयों में प्राप्त कुछ और भी मूर्तियां संग्रहित कर प्रदर्शित की हुई हैं। इन मूर्तियों में एक युगल का विशेष रूप से वर्णन किया जा सकता है। लाल रेतीले पत्थर पर सेरावता रूढ इन्द्र तथा उसकी प्रेयसी (शची) की यह मूर्ति बड़ी खूबी से बनी हुई है। यह प्रस्तर खंड कुल 2.5 फुट ऊंचा है यद्यपि मूर्तियों का सिर समय के थपेड़ों से नग्न हो गया है। इन्हीं अवशेषों में एक विष्णु की वृहदाकार मूर्ति है जिसके साथ उनके दो भक्तों की मूर्तियां भी संलग्न है। कुल मूर्ति 8 फुट ऊंची है। इस भवन के विभिन्न पुरातन अवशेषों में सबसे अधिक उल्लेखनीय एक स्तम्भ का आधार यह है जिसका व्यास एक फुट डेढ़ इंच है। इस आधार पद पर बहुत ही सुन्दर नक्काशी की गई है।

सिरसा के कुछ और पश्चिम में सिरसा तथा रानियां के बीच चार थेह' या 'टीबे' है जिनकी बनावट सिरसा के ही टीलों के समान है। सिरसा से रानियां के रास्ते पर सर्वप्रथम टीला ओटू के पश्चिम में ओटू से लगभग 1000 कदम दूरी पर है। इस निर्जन टीले ने अभी तक अपने प्राचीन तथा आधुनिक नामों ठीकरीवाली थेह, रामनगरिया और फतेहपुर को सुरक्षित रखा है। दूसरे टीले का, जो पहले टीले से कुछ और पश्चिम में है, कोई नाम नहीं। मकान आदि बनाने के लिए इस टीले में काफी पुरानी ईंटें प्राप्त है तथा काफी मलबा है। तीसरा टीला जो भटनेर के बिल्कुल पास ही है आयतन में छोटा है। कहा जाता है चार वर्ष पूर्व यहां से कुछ सिक्के भी निकाले गए थे। चौथा तथा प्राचीनतम टीला रानियां से 2.5 मील दक्षिण की ओर रानियां तथा फिरोजाबाद के मध्य स्थित है और इसकी लंबाई लगभग 250 फुट है आकार प्रकार बिल्कुल बेडोल है। इन तथा कुछ अवशेषों से, बहुत छोटा होने के कारण जिनका यहां उल्लेख मैं आवश्यक नहीं समझता, यह स्पष्ट है कि सिरसा तथा आसपास का इलाका काफी प्राचीन है। थोड़ी बहुत पुरानी ईंटें तो हर जगह मिल जाती है और कुछ पत्थरों तथा चीनी के बर्तनों के टुकड़े उपरोक्त स्थान पर काफी मात्रा में बिखरे पड़े हैं। मूल (अंग्रेजी) नगरपालिका समिति, सिरसा अनुवाद भारतेन्द्र एम.ए.