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...जब बेटों ने पिता का अंतिम संस्कार करने से मना कर दिया

 
...जब बेटों ने पिता का अंतिम संस्कार करने से मना कर दिया
सिरसा, 27 फरवरी। हमारा समाज इतना नीचे गिर जाएगा, यह  शायद किसी ने सोचा नहीं होगा। जिस पिता ने अपने बेटों को अपने हाथों से पाल-पोसकर बड़ा किया हो, उनके हर सपने को पूरा किया हो, वो ही बेटे पिता की मौत के बाद उसके अंतिम संस्कार से इनकार कर दे तो इसे ‘दुष्टता’ की पराकाष्ठता ही कहा जाएगा। कुछ लोगों को इस बात पर यकीन नहीं हो रहा होगा कि कैसे कोई बेटे अपने पिता के अंतिम संस्कार से इनकार कर सकते हंै, लेकिन यह घटना शत-प्रतिशत सच है और हमारे सिरसा में ही घटित हुई है। सिरसा के हिसार रोड पर कस्तूरबा गांधी वृद्धाश्रम है। आश्रम में परिवार द्वारा निकाले गए तथा बेसहारा बुजुर्ग रहते हैं। सिरसा का ही एक करीब 83 वर्षीय बुजुर्ग भी पिछले 7-8 साल से इस आश्रम में रह रहा था। बीती रात उस बुजुर्ग की आश्रम में मौत हो गई। आश्रम संचालकों ने इसकी सूचना मृतक के परिवार को दी जो सिरसा में ही रहता है। साथ ही पुलिस थाने में भी सूचित किया। मृतक बुजुर्ग के परिवार में इस समय दो बेटे व पत्नी है। बेटों के भी आगे बच्चे हैं। यानि, भरा-पूरा परिवार है। आश्रम संचालकों ने मृतक के बेटों को बताया कि आपके पिताजी का निधन हो गया है। आप शव को ले जाओ और अंतिम संस्कार करो। आप को यह जानकर हैरानी होगी कि मृतक के बेटों ने साफ शब्दों में मना कर दिया कि वे न तो शव लेकर जाएंगे और न ही अंतिम संस्कार करेंगे। थाना प्रभारी ने भी मृतक के बेटों से बात की तो बेटों ने बहाना बनाना शुरू कर दिया। एक बेटे ने कहा कि उसके घर में शादी है, इसलिए वह नहीं आ सकता और न ही  संस्कार कर सकता। दूसरे बेटे ने कह दिया कि उसका एक्सीडेंट हो रखा है, इसलिए वह नहीं आ सकता। खैर, पुलिस व आश्रम संचालकों ने मृतक बुजुर्ग के भाई के परिवार से इस बारे में बात की। भाई के बेटे संस्कार करने को राजी हो गए। यानी, मृतक के भतीजे, एक दोस्त आए और पोस्टमार्टम के बाद शव ले गए ताकि संस्कार किया जा सके। यह घटना निश्चित रूप से समाज के लिए चिंता की बात है। हमारा समाज किस दिशा में जा रहा है, यह सोचने की जरूरत है। संभवत: पिता से बढक़र इस दुनिया में कोई नहीं हो सकता। पिता ही अपनी सभी ईच्छाओं को मारकर संतान की जरूरतों को पूरा करते हैं। हर पिता की ईच्छा होती है कि उसके बेटे बुढ़ापे में उसका सहारा बनेंगे। उसकी सेवा करेंगे। लेकिन सेवा करना तो दूर, अंतिम संस्कार करने से ही मना कर देंगे, ऐसा कोई सोच भी नहीं सकता। हिंदू धर्म में शव का संस्कार कराना पुण्य माना गया है। उसी सोच के साथ सिरसा में भी कुछ संस्थाएं हैं जो न सिर्फ शवों का संस्कार करवाती है, बल्कि उनकी अस्थियों को गंगा में प्रवाहित करती है। दूसरी तरफ खुद का खून ही जब संस्कार करने से मना कर दे तो इससे बड़ी दुख व चिंता की कोई बात नहीं हो सकती। समाज के प्रबुद्ध लोगों को ऐसी घटनाओं पर मंथन करने की जरूरत है। 
कभी कपड़े का व्यापारी था मृतक
यहां पर जिस व्यक्ति की मौत व उसके बेटों की बात चल रही है, वह बुजुर्ग कुछ वर्ष पूर्व सिरसा में ही कपड़े का एक बड़ा व्यापारी होता था। उसका अच्छा व्यापार था। बाद में व्यापार में घाटा लगा तो व्यापार छोड़ दिया। अपनी जमा पूंजी से बेटों को घर बनाकर दे दिया ताकि बेटों को किसी प्रकार की कोई परेशानी न हो। कुछ समय पहले ही बुजुर्ग ने अपने पास जो कुछ रुपये बचे हुए थे, वे भी बेटों को दे दिए थे। एक पखवाड़े पहले भी बुजुर्ग ने आश्रम संचालकों से अपने घर जाने की ईच्छा जताई थी ताकि जिंदगी के अंतिम दिन अपनों के बीच गुजार सके। आश्रम संचालकों ने बुजुर्ग के एक बेटे-बहू को बुलाया था और बुजुर्ग को घर ले जाने को कहा, लेकिन बेटा-बहू उसे नहीं लेकर गए। 
सबक लेने की जरूरत
यहां पर इस बात का उल्लेख करने के पीछे यह मंशा नहीं है कि मृतक के बेटों को नीचा दिखाया जाए, बल्कि यह बताना है कि ऐसी घटनाओं से सबक लिया जाए। समाज के प्रबुद्ध लोग आगे आए और आश्रमों में बढ़ रही बुजुर्गों की संख्या पर चिंतन किया जाए। जो संताने अपने माता-पिता को आश्रम में छोड़ देते हैं, उन्हें समझाया जाए ताकि फिर से ऐसी कोई घटना न हो जहां अपनों का संस्कार करने से कोई मुंह मोड़ लें।