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सिरसा का इतिहास : प्राचीन एवं आधुनिक सिरसा-18

 लेखक एवं संकलन सुरेन्द्र भाटिया व डॉ. रविन्द्र पुरी
 
सिरसा का इतिहास : प्राचीन एवं आधुनिक सिरसा-18

इतिहास समाज को संस्कृति व विकास की जानकारी देता है 

सिरसा नगर एक ऐतिहासिक नगर है। इतिहासकारों द्वारा समय-समय पर सिरसा के इतिहास के संबंधित अनेक दस्तावेजों को लिखा गया मगर सिरसा के इतिहास के संबंध में एक राय नहीं है कि यह नगर कब व किसने बसाया मगर अनेक इतिहासकारों का मानना है कि ईसा से १३०० वर्ष पूर्व राजा सरस ने सिरसा नगर की स्थापना की। कुछ लोगों का मानना है कि सरस्वती के किनारे होने के कारण इस नगर का नाम सिरसा रखा गया वहीं अनेक लोग बाबा सरसाईंनाथ की नगरी के रुप में सिरसा को जानते हैं मगर प्राचीन नगर के संबंध में अनेक मान्यताएं होने के बावजूद वर्तमान नगर १८३८ में अंग्रेज अधिकारी थोरबाये द्वारा बसाया गया तथा यह नगर जयपुर के नक्शे पर अंग्रेज अधिकारी द्वारा ८ चौपट 16 बाजार के स्थान पर ४ चौपट 8 बाजार स्थापित किए गए। सिरसा के इतिहास से जुड़े विभिन्न पहलुओं को लेकर पल पल के संपादक सुरेन्द्र भाटिया व मनोविज्ञानी डॉ. रविन्द्र पुरी द्वारा वर्ष २०१६ में प्राचीन एवं आधुनिक सिरसा नामक एक पुस्तक का लेखन किया गया। इस पुस्तक का विमोचन हरियाणा के मुख्यमंत्री श्री मनोहर लाल १३ फरवरी २०१६ को चंडीगढ़ में किया गया। पुस्तक की प्रस्तावना नागरिक परिषद के अध्यक्ष व उस समय मुख्यमंत्री के राजनीतिक सलाहकार श्री जगदीश चोपड़ा द्वारा लिखी गई। इसके अतिरिक्त पूर्व मंत्री स्व. श्री जगदीश नेहरा द्वारा सिरसा तब व अब नामक एक लेख इस पुस्तक में शामिल किया गया। उनके अतिरिक्त नामधारी इतिहासकार चिंतक श्री स्वर्ण सिंह विर्क का एक लेख भी पुस्तक में प्रकाशित किया गया। प्रस्तुत है इस पुस्तक के विभिन्न अध्यायों को क्रमवार प्रकाशित किया जा रहा है।

