कुमारी सैलजा की अनदेखी भारी पड़ सकती है कांगे्रस को
हुड्डा के बराबर सम्मान न मिला तो कांगे्रस से खिसक सकता है दलित मतदाता
Sep 11, 2024, 14:17 IST
कांगे्रस की सत्ता आने में भी अहम भूमिका होगी पंजाबी और दलित मतदाता की
चंडीगढ़/सिरसा, 11 सितंबर। हरियाणा विधानसभा चुनाव को लेकर कांगे्रस, भाजपा, आप, इनेलो और जजपा ने उम्मीदवारों की घोषणाएं करनी शुरू कर दी है पर बगावत की आशंका से कुछ पार्टियां डरी हुई है। इस निर्दलीय उम्मीदवारों की संख्या बढ़ सकती है। कांगे्रस उम्मीदवारों के नाम की घोषणा में कदम फूं क फूं ककर रख रही है। कांग्रेस चाहे गुटबाजी से लाख मना करे पर यह बात किसी से छुपी नहीं, टिकटों के चयन में कही न कही ये गुटबाजी आड़े आ रही है, प्रदेश प्रभारी दीपक बाबरिया पर एक ही पक्ष के साथ खड़े रहने और उनकी ही बात सुनने के आरोप लगते रहे है। अगर कांगे्रस अखिल भारतीय कांगे्रस की महासचिव, पूर्व के ंद्रीय मंत्री एवं सिरसा की सांसद कुमारी सैलजा की अनदेखी करती है तो कांगे्रस को उसकी कीमत चुकानी पड़ सकती है, प्रदेश के दलितों की सैलजा से काफी उम्मीद है, अगर सैलजा को हुड्डा के बराबर सम्मान न मिला तो दलित वोटर कांगे्रस को सबक भी सिखा सकता है, इसी दलित वोटर ने लोकसभा चुनाव में कांगे्रस की नैया पार लगाई थी।
हरियाणा में कांग्रेस के टिकट पर चुनाव लडऩे की उम्मीद लगाए नेताओं की बेचैनी बढ़ती जा रही है। नामांकन की प्रक्रिया खत्म होने में महज दो दिन ही बचे हैं, पर पार्टी 49 सीटों पर अभी उम्मीदवार के नाम का ऐलान नहीं कर सकी। कांग्रेस उम्मीदवारों के नाम का ऐलान करने में बहुत जल्दबाजी नहीं दिखा रही है। प्रदेश की कुल 90 विधानसभा सीटों में से अभी तक 41 सीट पर टिकट तीन लिस्टों में कांग्रेस ने नाम घोषित किए हैं।
उधर भजपा की 67 सीटों पर टिकट की पहली सूची आने के बाद जिस तरह पार्टी में बगावत हुई है, उसे देखकर कांग्रेस ने अपनी रणनीति में बदलाव किया है। कांग्रेस के 41 उम्मीदवारों के नाम का ऐलान होने के बाद से आठ विधानसभा क्षेत्र में पार्टी के एक दर्जन से ज्यादा नेताओं ने खुलकर विरोध जताया। इनमें से कई नेताओं ने निर्दलीय चुनाव लडऩे का ऐलान भी कर दिया है।
कांग्रेस में विधानसभा टिकट की मारामारी
हरियाणा की 90 विधानसभा सीटों के लिए ढाई हजार नेताओं ने कांग्रेस से टिकट के लिए आवेदन किया था। कांग्रेस पर सबसे अधिक दबाव उन नेताओं को टिकट देने का है, जो पूर्व मंत्री और विधायक दूसरे दल से आए हैं। पिछले दो साल में तीन दर्जन बड़े नेताओं ने कांग्रेस की सदस्यता ली है। इनमें से अधिकतर नेता चुनाव लडऩे की उम्मीद में कांग्रेस में शामिल हुए हैं। इसके अलावा कांग्रेस में खुद कई बड़े चेहरे हैं, जो चुनाव लडऩे के जुगत में हैं। ऐसे में कांग्रेस के तमाम नेता टिकट के लिए दिल्ली में डेरा जमाए हुए हैं। इसके अलावा कई सीटों पर नेताओं की नाराजगी भी सामने आई है।
कांग्रेस की स्थिति ‘एक अनार, सौ बीमार’ वाली
कांग्रेस से टिकट मांगने वालों की लंबी कतार लगी हुई है। प्रदेश में 200 से अधिक ऐसे नेता हैं, जो चुनाव लडऩे के लिए पूरी तरह तैयार हैं। एक-एक सीट पर 20 से 27 नेता टिकट मांग रहे हैं। ऐसे में कांग्रेस की स्थिति एक अनार और सौ बीमार वाली बन गई है। कांग्रेस टिकट तो किसी एक को ही दे सकती है। ऐसे में टिकट न मिलने से बागी होकर निर्दलीय चुनाव लडऩे का खतरा कांग्रेस को सता रहा है। माना जा रहा कि इसके चलते ही कांग्रेस जानबूझकर उम्मीदवारों के नामों का ऐलान टुकड़ों में लिस्ट जारी करके कर रही है। पलवल सीट पर सोमवार को करण सिंह दलाल ने बिना टिकट घोषित हुए कांग्रेस के सिंबल पर नामांकन दाखिल कर दिया है. ऐसे ही दूसरे कई नेताओं को भी हरी झंडी मिल चुकी है।
