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लिंगानुपात बिगडऩे से बिगड़ रहा है सामाजिक ताना-बाना

पीएनडीटी एक्ट लागू होने के बावजूद जारी है लिंग की जांच का धंधा 
 
लिंगानुपात बिगडऩे से बिगड़ रहा है सामाजिक ताना-बाना​​​​​​​ 
सिरसा, 21 फरवरी। समाज की मजबूती तभी तक है तब तक स्त्री और पुरूष की संख्या के बीच बड़ा अंतर नहीं हैं।  अंतर बढऩे पर समाज कमजोर होने लगता है।  जनसंख्या संघटन की महत्वपूर्ण कड़ी लिंगानुपात है।  पुरुष और स्त्री के अनुपात को लिंगानुपात कहते है।  किसी भी क्षेत्र के पुरुष एवं स्त्री, जनसंख्या के प्रमुख एवं महत्वपूर्ण विशेषता होती है और किसी क्षेत्र के विकास में दोनों महत्वपूर्ण भूमिका निभाते है। दोनों के संतुलित विकास होना बहुत जरूरी होता है। आज सामाजिक, आर्थिक कारणों ने लिंगानुपात बिगड़ रहा है। यहां कारण है कि आज
हरियाणा, पंजाब, राजस्थान के लोग  असम, बंगाल, बिहार,  झारखंड, ओडिसा से गरीब घरों की बेटियों को खरीदकर उन्हें  दुल्हन बनाकर ला रहे हैं। यह वहीं हरियाण है गैर बिरादरी में शादी करने, एक ही गांव में शादी करने पर आन की   खातिर कत्ल कर दिए जाते हैं। सामाजिक ढांचा मजबूत रखने को लिंगानुपात पर ध्यान देना ही होगा। कोख में कन्या भ्रूण की हत्या आगे चलकर तबाही का सबब बन सकती है।
स्त्री और पुरुष के तुलनात्मक अध्ययन करने से इनके संख्यिकीय, सामाजिक, आर्थिक, राजनैतिक स्थिति की जानकारी प्राप्त होती है। तथा इन्ही आंकड़ों कि सहायता से इनके लिए अलग अलग क्षेत्रो में अलग-अलग योजनाएं बनाई जाती है। जिससे इनका पूर्ण एवं संतुलित विकास हो सके। और क्षेत्र का विकास हो सके। जिन क्षेत्रों या देशों में सामाजिक एवं सांस्कृतिक रीती-रिवाजों के कारण से स्त्री के अपेक्षा पुरुषो को अधिक महत्व दिया जाता है। जहां पर पुरुष प्रधान समाज के कारण स्त्री तथा पुरुष में भेद-भाव किया जाता है। वहां पर लिंगानुपात प्रतिकूल पाया जाता है। क्योकि इस स्थिति में स्त्री भ्रूण हत्या, स्त्री शिशु हत्या, स्त्रियों के प्रति घरेलु हिंसा के कारण हत्या इत्यादि। जिसके कारण स्त्रियों की संख्या पुरुषो के तुलना में कम हो जाती है। ठीक इसके विपरीत जिन क्षेत्रो में स्त्री और पुरुषो में भेद-भाव नहीं किया जाता है वहां लिंग अनुपात अनुकूल पाया जाता है।
समान्य रूप से देखा जाता है कि विकसित देशों के लिंग अनुपात अनुकूल होता है। जबकि विकासशील देशों के लिंग अनुपात प्रतिकूल और पिछड़े देशो के संतुलित। बेहतर आर्थिक स्थिति के कारण विकसित देशों में बेहतर स्वास्थ्य सुविधाएं विकसित होती है जिससे प्रसव के दौरान स्त्री मृत्युदर नगण्य हो जाता है। आर्थिक स्थिति ठीक होने से पुरुष स्त्री में भेद-भाव भी कम पाया जाता है। जिससे पुरुषो की तुलना में स्त्रियों की मृत्यु कम होती है और लिंग अनुपात अनुकूल होता है।  विकासशील देशो में बेहतर स्वाथ्य सुविधाओं के आभाव में प्रसव के कारण स्त्री मृत्युदर अधिक होता है। इसके साथ-साथ आर्थिक, सामाजिक भेदभाव के कारण स्त्रियों की मृत्यु अधिक होती है। जिससे इन क्षेत्रो में लिंग अनुपात प्रतिकूल पाया जाता है।  पिछड़े देशो में लोग प्रकृति के ऊपर पूर्ण रूप से निर्भर होते है। जिसके कारण वहां पर स्त्री पुरुष जन्मदर और मृत्युदर समान रूप से चलता है और लिंगानुपात संतुलित होता है।
लिंगानुपात बिगडऩे से ही आज हरियाणा, पंजाब, राजस्थान के लोग  असम, बंगाल, बिहार,  झारखंड, ओडिसा से गरीब घरों की बेटियों को खरीदकर उन्हें  दुल्हन बनाकर ला रहे हैं।  इन राÓयों में स्त्री-पुरुष लिंगानुपात की खाई लगातार बढ़ती जा रही है, जिससे बेटों की शादी के लिए दुल्हन खरीदने की नौबत आ गई है। एक रिपोर्ट के अनुसार अकेले हरियाणा के मेवात में करीब 15 हजार महिलाएं असम, बंगाल, झारखंड आदि राÓयों से लाई गई हैं। असम के धुबड़ी, कोकराझाड़, बारपेटा, बोगाईगांव, नलबाड़ी, कामरूप आदि जिलों से ताल्लुक रखने वाली काफी लड़कियों को खरीदकर उन्हें दुन्हन बनाकर हरियाणा और पंजाब में लाया जाता है।

