Pal Pal India

जनभागीदारी से सिरसा का विकास-4

एक विशेष बच्ची के कारण सिरसा में स्थापित हुई तीन संस्थाएं
 
जनभागीदारी से सिरसा का विकास-4

किसी एक व्यक्ति के साथ घटित. घटना न केवल उसके जीवन में एक नया मोड़ दे देती है बल्कि वह घटना समाज को एक नई दिशा भी देती है। 1985 में सिरसा के निवासी श्री यश कथूरिया व श्रीमती गीता कथूरिया के यहां भगवान की कृपा से एक विशेष बच्ची गुड्डू का जन्म हुआ। कुछ माह तक परिवार में गुड्डू एक सामान्य बच्ची के रूप में लालन-पालन पा रही थी मगर गुड्डू तो विशेष बच्ची थी, कुछ समय बाद परिवार को यह अहसास होने लगा कि गुड्डू सामान्य बच्चों जैसी नहीं है वह एक विशेष बच्ची है तथा वह अपनी आयु के अनुसार विकसित नहीं हो रही। कथूरिया परिवार विशेषकर गुड्डू की माता श्रीमती गीता कथूरिया लगभग 2 वर्षों तक देश के अनेक बड़े अस्पतालों में लेकर गई। तब परिवार को यह विश्वास हुआ कि गुड्डू एक विशेष बच्ची है।

a

तब गुड्डू के मामा श्री अश्वनी सपड़ा को किसी ने यह जानकारी दी कि इन विशेष बच्चों के क्षेत्र में सिकंदाराबाद में राष्ट्रीय संस्थान है। तब श्री अश्वनी सपड़ा ने उस संस्थान से विशेष बच्चों के क्षेत्र में बीए की डिग्री प्राप्त की। अश्वनी उस संस्थान का उत्कृष्ट विद्यार्थी था व उसने बीए की डिग्री में गोल्ड मेडल प्राप्त किया। तब तक गुड्डू 5 वर्ष की हो चुकी थी। 1990 में अश्वनी ने कुरुक्षेत्र विश्वविद्यालय में मास्टर डिग्री प्राप्त करने के लिए दाखिला लिया। जब अश्वनी अपनी बहन से मिलता तो वह अपनी दीदी को भी विशेष बच्चों के क्षेत्र में डिप्लोमा करने के लिए प्रेरित करता। आखिर 1991 में श्रीमती गीता कथूरिया ने भी दिल्ली में लाजपत नगर स्थित विशेष बच्चों के प्रशिक्षण केंद्र में डीएमआर करने के लिए दाखिला लिया।

अश्वनी के मन में मास्टर डिग्री करने के बाद अपनी दीदी के साथ विशेष बच्चों के क्षेत्र में विशेष विद्यालय खोलने की इच्छा थी। 1992 में अश्वनी की मास्टर डिग्री व श्रीमती गीता कथूरिया का डिप्लोमा पूरा हो जाना था मगर नियति को शायद यह मंजूर नहीं था। जून 1992 में अश्वनी की मास्टर डिग्री पूरी हो चुकी थी मगर वह अभी कुरुक्षेत्र विश्वविद्यालय में ही था। वह अपने घर फरीदाबाद जाने की तैयारी कर रहा था मगर कुछ दोस्तों ने 23 जून 1992 में कुरुक्षेत्र विश्वविद्यालय के स्विमिंग पूल में नहाने का प्रस्ताव रखा। अश्वनी अपने दोस्तों के साथ स्विमिंग पूल गया। नहाते हुए जैसे ही अश्वनी ने डाइविंग स्टैंड से पूल में छलांग लगाई तो उसका सिर स्विमिंग पूल के निचले हिस्से से टकरा गया और उसी समय अश्वनी की मौत हो गई। जैसे ही इसकी सूचना परिवार को मिली तो परिवार गहरे सदमे में चला गया। अश्वनी की दर्दनाक मौत से सबसे ज्यादा सदमा उनकी बड़ी बहन गीता कथूरिया को लगा क्योंकि अश्वनी उसकी विशेष बच्ची गुड्डू के कारण ही विशेष बच्चों के क्षेत्र में शिक्षा ग्रहण करने वहां गया था। अश्वनी सपड़ा की हृदय विदारक मौत के बाद सिकंदराबाद सहित विशेष बच्चों के राष्ट्रीय संस्थान ने उसके नाम पर अश्वनी सपड़ा मेमोरियल अवार्ड प्रतिवर्ष संस्थान के गोल्ड मेडलिस्ट को देने का निर्णय लिया जो आज तक प्रतिवर्ष संस्थान द्वारा दिया जा रहा है। इस दौरान श्रीमती गीता कथूरिया का मंदबुद्धि बच्चों के क्षेत्र में डिप्लोमा पूरा हो गया तथा वे सिरसा आ गईं। उस समय कथूरिया परिवार सिरसा की आरएसडी कॉलोनी में रहता था। 

