Pal Pal India

कुमारी सैलजा का शुरूआती राजनीतिक कर्मक्षेत्र रहा है सिरसा​​​​​​​

 
सिरसा की धरती से राजनीति में प्रवेश करने वाली सैलजा ने एक और इतिहास लिखने की ओर बढ़ाया कदम
 
  कुमारी सैलजा का शुरूआती राजनीतिक कर्मक्षेत्र रहा है सिरसा​​​​​​​
 
सैलजा के आक्रामक तेवरों के साथ सक्रिय होने से समर्थकों में काफी उत्साह
सिरसा, 26 अप्रैल। अखिल भारतीय कांग्रेस कमेटी की महासचिव, हरियाणा कांगे्रस की पूर्व प्रदेशाध्यक्ष, उत्तराखंड की प्रभारी, पूर्व केंद्रीय मंत्री एवं सीडब्ल्यूसी की सदस्य कुमारी सैलजा का सिरसा शुरूआती राजनीतिक कर्मक्षेत्र रहा है, जिससे वे आज तक जुड़ी हुई हैं।  उन्होंने कभी भी पार्टी की लक्ष्मण रेखा को नहीं लांघा है और हमेशा अनुशासन के दायरे में रहकर संगठन के लिए काम किया। यही वजह रही कि पार्टी हाईकमान द्वारा कुमारी सैलजा को वफादारी का पुरस्कार भी दिया जाता रहा है। उन्हें सिरसा लोकसभा सीट से पार्टी ने उम्मीदवार बनाया है।
सिरसा की धरती से राजनीति में प्रवेश करने वाली सैलजा एक बार फिर   इतिहास लिखने जा रही है क्योंकि उनके चुनाव लडऩे की खबरों से  सट्टा बाजार उनकी जीत मानकर चल रहा है, उनके मैदान में आने से सिरसा सीट पर राजनीति  अलग ही करवट ले रही है। इस बार सैलजा  आक्रामक तेवरों के साथ सक्रिय हुई है जिसे लेकर  उनके समर्थकों में काफी उत्साह हैं।
कुमारी सैलजा को राजनीति विरासत में मिली है, जहां उन्होंने कांगे्रस की पाठशाला में रहकर अपने पिता चौ.दलबीर सिंह से राजनीति का ककहरा सीखा। राजनीति की बिसात पर मोहरे कैसे चले जाते है कब किसे मात देनी है सब कुछ पिता से सीखा। सैलजा  केंद्र की राजनीति में ही ज्यादा सक्रिय रही हैं और वे चार बार लोकसभा की सदस्य रहने के अलावा एक बार राज्यसभा सदस्य और तीन बार केंद्र में मंत्री रह चुकी हैं। 1991 में वे नरसिम्हा राव सरकार में उप शिक्षा मंत्री रहीं। 2004 में मनमोहन सरकार में वे आवास एवं गरीबी उन्मूलन मंत्री रहीं। 2009 से 2012 तक वे सामाजिक अधिकारिता, जबकि 2012 से 2014 तक पर्यटन मंत्री रहीं। 2014 में कांग्रेस ने उन्हें राज्यसभा सदस्य बनाया। सितंबर 2019 में उन्हें   हरियाणा प्रदेश कांग्रेस का अध्यक्ष बनाया। खास बात यह है कि कुमारी सैलजा एकमात्र ऐसी महिला नेत्री हैं जो प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष बनी हैं, जबकि उनसे पहले किसी महिला को कांग्रेस अध्यक्ष पद तक पहुंचने का अवसर हासिल नहीं हुआ।

पिता के निधन के बाद राजनीति में सैलजा हुईं सक्रिय
 कुमारी सैलजा अपने पिता चौ.दलबीर सिंह के निधन के बाद साल 1988 में सियासत में सक्रिय हुईं। उनके पिता के निधन के बाद 1988 में हुए उपचुनाव में कुमारी सैलजा ने सिरसा लोकसभा सीट से कांग्रेस टिकट पर चुनाव लड़ा, लेकिन कामयाबी नहीं मिलीं। सैलजा 1991 और 1996 में सिरसा से, जबकि 2004 और 2009 में अंबाला से सांसद चुनी गईं। सैलजा ने अब तक के राजनीतिक सफर में करीब सात संसदीय चुनाव लड़े।  वे 1988, 1991, 1996 और 1998 में सिरसा से जबकि 2004, 2009 और 2014 में अंबाला से चुनाव लड़ चुकी हैं। कुमारी सैलजा को सितंबर 2019 में हरियाणा प्रदेश कांग्रेस का अध्यक्ष बनाया गया गया। वे इस पद पर 20 अप्रैल 2022 तक रहीं।

