Pal Pal India

उलझनों और अटकलों के भंवर में फंसी रहती है सिरसा विधानसभा की क्षेत्र की राजनीति


सिरसा से चुनाव मैदान में गोबिंद कांडा को उतर सकती है भाजपा,
गोपाल कांडा सिरसा से मैदान में उतरे तो गोबिंद रानियां से लड़ेंगे चुनाव 
 
उलझनों और अटकलों के भंवर में फंसी रहती है सिरसा विधानसभा की क्षेत्र की राजनीति​​​​​​​ 

सिरसा, 19 मार्च। सिरसा विधानसभा क्षेत्र राजनीतिक दृष्टि से प्रदेश की सबसे अहम सीटों में शामिल रही है क्योंकि सिरसा इनेलो का गढ़ रहा है। वैसे कांगे्रस ने इस सीट से कई बार जीत हासिल की है। इस सीट की राजनीति उलझनों और अटकलों के भंवर में फंसी रहती है। कहा नहीं जा सकता कि इस क्षेत्र का मतदाता  कौन सी करवट लेगा। मौजूदा समय में सीट हलोपा के कब्जे में है। इस बार हार-जीत का अंतर बहुत कम रहा यह अपने वाले विधानचुनाव में किसी खतरे से कम नहीं है। ऐसा भी हो सकता है कि भाजपा गोपाल कांडा को किसी और सीट से चुनाव मैदान में उतारे और गोबिंद कांडा को भाजपा के टिकट पर सिरसा से उतारे। अगर गोपाल राजी न हुए तो गोबिंद कांडा के लिए रानियां में फिर से चुनाव लड़ाया जा सकता है। उधर कांंगे्रस  व भाजपा में टिकट के दावेदारों की लंबी लाइन लगी हुई है तो दूसरी ओर कांगे्रस गोकुल सेतिया पर डोरे डालने में लगी हुई है। सिरसा जेजेपी का अपना गृहनगर है पर दमदार उम्मीदवार नहीं मिल रहा है। आम आदमी पार्टी भी इस बार जीत जीते या न जीते पर दूसरे उम्मीदवारों को नुकसान जरूर पहुंचा सकती है।


सिरसा विधानसभा सीट पर गोपाल कांडा की अपनी अलग पहचान बन चुकी है। वर्ष 2009 में आजाद उम्मीदवार के रूप में कांगे्रस के दिग्गज नेता लक्ष्मण दास अरोड़ा को परास्त कर एक नया अध्याय शुरू किया था। वर्ष 2014 के चुनाव में वे इनेलो के मक्खन लाल से हार गए, वर्ष 2019 का चुनाव गोकुल सेतिया ने कांटे का बना दिया और गोपाल कांडा महज 602 वोटों से जी हासिल कर सके। इस वर्ष 2024 के चुनाव में गोपाल कांडा की टिकट को लेकर अटकलें शुरू हो गई है कोई क यास लगा रहा है कि उन्हें भाजपा अपनी टिकट पर मैदान में उतार सकती है क्योंकि कहता है कि गोपाल कांडा की पूर्व मुख्यमंत्री भूपेंद्र सिंह से अच्छी मित्रता है ऐसेमें वे कांगे्रस की टिकट पर भी लड़ सकते हैं। अधिकतर मानते है कि गोपाल कांडा हलोपा के ही टिकट पर चुनाव लडेंग़े चुनाव जीते तो वे उसी पार्टी के साथ चले जाएंगे जिसकी सरकार बन रही होगी। कांगे्रस की बनी तो कांगे्रस को समर्थन और भाजपा की बनी तो भाजपा को समर्थन क्योंकि गोपाल कांडा कह  चुके है कि जो उनके क्षेत्र के काम करवाएगा उसी सरकार को उनका समर्थन होगा।


उधर भाजपा गोपाल कांडा के भाई गोfबद कांडा को सिरसा से भाजपा के टिकट पर उतार सकती है और गोपाल कांडा को किसी अन्य सीट से चुनाव लडऩे की कह सकती है। अगर गोपाल कांडा राजी न हुए तो भाजपा गोबिंद को फिर से रानियां में उतार सकती है क्योंकि   वहां पर उनकी दावेदारी सबसे मजबूत है। दूसरी ओर भाजपा से टिकट के दावेदारों में लंबी कतार लगी हुई है। पूर्व में चुनाव लड़ चुके प्रदीप रातुसरिया का दावा काफी मजबूत है क्योंकि उन्होंंने अच्छा प्रदर्शन किया था। इसके साथ ही सीएम के पूर्व राजनीतिक सलाहकार जगदीश चोपडा के पुत्र अमन चोपडा लाइन में है।  वे पहले भी टिकट के दावेदार थे पर बात बन न सकी। इसके साथ ही ओडिशा के राज्यपाल प्रो.गणेशी लाल के पुत्र मनीष सिंगला भी सिरसा से चुनाव लडऩे की तैयार कर चुके है। सिरसा में  उनकी धार्मिक और सामाजिक गतिविधियों काफी बढ़ गई है। वो काम कर रहे है जो पहले कभी नहीं किया।


