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सिरसा का इतिहास : प्राचीन एवं आधुनिक सिरसा-20

लेखक एवं संकलन सुरेन्द्र भाटिया व डॉ. रविन्द्र पुरी
 
सिरसा का इतिहास : प्राचीन एवं आधुनिक सिरसा-20

इतिहास समाज को संस्कृति व विकास की जानकारी देता है 

सिरसा नगर एक ऐतिहासिक नगर है। इतिहासकारों द्वारा समय-समय पर सिरसा के इतिहास के संबंधित अनेक दस्तावेजों को लिखा गया मगर सिरसा के इतिहास के संबंध में एक राय नहीं है कि यह नगर कब व किसने बसाया मगर अनेक इतिहासकारों का मानना है कि ईसा से १३०० वर्ष पूर्व राजा सरस ने सिरसा नगर की स्थापना की। कुछ लोगों का मानना है कि सरस्वती के किनारे होने के कारण इस नगर का नाम सिरसा रखा गया वहीं अनेक लोग बाबा सरसाईंनाथ की नगरी के रुप में सिरसा को जानते हैं मगर प्राचीन नगर के संबंध में अनेक मान्यताएं होने के बावजूद वर्तमान नगर १८३८ में अंग्रेज अधिकारी थोरबाये द्वारा बसाया गया तथा यह नगर जयपुर के नक्शे पर अंग्रेज अधिकारी द्वारा ८ चौपट 16 बाजार के स्थान पर ४ चौपट 8 बाजार स्थापित किए गए। सिरसा के इतिहास से जुड़े विभिन्न पहलुओं को लेकर पल पल के संपादक सुरेन्द्र भाटिया व मनोविज्ञानी डॉ. रविन्द्र पुरी द्वारा वर्ष २०१६ में प्राचीन एवं आधुनिक सिरसा नामक एक पुस्तक का लेखन किया गया। इस पुस्तक का विमोचन हरियाणा के मुख्यमंत्री श्री मनोहर लाल १३ फरवरी २०१६ को चंडीगढ़ में किया गया। पुस्तक की प्रस्तावना नागरिक परिषद के अध्यक्ष व उस समय मुख्यमंत्री के राजनीतिक सलाहकार श्री जगदीश चोपड़ा द्वारा लिखी गई। इसके अतिरिक्त पूर्व मंत्री स्व. श्री जगदीश नेहरा द्वारा सिरसा तब व अब नामक एक लेख इस पुस्तक में शामिल किया गया। उनके अतिरिक्त नामधारी इतिहासकार चिंतक श्री स्वर्ण सिंह विर्क का एक लेख भी पुस्तक में प्रकाशित किया गया। प्रस्तुत है इस पुस्तक के विभिन्न अध्यायों को क्रमवार प्रकाशित किया जा रहा है।

राजा सरस ने 1300 ईसा पूर्व बसाया था सिरसा नगर

सिरसा एक प्राचीन नगर है। इसका इतिहास बड़ा वैभवशाली रहा है। वर्तमान सिरसा की स्थापना जहां 1838 में अंग्रेज थोरसबे ने करनी आरंभ की वहीं 1840 तक सिरसा नगर लगभग बस गया। ऐसे में सिरसा नगर की स्थापना के 175 वर्ष पूरे हो चुके हैं। एक सितंबर 1975 को सिरसा को पुनः जिला मुख्यालय बनाया गया। ऐसे में सुधी पाठकों की जानकारी के लिए नागरिक परिषद सिरसा के प्रयासों से सिरसा से संबंधित जानकारियां देने का प्रयास आरंभ किया गया है। आज हम पहली किश्त में सिरसा के सुप्रसिद्ध इतिहासकार ज्योतिषाचार्य व शिक्षाविद् स्व. रमेश चंद्र शालिहास द्वारा जुलाई 1959 में हस्तलिखित नव प्रयास मासिक में पत्रिका के पहले अध्ययन को उद्धृत कर रहे हैं। स्व. श्री रमेश चंद्र शालिहास ने तब लिखा था जिला हिसार (पंजाब) में इसी (सिरसा) नाम के सब डिवीजन और तहसील के मुख्य कार्यालय घग्घर की शुष्क भूमितल के उत्तरीय क्षेत्र में राजपूताना मालवा रेलवे की रेवाड़ी भटिंडा सेक्शन पर 29.32' उत्तर और 75 2' पूर्व में अवस्थित थे। सन् 1901 ई. की जनसंख्या 15,800 थी। सिरसा या सरस्वती का पुराना नगर बहुत पुरातन समय का है और परम्परा से सुनते हैं कि इसका मूल संबंध राजा सरस से है जिसने लगभग 1300 वर्ष (ई.पू.) पूर्व यह नगर और दुर्ग बनाया और अपने नाम से छठी सदी में इसका नामकरण किया। सरस्वती के नाम से यह उस स्थान के रूप में वर्णित है जिसके आसपास 1192 ई. में अपनी पराजय के पश्चात् पृथ्वीराज मोहम्मद गौरी द्वारा पकड़ा गया था। व.स.फ. के अनुसार तो चौदहवीं शताब्दी में यह उत्तर भारत के सबसे महत्वपूर्ण नगरों में से एक था। पता चलता है कि तैमूर ने जब इस पर अधिकार किया 1398 ई. में, तो यहां के निवासी नगर छोड़कर भाग गए। कहा जाता है मुबारक शाह के राज्य में सरहिंद के विद्रोही किलेदारों को कुचलने के लिए सिरसा नगर से सैनिक अड्डे का काम लिया जाता था। शेर शाह के राज्य में सिरसा कुछ समय के लिए बीकानेर के राव कल्याण सिंह का सदर राजधानी रहा जिसे अपने देश से जोधपुर के राव ने भगा दिया था। अठारवीं शताब्दी में सिरसा भट्टियों का एक गढ़ था जिसे 1774 ई. में पटियाला के अमर सिंह ने हस्तगत किया था पर 1781 की संधि के अनुसार उसने इसे भट्टियों को वापस लौटा दिया था। 1783 के भीषण दुर्भिक्ष ने नगर को निर्जन बना दिया। सन् 1818 में भट्टियों के सरदार नवाब जाबिता खाँ के विरूद्ध अभियान में सिरसा को फिर हस्तगत कर लिया गया। 1838 में सिरसा जो 1783 से उजड़ा पड़ा था, कैप्टन थोरेस्बी द्वारा पुनः स्थापित किया गया जिन्होंने इस वर्तमान नगर को बसाया जो 1858 से 1884 तक सिरसा जिला का सदर मुकाम रहा। पुराने सिरसा के खंडहर वर्तमान नगर के दक्षिण पश्चिम कोने में पड़े हैं और अब भी काफी मात्रा में अवशेष है जबकि बहुत कुछ सामग्री नए मकान आदि बनाने में प्रयोग कर ली गई है। इसमें एक प्राचीन हिन्दू किला और तालाब है। नगरपालिका समिति का निर्माण 1867 में हुआ। यह लेख बिना किसी नाम तिथि संवत के ही प्राप्त हुआ है, फिर भी हो सकता है कि यह लेख किसी पूर्व लेख (या अभिलेख रिकॉर्ड) का संक्षिप्त रूप हो? वैसे यहां 1901 के बाद का ही लेख है (तथा बी.बी.सी.आई. रेलवे का उक्त नाम पड़ने से पूर्व का) । यदि परम्परा विभूत बात ठीक है तब तो इस नगर की स्थिति, ईसा की छठी शताब्दी में जबकि उत्तर मास में राजा हर्ष का राज्य था प्रतीत होती है, संभव है चीनी यात्री इत्सिंग ने इस नगर को भी देखा हो और उस समय बौद्ध धर्म का केन्द्र रहा हो ?