जाट, जट सिख और मुसलमानों का झुकाव कांगे्रस की ओर
प्रदेश में जाटों की संख्या सबसे ज्यादा है, जाट वोटर जिस भी दल की ओर झुका उसकी ही सरकार बनी है, प्रदेश में 22 प्रतिशत जाट, चार प्रतिशत जट्ट सिख और चार ही प्रतिशत मुसलिम मतदाता है। इनका झुकाव कांगे्रस की ओर माना जा रहा है। इन 30 प्रतिशत वेाटर्स में अधिकतर कांगेे्रस में जी जाएंगे। किसान आंदोजन के बाद जाटों का झुकाव कांगे्रस की ओर हो गया है। दूसरी ओर 15 प्रतिशत ओबीसी, सात प्रतिशत ब्राहम्ण और 05 प्रतिश वैश्य वोटर में से अधिकतर का झुकाव भाजपा की ओर देखा जा रहा है। 21 प्रतिशत वोटर दलित वर्ग से है, जिसमें से अधिकतर का झ़ुकाव लोकसभा चुनाव के बाद कांगे्रस की ओर हो या है जबकि कुछ भाजपा की कल्याणकारी नीतियों के चलते भाजपा के साथ ही रहना चाहता है।
दलित मतदाता में सैलजा को लेकर जागी है एक उम्मीद
हरियाणा में कुमारी सैलजा एक बड़ा दलित चेहर उभर कर सामने आई है, कांगे्रस संदेश यात्रा के दौरान जहां पर भी उनकी सभााएं हुई वहां पर जुटी अपार भीड़ ने विरोधियों के पसीने छुडा दिए,पार्टी हाईकमान भी इसे देख रहा है, लोग सैलजा को सीएम चेहरा मानकर चल रहे है वैसे सीएम को फैसला तो हाईकमान ही करेगा। अगर कांगे्रस ने कुमारी सैलजा की जरा भी अनदेखी की और दलित मतदाता को लगा कि सैलजा की अनदेखी की जा रही है तो उसकी नाराजगी कांगे्रस को भारी पड़ सकती है। साथ ही अगर कांगे्रस ने सैलजा को हुड्डा के बराबर सम्मान न दिया तो तब भी कांगे्रस का इसका खामियाजा उठाना पड़ सकता है। जब डा. अशोक तंवर कांगे्रस के प्रदेशाध्यक्ष थे और उन्हें पद से हटाया गया था तब दलित वर्ग में खासी नाराजगी थी। दलित वोटर की नाराजगी को ध्यान में रखते हुए सैलजा को प्रदेश की कमान सौंपी गई थी पर उनके साथ वहीं हुआ जो अशोक तंवर के साथ हुआ था उस बात को दलित वर्ग आज तक नहीं भूला है। इस चुनाव में कांग्रे्रस की सरकार बनाने में पंजाबी और दलित मतदाता की भी अहम भूमिका रहेगी।
हरियाणा में कांग्रेस के टिकट पर चुनाव लडऩे की उम्मीद लगाए नेताओं की बेचैनी बढ़ती जा रही है। नामांकन की प्रक्रिया खत्म होने में महज दो दिन ही बचे हैं, पर पार्टी 49 सीटों पर अभी उम्मीदवार के नाम का ऐलान नहीं कर सकी। कांग्रेस उम्मीदवारों के नाम का ऐलान करने में बहुत जल्दबाजी नहीं दिखा रही है। प्रदेश की कुल 90 विधानसभा सीटों में से अभी तक 41 सीट पर टिकट तीन लिस्टों में कांग्रेस ने नाम घोषित किए हैं।
उधर भजपा की 67 सीटों पर टिकट की पहली सूची आने के बाद जिस तरह पार्टी में बगावत हुई है, उसे देखकर कांग्रेस ने अपनी रणनीति में बदलाव किया है। कांग्रेस के 41 उम्मीदवारों के नाम का ऐलान होने के बाद से आठ विधानसभा क्षेत्र में पार्टी के एक दर्जन से ज्यादा नेताओं ने खुलकर विरोध जताया। इनमें से कई नेताओं ने निर्दलीय चुनाव लडऩे का ऐलान भी कर दिया है।
कांग्रेस में विधानसभा टिकट की मारामारी
