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सिरसा का इतिहास : प्राचीन एवं आधुनिक सिरसा-17

लेखक एवं संकलन सुरेन्द्र भाटिया व डॉ. रविन्द्र पुरी
 
सिरसा का इतिहास : प्राचीन एवं आधुनिक सिरसा-17

इतिहास समाज को संस्कृति व विकास की जानकारी देता है 

सिरसा नगर एक ऐतिहासिक नगर है। इतिहासकारों द्वारा समय-समय पर सिरसा के इतिहास के संबंधित अनेक दस्तावेजों को लिखा गया मगर सिरसा के इतिहास के संबंध में एक राय नहीं है कि यह नगर कब व किसने बसाया मगर अनेक इतिहासकारों का मानना है कि ईसा से १३०० वर्ष पूर्व राजा सरस ने सिरसा नगर की स्थापना की। कुछ लोगों का मानना है कि सरस्वती के किनारे होने के कारण इस नगर का नाम सिरसा रखा गया वहीं अनेक लोग बाबा सरसाईंनाथ की नगरी के रुप में सिरसा को जानते हैं मगर प्राचीन नगर के संबंध में अनेक मान्यताएं होने के बावजूद वर्तमान नगर १८३८ में अंग्रेज अधिकारी थोरबाये द्वारा बसाया गया तथा यह नगर जयपुर के नक्शे पर अंग्रेज अधिकारी द्वारा ८ चौपट 16 बाजार के स्थान पर ४ चौपट 8 बाजार स्थापित किए गए। सिरसा के इतिहास से जुड़े विभिन्न पहलुओं को लेकर पल पल के संपादक सुरेन्द्र भाटिया व मनोविज्ञानी डॉ. रविन्द्र पुरी द्वारा वर्ष २०१६ में प्राचीन एवं आधुनिक सिरसा नामक एक पुस्तक का लेखन किया गया। इस पुस्तक का विमोचन हरियाणा के मुख्यमंत्री श्री मनोहर लाल १३ फरवरी २०१६ को चंडीगढ़ में किया गया। पुस्तक की प्रस्तावना नागरिक परिषद के अध्यक्ष व उस समय मुख्यमंत्री के राजनीतिक सलाहकार श्री जगदीश चोपड़ा द्वारा लिखी गई। इसके अतिरिक्त पूर्व मंत्री स्व. श्री जगदीश नेहरा द्वारा सिरसा तब व अब नामक एक लेख इस पुस्तक में शामिल किया गया। उनके अतिरिक्त नामधारी इतिहासकार चिंतक श्री स्वर्ण सिंह विर्क का एक लेख भी पुस्तक में प्रकाशित किया गया। प्रस्तुत है इस पुस्तक के विभिन्न अध्यायों को क्रमवार प्रकाशित किया जा रहा है।

सिरसा के धार्मिक स्थल

जब बात सिरसा में धार्मिक आस्था की हो तो बेगू रोड स्थित डेरा सच्चा सौदा का नाम अवश्य आता है, जहाँ हजारों लाखों लोग प्रत्येक वर्ष श्रद्धालुओं के रूप में आते है। इस की नींव 29 अप्रैल 1948 में रखी गई। इस डेरे के माध्यम से 100 से अधिक लोक भलाई के कार्य किये जा रहे है जिनको अन्तर्राष्ट्रीय स्तर पर भी विशेष पहचान मिली है। रक्तदान, पौधारोपण, मेडिकल सुविधा, स्वच्छता जागरूकता, खेलकूद में डेरा सच्चा सौदा ने सिरसा का नाम रोशन किया। कई गतिविधियों के लिए डेरा सच्चा सौदा का नाम गिनिज बुक आफ वर्ल्ड रिकार्ड सहित कई एजेंसियों में दर्ज है। सिरसा धर्मनगरी के नाम से भी जाना जाता है। सिरसा में हर समय कहीं कहीं धार्मिक गतिविधियां चलती रहती है। दिन की शुरूआत ही प्रभात फेरियों से होती है और फिर सारा दिन अलग-अलग ढंग से धार्मिक अनुष्ठान चलते रहते है। सिरसा में बहुत से धार्मिक स्थल है। सिरसा से लगभग पांच कि. मी. की दूरी पर हिसार रोड पर राधा स्वामी सत्संग घर स्थित है। वास्तव में यह पंजाब में ब्यास स्थित राधा स्वामी मुख्यालय की एक शाखा है कि किन्तु यहां पर भी हजारों लाखों की संख्या में श्रद्धालु अपनी आस्था के चलते आते है।