सिरसा में विशेष बच्चों के 'प्रयास विद्यालय का आरंभ

b


श्रीमती गीता कथूरिया के पड़ोस में ही बच्चों के सुप्रसिद्ध चिकित्सक डॉ. जेएल खुराना व नगर के एक अन्य चिकित्सक डॉ. एमएम तलवाड़ का परिवार रहता था। श्रीमती कथूरिया ने इन दोनों चिकित्सकों से विशेष बच्चों के क्षेत्र में सिरसा में कार्य करने की अपनी इच्छा जाहिर की। संयोग से उस समय सिरसा में रोटरी मिड टाउन नाम की संस्था अत्यंत सक्रिय रूप से समाजसेवा के कार्य कर रही थी तथा डॉ. एमएम तलवाड़ उसके अध्यक्ष थे। इसी दौरान 12 नवंबर 1992 में रोटरी मिडटाउन की एक बैठक नगर के समाजसेवी व उद्योगपति बीके सरावगी के निवास स्थान पर निश्चित हुई जिसमें उस समय की केंद्रीय मंत्री कुमारी शैलजा मुख्यातिथि थीं। डॉ. एमएम तलवाड़ व जेएल खुराना के निमंत्रण पर श्रीमती गीता कथूरिया को इस बैठक में विशेष बच्चों के क्षेत्र में होने वाले संभावित कार्य की जानकारी रखने के लिए निमंत्रित किया गया। मैं कुमारी शैलजा के साथ इस रात्रि भोज में शामिल हुआ व भोज से पूर्व श्रीमती गीता कथूरिया ने विशेष बच्चों के क्षेत्र में विशेष विद्यालय होने की जानकारी देते हुए यह बताया कि अगर छोटी आयु के मंदबुद्धि (बौद्धिक रूप से अक्षम बच्चों) को प्रशिक्षण दिया जाए तो वे जीवनभर अपनी देखभाल स्वयं करने योग्य हो सकते हैं। श्रीमती गीता कथूरिया द्वारा एक विद्यालय सिरसा में खोलने का प्रस्ताव रखा गया जिसमें स्वयं अपनी सेवाएं नि:शुल्क देने का भी प्रस्ताव उन्होंने रखा। रोटरी क्लब ने इस पर विचार करने का निर्णय लिया तथा लगभग एक माह बाद ही आरएसडी कॉलोनी में गाबा पार्क में दो कमरों में प्रयास नामक विशेष बच्चों के विद्यालय का आरंभ हुआ तथा इसके उद्घाटन के अवसर पर केंद्रीय मंत्री कुमारी शैलजा के साथ मैं भी उपस्थित था। पांच बच्चों से आरंभ हुए इस विद्यालय के लिए उस समय के उपायुक्त पी. राघवेंद्र राव ने भी मदद करनी आरंभ की मगर दिन-प्रतिदिन के कार्यों में कठिनाइयों का सामना होने लगा। इस बीच श्रीमती गीता कथूरिया ने अनेक बार डॉ. तलवाड़, डॉ. जेएल खुराना व मुझे फोन द्वारा व मिलकर प्रयास की कठिनाइयों के संबंध में जानकारी दी। 