हरियाणा की 90 विधानसभा सीटों के लिए ढाई हजार नेताओं ने कांग्रेस से टिकट के लिए आवेदन किया था। कांग्रेस पर सबसे अधिक दबाव उन नेताओं को टिकट देने का है, जो पूर्व मंत्री और विधायक दूसरे दल से आए हैं। पिछले दो साल में तीन दर्जन बड़े नेताओं ने कांग्रेस की सदस्यता ली है। इनमें से अधिकतर नेता चुनाव लडऩे की उम्मीद में कांग्रेस में शामिल हुए हैं। इसके अलावा कांग्रेस में खुद कई बड़े चेहरे हैं, जो चुनाव लडऩे के जुगत में हैं। ऐसे में कांग्रेस के तमाम नेता टिकट के लिए दिल्ली में डेरा जमाए हुए हैं। इसके अलावा कई सीटों पर नेताओं की नाराजगी भी सामने आई है।
कांग्रेस की स्थिति ‘एक अनार, सौ बीमार’ वाली
कांग्रेस से टिकट मांगने वालों की लंबी कतार लगी हुई है। प्रदेश में 200 से अधिक ऐसे नेता हैं, जो चुनाव लडऩे के लिए पूरी तरह तैयार हैं। एक-एक सीट पर 20 से 27 नेता टिकट मांग रहे हैं। ऐसे में कांग्रेस की स्थिति एक अनार और सौ बीमार वाली बन गई है। कांग्रेस टिकट तो किसी एक को ही दे सकती है। ऐसे में टिकट न मिलने से बागी होकर निर्दलीय चुनाव लडऩे का खतरा कांग्रेस को सता रहा है। माना जा रहा कि इसके चलते ही कांग्रेस जानबूझकर उम्मीदवारों के नामों का ऐलान टुकड़ों में लिस्ट जारी करके कर रही है। पलवल सीट पर सोमवार को करण सिंह दलाल ने बिना टिकट घोषित हुए कांग्रेस के सिंबल पर नामांकन दाखिल कर दिया है. ऐसे ही दूसरे कई नेताओं को भी हरी झंडी मिल चुकी है।
जाट, जट सिख और मुसलमानों का झुकाव कांगे्रस की ओर
प्रदेश में जाटों की संख्या सबसे ज्यादा है, जाट वोटर जिस भी दल की ओर झुका उसकी ही सरकार बनी है, प्रदेश में 22 प्रतिशत जाट, चार प्रतिशत जट्ट सिख और चार ही प्रतिशत मुसलिम मतदाता है। इनका झुकाव कांगे्रस की ओर माना जा रहा है। इन 30 प्रतिशत वेाटर्स में अधिकतर कांगेे्रस में जी जाएंगे। किसान आंदोजन के बाद जाटों का झुकाव कांगे्रस की ओर हो गया है। दूसरी ओर 15 प्रतिशत ओबीसी, सात प्रतिशत ब्राहम्ण और 05 प्रतिश वैश्य वोटर में से अधिकतर का झुकाव भाजपा की ओर देखा जा रहा है। 21 प्रतिशत वोटर दलित वर्ग से है, जिसमें से अधिकतर का झ़ुकाव लोकसभा चुनाव के बाद कांगे्रस की ओर हो या है जबकि कुछ भाजपा की कल्याणकारी नीतियों के चलते भाजपा के साथ ही रहना चाहता है।
दलित मतदाता में सैलजा को लेकर जागी है एक उम्मीद
हरियाणा में कुमारी सैलजा एक बड़ा दलित चेहर उभर कर सामने आई है, कांगे्रस संदेश यात्रा के दौरान जहां पर भी उनकी सभााएं हुई वहां पर जुटी अपार भीड़ ने विरोधियों के पसीने छुडा दिए,पार्टी हाईकमान भी इसे देख रहा है, लोग सैलजा को सीएम चेहरा मानकर चल रहे है वैसे सीएम को फैसला तो हाईकमान ही करेगा। अगर कांगे्रस ने कुमारी सैलजा की जरा भी अनदेखी की और दलित मतदाता को लगा कि सैलजा की अनदेखी की जा रही है तो उसकी नाराजगी कांगे्रस को भारी पड़ सकती है। साथ ही अगर कांगे्रस ने सैलजा को हुड्डा के बराबर सम्मान न दिया तो तब भी कांगे्रस का इसका खामियाजा उठाना पड़ सकता है। जब डा. अशोक तंवर कांगे्रस के प्रदेशाध्यक्ष थे और उन्हें पद से हटाया गया था तब दलित वर्ग में खासी नाराजगी थी। दलित वोटर की नाराजगी को ध्यान में रखते हुए सैलजा को प्रदेश की कमान सौंपी गई थी पर उनके साथ वहीं हुआ जो अशोक तंवर के साथ हुआ था उस बात को दलित वर्ग आज तक नहीं भूला है। इस चुनाव में कांग्रे्रस की सरकार बनाने में पंजाबी और दलित मतदाता की भी अहम भूमिका रहेगी।