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मौसम के मिजाज के हिसाब से बदलें खेती के तरीके

कम बारिश पर ज्वार-बाजरा है फायदे की खेती 
 
मौसम के मिजाज के हिसाब से बदलें खेती के तरीके  
लखनऊ, 14 अगस्त। बदलते मौसम के मिजाज को देखते हुए किसानों को खेती के तरीके भी बदलने चाहिए। कभी झमाझम बारिश तो कभी सूखा जैसे हालात को देखते हुए फसलों का चयन और उनकी बोआई करने के तरीके में बदलाव करना होगा। इसी से किसान ज्यादा फायदा निकाल सकते हैं। कृषि वैज्ञानिकों का कहना है कि अब धान और गेहूं से हटकर किसानों को दूसरी फसलों की ओर रूख करना चाहिए। यदि बारिश कम होने की संभावना हो तो ज्वार-बाजरा की ओर अग्रसर होना ठीक होगा।

उसी तरह अगस्त माह में गाजर, फूल गोभी, पत्ता गोभी, शलजम की बोआई का मौसम है। इसकी तैयारी किसानों को करनी चाहिए। फूल गोभी और पत्ता गोभी की रोपाई तो किसान शुरु कर दी हैं, लेकिन इनकी रोपाई में भी मौसम के हिसाब से खेतों की मेढ़बंदी करना जरूरी है। रोपाई से पहले मेढ़ बना लें और उसकी मिट्टी भूरीभूरी हो, खरपतवार न रहे। इसका ध्यान रखते हुए रोपाई करें।

इस संबंध में कृषि वैज्ञानिक डा. ए. बी. सिंह का कहना है कि प्रकृति के अनुसार खेती करना ही फायदेमंद है। हर सब्जी को मेढ़ों पर उगाने से पानी का जमाव होने का खतरा नहीं रहता। अधिकांश सब्जियों में पानी के जमाव को बर्दाश्त करने की क्षमता नहीं होती है। इसके मेढ़ पर लगाने से बचाव हो जाता है। बरसात के मौसम के बीच खेती करने का सबसे बड़ा फायदा सही है कि अलग से सिंचाई साधनों की जरूरत नहीं होती, बल्कि प्राकृतिक पानी गिरने से ही फसलों को बेहतर उत्पादन मिल जाता है। खासकर सब्जियों की बात करें तो इस मौसम में फसलों में अंकुरण और पौधों का विकास तेजी से होता है।

डा. शैलेंद्र दुबे का कहना है कि गाजर की खेती के लिये खेत में जैविक विधि अपनायें और दो से तीन फीट गहरी जुताई कर मिट्टी को भूरभूरी बना लें। समतलीकरण के बाद खेत में कंपोस्ट खाद डालें, जिससे मिट्टी को नमी मिल सके। ध्यान रखें कि उन्नत किस्म के रोगरोधी बीजों से ही गाजर की बुवाई करें। वहीं शलजम की खेती के बारे में उन्होंने बताया कि बलुई और रेतीली मिट्टी इसके लिए उपयुक्त होता है। इसकी बुआई से पूर्व खर-पतवार न रहे, इसका विशेष ध्यान रखा जाना चाहिए। अगस्त माह पालक की खेती के लिए भी उपयुक्त होता है।