कई रिटायर्ड प्रशासनिक अधिकारियों के सिर चढक़र बोल रहा है राजनीति का चस्का
Nov 13, 2023, 20:29 IST
चंडीगढ/ रानियां 13 नवंबर देशा में देश हरियाणा जित दूध दही का खाना, कहावत जितनी पॉपुलर है उतनी ही हरियाणा की राजनीति पॉपुलर दिखाई दे रही है। हरियाणा की राजनीति का चस्का राजनेताओं के मुकाबले सेवानिवृत्त प्रशासनिक अधिकारियों के सिर चढक़र भी बोल रहा है । हरियाणा की जाए तो पूर्व मुख्यमंत्री, मंत्री और सांसदों को जहां चस्का लगा है उतना ही चस्का हरियाणा के सेवानिवृत प्रशासनिक अधिकारियों में देखने को मिल रहा है । हरियाणा में अगले वर्ष होने वाले संसदीय और विधानसभा चुनाव को लेकर सरगर्मियां दिन प्रतिदिन तेज होती जा रही हैं और ऐसी संभावनाएं जताई जा रही हैं कि दोनों ही चुनाव एक साथ हो सकते हैं और इन चुनावों में रिटायर्ड प्रशासनिक अधिकारी किसी भी राजनीतिक दल का समीकरण बिगाड़ सकते हैं । राजनीतिक विशेषज्ञों के अनुसार हरियाणा की राजनीति में अब तक चार ऐसे सेवानिवृत्ति प्रशासनिक अधिकारी व पुलिस प्रशासनिक अधिकारी राजनीति में सक्रिय भूमिका निभा चुके हैं और वे चुनाव में अपनी किस्मत आजमाने में पीछे नहीं रहे हैं । अगले वर्ष होने वाले चुनाव की रणभेरी में ताल ठोकने के लिए अपना लंगोट कसकर चुनावी दंगल में उतरने वाले ये अधिकारी ज्यादातर अपने प्रभाव वाले क्षेत्र और जातीय समीकरणों के चलते वोटरों से संपर्क साध रहे हैं । वहीं टिकट पाने के लिए भाजपा व कांग्रेस पार्टी के हाई कमान दरबार में हाजिरी लगाकर अपनी टिकट पक्की करने के लिए गोटिया फिट करने में लगे हुए हैं। सूत्रों के अनुसार हरियाणा के चुनाव में पूर्व राज्य गृहमंत्री आईडी स्वामी, अभय सिंह यादव पूर्व राज्यसभा सांसद और बागड़ बेल्ट में जाट बाहुल्य मतदाताओं पर अपनी मजबूत पकड़ रखने वाले वीरेंद्र सिंह डूमरखा के बेटे एवं पूर्व आईएएस अधिकारी विजेंद्र सिंह हिसार लोकसभा क्षेत्र से सांसद और जिला सिरसा लोकसभा क्षेत्र से सांसद को सुनीता दुग्गल और 1988 में लोकदल पार्टी की टिकट पर बैंक मैनेजर के पद से सेवानिवृत्ति होने से पूर्व नौकरी छोडक़र चुनाव लडऩे वाले हेतराम ने जीत हासिल की और इसके बाद हुए 1989 के चुनाव में एक बार फिर हेतराम ने दूसरी बार पारी खेलते हुए विजय हासिल की। इनको छोडक़र कोई भी अधिकारी आज तक राजनीति में खुद को स्थापित नहीं कर पाया है । विशेषज्ञों के अनुसार जम्मू कश्मीर के आईएएस अधिकारी शाह फैसल ने अपनी नौकरी से इसलिए इस्तीफा दे दिया था कि उनको इस्तांबुल की विदेश यात्रा पर जाने से रोक दिया था और सीआरसी की धारा 107 के तहत हिरासत में ले लिया था । इसी बात से रुष्ट होकर फैसल ने मार्च 2019 के लोकसभा चुनाव से पहले खुद का एक राजनीतिक