1. हमारे इस कुरू जांगल प्रदेश में (जिसका एक भाग हमारा नगर भी है) बौद्धों का पर्याप्त प्रभाव रहा है तथा थेहड़ व आसपास के प्रदेशों में प्राप्त बुद्ध मूर्तियां इसका प्रमाण भी है। बौद्धिक धर्म के बाद बौद्ध तथा वर्तमान हिन्दू धर्म का उत्कर्षापकर्ष देखने वाला हमारा नगर अजरामर है 1

2. पृथ्वीराज इसी नगर में पकड़ा गया था, ऐसा कुछ रासों से भी विदित होता है। रासों में पृथ्वीराज के शिकार खेलने के लिए इधर आने का लेखमास भी विदित होता है। 'घग्घर का युद्ध' नाम से रासों का एक समय भी है। असि (हांसी) दुर्ग पृथ्वीराज का वास स्थान था।

3. बीकानेर के राव कल्याण सिंह का वृतान्त टॉड राजस्थान (हिन्दी अनुवारद बम्बई 1982) के अनुसार निम्न है।

बीकानेर के संस्थापक राव बीका की पांचवीं पीढ़ी में कल्याण सिंह नाम दृष्टिगत होता है (यह चित्रावली में प्रदत्त महाराज गंगा सिंह तक के राजाओं की वंश वृक्षावली से विदित होता है) इसी इतिहास के युद्ध 385 पर कल्याण सिंह को राव जैतसी के ज्येष्ठ पुत्र के रूप में लिखा है, जैतसी के पिता राव लूनकरण (बीकां के पुत्र) ने बीकानेर राज्य के पचिमांस को (भाटियों के प्रदेश) विजित किया था, संवत् 1603 में जैतसी के परलोक वास पर कल्याणमल ने पिता का सिंहासन संभाला यद्यपि कल्याणमल के शासन में बीकानेर की कुछ उन्नति नहीं हुई और न कोई परिवर्तन हुआ परन्तु उन्होंने दीर्घ काल तक निर्विधता से राज्य किया। आगे दूसरी ही पंक्ति में लिखा है कि कल्याण सिंह (मल नहीं लिखा) की संवत् 1630 में मृत्यु हो गई। इन्हीं के ज्येष्ठ पुत्र राम सिंह को अकबर ने हिसार देश का शासन भार सौंप अपने भाई (अनुज) राम सिंह की सहायता से रायसिंह ने भटनेर (वर्तमान हनुमानगढ़) को भी हथिया लिया था जोधपुर के राव द्वारा कल्याण सिंह के भगाए जाने का उल्लेख हमें टाड राजस्थान में नहीं मिला। यहां कल्याण सिंह के समय राव मालदेव जोधपुर के राव थे और शेरशाह से उनका युद्ध हुआ था। सन् 1596 के लगभग इस युद्ध में शेरशाह ने एक जाली पभ द्वारा राठौरों में अविश्वास भावना फैलाने का प्रयत्न किया था और सेना में फूट पड़ गई थी। संभावना है कि इसी घटना के आधार पर कल्याण सिंह को सरसा आकर कुछ दिन रहना पड़ा हो, क्योंकि राजपूतों में आनुवांशिक फूड पीढ़ियों चलती है। यहां यह स्मरणीय है कि जोधपुर राज्य के ही एक वीर बीकाजी ने पृथक राज्य बीकानेर की स्थापना की थी।