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सिरसा का इतिहास : प्राचीन एवं आधुनिक सिरसा-21

लेखक एवं संकलन सुरेन्द्र भाटिया व डॉ. रविन्द्र पुरी
 
सिरसा का इतिहास : प्राचीन एवं आधुनिक सिरसा-21

इतिहास समाज को संस्कृति व विकास की जानकारी देता है 

सिरसा नगर एक ऐतिहासिक नगर है। इतिहासकारों द्वारा समय-समय पर सिरसा के इतिहास के संबंधित अनेक दस्तावेजों को लिखा गया मगर सिरसा के इतिहास के संबंध में एक राय नहीं है कि यह नगर कब व किसने बसाया मगर अनेक इतिहासकारों का मानना है कि ईसा से १३०० वर्ष पूर्व राजा सरस ने सिरसा नगर की स्थापना की। कुछ लोगों का मानना है कि सरस्वती के किनारे होने के कारण इस नगर का नाम सिरसा रखा गया वहीं अनेक लोग बाबा सरसाईंनाथ की नगरी के रुप में सिरसा को जानते हैं मगर प्राचीन नगर के संबंध में अनेक मान्यताएं होने के बावजूद वर्तमान नगर १८३८ में अंग्रेज अधिकारी थोरबाये द्वारा बसाया गया तथा यह नगर जयपुर के नक्शे पर अंग्रेज अधिकारी द्वारा ८ चौपट 16 बाजार के स्थान पर ४ चौपट 8 बाजार स्थापित किए गए। सिरसा के इतिहास से जुड़े विभिन्न पहलुओं को लेकर पल पल के संपादक सुरेन्द्र भाटिया व मनोविज्ञानी डॉ. रविन्द्र पुरी द्वारा वर्ष २०१६ में प्राचीन एवं आधुनिक सिरसा नामक एक पुस्तक का लेखन किया गया। इस पुस्तक का विमोचन हरियाणा के मुख्यमंत्री श्री मनोहर लाल १३ फरवरी २०१६ को चंडीगढ़ में किया गया। पुस्तक की प्रस्तावना नागरिक परिषद के अध्यक्ष व उस समय मुख्यमंत्री के राजनीतिक सलाहकार श्री जगदीश चोपड़ा द्वारा लिखी गई। इसके अतिरिक्त पूर्व मंत्री स्व. श्री जगदीश नेहरा द्वारा सिरसा तब व अब नामक एक लेख इस पुस्तक में शामिल किया गया। उनके अतिरिक्त नामधारी इतिहासकार चिंतक श्री स्वर्ण सिंह विर्क का एक लेख भी पुस्तक में प्रकाशित किया गया। प्रस्तुत है इस पुस्तक के विभिन्न अध्यायों को क्रमवार प्रकाशित किया जा रहा है।

'कभी सिरसा, कभी निरसा'
सिरसा एक प्राचीन नगर है। इसका इतिहास बड़ा वैभवशाली रहा है। वर्तमान सिरसा की स्थापना जहां 1838 में अंग्रेज थोरसबे ने करनी आरंभ की वहीं 1840 तक सिरसा नगर लगभग बस गया। ऐसे में सिरसा नगर की स्थापना के 175 वर्ष पूरे हो चुके हैं। एक सितंबर 1975 को सिरसा को पुन: जिला मुख्यालय बनाया गया। सिरसा के दक्षिण पश्चिम में एक काफी बड़ा दुर्ग अवस्थित है जिसका वृत्त लगभग 3 मील का है। किन्तु यह इतना टेढा मेढा है कि इसकी विस्तृत तथा सूक्ष्म नाप जोख करनी लगभग असम्भव है। वास्तव में सारना टीला एक बड़ी सी उजड़ी हुई बस्ती प्रतीत होता है। एक खाई नुमा सड़क जो पूर्व से पश्चिम की ओर गई है। इस सारे टीले को दो भागों में विभक्त करती है। कहा जाता है कि यह नीची सड़क प्राचीन समय की उस अवस्था की सूचक है, जब नगर तथा दुर्ग दो भागों में विभक्त थे । वास्तव में यह विचार विश्वसनीय भी प्रतीत होता है क्योंकि प्राचीन किला कहलाने वाला भाग उस भाग से जिस पर नगर स्थित था काफी ऊंचा है। इन अवशेषों की औसत ऊंचाई आस पास की भूमि से 75 फीट है, ज्यादा भले ही हो, कम नहीं है। इस टीले की प्रमुख चोटी पर मैनें सफेद संगमरमर की एक कब्र देखी जिस पर बहुत कुछ उत्कीर्ण था। कब्र काफी टूटी फूटी हुई थी। और बड़ी तीव्रता से अपने उस धरातल से नीचे धंस रही थी। जिस पर वह बनी हुई थी, पता नहीं यह कब्र किसकी है? किन्तु साधारण तौर पर लोगों में यह धारणा है कि इस कब्र में एक सैयद थे। जिसने इस किले को जीता था, नश्वर अवशेष है। इस कब्र पर खुदे लेखों की प्रतिलिपियों का मेरे पास जो संग्रह है उनमें एक अरबी का शिलालेख भी है जिसमें केवल कुरान के ही कुछ अंश खुदे हुए हैं। वैसे लेख बड़ा ही अंलकृत, स्पष्ट काफी प्राचीन और सुव्यवस्थित है और कब्र के पत्थर पर बड़ी खूबी से लिख गया है। सिरसा तथा आसपास के बुद्धिमानों ने इस किले को ईसा की तीसरी सदी में ठहराया है। अत: यह किला भारत के इस भाग के किसी भी प्राचीन अवशेष की अपेक्षा पुराना ठहरता है। सिरसा के नाम की व्युत्पत्ति के संबंध में भी यहा आम जनता में कुछ परम्परागत धारणाएं है। कहा जाता है कि जब एक साधु से कुछ यात्रियों ने इस नगर के वास्तविक नाम के बारे में पूछा तो उसने उत्तर दिया, 'कभी सिरसा, कभी निरसा', अर्थात (स्थानीय बोली के अनुसार) कभी स्पष्ट, कभी नष्ट कभी बना, कभी बिगड़ा। 'निर' या 'नीर' का अर्थ नहीं है' होता है और कहा जाता है कि साधु का यह कथन विशेष रूप से उन अगनित युद्धों की ओर संकेत करता है जो इस भू-भाग पर अधिकार के लिए लड़े गए। प्रसिद्ध है कि उन अशान्त समयों में यह नगर इक्कीस बार उजड़ा और उतनी ही बार बसा। किन्तु एक दूसरी परम्परा उपरोक्त धारणा का खंडन भी करती है जिसके अनुसार सिरसा शब्द की व्युत्पत्ति 'सिरसा' वृक्ष से मानी गई है सिरिसा वृक्ष को संस्कृत में शिरीष, लैटिन में ऐसैशिया स्पेशिसा तथा पंजाबी में 'शरी' कहा जाता है। इन वृक्षों की इस भू-भाग पर बहुतायत थी। वैसे इसका प्राचीन नाम भी 'सिरसा पत्तन' था।