मनरेगा को वर्ष 2024 से पूर्व की भांति उसके मूल स्वरूप में तत्काल लागू किया जाए: कुमारी सैलजा

अखिल भारतीय कांग्रेस कमेटी की महासचिव, पूर्व केंद्रीय मंत्री एवं सिरसा की सांसद कुमारी सैलजा ने महात्मा गांधी राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार गारंटी अधिनियम (मनरेगा) का नाम परिवर्तन से इसके मूल स्वरूप और संवैधानिक भावना को गहरी ठेस पहुंची है। पर कांग्रेस इस सरकार को लाखों गरीब लोगों, मजदूरों और कामगारों के अधिकारों को छीनने की अनुमति नहीं देंगी।
मीडिया को जारी बयान में सांसद कुमारी सैलजा ने कहा कि मनरेगा कोई साधारण कल्याणकारी योजना नहीं, बल्कि संसद द्वारा वर्ष 2005 में पारित एक वैधानिक अधिकार है, जिसका उद्देश्य ग्रामीण परिवारों को सुनिश्चित रोजगार के माध्यम से आजीविका की सुरक्षा प्रदान करना है। किंतु हालिया प्रशासनिक बदलावों के कारण कार्य आवंटन में अव्यवस्था, भुगतान में विलंब और हज़ारों ग्रामीण श्रमिकों को उनके वैध रोजगार अधिकार से वंचित किया जा रहा है। यह स्थिति न केवल मनरेगा अधिनियम की मूल भावना के विपरीत है, बल्कि संविधान के अनुच्छेद 14, 21 और 41 में निहित समानता, गरिमा के साथ जीवन और कार्य के अधिकार का भी स्पष्ट उल्लंघन है। सांसद ने सरकार से मांग की है कि मनरेगा को वर्ष 2024 से पूर्व की भांति उसके मूल स्वरूप में तत्काल लागू किया जाए, ताकि ग्रामीण श्रमिकों को समय पर, न्यायपूर्ण और सम्मानजनक रोजग़ार सुनिश्चित हो सके।
सांसद कु मारी सैलजा ने कहा कि ये केवल महात्मा गांधी राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार गारंटी अधिनियम (एमजीएनआरईजीए) का नाम बदलने का मामला नहीं है, बल्कि गरीबों के अधिकारों से नफरत करने वाली सरकार ही एमजीएनआरईजीए पर हमला करेगी. कांग्रेस पार्टी इस अहंकारी सरकार के किसी भी गरीब-विरोधी और मजदूर-विरोधी फैसले का आम जनता के बीच पहुंचकर सडक़ों पर कड़ा विरोध करेगी। कांग्रेस इस सरकार को लाखों गरीब लोगों, मजदूरों और कामगारों के अधिकारों को छीनने की अनुमति नहीं देंगे। सांसद सैलजा ने कहा कि महात्मा गांधी का नाम हटाने के पीछे सरकार की क्या मंशा है जो न केवल भारत में बल्कि दुनिया में सबसे बड़े नेता माने जाते हैं। जब भी किसी योजना का नाम बदला जाता है तो कार्यालयों, स्टेशनरी में इतने बदलाव करने पड़ते हैं, जिसके लिए पैसा खर्च होता है. तो क्या फायदा?
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आम नागरिक की सुरक्षा की गारंटी कौन लेगा: सैलजा
सिरसा जिला के गांव रामपुरा बिश्नोइयां की 04 वर्ष की मासूम बच्ची का दिनदहाड़े अपहरण और फिर नृशंस हत्या होना, भाजपा सरकार के शासन में कानून व्यवस्था के पूरी तरह ध्वस्त हो जाने का दिल दहला देने वाला प्रमाण है। यह सवाल बेहद गंभीर है कि जब इतनी छोटी बच्ची भी सुरक्षित नहीं है, तो आम नागरिक की सुरक्षा की गारंटी कौन लेगा? दिन के उजाले में एक बच्ची का अपहरण हो जाना यह दिखाता है कि पुलिस प्रशासन और सरकार पूरी तरह विफल हो चुकी है। आखिर अपराधियों में इतनी हिम्मत कैसे आ गई कि उन्हें कानून का कोई डर ही नहीं रहा। यह केवल एक परिवार का नहीं, पूरे समाज का दर्द है। भाजपा सरकार को जवाब देना होगा कि महिला और बाल सुरक्षा के दावे ज़मीन पर क्यों खोखले साबित हो रहे हैं। इस जघन्य अपराध के दोषियों को बिना किसी देरी के गिरफ्तार कर उनके खिलाफ सख़्त से सख़्त कार्रवाई सुनिश्चित की जाए। न्याय में देरी, पीडि़त परिवार के साथ अन्याय है और इसे किसी भी कीमत पर स्वीकार नहीं किया जा सकता।

