विशाल वार्षिक फाल्गुन मेले के अवसर पर संत बाबा श्री रामगिर जी महाराज की जीवन गाथा -13 मार्च को गांव पन्नीवाला रुलदू में स्थित समाध स्थल पर लगेगा मेला

उल्लेखनीय है कि संत बाबा श्री रामगिर जी महाराज बीकानेर (राजस्थान) के नजदीक किसी गांव से चलकर गांव हैबुआना के बस अड्डा पर सड़क के किनारे झोपड़ी में रहकर सूर्य भगवान की आराधना कर रहे थे। जब यह जानकारी गांव पन्नीवाला रुलदू के ग्रामीणों को मिली तो वह संतों के पास पहुंचकर फरियाद करने लगे कि आप हमारे गांव चलें। लेकिन संतों द्वारा वहां जाने के लिए मना करने पर गांव से स. जवाहर सिंह एवं स. चंद सिंह आदि कई अन्य गणमान्य व्यक्ति इन संतों के पास फरियाद लेकर पहुंचे कि आप हमारे गांव चलें। तब संत उनके अनुग्रह पर सहमत होकर गांव पन्नीवाला रुलदू आ गए। संत यहां कुछ समय गांव में एक कच्चे मकान में रहने के पश्चात गांव के पास रेत के टीले पर झोपड़ी बनाकर रहने लगे। यहां पर उन्होंने सूर्य भगवान की आराधना की। संतों के श्रद्धालुओं के मुताबिक वह पूरा-पूरा दिन रेत के टीलों पर लेटकर अपनी नज़र सूर्य भगवान की ओर लगाकर कठोर तपस्या किया करते थे। संत एक मस्त मौला फकीर थे। उन द्वारा अपने जीवनकाल में की गई सभी भविष्यवाणी लगभग पूरी हुई हैं। संत हर समय राधेश्याम-राधेश्याम का उच्चारण किया करते थे।
वैद्य लाल चंद शर्मा जिनकी बचपन से ही संतों के प्रति अगाध श्रद्धा थी। उनके साथी जब गांव की गलियों में गिल्ली-डंडा, कंचे खेल रहे होते थे वह उस समय संतों की कुटिया में प्रवचन सुन रहे होते थे। एक बार जब वह कुटिया में संतों के पास बैठे थे, उस समय संत चिलम का कश लगा रहे थे कि अचानक ही मौन बैठे संतों ने कहा कि ऐ कागले आ मैं तेरे को एक खेल दिखाता हूं, तूं बच्चों के साथ तो खेलता नहीं मैं तुम्हारे साथ खेलता हूं, डरना मत। यह कहते हुए संतों ने चिलम का एक जोरदार कश लगाने से उनकी चिलम बांसुरी के रूप में परिवर्तित हो गई। संत स्वयं भी भगवान श्रीकृष्ण के रूप धारण कर गए। यह देखकर बच्चे डर कर वहां से अपने-अपने घर भाग गए। उस समय वैद्य जी की उम्र लगभग 10-11 वर्ष थी, वह अपने मिलने वालों एवं गांववासियों के बीच बैठकर संतों की कहानियां सुनाया करते थे। संत बच्चों को कागला अर्थात कौआ कहकर ही पुकारते थे। जबकि छोटी-छोटी बच्चियों को वह चिडिया कहा करते थे। गांव का भू-जल बहुत ही खारा था। जब किसी गांववासी ने पानी का नलका लगवाना होता था, वह संतों के पास फरियाद लेकर पहुंचता था, संत जमीन पर अपनी लाठी से एक गोला खींच देते थे। उसी स्थान पर लगाए जाने वाले नलके से मीठा पानी ही निकलता था। एक बार कुछ गांववासी भूल वंश संतों से बिना पूछे नलके के लिए भूमि की खुदाई कर रहे थे। उस समय अचानक संत वहां से गुजरते हुए सहज स्वभाव से बोले, भाई तुम्हारी गरारी कह रही है खर्च खाऊं,पानी खारा परिणाम स्वरूप वहां से खारा