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यहां पर एक अति आधुनिक हस्पताल भी है जो आसपास के विभिन्न गांवों के लोगों को उत्कृष्ट सेवायें प्रदान करता है। शहर के 30 कि. मी. पश्चिम में डेरा जीवननगर भी है जो नामधारी सम्प्रदाय का एक धार्मिक स्थल है। इस का नाम नामधारी संत स्वर्गीय श्री प्रताप सिंह जी की माता जीवन कौर की याद में रखा गया था। यहां पर इसी सम्प्रदाय के माध्यम से लोक भलाई के कार्य किये जाते हैं और कई शिक्षण संस्थायें लोगों को शिक्षित कर रही है। हॉकी के विकास में इस सम्प्रदाय का विशेष योगदान है। सिरसा में कई ऐतिहासिक मूल्य रखने वाले गुरूद्वारे स्थित है। जिनमें केवल सिख धर्म को मानने वाले लोगों की आस्था है बल्कि हर धर्म, जाति सम्प्रदाय के लोग यहां माथा टेक कर शीश झुकाते है। गुरू नानक देव जी ने अपनी दूसरी धार्मिक यात्रा (उदासी) पर 1506 में सिरसा में आकर सिरसा की धरती को पावन किया। उन्होंने चालीस दिन का व्रत रखा था और उसी स्थान पर चिल्ला साहिब गुरुद्वारा स्थित है। इसी प्रकार से दसवें सिख गुरू गोबिन्द सिंह जी मुक्तसर से दिल्ली जाते हुए 1705 06 में सिरसा रूके थे और आज उसी स्थान पर दशम गुरू श्री गुरू गोबिंद सिंह की याद में गुरूद्वारा श्री पातशाही दसवीं साहिब है और चोरमार खेड़ा में स्थित गुरूद्वारा गुरू गोबिन्द सिंह जी है जहां दसवें गुरू एक रात के लिए रूके थे। सभी गुरूद्वारों सहित इन गुरुद्वारों में लोगों की विशेष आस्था है। लोग अपनी मन्नतों को पूरा करने हेतु चिल्ला साहिब गुरुद्वारा में चालीस दिन तक विशेष रूप से आते हैं। भगवान कृष्ण के अवतार माने जाने वाले रामदेव जी के भी कई मंदिर सिरसा में स्थित है जिस में प्रमुख गांव कागदाना में और सिरसा में है। आस्थावान लोगों का मानना है कि त्वचा पर मस्सो को हटाने के लिए बांस वाली झाडू नमक को रामदेव के मंदिर से चढ़ाने से जल्द आराम मिलता है। इसी प्रकार से रानियां रोड पर स्थित हनुमान मंदिर, श्री खाटू श्याम धाम, गणेश मंदिर, जैन मंदिर, श्री बालक नाथ स्थित मंदिर, सालासर धाम मंदिर भादरा बाजार में स्थित पार्क जहां कभी भादरा तालाब होता था, के किनारे पर कई प्रमुख मंदिर है। जहां लोग अपनी अपनी आस्थाओं के अनुसार जाते है। इन मंदिरों में कई नए और कई पुराने मंदिर है। ऐतिहासिक मंदिरों में डेरा बाबा सरसाई नाथ का खास महत्व है। महान संत सरसाई नाथ जी ने जहां ध्यान साधना की थी वहीं पर आज यह प्राचीन मंदिर स्थित है। मुगल शासक शाहजहां के बीमार बेटे दारा को ठीक करने का श्रेय भी सरसाई नाथ जी को जाता है। धन्यवाद स्वरूप शाहजहां ने यहां लाल पत्थर में एक गुम्बद बनवाया जिसमें मुगल वास्तुशिल्प कला की छाप स्पष्ट दिखती है। आज इस डेरे में शिव दुर्गा के मंदिर भी है और सरसाई नाथ जी के डेरा पर लगने वाले मेलों में केवल शहर के बल्कि आसपास क्षेत्रों के लोग भी हजारों की तादाद में आते हैं। सिरसा के पश्चिम भाग में महान संत बाबा बिहारी की समाधि भी है। यहां पर समय समय पर कई अध्यात्मिक, सांस्कृतिक धार्मिक कार्यक्रम होते है। बाबा बिहारी चेरिटेबल ट्रस्ट द्वारा आंखों का एक प्रसिद्ध हस्पताल