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अमीर के आने से और अमीर हो जाएगी सिरसा कांगे्रस

अरोड़ा और मेहता बिरादरी में अच्छी पकड़ है अमीर चावला की
पंजाबी नेता की कमी को पूरा करेगी अमीर चावला की कांगे्रस में एंट्री 
 
अमीर के आने से और अमीर हो जाएगी सिरसा कांगे्रस​​​​​​​ 

सिरसा, 22 फरवरी। कई सालों से पंजाबी नेता की कमी से जूझ रही सिरसा कांगे्रस को आखिरकार वह नेता अमीर चावला के रूप में मिल ही गया जिसका पंजाबी समाज में अपना रूतबा है, मेहता और अरोड़ा बिरादरी पर अच्छी पकड़ है।  एचएसएससी के पूर्व चेयरमैन अमीर चावला की ईमानदारी, बेदाग छवि और समाजसेवी के रूप में उनकी  अपनी अलग ही पहचान है। सिरसा की राजनीति में पंजाबी और वैश्य ही हावी रहा है। अरोड़ा बिरादरी से लक्ष्मणदास अरोड़ा पांच बार विधायक रहे तो वैश्य समाज की ओर से छह विधायक  रहे हैं।

एलडी अरोड़ा के बाद कांंगे्रस अमीर चावला को साथ लेकर सिरसा सीट पर फिर से कब्जा करना चाहती है। सिरसा विधानसभा सीट एक ऐसी सीट है जहां से या तो पंजाबी या वैश्य बिरादरी का उम्मीदवार ही जीतता आया है। जनता दल की लहर में शंकर लाल कामरेड ने जीत हासिल की थी। इस सीट पर पंजाबी और वैश्य मतदाता ही उम्मीदवार की नैया पार लगाते है। पहले सिरसा कांगे्रस में पंजाबी नेता लक्ष्मणदास अरोडा, मेहता हरिशचंद, वीरभान मेहता का प्रभाव हुआ करता था। पर कांगे्रस उन्हें अपने पास नहीं रख पाई, गुटबाजी के चलते सब एक-एक करके दूसरे राजनीतिक दलों में चले गए।

लक्ष्मणदास अरोड़ा पंजाबी समाज में सबसे ज्यादा दबंग नेता था वे कांगे्रस में अपनी मर्जी से रहे वर्ना तो एक बार उन्होंंने कांगे्रस से अलग होकर आजाद उम्मीदवार के  रूप में चुनाव लड़ा और जीत हासिल कर कांगे्रस को बता दिया कि एलडी अरोड़ा का सिक्का चलता है। वे पांच बार सिरसा से विधायक चुने गए और मई बार मंत्री रहे। इस  सीट पर पंाच बार पंजाबी, छह बार वैश्य के विधायक रहे। दो बार प्रेमसुखदास, दो बार गोपाल कांडा, एक बार मक्खनलाल सिंगला  एक बार हजार चंद कंबोज, एक बार कामरेड शंकर लाल चुने गए। वर्ष 1977 में जनता दल की लहर थी ऐेसे में जीत कामरेड शंकरलाल की झोली में गई, वर्ष 1987 में लोकदल की लहर थी तो हजारचंद कंबोज जीते।


जब भी कांंगे्रस अरोड़ा और मेहता बिरादरी के नेता को सम्मान देने में आनाकानी करती रही उसे खामियाजा उठाना ही पड़ा। वीरभान मेहता को जब वह सम्मान नहीं मिला जिसके वे हकदार थे तो वे कांगे्रस छोड़कर चौ.भजनलाल की पार्टी हजकां में चले गए। मेहता हरिशचंद चौ.बंसीलाल की पार्टी हरियाणा विकास पार्टी में चले गए। लक्ष्मणदास अरोड़ा की राजनीति की उत्तराधिकारी उनकी पुत्री सुनीता सेतिया को जब कांगे्रस सम्मान न दे सकी तो वे भाजपा में चली गई। भाजपा भी सुनीता सेतिया का ईमानदार से साथ न दे सकी। सुनीता सेतिया के पुत्र गोकु ल सेतिया ने भाजपा से किनारा करते हुए इनेलो के समर्थन से आजाद उम्मीदवार के रूप में वर्ष 2019 में चुनाव लड़ा और वे मात्र 645 वोट से गोपाल कांडा से चुनाव हार गए। गोकुल सेतिया का उक्त चुनाव में पंजाब बिरादरी ने एकजुट होकर पूरा साथ दिया था। कांगे्रस में प्रभावशाली पंजाबी नेता को लेकर एक वैक्यूम था जिे भरने के लिए कांगे्रस हाईकमान को एक कद्दावर पंजाबी नेता की तलाश थी।


