थोड़ी सी सजगता भी बचा सकती है किसी की जान: डॉ. रवींद्र पुरी
डॉ. पुरी ने कहा कि भारत में ज्यादातर आत्महत्याओं का कारण नशे की लत, पुरानी बीमारियां, पारिवारिक कलह, अकेलेपन की भावना, आर्थिक नुकसान, मानसिक बीमारियां, दुर्व्यवहार और कामकाज की जगह पर कुछ पेशेवर मुद्दे कार्य करते हैं। भारत में महिलाओं की आत्महत्याओं के मामलों में आधी महिलाएं गृहणियां होती है। आंकड़ों के आधार पर डॉ रविंद्र पुरी ने कहा कि भारत में 15 से लेकर 44 वर्ष की आयु के लोगों में आत्महत्या के मामले अधिक देखे गए।
डॉ. रवींद्र पुरी ने कहा कि हमारी थोड़ी सी सजकता और ध्यान लोगों को आत्महत्या करने से बचा सकते हैं। उन्होंने कहा कि यदि आपके आसपास या परिवार में कोई ऐसा व्यक्ति है जो नशे का सेवन करता है या किसी मानसिक रोग से परेशान है तो ऐसे व्यक्ति का ध्यान रखना बेहद जरूरी है। क्योंकि आत्महत्या के ज्यादा मामले नशे और मानसिक बीमारियों के कारण होते हैं। डॉ पुरी ने कहा कि यदि कोई व्यक्ति अचानक गुमसुम रहना शुरू कर दे और लोगों से बात करनी बंद करदे, सामाजिक रूप से अपने आप को विड्रा करने लग जाए तो उस पर विशेष रूप से ध्यान देने की आवश्यकता है। क्योंकि हो सकता है कि वह व्यक्ति उदासी और डिप्रेशन में जा रहा हो और उसे तुरंत मनोवैज्ञानिक या डॉक्टरी सहायता की आवश्यकता हो।
उन्होंने कहा कि यदि परिवार में या आपके आसपास कोई ऐसा व्यक्ति है जो आर पार की सोच रखता है ऐसे व्यक्ति का भी ध्यान रखने की आवश्यकता है क्योंकि वह कभी भी अपने आप को या किसी अन्य को नुकसान पहुंचा सकता है। मनोवैज्ञानिक डॉक्टर रविंद्र पुरी ने कहा कि यदि नशे का सेवन करने वाला व्यक्ति अचानक ही नशे की मात्रा बढ़ा दे या कोई आम व्यक्ति अचानक ही आक्रामकता में आना शुरू करदे या कोई व्यक्ति अचानक ही अपने परिवार, दोस्त और रिश्तेदारों से मिलना जुलना छोड़ देऔर उसके व्यवहार में अचानक ही भावात्मक जोरदार बदलाव आने लग जाए तो आपको तुरंत सावधान हो जाना चाहिए। आत्महत्या के बचाव के उपाय में यह ध्यान भी रखने की आवश्यकता है कि यदि कोई सोशल मीडिया पर अपने अकाउंट बंद करने लगे या लोगों को गुड बाय बोलने लगे और अपनी व्यक्तिगत सामान लोगों को बांटने लगे तो यह भी एक खतरे का सिग्नल हो सकता है।
डॉ. पुरी ने कहा कि यह याद रखने की बात है कि जब भी कोई व्यक्ति आत्महत्या करता है तो वह अचानक आमतौर से नहीं करता है उससे पहले वह इसकी भूमिका बनाने लग जाता है और कुछ लोग बातों ही बातों में इसका इशारा भी करते हैं। जिन लोगों को दुनियादारी अर्थात लाइफ स्किल्स कम आती हैं उन लोगों में आत्महत्या का खतरा अधिक रहता है क्योंकि वह जिंदगी की समस्याओं का बहादुरी से सामना नहीं कर सकते हैं। डॉ पुरी ने स्कूल प्रशासकों व उनके अध्यापकों से भी आग्रह किया है कि यदि उन्हें लगता है की स्कूल में किसी बच्चे का व्यवहार अचानक बदल रहा है , वह चुपचाप रहने लग गया है तो इसके लिए स्कूल के अंदर एक सेफ जोन बनाया जाना चाहिए जिसमें स्कूल के टीचर्स विद्यार्थियों से बातचीत कर सके और यह एक ऐसा स्थान होना चाहिए जहां पर विद्यार्थियों को लगे कि उनकी बात किसी और तक नहीं पहुंचेगी।
डॉ. पुरी ने कहा कि प्रत्येक जीवन बहुत महत्वपूर्ण होता है वह एक जीवन नहीं बल्कि बहुत सारे लोगों का जीवन होता है इसलिए आसपास के माहौल में जब कभी भी किसी को कोई आत्महत्या के खतरा महसूस हो उसे बेहिचक होकर पीड़ित व्यक्ति की सहायता करनी चाहिए।और इस वर्ष का थीम भी यही है क्रिएटिंग हॉप थ्रू एक्शन।