दि सिरसा सोशल वेलफेयर सोसायटी का गठन
प्रयास विद्यालय में आने वाली कठिनाइयों के संबंध में नगर के सुप्रसिद्ध चिकित्सक डॉ. आरएस सांगवान जो रोटरी मिड टाउन के वरिष्ठ सदस्य थे, को जानकारी दी गई। जब मैंने डॉ. आरएस सांगवान, डॉ. एमएम तलवाड़, डॉ. जेएल खुराना से बातचीत की तो एक नई संस्था बनाने के लिए डॉ. आरएस सांगवान के निवास स्थान पर एक बैठक का आयोजन किया गया। इस बैठक में प्रयास विद्यालय को संचालित करने के लिए दि सिरसा सोशल वेलफेयर सोसायटी बनाने का निर्णय लिया गया। 10 मार्च 1994 को डॉ. आरएस सांगवान, श्री कुलवंत राय जिंदल, सुरेंद्र भाटिया, डॉ. एमएम तलवाड़, डॉ. जेएल खुराना, श्री प्रवीण मिढ़ा, श्री प्रवीण बागला, श्रीमती कविता चोपड़ा, श्रीमती गीता कथूरिया, श्री एनके तलवाड़ व राकेश मेहता ने मिलकर दि सिरसा सोशल वेलफेयर सोसायटी का गठन किया। उस सोसायटी के गठन के बाद डॉ. आरएस सांगवान, मैं सुरेन्द्र भाटिया (लेखक) व कुछ अन्य सदस्य उस समय के उपायुक्त श्री पी. राघवेंद्र राव से मिले तो उन्होंने प्रयास विद्यालय के लिए केंद्र सरकार से अनुदान स्वीकृत होने की जानकारी देते हुए हमें कोई अन्य सामाजिक कार्य करने के लिए प्रेरित किया। जब हमने इस संबंध में केंद्रीय मंत्री कुमारी शैलजा से बातचीत की तो उन्होंने वृद्धाश्रम बनाने की सलाह दी। तब इस सोसायटी के सदस्यों ने नगर की हिसार रोड पर एक एकड़ भूमि खरीदने का निर्णय लिया जिसके लिए डॉ. आरएस सांगवान ने सबसे पहले आर्थिक सहयोग दिया व स. बलदेव सिंह नंबरदार ने आधा एकड़ भूमि दान में देने व आधा एकड़ भूमि के पैसे लेने पर सहमति व्यक्त की। ऐसे में 1995 के आरंभ में एक एकड़ भूमि लेकर पांच जून 1995 को कुमारी शैलजा व पूर्व मंत्री लछमन दास अरोड़ा ने कस्तूरबा गांधी वृद्धाश्रम का शिलान्यास किया तथा कुमारी शैलजा ने अपने संसदीय कोष से पहले 10 लाख रुपए इस वृद्धाश्रम के लिए देने की घोषणा की। ऐसे में जो संस्था विशेष बच्चों के विद्यालय प्रयास को गोद लेना चाहती थी उसके स्थान पर कस्तूरबा गांधी वृद्धाश्रम की स्थापना हुई। 