भी चलाया जाता है। इसके पास ही गुरु तारा बाबा जी की कुटिया भी है। जहां समय समय पर धार्मिक समागम होते रहते हैं और हजारों की संख्या में श्रद्धालु महान संत तारा बाबा जी की आराधना करने आते हैं। सूफी संत बाबा भूमण शाह जी का डेरा भी सिरसा का प्रसिद्ध धार्मिक संस्थान है। डेरों में हालांकि कंबोज अधिक आस्था रखते है किन्तु फिर भी लगभग हर जाति धर्म के लोग यहां लगने वाले लंगरों अन्य कार्यक्रमों में भाग लेते है। मुख्य डेरा संगरसाधा में स्थित है। यह डेरा 1947 में देश के विभाजन के बाद महंत गिरधारी दास जी द्वारा बसाया गया था। यहां लंगर भवन, हस्पताल, पुस्तकालय आदि सुविधाएं उपलब्ध है और साथ ही मेहनतकश कंबोज लोगों द्वारा समाज सेवा के कार्य भी किए जाते है। जहां एक ओर हिन्दु, सिखों और कई सम्प्रदायों के धार्मिक स्थल हैं वहीं पुराने शहर के बीचों बीच सुभाष चौंक पर जामा मस्जिद स्थित है। यह मस्जिद शाहजहां के शासन में बनी थी और यह जामा मस्जिद दिल्ली की शैली पर बनी है। सिख लंबे समय से सिरसा और इसके आसपास के क्षेत्रों में रह रहे हैं और ये उस समय से इस क्षेत्र के निवासी हैं जब वे नानक पंथी संप्रदाय के रूप में हिंदुओं के एक भाग के रूप में थे। बाद में सिख धर्म एक स्वतंत्र रूप में मुखर हुआ और यह स्थान सिखों के लिए एक विशेष विश्वास का केंद्र बना। इस क्षेत्र में लंबे समय से गुरुनानक देव जी गुरु गोबिंद सिंह जी के जन्मदिन पूरे हर्षोल्लास के साथ मनाए जाते रहे हैं। इसी प्रकार से गुरु अर्जुन देव जी और गुरु तेग बहादुर जी के शहीदी दिवस भी मनाए जाते हैं। सिख धर्म के विभिन्न दिनों पर छबीलें लगाई जाती हैं, जहां पर मीठा पानी और दूध इत्यादि लोगों को पिलाया जाता है। आमतौर से अनुयायी लंगर लगाते हैं जिसमें सभी धर्म के लोग भाग लेते हैं। सिरसा क्षेत्र में दो सिख गुरुओं ने अपने चरण डाले जिसके कारण इस क्षेत्र के गुरुद्वारों में सिख धर्म को मानने वालों की विशेष आस्था है। 1506 में गुरु नानक देव जी अपनी दूसरी उदासी के दौरान सिरसा पधारे। उदासी से अभिप्राय उनकी उस धार्मिक यात्रा से है जिसके द्वारा वे देश विदेश में जाकर लोगों के मन में यह भावना पैदा करना चाहते थे कि भगवान एक है और हमें सभी धर्मों का आदर करना चाहिए। इस समय गुरुनानक देव जी ख्वाजा अब्दुल शकुर और हिंदू संत लालजी और जैन संत अजाबा जी इत्यादि के साथ धार्मिक सत्संग में शामिल हुए। गुरुनानक देव जी ने यहां पर 40 दिन का व्रत भी रखा जिसको कुछ लोग चिल्ला कहते हैं और ये महानुभाव जिस स्थान पर रहे और धार्मिक सत्संग किए। वहां बने गुरुद्वारे को आज चिल्ला साहब के नाम से जाना जाता है। आज भी बहुत से सिख अनुयायी सिख धर्म में आस्था रखने वाले लोग अपनी मान्यताओं को पूरा करने के लिए यहां 40 दिन की सेवा करने के लिए आते हैं। सिखों के दसवें गुरु ने भी सिरसा की धरती पर अपने पवित्र चरण रखकर इसे गौरवान्वित किया। 1705 06 में मुक्तसर से दिल्ली जाते समय वे सिरसा के रामदेव मंदिर के पास एक स्थान पर ठहरे और आज इस स्थान पर एक गुरुद्वारा स्थित है जिसे दशम गुरू गुरुद्वारा (दसवीं पातशाही गुरुद्वारा) कहा जाता है।