कांग्रेस की एक नजर गोकुल सेतिया पर भी लगी हुई है पर गोकुल सेतिया आजाद उम्मीदवार के रूप में काफी मतबूत हो चुके हैं।
 लक्ष्मणदास अरोडा़ और पंडित होशियारीलाल शर्मा के निधन के बाद कांगे्रस में काफी बड़ा वैक्यूम आ गया है पर कांगे्रस ने अमीर चावला को साथ लेकर इस खाई को भरने का कार्य किया है। कांगे्रस वैसे तो गुटबाजी से जूझ रही है पर यह तो आगे चलकर समय ही बताएगा कि अमीर चावला के आने से कांगे्रस कितनी मजबूत होती है।  

इनेलो में रहकर सीखी  राजनीति की एबीसीडी
अमीर चावला डा.अजय सिंह चौटाला के काफी करीबी है और उनके सहपाठी भी रहे हैं। ऐसे में उनका जुड़ाव चौ.देवीलाल चौटाला परिवार से रहा। इसी परिवार के साथ रहकर उन्होंने राजनीति की एबीसीडी सीखी। चौ. ओमप्रकाश चौटाला के प्रिय कार्यकर्ताओं में गिनती रही। वर्ष 2000 में इनेलो की सरकार बनी। मुख्यमंत्री चौ.ओमप्रकाश चौटाला ने उन्हें हरियाणा कर्मचारी चयन आयोग के चेयरमैन की कुर्सी सौंप दी। वे वर्ष 2006 तक इस कुर्सी पर पर रहे। उन्होंने अपने कार्यकाल में  पूरी पारदर्शिता बरतते हुए लगभग 45 हजार युवाओं को नौकरी दी।  वह भी बिना किसी भेदभाव के। उनका पूरा कार्यकाल बेदाग छवि का रहा है। उनकी बेदाग छवि ही उनकी पहचान है। इनेलो की टूट के बाद वे जजपा में चले गए और उन्हें सिरसा जिला की कमान सौंपी गई पर चौटाला परिवार के बीच राजनीति को लेकर जारी जंग से उन्होंनें स्वयं को अलग करते हुए जजपा को अलविदा कह दिया।

हजारों लोगों को दी नेत्र ज्योति
अमीर चावला ने राजनीति के साथ-साथ समाजसेवी को अपनी जीवन का ध्येय बनाया।  एक राजनेता और एक समाज सेवी के रूप में उनकी आज भी अलग पहचान है। चावला ने सिरसा में  अपने माता-पिता के नाम पर श्री रामहंस हॉस्पिटल ट्रस्ट का गठन करते हुए नेत्र चिकित्सालय खोला जहां पर मोतियाबिंद के  नि:शुल्क किए जाते है। उनके अस्पताल की ओर से पंजाब, हरियाणा, राजस्थान में शिविरों का आयोजन किया और मोतियाबिंद के मरीजों की पहचानकर उनके ऑपरेशन नि:शुल्क करवाए और आज भी करवाए जा रहे हैं। उनकी समाजसेवी छवि का भी कांगे्रस को लाभ मिल सकता है।  उनके कांगे्रस में आने से हरियाणा कांगे्रस को भी अब मजबूती मिल सकती है।