दल जम्मू और कश्मीर मूवमेंट का गठन किया लेकिन केंद्र सरकार ने उनका इस्तीफा मंजूर नहीं किया और शाह फैसल दोबारा से सिविल सर्विस में आ गए । शाह फैसल के इस्तीफा और नई पार्टी का गठन करने का असर हरियाणा के कुछ रिटायर्ड वरिष्ठ प्रशासनिक अधिकारियों पर ऐसा पड़ा कि उनके मुंह में भी राजनीति में आने के लिए लार टपकने लगी और वह भी राजनीति में अपनी किस्मत आजमाने के लिए हरियाणा के बड़े दिग्गज नेताओं के साथ अपनी पींगे बढ़ाने शुरू कर दी । सूत्रों ने बताया कि एडीजीपी के पद से रिटायर्ड हुए पुलिस के प्रशासनिक अधिकारी वी कामराजा ऐसे मौके की तलाश में हैं और उनकी भाजपा में एंट्री होना लगभग तय माना जा रहा है क्योंकि सिरसा लोकसभा (सुरक्षित) सीट से एक हैवी कैंडिडेट हो सकते हैं क्योंकि कामराजा यहां के मतदाताओं के लिए कोई नया चेहरा नहीं है बल्कि आज भी बच्चे बच्चे की जुबान पर भी वी कामराजा का नाम चर्चित है और उनका यहां के मतदाताओं पर अच्छी खासी मजबूत पकड़ भी मानी जाती है । जिसके कारण पिछले लोकसभा चुनाव में भी उनकी ड्यूटी भाजपा के नेताओं द्वारा लगाई गई और उन्होंने सहरानीय भूमिका भी निभाई। बताया जाता है कि हरियाणा पुलिस के एडीजीपी श्रीकांत जाधव की 30 साल की सर्विस जोकि अनेकों उपलब्धिया हासिल किए हुए हैं और उन्हें राष्ट्रपति से पुलिस मेडल भी नवाजा गया है । यादव अगले वर्ष पुलिस की सेवाओं से रिटायरमेंट होने वाले हैं इसके बाद उनके भी हरियाणा में भाजपा में एंट्री होने की प्रबल संभावना है और वह सिर्फ सिरसा लोकसभा सीट से अपनी दावेदारी ठोक सकते हैं । हरियाणा के चुनावी अतीत में जाकर देखें तो सरकारी सेवाओं को पूरा करने के बाद सेवानिवृत्त प्रशासनिक अधिकारियों का इतिहास बड़ा रोचक रहा है । पूर्व प्रधानमंत्री दिवंगत अटल बिहारी वाजपेई साल 1996 -99 में केंद्र सरकार के दौरान केंद्रीय गृह राज्य मंत्री आईडी स्वामी हरियाणा केंद्र के आईएएस अधिकारी रहे एचसीएस से आईएएस से कमिश्नर पद तक सफलता तय किया । स्वामी के दामाद आईएएस रणवीर शर्मा लोकसभा राज्य पार्टी के भी संस्थापक रहे थे। शर्मा ने भी कुछ दिन के लिए आम आदमी पार्टी के लिए भी काम किया । रणवीर शर्मा के इतिहास पर नजर डालें तो पता चलता है कि वे हरियाणा के एक ऐसे प्रथम नौकरशाह है जिन्होंने सरकारी नौकरी त्याग कर राजनीति में कदम रखा । हरियाणा के साल 1985 में सरकारी नौकरी से रिटायरमेंट लेकर चुनाव लडऩे वाले कृपाराम पूनिया को चौ देवीलाल ने अपनी सरकार में मंत्री बनाया कृपाराम पूनिया का भी राजनीतिक इतिहास कोई खास नहीं रहा और उन्होंने भी बसपा सुप्रीमो मायावती की पार्टी में भी कुछ दिन हिचकोले खाए । साल 2013 -14 में स्वैच्छिक सेवानिवृत्ति लेकर चुनाव लडऩे