दिशा का उदय

c


श्रीमती गीता कथूरिया के घर पैदा हुई विशेष बच्ची गुड्डू के कारण प्रयास संस्था सिरसा में बन गई व 1995 में उसी को गोद लेने के लिए बनी संस्था द्वारा वृद्धाश्रम का शुभारंभ हो गया। मगर अभी तक बहुत काम बाकी था। 1995 से 1997 के बीच सिरसा में आधा दर्जन उपायुक्त बदले, क्योंकि प्रयास की देखभाल जिला प्रशासन कर रहा था मगर पर्याप्त मदद न होने के कारण 1997 आते-आते प्रयास के स्टाफ को मिलने वाले 1400 रुपए महीने का वेतन डेढ़ वर्ष से नहीं मिला था। जिस कारण श्रीमती गीता कथूरिया परेशान थी तथा उन्होंने तत्कालीन उपायुक्त श्री बीके पाणिग्रही के समक्ष अपना त्यागपत्र दे दिया। उनके मना करने के बावजूद श्रीमती गीता कथूरिया ने प्रयास छोडऩे का निर्णय कर लिया। इस दौरान भारत सरकार के सौजन्य से दा सिरसा एजुकेशन सोसायटी द्वारा गठित जन शिक्षण संस्थान में श्रीमती गीता कथूरिया को निदेशिका के रूप में 3 मार्च 1997 को नियुक्त किया गया। इस दौरान उन्होंने महिलाओं व विशेष बच्चों के क्षेत्र में कार्य करने का प्रयास किया। मगर प्रबंध समिति के कारण उन्होंने अक्तूबर 1997 में उस पद से भी त्यागपत्र दे दिया। उन्हीं के मन में एक नई संस्था बनाने का विचार आया। इस दौरान 27 अक्तूबर 1997 को मैं एक सड़क दुर्घटना में घायल हो गया तथा लगभग चार माह तक बैड पर रहा। 14 जनवरी 1998 को श्री यश कथूरिया व श्रीमती गीता कथूरिया जब मेरा हालचाल पूछने मेरे निवास स्थान पर आए तो दिशा के गठन की बात चली। उसी दिन श्री गुलशन ग्रोवर, श्री ए.सी. गाडी से बातचीत कर दिशा नामक संस्था का गठन करने का निर्णय लिया। मार्च 1998 में दिशा की ओर से एक चिकित्सा शिविर हांडीखेड़ा गांव में रखा गया जिसमें मेरे अतिरिक्त डॉ. आरएस सांगवान, डॉ. विनोद मेहता, श्रीमती गीता कथूरिया, केनरा बैंक के मैनेजर श्याम बजाज व गांव के सरपंच चेतराम शामिल हुए। इस कैंप की सूचना जब समाचार पत्रों में छपी तो नगर के धनाढ्य सेठ नंदलाल ने दिशा को गऊशाला रोड पर अस्थाई स्थान उपलब्ध करवाने का वादा किया जिसके चलते जुलाई 1998 में 10 विशेष बच्चों व 20 महिलाओं से दिशा का शुभारंभ हुआ। दिसंबर 1998 में श्री चंद्रशेखर मेहता के निवास स्थान पर दिल्ली के सेठ श्री अरुण गुप्ता किसी कार्य से आए तथा श्री चंद्रशेखर मेहता ने मुझे श्री गुप्ता जी से मिलवाया। हम उन्हें लेकर दिशा के कार्यालय गऊशाला रोड पर पहुंचे। श्री गुप्ता ने उसके अवलोकन के बाद प्रस्ताव रखा कि अगर आप अपनी भूमि लेना चाहें तो वे उसके लिए बिना शर्त 50 प्रतिशत धनराशि दान देने को तैयार हैं। हमने भूमि की तलाश आरंभ की तथा नगर की हिसार रोड पर फ्रेंड्स कॉलोनी में दिसंबर 1998 में 7 लाख रुपए की कीमत से लगभग 3 हजार गज जगह खरीदी जिसके लिए साढ़े तीन लाख रुपए की धनराशि श्री गुप्ता ने दी। इस दौरान 23 जनवरी 1999 को देश के सुप्रसिद्ध संत जूनापीठाधीश्वर महामंडलेश्वर स्वामी अवधेशानंद जी गिरि के कर कमलों से दिशा के भवन का भूमि पूजन हुआ। इस भूमि पूजन के लगभग एक वर्ष बाद 14 फरवरी 2001 को अभय सिंह चौटाला ने दिशा के मुख्य भवन का शिलान्यास किया जो नवंबर 2001 में बनकर तैयार हुआ। ऐसे में नगर की स्वयंसेवी संस्था दिशा का उदय हुआ। इस प्रकार श्रीमती गीता कथूरिया के घर पैदा हुई एक विशेष बच्ची के कारण आज नगर में तीन संस्थाएं कार्यरत हैं। 