पुराने साथियों के साथ लगातार समन्वय बरकरार रखा
राजनीति में कोई किसी को दोस्त और किसी का दुश्मन नहीं होता, दोस्ती और दुश्मनी के रिश्ते मौका देखकर बदलते रहे है पर
खास बात यह है कि कुमारी सैलजा आज तक पुराने साथियों को नहीं भुना पाई, उनके साथ  लगातार समन्वय बरकरार रखा। उनके सुख  दुख में शामिल होती रही है, आज सिरसा का उनका घर जैसा ही है। उनक ा शुरूआती राजनीतिक कर्मक्षेत्र सिरसा रहा। इसके अलावा वे हिसार में भी सक्रिय रहीं और साल 1999 के बाद उन्होंने अंबाला को अपनी कर्मभूमि बना लिया बावजूद इसके अंबाला, हिसार, सिरसा, फतेहाबाद जैसे क्षेत्रों में अपने पुराने साथियों व समर्थकों के साथ उनका समन्वय लगातार बरकरार रहा।

समर्थकों की जिद थी कि सैलजा सिरसा ही चुनाव लड़़े
कुमारी सैलजा के समर्थकों इस बार एक ही जिद पर थे कि सैलजा सिरसा लोकसभा सीट से चुनाव लड़े पर सैलजा बार बार विधानसभा चुनाव लडऩे की बात कर रही थी और इस बारे में उन्होंने हाईकमान को भी बता दिया था। अशोक तंवर के कांगे्रस से जाने के  बाद सिरसा में  एक खालीपन आया गया था। सिरसा के समर्थकों की जिद पर  सिरसा प्रवास के दौरान कुमारी सैलजा अपने समर्थकों के बीच पहुंचीं और उनसे सियासी मंथन भी किया। यही नहीं पिछले कुछ महीनों में सिरसा, फतेहाबाद के अनेक कांग्रेसी भी कुमारी सैलजा के नेतृत्व में कांग्रेस में वापसी कर चुके हैं। इसके अलावा कुमारी सैलजा सिरसा संसदीय क्षेत्र में दो बड़ी सभाएं भी कर चुकी हैं। कुमारी सैलजा के इस तरह के आक्रामक तेवरों के साथ सक्रिय होने के बाद अब उनके समर्थक भी काफी उत्साहित नजर आ रहा है। आखिरकार हाईकमान ने समर्थकों के अनुरोध को स्वीकार करते हुए सैलजा को सिरसा लोकसभा सीट से अपना उम्मीदवार बनाया है।

सैलजा को संगठन का है लंबा अनुभव
कुमारी सैलजा को संगठन में भी बड़ा लंबा अनुभव है। 1990 में कुमारी सैलजा को हरियाणा महिला कांग्रेस का प्रधान भी चुना गया। इसके अलावा वे अखिल भारतीय कांग्रेस कमेटी की सदस्य रहने के अलावा कांग्रेस कार्यसमिति की सदस्य भी हैं। वर्तमान में कुमारी सैलजा अखिल भारतीय कांग्रेस कमेटी की महासचिव हैं। उन्हें उत्तराखंड का   प्रभारी नियुक्त किया गया है । 1991 में वे पहली बार सिरसा से सांसद चुनी गईं और 29 वर्ष की उम्र में केंद्रीय मंत्री बनीं। 1996 में कुमारी सैलजा दूसरी बार सिरसा सीट से सांसद निर्वाचित हुईं। साल 1998 में वे इनेलो के डा. सुशील इंदौरा से चुनाव हार गईं। साल 2004 के संसदीय चुनाव में पार्टी ने उन्हें सिरसा की बजाय अंबाला संसदीय सीट से उम्मीदवार बनाया और उस चुनाव में उन्होंने अंबाला संसदीय क्षेत्र से भाजपा के रत्तनलाल कटारिया को हराया। 2009 के संसदीय चुनाव में वे फिर से अंबाला से सांसद चुनी गईं। 2014 में उन्हें कांग्रेस शीर्ष नेतृत्व ने राज्यसभा का सदस्य जबकि 2019 में हरियाणा प्रदेश कांग्रेस का अध्यक्ष बनाया।