वाले आईएएस अभय सिंह यादव भी नांगल चौधरी से भाजपा के विधायक रह चुके हैं वहीं दूसरी और पूर्व आईएएस अधिकारी आरएस चौधरी इनेलो के राष्ट्रीय उपाध्यक्ष हैं। बताया जाता है कि इनेलो सुप्रीमो एवं पूर्व मुख्यमंत्री ओमप्रकाश चौटाला पार्टी के सितारे जब गर्दिश में थे उस वक्त चौधरी इनेलो विधायक अभय सिंह चौटाला के साथ कंधा से कंधा मिलाकर चल रहे थे आरएस चौधरी एक स्वच्छ छवि की राजनीति कर रहे हैं । जिला सिरसा में उपायुक्त पद पर रहे युद्धवीर सिंह ख्यालिया सेवानिवृत्ति के बाद हिसार से आम आदमी पार्टी की टिकट पर चुनाव लडक़र राजनीति में अपनी उपस्थिति दर्ज करवाई । हरियाणा में पूर्व मुख्यमंत्री भूपेंद्र सिंह हुड्डा के शासनकाल में तबादलों से पीडि़त हुए आईएएस अधिकारी प्रदीप कासनी को कांग्रेस पार्टी में शामिल न करने के लिए पूर्व मुख्यमंत्री हुड्डा ने खूब रोड़े अटकाए लेकिन हुड्डा अपने ऑपरेशन में कामयाब नहीं हो पाए किंतु कांग्रेस प्रदेशअध्यक्ष अशोक तंवर प्रदीप कासनी को कांग्रेस में शामिल करवा कर हुड्डा को धीरे से जोर का झटका दे गए । इससे पहले भाजपा हंसराज स्वान को सिरसा लोकसभा का चुनाव भाजपा की टिकट पर लड़ा चुके हैं । हरियाणा की राजनीति में विशेष रुचि रखने वाले लोगों का मानना है कि अगले वर्ष होने वाले लोकसभा चुनाव में भाजपा हाई कमान पूर्व एडीजीपी वी कामराजा या श्रीकांत जाधव पर सिरसा लोकसभा सीट से अपना दांव चला सकती है यदि ऐसा किया जाता है तो भाजपा को सिरसा लोकसभा सीट से कमल का फूल खिलते में कोई रोक नहीं सकता। सूत्रों का मानना है कि भाजपा हाई कमान के शीर्ष नेतृत्व ने किसी भूल वंश और आंखें मुंद कर सांसद सुनीता दुग्गल की तरह किसी अन्य के हाथ में टिकट थमा दी तो यह मानकर चलें कि भाजपा ने यह सीट कांग्रेस के हाथों में थाली में सजाकर परोस दी है क्योंकि पिछले चुनाव में देश और प्रदेश में मोदी के नाम की लहर थी जबकि चुनाव की कमान वी कामराजा जैसे शीर्ष नेताओं के हाथों में रही जिसके कारण सुनीता दुग्गल भारी मतों से जीत गई जबकि इस क्षेत्र के लोग तो सुनीता दुग्गल को आज भी पूर्ण रूप से नहीं जानते और यहां से सांसद बनने के बाद इलाके से दूरी बनाकर पार्टी हाई कमान के इर्द-गिर्द हाजिरी दर्ज करवाती रही जिसके कारण उनकी वास्तविक स्थिति प्रतिकूल होती जा रही है । हरियाणा की राजनीति पर पैनी नजर रखने वाले विशेषज्ञों का कथन है कि सिरसा लोकसभा सीट को लेकर दो रिटायर्ड पुलिस अधिकारियों व समाज कल्याण विभाग के पूर्व मंत्री कृष्ण बेदी के बीच घमासान हो सकता है और भाजपा हाई कमान के लिए यह टिकट गले की फांस भी बन सकती है। अब देखना यह है कि सिरसा लोकसभा सीट पर किस चेहरे को चुनावी दंगल में उतारने का काम करती है।