पूर्व केंद्रीय मंत्री कुमारी सैलजा के सुझाव पर बना कस्तूरबा गांधी वृद्धाश्रम

e


दि सिरसा सोशल वेल्फेयर सोसायटी के गठन के बाद जब यह निर्णय हो गया कि प्रयास विद्यालय जिला प्रशासन द्वारा संचालित किया जाएगा तो सोसायटी के सदस्यों ने उस समय के उपायुक्त श्री पी. राघवेंद्र राव व पूर्व केंद्रीय मंत्री कुमारी सैलजा से विचार विमर्श किया। उन्होंने भविष्य की समस्याओं को देखते हुए सिरसा में वृद्धाश्रम की आवश्यकता पर जोर दिया जिसके बाद सोसायटी द्वारा वृद्धाश्रम खोलने का निर्णय लिया गया। वृद्धाश्रम खोलने के लिए भूमि की तलाश आरंभ हुई व सिरसा की हिसार रोड पर उस समय के नगर पार्षद स. बलदेव सिंह नंबरदार से संपर्क किया व एक एकड़ भूमि 1994 में 6 लाख रुपए में खरीदने का निर्णय लिया गया। सोसायटी के सदस्यों व स. बलदेव सिंह नंबरदार के बीच सिरसा की हिसार रोड पर पंजाब पैलेस के सामने एक एकड़ भूमि खरीदी गई।

पूर्व मंत्री लछमण दास अरोड़ा के कहने पर स. बलदेव सिंह ने तीन लाख रुपए की राशि छोड़ी
सोसायटी के सदस्यों ने स. बलदेव सिंह नंबरदार से वृद्धाश्रम के लिए एक एकड़ भूमि खरीदने के बाद जब इस संबंध में उस समय के उद्योगमंत्री स्व. लछमण दास अरोड़ा को जानकारी दी तो उन्होंने सोसायटी के सदस्यों व स. बलदेव सिंह नंबरदार के बीच एक बैठक आयोजित की। इस बैठक में स्व. लछमण दास अरोड़ा ने स. बलदेव सिंह नंबरदार से आग्रह किया कि वे वृद्धाश्रम के लिए आधी भूमि दान में दे दें, जिसके बाद स. बलदेव सिंह नंबदार ने सहर्ष श्री लछमण दास अरोड़ा की बात को स्वीकारते हुए 6 लाख रुपए के स्थान पर तीन लाख रुपए लेकर भूमि की रजिस्ट्री करवा दी।

जून 1995 में कस्तूरबा गांधी वृद्धाश्रम का हुआ शिलान्यास

f


हिसार रोड पर भूमि खरीदने के बाद केंद्रीय राज्य मंत्री कुमारी सैलजा व उस समय के उद्योगमंत्री श्री लछमण दास अरोड़ा से समय लेकर 23 जून 1995 को कस्तूरबा गांधी वृद्धाश्रम का शिलान्यास करवाया गया। कुमारी सैलजा ने अपने संसदीय कोष से 10 लाख रुपए की राशि कस्तूरबा गांधी वृद्धाश्रम के निर्माण के लिए घोषित की। 1997 में कस्तूरबा गांधी वृद्धाश्रम भवन लगभग बनकर तैयार हो गया मगर 9 वर्षों तक कस्तूरबा गांधी वृद्धाश्रम आरंभ नहीं हो पाया। इस दौरान कस्तूरबा गांधी वृद्धाश्रम का भवन जर्जर होने लगा। दिशा परिसर में वर्ष 2006 में एक कार्यक्रम में पहुंचे तत्कालीन उपायुक्त वी. उमाशंकर को इस संबंध में जानकारी दी तो उन्होंने जिला रेडक्रॉस के माध्यम से इस भवन की मरम्मत करवाने का निर्णय लिया। आखिर दो अक्तूबर 2006 को उद्योगमंत्री लछमण दास अरोड़ा व तत्कालीन उपायुक्त वी. उमाशंकर की उपस्थिति में कस्तूरबा गांधी वृद्धाश्रम का उद्घाटन हुआ।