90 के दशक में लिंग जांच के लिए मशहूर था सिरसा और हिसार
हरियाणा और पंजाब में एक समय ऐसा भी था जब परिवाए लड़की के  जन्म को अ'छा नहीं मानते थे। जैसे ही पता चलता था कि गर्भ में लड़की है तो चाहे कितना भी खर्च हो जाए गर्भपात करवा देते थे। तब लिंग जांच और गर्भपात करने वाले डॉक्टरों की चांदी थी और दोनों एक दूसरे से जुड़े हुए थे एक लिंग की जांच करता और लड़की होने पर बताता था कि कहां पर गर्भपात करवाना है। सिरसा में और हिसार में लिंग जांच केंद्र हुआ करता था जो लिंग के बारे में जानकारी देते थे और दोनों ने उत्तर भारत में खूब प्रचार प्रचार किया हुआ था, होर्डिंग्स लगे होते थे और ऐसा कोई नगर नहीं था जहां की दीवारों पर उनके विज्ञापन न लिखे हुए हो। वहां से लिंगानुपात बिगड़ा और तब से उसे संभालने के  प्रयास तो हुए पर मंजिल तक अभियान नहीं पहुंच पाता क्योंकि पैसों के  लालची लिंग जांच के कार्य को अंजाम दे रहे हैं।  लिंग जांच के नाम पर 50 हजार रुपये तक लिये जा रहे हैं।

1994 में लागू हुआ पीएनटीडी एक्ट, लिंग जांच पर लगी लगाम
लिंग की जांच को रोकने के लिए वर्ष 1994 में सरकार ने पूर्व गर्भाधान और प्रसव पूर्व निदान तकनीक (पीएनडीटी) अधिनियम, 1994 लागू हुआ। यह  संसद द्वारा पारित एक संघीय कानून है। इस अधिनियम से प्रसव पूर्व लिंग निर्धारण पर प्रतिबंध लगा दिया गया है। प्री-नेटल डायग्नोस्टिक टेक्निक 'पीएनडीटीÓ एक्ट 1996, के तहत जन्म से पूर्व शिशु के लिंग की जांच पर पाबंदी है।  ऐसे में अल्ट्रासाउंड या अल्ट्रासोनोग्राफी कराने वाले जोड़े या करने वाले डाक्टर, लैब कर्मी को  सजा और   जुर्माने की सजा का प्रावधान है। हरियाणा में इस एक्ट के तहत सख्ती देखकर लिंग जांच का धंधा करने वाले दूसरे राÓयों में जाकर काम कर रहे है।   आशावर्कर हर गर्भवती महिला पर पूरी निगरानी रखे हुए है ताकि कोई लिंग जांच करवाकर गर्भपात न करवा सके।