पानी ही निकला। संतों ने सभी गायत्रियां सिद्ध की हुई थीं। गुरबाणी भी संपूर्ण रूप से उनके कंठस्थ थी। बेपरवाही-परमात्मा के अनेकों गुणों में से एक है। संत भी बड़े बेपरवाह, मस्त मौला स्वभाव के धनी थे। जब वह अपनी मौज में होते थे तब वह समाज के नियमों की परवाह नहीं किया करते थे। जनसाधारण समाज की मर्यादा के दायरे में बंधे होते हैं जबकि संत इस दायरे से स्वतंत्र होते हैं। एक बार ऐसा ही हुआ कि एक श्रद्धालु महिला ने संतों से श्री गुरू ग्रंथ साहिब का पाठ करवाने के लिए प्रार्थना की। संतों ने यह स्वीकार कर लिया। संत पाठ का प्रकाश कर रहे थे कि उस समय श्रद्धालु महिला संतों से पूछ बैठी की महाराज भोग कब डालोगे। यह सुनकर संत तरंग में आकर बोले कि पाठ बाद में कर लेंगे पहले भोग ही डाल देते हैं। यह कह कर संत पाठ की बख्शीश कर वहां से आ गए। जिस समय गांव में प्लेग की महामारी फैल चुकी थी उस समय स्वास्थ्य सेवाओं के अभाव में लोग बड़ी संख्या में अकाल मृत्यु को प्राप्त हो रहे थे, परंतु संतों की महिमा अवर्णनीय है जिसको भी संत धुने की भभूति दे देते वह पूर्ण रूप से स्वस्थ हो जाता था।
एक बार गांव शेरगढ़ की महिला बाबा जी की समाध पर माथा टेकते हुए कह रही थी कि हे बाबा- जिवें दित्ते हन हुण किमट वी उस समय वैद्य लाल चंद शर्मा भी समाध पर उपस्थित थे। उन्होंने महिला की यह फरियाद सुनकर उससे पूछा कि इसका क्या अर्थ है। उस महिला ने बताया कि बात उन दिनों की है जब मेरी शादी को कुछ ही समय हुआ था परिवार के सभी सदस्य फसल कटाई के लिए खेतों में गए हुए थे मैं घर में अकेली ही थी। दोपहर का समय था मैं घर के दरवाजे में बैठी हुई थी। अचानक संत दरवाजे पर आ पहुंचे कड़कती आवाज में बोले ऐ बेटा पानी पिला मैं चुपचाप अंदर से पानी की गड़वी लेकर आई संतों ने अपने हाथ पानी पीने के लिए अपने मुंह की ओर किए। मैंने गड़वी से पानी पिला दिया। उस समय मैं मंत्रमुग्ध होकर अंदर से पानी की गड़वी लेकर आती और संतों को पानी पिलाती गई। मैंने उन्हें सात बार पानी पिलाया। सातवीं गड़वी पीने के बाद संत बोले ऐ बेटा बस भी कर- तेरे सात बेटे होंगे। यह कहकर संत चले गए। उनका यह आशीर्वाद सत्य हुआ। मेरे सात बेटे हुए। सभी बच्चे विवाह योग्य उम्र में हैं लेकिन शादी की कोई बात सिरे नहीं चढ़ रही, इसलिए मैं बाबा जी से यही फरियाद कर रही थी कि जैसे आपने पुत्रों की दात दी है अब उनकी शादी भी आप ही करवा दो। यह सुनकर वैद्य जी बहुत ही रोमांचित हुए कि संतों द्वारा पानी की सात गड़वियों के बदले सात पुत्रों का दिया गया वरदान सत्य प्रमाणित हुआ।