तत्कालीन उपायुक्त श्री पी. राघवेंद्र राव के स्थानांतरण के बाद प्रयास की व्यवस्था बिगड़ी, 'दिशाÓ का हुआ गठन

d


सिरसा के आरएसडी कॉलोनी के गाबा पार्क में आरंभ हुए प्रयास विद्यालय को दि सिरसा एजुकेशन सोसायटी के भादरा बाजार की करनानी हवेली में स्थानांतरित कर दिया गया। इस दौरान 1994 में श्री पी. राघवेंद्र राव का सिरसा से स्थानांतरण हो गया। कुछ समय के लिए सिरसा उपायुक्त बनाए गए श्री एन.सी. वधवा ने प्रयास विद्यालय के स्थायी भवन के लिए सिरसा की कोर्ट रोड पर भवन आरंभ करवाया। मगर तीन महीने बाद उनका भी स्थानांतरण हो गया। 1995 से 1997 तक लगभग दो वर्षों में प्रयास विद्यालय की हालत दयनीय रही। लगभग 6 लोगों के स्टाफ में से किसी को भी डेढ़ वर्ष से वेतन नहीं दिया गया। इस दौरान सिरसा में लगभग आधा दर्जन उपायुक्तों के तबादले हुए। जिस कारण कोई भी उपायुक्त श्री एन.सी. वधवा के तबादले के बाद ध्यान नहीं दे पाया। श्रीमती गीता कथूरिया द्वारा 1997 में जब लेखक को प्रयास के संबंध में पूरी जानकारी दी गई तो नई संस्था बनाने का निर्णय लिया गया। 14 जनवरी 1998 को दिशा संस्था के नाम पर एक नई संस्था का रजिस्ट्रेशन करवाने पर सहमति बनी। 

केनरा बैंक सिरसा की मदद से दिशा ने लगाया पहला चिकित्सा शिविर
मार्च 1998 में दिशा संस्था के गठन के संबंध में उस समय के केनरा बैंक के प्रमुख प्रबंधक श्री श्याम बजाज से जब बातचीत हुई तो उन्होंने सी.एस.आर के अंतर्गत एक चिकित्सा शिविर आयोजित करने की सलाह दी। गांव हांडीखेड़ा के सरपंच श्री चेतराम से संपर्क किया गया व सिरसा के दो वरिष्ठ चिकित्सकों डॉ. आरएस सांगवान व डॉ. विनोद मेहता को आमंत्रित करके सिरसा के निकटवर्ती गांव हांडीखेड़ा के विद्यालय में चिकित्सा शिविर का आयोजन किया गया जिसमें लगभग 200 लाभार्थी बच्चों को चिकित्सा सुविधाएं दी। 

सेठ नंद लाल की मदद से गऊशाला रोड पर 1998 में आरंभ किया विशेष विद्यालय
सोसायटी एक्ट के अंतर्गत 15 मई 1998 को दिशा का पंजीकरण हुआ। इस दौरान दिशा के पहले प्रधान श्री गुलशन ग्रोवर, संरक्षक श्री ए.सी. गाड़ी व सचिव श्री सुरेंद्र भाटिया से बातचीत से एक अनौपचारिक बातचीत करते हुए सिरसा के गणमान्य एवं धनाढय व्यक्ति सेठ नंद लाल गऊशाला रोड पर एक स्थायी भवन देने को तैयार हुए। जहां जुलाई 1998 से विशेष बच्चों के साथ-साथ महिलाओं के लिए कुछ व्यावसायिक प्रशिक्षण आरंभ किए गए। आरंभ में गऊशाला रोड के आसपास के क्षेत्रों के 20 के लगभग विशेष बच्चे व 40 के लगभग महिलाएं प्रशिक्षण लेने के लिए दिशा केंद्र पहुंचने लगीं।