स्वतंत्रता के बाद बदला सिरसा का स्वरूप
देश के विभाजन के बाद सिरसा नगर का स्वरूप पूर्णरूप से बदल गया, जहां नगर की सारी मुस्लिम आबादी सिरसा से पाकिस्तान चली गई। वहीं विभाजन से पूर्व संयुक्त पंजाब के लायलपुर, मिंटकुम्बरी, सियालकोट, बहावलपुर तथा मुल्तान जिलों से सैकड़ों परिवार सिरसा नगर व आसपास के ग्रामीण क्षेत्रों में बसाए गए। सिरसा के वर्तमान नगर का यह दूसरा आबादी का परिवर्तन था, जहां 1837 से 1840 के बीच अंग्रेज अधिकारी थोरस बे ने सिरसा के आसपास के नगरों नोहर, भादरा, सूरतगढ़, हिसार व रोड़ी आदि से लोगों को उस समय के नव स्थापित नगर में आबाद किया, वहीं 1947 के बाद भारत के विभाजित भाग से पंजाबी परिवार सिरसा में आबाद हुए। सिरसा नगर के सदर बाजार व थाना रोड़ तथा सूरतगढयि़ा के आसपास की आबादी में इन लोगों को मकान उपलब्ध करवाए गए जो मुस्लिम परिवार छोड़कर गए थे। रोड़ी बाजार के खान साहिब वाली गली के उत्तर में अधिकांश पंजाबी परिवार पाकिस्तान बनने के बाद इस नगर में आए। इसके अतिरिक्त जो परिवार विभाजन के समय सिरसा के आसपास के गांवों में बस गए थे, वे सिरसा की बाहरी बस्तियों व मंडी टाऊनशिप में धीरे धीरे बसे। विभाजन के बाद सिरसा में जो परिवार आए, उनमें से रामा क्लब के संस्थापक स्व. रामचंद कालड़ा, डूमरा परिवार, अनेक मेहता परिवार, अरोड़ा परिवार, खत्री परिवार, चोपड़ा परिवार, बहल परिवार, भाटिया परिवार, पुरी परिवार, तिन्ना परिवार, बठला परिवार प्रमुख थे। सिरसा की हिसार रोड पर खैरपुर गांव में अनेक सिख परिवार लायलपुर से आकर बसे जिनमें स्व. स. राम सिंह, स. कश्मीर सिंह, स. मित्रा सिंह, स. गुरदयाल सिंह, स. सन्ता सिंह, स. हरनाम सिंह तथा ओलख परिवार प्रमुख थे। वहीं सिरसा नगर के दक्षिण-पश्चिम भागों में अनेक अरोड़ा बिरादरी के परिवार जिनमें मुख्यत: मोंगा परिवार, सेठी परिवार व फुटेला परिवार प्रमुख हैं, विभाजन से पूर्व भी सिरसा से संबंधित थे। इसके अतिरिक्त विभाजन के बाद बड़ी संख्या में कंबोज बिरादरी भी सिरसा के आसपास गांव में खेती का कार्य करने लगे। जिनमें से सैकड़ों परिवार सिरसा नगर में आकर बस चुके हैं। इस प्रकार सिरसा में विभाजन के बाद मुख्यत: राजस्थानी व पंजाबी संस्कृति के लोगों ने मिलजुल कर रहना आरंभ किया। 1966 तक हरियाणवी संस्कृति से जुड़े लोगों की संख्या बहुत कम थी। जैसे जैसे सिरसा नगर विकसित हुआ, उसके साथ ही अनेक हरियाणवी परिवार भिवानी, जींद, सोनीपत व रोहतक आदि नगरों से सिरसा में बसने लगे। पंजाब से हरियाणा के अलग होने के बाद
अधिकांश सरकारी कर्मचारी रोहतक, सोनीपत जिलों से सिरसा तैनात हुए। इनमें से अनेक परिवार धीरे धीरे सिरसा के स्थाई निवासी बन गए। इन प्रमुख परिवारों में सिरसा के सुप्रसिद्ध चिकित्सक डा. आरएस सांगवान 1966 के बाद जब पंजाब से हरियाणा अलग हुआ तो पहली बार सिरसा आए। आज उन्होंने सिरसा के आर्य समाज सहित दो दर्जन से अधिक संस्थाओं में अपना महत्वपूर्ण योगदान दिया है। एक सितंबर 1975 को सिरसा के जिला बनने के बाद भी बड़े स्तर पर जो कर्मचारियों की तैनाती हुई। वह रोहतक व आसपास के जिलों के थे। क्योंकि तब तक सिरसा में शिक्षा न के समान थी, ऐसे में हरियाणा में नौकरियों का बड़ा हिस्सा रोहतक, भिवानी, महेंद्रगढ़, सोनीपत आदि जिलों से संबंधित लोग थे । हरियाणा के गठन के बाद विशेषकर 80 के दशक में जब पंजाब में आतंकवाद था, तब भी पंजाब के अबोहर फाजिल्का मानसा बठिंडा जिलो से भी सैकड़ों परिवार सिरसा में आबाद हुए। इन परिवारों में मुख्यत: अरोड़ा खत्री व पंजाबी बनिया बिरादरी के परिवार शामिल हैं जो सिरसा की डबवाली रोड पर मंडी टाऊनशिप के आसपास आबाद हुए। इस प्रकार सिरसा जिला राजस्थान, पंजाब व हरियाणा की मिली जुली संस्कृति की त्रिवेणी भी है।