गांव पन्नीवाला रूलदू में बने प्रसिद्ध उदासीन डेरा में जिस दिन महान संत बसंत दास जी को डेरा की गद्दी दी जा रही थी, उस समय वहां आयोजित धार्मिक समारोह में भारी संख्या में साधु-संत बाहर से पहुंचे हुए थे। उनमें से पांच साधु-संत बाबा श्री रामगिर जी महाराज जी के पास उनके दर्शन करने के लिए पहुंचे। उन्होंने देखा कि यह कोई साधारण साधु-संत नहीं हंै बल्कि बहुत बड़ा चमत्कारी फकीर है। उनको पता चला कि यहां पर उनके पास बड़ी संख्या में श्रद्धालु दर्शन करने के लिए पहुंचते हैं। उन्होंने इसकी जानकारी संत श्री बसंत दास जी को दी। गांव में पानी की भारी कमी और जमीन रेतीली थी। यही कारण था कि गांव बरानी पन्नीवाला रूलदू के नाम से ही जाना जाता था। गांववासी इक_े होकर संतों से जब भी वर्षा के लिए फरियाद करते तो संत गांव वासियों को मीठा चूरमा बनाकर छोटी-छोटी कन्याओं को खिलाने के लिए कहते। गांववासियों द्वारा कन्याओं को चूरमा खिलाते-खिलाते ही गांव में बरसात शुरू हो जाती थी। इस खुशी में गांव वासी इक_े होकर नाचते-गाते हुए भजन करते एवं संतों का आभार व्यक्त करते थे। गांव पान्ना में एक बार चमत्कारी ढंग से हो रही वर्षा को भी बाबा जी ने अपने वचनों से बन्द करवाकर डूब रहे गांव पाना वासियों को बचाया। यह भी एक ऐतिहासिक घटना है।
पं. तुलसी राम पुत्र श्री आसा राम जोकि बाबा जी की सेवा किया करते थे, बाबा जी ने खुश होकर उनको एक मु_ी कनक (गेहूं) देकर कहा कि यह कनक (गेहूं) अपने घर जाकर बखारी में डाल देना। जब भी जरूरत पड़े कनक (गेहूं) निकालकर जरूरत पूरी कर लेना। इस बात की जानकारी किसी अन्य व्यक्ति को नहीं देना। यह कार्य तीन वर्ष तक चलता रहा। पं. तुलसी राम गांव में पड़े अकाल के समय में भी कनक (गेहूं) से कभी भी वंचित नहीं रहे। एक दिन उसका एक नजदीकी रिश्तेदार पं. दयाराम उनसे लगभग 20 किलो कनक (गेहूं) उधार ले गया, जोकि बाबा जी द्वारा दिए गए वचनों के अनुकूल नहीं था। जैसे ही अगले दिन बखारी से पं. तुलसी राम ने कनक (गेहूं) निकालनी चाही तो वह बखारी उन्हें खाली मिली। इन दिनों संत मौड़ मण्डी के पास गांव कलो कोटली चले गए थे। पं. तुलसीराम भी फरियाद लेकर संतों के पीछे पहुंच गए। वहां पर जाकर पं. तुलसी राम ने संतों से फरियाद करते हुए कहा कि मेरी बखारी में कनक (गेहूं) खत्म हो चुकी है। संतों ने कहा कि उनके पास अब कुछ भी नहीं है, लेकिन फिर भी संतों ने दया करते हुए पंडित जी को आशीर्वाद दिया कि आप जिन्दगी में कभी भी भूखे नहीं रहेंगे। अत: पंडित जी के जीवन में ऐसा ही हुआ। जोकि सभी गांववासियों ने अपनी आंखों से देखा। आजादी के पश्चात संत लाठी की जगह गन्धाला रखने लगे थे। संत एक दिन कुटिया में बैठे कुछ भक्तों से बोले कि चलो तुम सभी को घुमाकर लाएंं। इस पर भक्त बोले कि महाराज बाहर जाने में खतरा है, हर जगह दंगे ही दंगे हो रहे हैं। संतों ने कहा कि मैं हूं ना...। तुम्हें कोई भी छू तक नहीं सकता। यह सुनकर श्रद्धालु आश्वस्त होकर संतों के साथ चल पड़े। संत बड़े बेपरवाह एवं निडर थे। जहां भी मुसलमानों की टोली दिखाई देने पर संत हर-हर महादेव का जयघोष करने लगते। जब भी मुसलमानों की कोई टोली