मतदाता एक बार फिर इतिहास लिखने के मूड में
इस बार भाजपा ने अपनी सांसद डा. सुनीता दुग्गल का टिकट काटकर कई राजनीतिक दलों में पिकनिक मनाकर भाजपा में आए डा. अशोक तंवर को अपना उम्मीदवार बनाया है। जो प्रभाव तंवर का  कभी 2009 में होता था वह धीरे धीरे खत्म होता चला गया। अशोक तंवर के कांगे्रस से जाने के बाद सिरसा के कांग्रेस कार्यकर्ताओं की एक ही इच्छा थी कि इस बार पार्टी हाईकमान सैलजा को ही मैदान में उतारे। उम्मीदवार के रूप में सैलजा का नाम लगभग तय हो गया था पर घोषणा ही बाकी थी, इस दौरान हर किसी की जुबां पर एक ही बात थी कि सैलजा आई तो जीतेगी वहीं। सट्टा बाजार सैलजा की ही जीत दिखा रहा है। कांगे्रस छोडक़र भाजपा में आए कुछ बड़े नेता इस बात को जानते है कि सैलजा में सिरसा का कद बहुत बड़ा है वे आज भी लोगों के दिलों में है, लोग उनका सम्मान करते हैं।  राजनीति विरोधी नेताओं को सच कहां बोलने देती है। आज सिरसा लोकसभा क्षेत्र के सभी नौ विधानसभा क्षेत्रों में सैलजा काफी प्रभावशाली है। उनके नाम की घोषणा से पूर्व ही ऐलनाबाद में उनका चुनाव कार्यालय खोल दिया जाता है जो अपने आप में बड़ी बात है।  उनके समर्थक उन्हें कितना  चाहते है  इस बात का पता लोगों को चार जून को ही पता चल जाएगा।


वफादारी का मिलता रहा है पुरस्कार
 कुमारी सैलजा को कांग्रेस की पूर्व अध्यक्ष सोनिया गांधी का विश्वासपात्र माना जाता है। कुमारी सैलजा कांग्रेस पार्टी के प्रति हमेशा से ही वफादार रही हैं। 1988 से लेकर अब तक  कुमारी सैलजा ने कभी भी पार्टी की लक्ष्मण रेखा को नहीं लांघा है और हमेशा अनुशासन के दायरे में रहकर संगठन के लिए काम किया। यही वजह रही कि पार्टी हाईकमान द्वारा कुमारी सैलजा को वफादारी का पुरस्कार भी दिया जाता रहा है। इस कड़ी में उन्हें कांग्रेस शीर्ष नेतृत्व ने सांसद से लेकर केंद्रीय मंत्री, हरियाणा प्रदेश कांग्रेस का अध्यक्ष, अखिल भारतीय कांग्रेस कमेटी का महासचिव, अखिल भारतीय कांग्रेस कार्यसमिति का सदस्य एवं उत्तराखंड के प्रभारी जैसे बड़े पदों पर नियुक्त किया है।  विवादों से हमेशा दूर रहने वाली कुमारी सैलजा ने संगठन में रहते हुए पार्टी को मजबूत किया है। कुमारी सैलजा तेजी से एक दलित महिला नेत्री के रूप में राष्ट्रीय राजनीति में पहचान बनाने में सफल हुई हैं।

कुमारी सैजला ने किया सहृदय आभार व्यक्त
उधर कुमारी सैलजा ने कांग्रेस हाईकमान का  आभार व्यक्त किया है। उन्होंने  कांग्रेस के शीर्ष नेतृत्व द्वारा उन्हें आगामी लोकसभा चुनाव में सिरसा से प्रत्याशी चुनने के लिए ह्रदय से आभार व्यक्त किया है। वे कहती है कि सिरसा की जनता जनार्दन को वे यकीन दिलाती हैं कि आप सभी के हक की आवाज को बुलंद रखूंगी। उधर बेदाग छवि वाली सैलजा के चुनाव मैदान में आने से यह सीट चर्चाओं में रहेगी क्योंकि मुकाबला कांगे्रस के दो पूर्व प्रदेशाध्यक्षों के बीच में होगा जिनमें से एक कमल का फूल थामे हुए तो दूसरे के सिर पर  आशीर्वाद रूपी हाथ हैं।