जैन धर्म में आत्म साधना का सबसे बड़ा त्यौहार है पर्युषण महापर्व :पदमराज स्वामी
Aug 31, 2024, 14:31 IST
फतेहाबाद, 31 अगस्त । फतेहाबाद में जैन सभा द्वारा पर्युषण महापर्व एक सितंबर से 8 सितंबर तक हर्षोल्लास के साथ मनाया जाएगा। इस महापर्व को लेकर जैन आचार्य डॉ. पदमराज स्वामी रांची के पास स्थित अपने आश्रम से एसएस जैन सभा श्याम नगर फतेहाबाद पहुंचे जहां जैन समाज के लोगों द्वारा उनका भव्य स्वागत किया गया।
आचार्य डॉ. पदमराज स्वामी ने बताया कि जीवन में अलग-अलग त्यौहार और पर्व आते हैं, जिन्हें दो भागों में बांटा जाता है। कुछ पर्व लौकिक तो कुछ लोकोत्तर कहा जाता है। लौकिक पर्वों का साथ शरीर और मनोरंजन के साथ होता है। ऐसे पर्वों पर नए वस्त्र पहनना, नए-नए पकवान खाना, आमोद-प्रमोद करना, मौज-मस्ती को बढ़ाने की परम्परा है जबकि लोकोतर पर्व में आत्म साधना, भगवान की अराधना, भगवान की भक्ति और तपस्या यह मुख्य रूप से रहते हैं। उन्होंने कहा कि जैन धर्म बुनियादी तौर पर अध्यात्मवादी धर्म है, जहां आलौकिक पर्वों को उतना ज्यादा महत्व नहीं है, जितना लोकोत्तर पर्व को महत्व दिया गया है। इसका अर्थ यह हुआ कि जैन धर्म में शरीर से ज्यादा आत्मा का महत्व है। उसी आत्म साधना का सबसे बड़ा त्यौहार है जिसे अष्ट दिवसीय पर्युषण महापर्व कहा जाता है। इसका अर्थ है चारों तरफ से ध्यान हटाकर खुद को भगवान के प्रति समर्पित करके आत्म साधना में लीन हो जाना है।
डॉ. पदमराज स्वामी ने बताया कि पर्युषण महापर्व के पहले 7 दिन हम तपस्या करते हैं, स्वयं को तैयार करते हैं, अपने आप को पवित्र करते है और अंतिम दिन अपनी उज्ज्वलता का प्रमाण देते हैं, जिससे वसुधैव कुटुम्बकम की भावना आती है। 8 दिन के महापर्व को उल्लास, तपस्या, भक्ति-भावना के साथ मनाया जाता है। आठों दिन नवकार महामंत्र का अखंड पाठ किया जाता है। फतेहाबाद में भी सुबह से लेकर शाम तक 12 घंटे तक नवकार महामंत्र का पाठ किया जाएगा। डॉ. पदमराज स्वामी ने बताया कि एक-दूसरे के प्रति आनंद को बढ़ाना, संकीर्णता को घटाना और वसुधैव कुटुम्बकम की भावना को ज्यादा से ज्यादा बढ़ाने की पावन प्रेरणा इस महापर्व से मिलती है। रहे।
आचार्य डॉ. पदमराज स्वामी ने बताया कि जीवन में अलग-अलग त्यौहार और पर्व आते हैं, जिन्हें दो भागों में बांटा जाता है। कुछ पर्व लौकिक तो कुछ लोकोत्तर कहा जाता है। लौकिक पर्वों का साथ शरीर और मनोरंजन के साथ होता है। ऐसे पर्वों पर नए वस्त्र पहनना, नए-नए पकवान खाना, आमोद-प्रमोद करना, मौज-मस्ती को बढ़ाने की परम्परा है जबकि लोकोतर पर्व में आत्म साधना, भगवान की अराधना, भगवान की भक्ति और तपस्या यह मुख्य रूप से रहते हैं। उन्होंने कहा कि जैन धर्म बुनियादी तौर पर अध्यात्मवादी धर्म है, जहां आलौकिक पर्वों को उतना ज्यादा महत्व नहीं है, जितना लोकोत्तर पर्व को महत्व दिया गया है। इसका अर्थ यह हुआ कि जैन धर्म में शरीर से ज्यादा आत्मा का महत्व है। उसी आत्म साधना का सबसे बड़ा त्यौहार है जिसे अष्ट दिवसीय पर्युषण महापर्व कहा जाता है। इसका अर्थ है चारों तरफ से ध्यान हटाकर खुद को भगवान के प्रति समर्पित करके आत्म साधना में लीन हो जाना है।
डॉ. पदमराज स्वामी ने बताया कि पर्युषण महापर्व के पहले 7 दिन हम तपस्या करते हैं, स्वयं को तैयार करते हैं, अपने आप को पवित्र करते है और अंतिम दिन अपनी उज्ज्वलता का प्रमाण देते हैं, जिससे वसुधैव कुटुम्बकम की भावना आती है। 8 दिन के महापर्व को उल्लास, तपस्या, भक्ति-भावना के साथ मनाया जाता है। आठों दिन नवकार महामंत्र का अखंड पाठ किया जाता है। फतेहाबाद में भी सुबह से लेकर शाम तक 12 घंटे तक नवकार महामंत्र का पाठ किया जाएगा। डॉ. पदमराज स्वामी ने बताया कि एक-दूसरे के प्रति आनंद को बढ़ाना, संकीर्णता को घटाना और वसुधैव कुटुम्बकम की भावना को ज्यादा से ज्यादा बढ़ाने की पावन प्रेरणा इस महापर्व से मिलती है। रहे।