उन पर आक्रमण करने का प्रयास करती, उस समय संत अपने श्रद्धालुओं के इर्द-गिर्द गन्धाले से गोल दायरा खींच दिया करते। स्वयं अपना गन्धाला अपनी तर्जनी उंगली से इतनी तेजी से घुमाते कि वह सुदर्शन चक्र की तरह घूमता प्रतीत होता। आक्रमण करने वाली टोली एकदम सहम कर पीछे हट जाती। आश्चर्य की बात यह रही कि श्रद्धालुओं के इर्द-गिर्द लगाया गया गोल दायरा सुरक्षा चक्र बन जाता। ऐसा चमत्कार था कि श्रद्धालु दायरे के अंदर खड़े आक्रमणकारी टोली को दिखाई नहीं देते थे। संतों ने अपनी दिव्य शक्ति से साथ गए श्रद्धालुओं को अदृश्य कर दिया। ऐसी ही घटना हिन्दू टोली के संदर्भ में हुई। कोई हिन्दू टोली दिखाई देती तब संत श्रद्धालुओं के इर्द-गिर्द गन्धाले से गोलदायरा खींचकर बोलते अल्लाह हू अकबरÓ। तब श्रद्धालुु उनके लिए अदृश्य हो जाते। संत फिर गन्धाले को तेजी से सुदर्शन चक्र की तरह घुमाने लगते। संतों के जीवन की ऐसी बहुत सी सत्य कहानियां हैं।
गांव कलो कोटली के गांववासियों ने गांव में वर्षा के लिए संतों से फरियाद की। जिस पर उन्होंने वहां हवन यज्ञ शुरू करवाया। उस समय भीषण गर्मी का मौसम था, फिर भी संतों ने गांववासियों से कहा कि मेरे ऊपर 9 रजाइयां डालकर आप कन्याओं को चूरमा खिलाओ, यह कहते ही वर्षा शुरू होने के साथ ही चमत्कारी ढंग से आसमानी बिजली हवन कुण्ड में आ गिरी। फिर संत गांववासियों को सदा खुशहाल रहने के लिए आशीर्वाद देकर वापिस गांव पन्नीवाला रूलदू लौट आए। उनकी भविष्यवाणी के पश्चात ही गांव पन्नीवाला रूलदू से भाखड़ा नहर निकली। आज उनका समाधि स्थल भी इस नहर के साथ ही खेतों में बना हुआ है। उनके जीवन की बहुत सी अद्भुत चमत्कारों की जानकारी गांव के पुराने बुजुर्ग देते हुए कहते हंै कि हमारे गांव में संतों की कृपा से आज गांव पन्नीवाला रूलदू पूरा खुशहाल है। हमारे यहां गांव में कभी भी कोई फसल आंधी या तूफान आने से खराब नहीं हुई है। उनके समाधि स्थल पर प्रतिदिन गांव एवं अन्य शहरों से बड़ी संख्या में श्रद्धालु अपनी मनोकामनाएं लेकर पहुंचते हैं। यहां पहुंचने वाले श्रद्धालु मनोकामनाएं पूरी होने पर समाधि स्थल पर संत बाबा श्री रामगिर जी महाराज की प्रतिमा के समक्ष देसी घी की ज्योतियां प्रकाश कर धूप लगाने उपरांत देसी घी का चूरमा, हलवा एवं मिठाइयां आदि बांटते हैं। संतों द्वारा दिए गए वचनों के अनुसार कनक (गेहूं) भी चढ़ाते हैं। गेहूं का चोगा भी चढ़ाते हैं। श्रद्धालुओं द्वारा यहां पर श्री अखंड पाठ, श्री रामायण पाठ, श्री हनुमान चालीसा, श्री सुंदर कांड आदि के पाठ का आयोजन भी करवाया जाता है। गांववासियों द्वारा प्रति वर्ष फाल्गुन मेला एवं अस्सु माह की अमावस्या के दिन संतों के श्राद्ध दिवस पर श्री अखंड पाठ साहिब के भोग उपरांत लंगर का आयोजन किया जाता है।
ऐसे महान संतों के चरणों में हमारा कोटि-कोटि प्रणाम
द्वारा: सेवादार सुरेंद्र सिंगला