क ांगे्रस इस बार दमदार उम्मीदवार मैदान में उतारना चाहती है, पहले तो उसकी नजर गोपाल कांडा और गोकुल सेतिया पर है। बताया जा रहा है कि उदयभान के कांगे्रस प्रदेशाध्यक्ष बनने के बाद जब दीपेंद्र सिंह हुड्डा ने सिरसा का दौरा किया था तो उन्होंनें राहुल सेतिया और गोकुल सेतिया से मुलाकात की थी, यह मुलाकात हालचाल जानने के बहाने की गई थी या आगामी चुनाव को ध्यान में रखते हुए। सूत्र क हते है कि कांगे्रस हर हाल में गोकुल सेतिया को अपने पाले में लेकर आना चाहती है। कांगे्रस नेता मानते है कि गोपाल कांडा को जबरदस्त टक्कर देने वाला गोकुल सेतिया सिरसा में उनके लिए एक और सीट दे सकता है। इसके साथ ही कांगे्रस की टिकट के लिए पूर्व में चुनाव लड़ चुके नवीन केडिया, स्व. होशियार लाल शर्मा के पुत्र राजकुमार शर्मा (राजू शर्मा) या उनके पौत्र मोहित शर्मा भी कतार में हैं। ये भी हो सकता है कि राजू शर्मा अपने जगह पर अपने पुत्र मोहित शर्मा का नाम आगे कर दें।


कहा यह भी जा रहा है कि कांगे्रस जिस पंजाबी नेता अमीर चावला को अपनी ओर लेकर आई है उसे सिरसा से कांगे्रस के टिकट पर चुनाव मैदान में उतारा जा सकती है क्योंकि उनकी अपनी अलग छवि है, इनेलो और जेजेपी में रहकर वे राजनीति कर चुके हैं, समाजसेवा में भी उनकी अपना अलग ही नाम है। कांगे्रस अपने पुराने साथी वीरभान मेहता की घर वापसी करवा सकती है, मेहता कांगे्रस छोड़कर हजकां में फिर इनेलो और बाद में शिरोमणि अकाली दल में चले गए। हजकां वाले कुलदीप बिश्रोई कांगे्रस में है तो वे कांग्रेस में रूख करते है। कहा तो ये भी जा रहा है कि वे शिअद में ही रहेंगे मगर अपने पुत्र राजन मेहता को वे उस पार्र्टी मेंं भेज सकते है जो उसे टिकट दे। दूसरी ओर आम आदमी पार्टी भी है जो अपना उम्मीदवार मैदान में उतारेगा, जिला परिषद चुनाव में आप छह सीटे जीत चुकी है ऐसे में उसे हलके में नहीं लिया जा सकता,  उसके लिए चुनाव जीतना दूर की बात है पर वह दूसरे राजनीति दलों को नुकसान जरूर पहुंचाएगी। गरीब वोट गोपाल कांडा की ओर दौड़ता है पर सब कुछ फ्री के लाचल में वह आप के पास जा सकता है। तीन चार लोग आप के टिकट पर चुनाव लडऩे की तैयारी कर रहे हैंं। कांगे्रस के पूर्व प्रदेशाध्यक्ष अशोक तंवर आप में है तो वे अच्छा उम्मीदवार ही लेकर आएंगेे।


सिरसा इनेला का गढ़ रहा है पर उसका अपना ही किला ढह गया यानि इनेलो टूट गई और एक धड़े ने अपना नाम जेजेपी रख लिया। इनेलो का जो परंपरागत वोट था वह दो हिस्सों में बंट गया। इस बार जेजेपी भी अपना उम्मीदवार जरूर उतारेगी क्योंकि भाजपा और जेजेपी अलग अलग दिशा में जा रहे है ये भी हो सकता है कि दोनों की चाल हो, अलग अलग लड़ों और बाद में गठबंधन के नाम पर एक हो जाओ। ऐसे में इनेलो के लिए अकेले चुनाव मैदान में उतरना उतना आसान नहीं है जितना पहले हुआ करता था और उसके पास कोई ऐसा कद्दावर नेता भी नहीं रहा है। पदम जैन अब भाजपाई हो गए है। अगर गोकुल सेतिया आजाद उम्मीदवार के रूप में चुनाव मैदान में उतरते है तो इनेलो फिर गोकुल सेतिया को समर्थन दे सकती है। अभी तो सिरसा की राजनीति में अटकलों का खेल जारी है देखना तो यह है कि कौन सा राजनीतिक दल किस पर दांव लगाता है और कौन फिर आजाद उम्मीदवार के रूप में ताल ठोकता है। ये राजनीति है यहां पर कुछ भी संभव है, न दोस्त बनते देर लगती है न ही दुश्मन बनते। किसी एक को हराने के लिए राजनीतिक दल एक भी हो जाते हैं।