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जनभागीदारी से सिरसा का विकास-3

श्रमिक विद्यापीठ/जन शिक्षण संस्थान की सिरसा में स्थापना
 
जनभागीदारी से सिरसा का विकास-3

भारत सरकार के मानव संसाधन विभाग द्वारा औद्योगिक क्षेत्रों के श्रमिकों को दक्ष बनाने के लिए श्रमिक विद्यापीठ के नाम पर जिलास्तर पर एक प्रशिक्षण केंद्र को चलाने वाली संस्था बनाने का निर्णय लिया गया, जिसके लिए भारत सरकार पूर्ण रूप से वित्तीय सहायता देगी। 2 जुलाई 1992 को मानव संसाधन विभाग में उपमंत्री बनने के बाद जैसे ही कुमारी सैलजा को इस संबंध में जानकारी मिली तो उन्होंने सिरसा में श्रमिक विद्यापीठ खोलने के लिए लेखक से उपयुक्त संस्था को ढूंढने की जिम्मेदारी सौंपी, जिसके बाद सिरसा एजुकेशन सोसायटी जो उस समय सीएमके महिला महाविद्यालय के अतिरिक्त जीआरजी स्कूल का संचालन कर रही थी, से बातचीत की गई। प्रथम द्रष्टया सिरसा एजुकेशन सोसायटी के पदाधिकारी इस संस्था को चलाने में कोई रुचि नहीं रखते थे। 1995 के अक्टूबर माह में किसी कार्यवश सिरसा एजुकेशन सोसायटी के तत्कालीन अध्यक्ष व सिरसा के पूर्व विधायक स्व. श्री सीताराम बागला के सुपुत्र जो बाद में सोसायटी के अध्यक्ष भी बने, श्री प्रवीण बागला लेखक के साथ शास्त्री भवन कुमारी सैलजा से मिलने पहुंचे। कुमारी सैलजा के पीएस श्री एल.सी. गोयल, आईएएस ने सिरसा में श्रमिक विद्यापीठ खोलने के लिए उपयुक्त संस्था ढूंढने की एक बार फिर से बात कही, जिस पर श्री प्रवीण बागला को फिर से इस पर विचार करने के लिए कहा गया। श्री प्रवीण बागला ने सिरसा फोन करके उस समय सीएमके कॉलेज की प्राचार्या श्रीमती कविता चोपड़ा को कुछ अन्य अधिकारियों के साथ दिल्ली बुलाया व श्रमिक विद्यापीठ के संबंध में एक बैठक का आयोजन श्रमिक विद्यापीठ के भारत सरकार से संबंधित अधिकारियों के साथ हुआ। जिसके बाद सिरसा में श्रमिक विद्यापीठ खोलने का निर्णय लिया गया। उस समय सिरसा एजुकेशन सोसायटी के अध्यक्ष जिला के उपायुक्त हुआ करते थे व सिरसा में श्री आर.आर. जोवल उपायुक्त के रूप में कार्यरत थे। केंद्रीय मंत्री कुमारी सैलजा की इच्छा के संबंध में उपायुक्त को पूरी जानकारी दी गई कि अगर सिरसा में श्रमिक विद्यापीठ खुलती है तो कृषि आधारित उद्योगों के साथ-साथ पिछड़े व गरीब क्षेत्र की महिलाओं को प्रशिक्षण दिया जा सकता है। सिरसा एजुकेशन सोसायटी द्वारा श्रमिक विद्यापीठ खोलने की औपचारिकताएं पूरी करने के लिए 12 अक्तूबर 1995 को उस समय के उपायुक्त एवं सिरसा एजुकेशन सोसायटी के अध्यक्ष श्री आर.आर. जोवल की अध्यक्षता में एक बैठक का आयोजन किया गया। इस बैठक में श्रमिक विद्यापीठ सिरसा को सिरसा एजुकेशन सोसायटी के अंतर्गत एक नई संस्था के रूप में रजिस्टर्ड करवाने का निर्णय लिया गया। इसमें उपायुक्त श्री आर.आर. जोवल को अध्यक्ष, पूर्व विधायक स्व. श्री सीताराम बागला को उपाध्यक्ष, श्रमिक विद्यापीठ के निर्देशों के अनुसार निदेशक सर्व शिक्षा अभियान के प्रतिनिधि एवं महाप्रबंधक जिला उद्योग केंद्र, कार्यकारी अधिकारी नगरपालिका सिरसा को सदस्य के रूप में लिया गया। इसके अतिरिक्त लेखक सुरेंद्र भाटिया, श्री ए.सी. गाड़ी, श्रीमती कविता चोपड़ा, श्रीमती राजकुमारी, श्री प्रवीण बागला व श्रीमती हनीला गर्ग को सदस्य के रूप में शामिल किया गया। इन 11 सदस्यों पर आधारित एक समिति बनाई गई। 