दिल्ली से आए दानी श्री ए.के. गुप्ता ने भूमि खरीदने के लिए साढ़े तीन लाख रुपए दिए
दिशा के वर्तमान प्रधान व लायंस क्लब के पूर्व गवर्नर चंद्रशेखर मेहता के मित्र दिल्ली निवासी श्री ए.के. गुप्ता किसी कार्य से दिसंबर 1998 में सिरसा आए व श्री चंद्रशेखर मेहता के साथ बातचीत करते हुए उन्होंने कुछ राशि दान में देने का उल्लेख किया। श्री चंद्रशेखर मेहता के निमंत्रण पर लेखक श्री सुरेंद्र भाटिया के निवास स्थान पर पहुंचे व श्री ए.के. गुप्ता से बातचीत हुई तो उन्होंने 10 लाख रुपए की राशि दान में देने की इच्छा जाहिर की। जब उनसे इस संबंध में कोई शर्त पूछी गई तो उन्होंने कहा कि उनकी शर्त केवल एक ही है। संस्था के सदस्य अथवा सिरसा के लोगों के दान द्वारा जितनी राशि एकत्रित की जाएगी, उतनी राशि वे देंगे तथा इसके लिए उन्हें किसी प्रकार के नाम की जरूरत नहीं। संस्था द्वारा दिशा के लिए भूमि की तलाश की गई व हिसार रोड पर फ्रैंडस कॉलोनी के साथ लगती लगभग तीन हजार गज भूमि का एक टुकड़ा 7 लाख रुपए में खरीदने का निर्णय लिया गया। श्री ए.के. गुप्ता को जब इसकी सूचना दी गई तो उन्होंने तुरंत साढ़े तीन लाख रुपए की राशि भिजवा दी। 

23 जनवरी 1999 को महामंडलेश्वर स्वामी अवधेशानंद ने किया दिशा का भूमि पूजन

h


हिसार रोड पर दिशा की भूमि खरीदने के बाद देश के प्रमुख संत महामंडलेश्वर स्वामी अवधेशानंद जी द्वारा 23 जनवरी 1999 को भूमि पूजन किया गया। भवन के लिए चारदीवारी का काम आरंभ हुआ। भवन के लिए धन की आवश्यकता थी, ऐसे में संस्था द्वारा पहले खरीदी गई भूमि की रजिस्ट्री करवाई गई व 14 जनवरी 2001 को विधिवत रूप से दिशा का निर्माण कार्य आरंभ किया गया व उस समय के विधायक श्री अभय सिंह चौटाला ने भवन का शिलान्यास किया। दिशा के भवन के कुल तीन ब्लॉक बनाए गए। पहले ब्लॉक का निर्माण लगभग 6 माह के अंदर पूरा करने के बाद तीन नवंबर 2001 को दिशा भवन का उद्घाटन किया गया व गऊशाला रोड से दिशा का कार्यालय व विशेष विद्यालय हिसार रोड पर स्थानांतरित कर दिया गया। दिशा के गठन में संस्था के अध्यक्ष श्री चंद्रशेखर मेहता, संरक्षक श्री ए.सी. गाड़ी, उपप्रधान श्री हरबंस नारंग, संयुक्त सचिव राजीव सिंगला, निर्देशिका श्रीमती गीता कथुरिया, पूर्व अध्यक्ष गुलशन ग्रोवर, श्री भूपेन्द्र पन्नीवाला, सुश्री नीलम भाटिया, श्री जसबीर सिंह जस्सा (प्रीतम पैलेस वाले), श्रीमती मीना भाटिया, डॉ. अनिता अरोड़ा ने संस्था के संचालन में गत 25 वर्षों से अपना हर संभव सहयोग दिया है। इसके अतिरिक्त संस्था में कार्यरत अनेक कर्मचारियों ने दिशा के दिव्यांग बच्चों की तन्मयता से सेवा की है चाहे संस्था द्वारा उन्हें बहुत कम मानदेय दिया जाता है, फिर भी ये कर्मचारी सामाजिक जिम्मेवारी समझते हुए कार्य करते रहे हैं। इन कर्मचारियों में श्रीमती अमरजीत कौर, श्री मधु भल्ला, सूरज स्वामी, देवेन्द्र कौर व श्रीमती बिमला देवी प्रमुख हैं। दिशा के अनेक पूर्व कर्मचारियों ने भी अपने समय में उत्कृष्ट कार्य किया है इनमें से श्री बिजेन्द्र कुमार व श्री अशोक यादव को उनके सहयोगी व संस्था के पदाधिकारी हमेशा याद करते हैं। इस प्रकार एक विशेष बच्ची के कारण सिरसा में तीन संस्थाएं जनभागीदारी से संचालित हो रही हैं।