पहली बैठक के बाद उपायुक्त का हुआ स्थानांतरण, श्री सीताराम बागला को बनाया गया अध्यक्ष
श्रमिक विद्यापीठ की रजिस्ट्रेशन के बाद 2 नवंबर 1995 को श्रमिक विद्यापीठ की दूसरी बैठक का आयोजन किया गया। तब तक श्री आर.आर. जोवल जो सिरसा में उपायुक्त थे, उनका तबादला रेवाड़ी हो चुका था। बैठक में उपाध्यक्ष श्री सीताराम बागला को कार्यकारी अध्यक्ष के रूप में नियुक्त किया गया तथा बाद में उन्हें भारत सरकार के नोटिफिकेशन नंबर एफ-8-3/94डी-।।। (एई) दिनांक 20 जुलाई 1994 का हवाला देते हुए श्री सीताराम बागला को श्रमिक विद्यापीठ का चेयरमैन बनाया गया। भारत सरकार के निर्देशों के अनुसार जो भी संस्था श्रमिक विद्यापीठ का संचालन करती है, उसके अध्यक्ष को श्रमिक विद्यापीठ का भी अध्यक्ष बनाया जाना चाहिए। उस समय सिरसा एजुकेशन सोसायटी श्रमिक विद्यापीठ का संचालन कर रही थी तथा 1956 से 1995 तक सिरसा एजुकेशन सोसायटी में यह परंपरा थी कि जब तक उपमंडल था तब तक उपमंडलाधीश व 1975 के बाद जिला उपायुक्त को अध्यक्ष बनाया जाता था। भारत सरकार के नोटिफिकेशन में श्रमिक विद्यापीठ के अध्यक्ष के संबंध में जो गाइडलाइन थी उसमें किसी गणमान्य सामाजिक कार्यकर्ता को भी चेयरमैन बनाया जा सकता था। इसके नाते स्व. श्री सीताराम बागला को अध्यक्ष बनाया गया व कर्मचारियों की नियुक्ति करने का निर्णय लिया गया। इसी बैठक में आवश्यक कर्मचारियों की नियुक्ति के लिए 15 दिसंबर 1995 को दि ट्रिब्यून व दैनिक ट्रिब्यून में विज्ञापन देकर 25 दिसंबर 1995 तक आवेदन मांगे गए। इसी विज्ञापन के आधार पर श्रमिक विद्यापीठ के निदेशक, कार्यक्रम अधिकारी, लिपिक, चतुर्थ श्रेणी कर्मचारियों सहित कुल 14 कर्मचारी नियुक्त किए गए। 

अब जनशिक्षण संस्थान के रूप में कार्यरत है यह संस्था
वर्तमान में भारत सरकार व विभिन्न प्रदेश सरकारों द्वारा कौशल विकास के अंतर्गत कार्यक्रम चलाए जा रहे हैं। 1990 के दशक में श्रमिक विद्यापीठ का उद्देश्य भी अकुशल श्रमिकों को कुशल बनाना था। श्रमिक विद्यापीठ का बाद में नाम जनशिक्षण संस्थान कर दिया गया तथा आज भी सिरसा एजुकेशन सोसायटी के अंतर्गत यह संस्था कार्यरत है। कौशल विकास योजना के अंतर्गत जहां 6 महीने अथवा सीमित समय के लिए सरकार द्वारा केंद्र खोलने की अनुमति दी जाती है वहीं जिला स्तर पर श्रमिक विद्यापीठ/जनशिक्षण संस्थान एक ऐसी एजेंसी है जो स्थायी रूप से पिछले 27 वर्षों से सिरसा में काम कर रही है। आरंभ में इस संस्था में कुछ आपसी विवाद के बावजूद आज भी यह संस्था काम कर रही है तथा वह आवश्यकता के अनुसार पूरे जिले में कहीं भी कौशल विकास से संबंधित केंद्र खोल सकती है।