हरियाणा कांगे्रस में छंटनी अभियान शुरू, राहुल के करीबी जितेंद्र बघेल बनाए गए सह प्रभारी
हुड्डा के करीबी प्रदेश प्रभारी दीपक बाबरिया की अब जल्द हो सकती है छुट्टी
Nov 6, 2024, 14:28 IST
सैलजा गुट से हो सकता है विधायक दल का नेता, स्टार प्रचारकों की सूची में पिता-पुत्र का नाम नहीं
गजेंद्र कुमार सिंह
चंडीगढ़, 06 नवंबर। हरियाणा विधानसभा चुनाव में कांगे्रस की हार के बाद भी रार कम होने का नाम नहीं ले रही है। हाईकमान की ओर से हार के कारणों का पता लगाने के लिए गठित कमेटी के सामानांतर प्रदेशाध्यक्ष ने आठ सदस्यीय कमेटी का गठन किया है और इस बार भी इस कमेटी में सैलजा गुट के लोगों को दूर रखा गया है। पर हाईकमान कुछ कुछ समझने लगा है और उसने हार के बाद संगठन स्तर पर बदलाव शुरू कर दिया है। राहुल गांधी के खास और पार्टी के वरिष्ठ नेता जितेंद्र बघेल को हरियाणा का नया सहप्रभारी लगाया है। साफ हैै कि हरियाणा प्रभारी दीपक बाबरिया को घर भेजने की तैयारी की जा चुकी है, वो बात अलग है कि अपना सम्मान बचाने के लिए बाबारिया पहले ही हार की जिम्मेदारी लेते हुए अपने इस्तीफे की पेशकश राहुल गांधी से कर चुके हैं। इसके बाद में प्रदेशाध्यक्ष बदला जाएगा।
कांगे्रस का हर बड़ा नेता और कार्यकर्ता अति उत्साह में था कि इस बार उनकी पार्टी की सरकार बनने जा रही है, उनकी ही जीत होगी ऐसा मानकर चुनाव परिणाम की प्रतीक्षा में बैठ गए जबकि भाजपा ने हारी हुई बाजी जीतकर अपनी ताकत का अहसास करवा दिया। गुटबाजी भी हार का प्रमुख कारण रहा, कुमारी सैलजा की अनदेखी ही कांगे्रस को सबसे ज्यादा भारी पड़ गई। हार के बाद कांगे्रस नेताओं खासकर हाईकमान को एक दलित नेत्री की उपेक्षा का दर्द जरूर सताया होगा। हार का प्रमुख कारण प्रभारी दीपक बाबरिया भी रहे जिन्हें हुड्डा और उदयभान के सिवाय कुछ दिखाई नहीं दिया। जब किरण चौधरी कांग्रेस को छोडक़र भाजपा में चली गई जब भी किसी कांगे्रस नेता और हाईकमान की नींद नहीं खुली। आठ अक्टूबर को आए विधानसभा चुनाव नतीजों के बाद से ही बाबरिया ने पार्टी के सभी कार्यक्रमों से आज तक दूरी बना रखी है क्योंकि उन्हें पता है कि हार का ठीकरा तो उन्हीं के सिर पर फूटेगा। ऐसे में सह प्रभारी पद पर जितेंद्र बघेल की नियुक्ति काफी अहम मानी जा रही है और इसे संगठन में बदलाव का पहला कदम भी माना जा रहा है।
हरियाणा में सहप्रभारी के खाली पड़े पद पर राहुल गांधी के करीबी जितेंद्र बघेल को लगाए कई दिन हो चुके ह। कांगे्रस हार्ईकमान की ओर से उनकी नियुक्ति से जुड़ा कोई आदेश जारी नहीं किया गया। जितेंद्र बघेल ने अपना राजनीतिक करियर कांग्रेस से ही शुरू किया। छात्र संघ चुनाव के जरिए कांग्रेस में एंट्री लेने वाले बघेल गुजरात समेत कई राज्यों में पार्टी संगठन का कामकाज संभाल चुके हैं। उधर हार के कारणों का पता लगाने के लिए प्रदेशाध्यक्ष चौधरी उदयभान की ओर से गठित आठ सदस्यीय कमेटी की मंगलवार को दिल्ली में हुई बैठक में सह प्रभारी बघेल भी शामिल हुए। इस कमेटी की 09 नवंबर को दिल्ली में दोबारा बैठक होगी जिसमें सभी हारे हुए उम्मीदवारों को बुलाया गया है। जितेंद्र बघेल हारे हुए सभी उम्मीदवारों से बातचीत करेेंगे। बघेल ने ही हारे हुए नेताओं को बुलाने की बात कही थी। इन नेताओं से न केवल हार के कारण पूछे जाएंगे, बल्कि इनके सबूत भी मांगे जाएंगे। इन सबूतों का कांग्रेस की लीगल टीम अध्ययन करेगी और अदालत का दरवाजा खटखटाएगी।
कांगे्रस प्रदेशाध्यक्ष की भी जल्द हो सकती है छुट्टी
हरियाणा कांगे्रस में एक बात जोर शोर से उठी कि प्रदेशाध्यक्ष ने निष्पक्ष होकर काम नहीं किया, उन्होंने जो भी फैसला किया या निर्णय लिया वह हुड्डा के कहने पर और रोहतक में बैठकर लिया। चौ. उदयभान ने जो चश्मा लगाया हुआ था उससे केवल हुड्डा और उनके समर्थक ही दिखाई देते थे अगर उन्होंने दूसरी गुट की अनदेखी न की होती तो कांगे्रस की इतनी दुर्गति न होती। पहले दस साल सत्ता से बाहर रहे और अब पांच साल सत्ता से बाहर रहने का फरमान जनता ने सुना दिया। अब माना जा रहा है कि किसी भी समय प्रदेशाध्यक्ष के नाम की घोषणा हो सकती है, अगर इसके लिए सैलजा के नाम की घोषणा न हुई तो उनके किसी समर्थक का नाम घोषित किया जा सकता है या ऐसा भी नया नाम सामने आ सकता है जिसे पर हुड्डा और सैलजा गुट को कोई आपत्ति न हो। कहने को तो चौ.बीरेंद्र सिंह का नाम लिया जा रहा है।
हरियााणा में पार्टी संगठन को खड़ा करना ही होगा
प्रदेश की भाजपा सरकार अब किसी भी समय स्थानीय निकाय चुनाव की घोषणा कर सकती है क्योंकि वह इस चुनाव को लेकर तैयारी कर चुकी है जबकि कांगे्रस हार के सदमें से बाहर ही नहीं निकली है, अभी तक उसे पता ही नहीं चल रहा कि वह क्योंं हारी, कांगे्रस की हार के कारण प्रदेश की जनता को पता है पर कांगे्रस को नहीं पता। बिना संगठन के चुनावी जंग नहीं जीती जा सकती, कांगे्रस ने 12 साल में देख लिया होगा, विधानसभा चुनाव हारने का सिलसिला जारी है। जो भी प्रदेशाध्यक्ष बने उसे सबसे पहला काम संगठन को खड़ा करना होगा। ऐसी कांगे्रस बनानी होगी जो सबकी हो, कांगे्रस से गुटबाजी खत्म करनी ही होगी, अगर ऐसा न हुआ तो स्थानीय निकाय चुनाव में भी कांगे्रस को हार का सामना करना होगा।
सैलजा का कद बढ़ाना चाहता है हाईकमान
कुमारी सैलजी की अनदेखी से कांग्रेस को जो नुकसान हुआ है, हाईकमान अब डेमेज कंट्रोल में जुटा हुआ है। महाराष्ट्र विधानसभा चुनाव के स्टार प्रचारकों की सूची में पूर्व मुख्यमंत्री भूपेंद्र सिंह हुड्डा और उनके सांसद बेटे दीपेंद्र हुड्डा का नाम नहीं है, जबकि वरिष्ठ नेता रणदीप सुरजेवाला को जगह मिली है। वहीं, स्टार प्रचारकों की जारी सूची में हस्ताक्षर सांसद कुमारी सैलजा के हैं। आमतौर पर कांग्रेस मुख्यालय की ओर से जारी होने वाले पत्रों में संगठन महासचिव के हस्ताक्षर होते हैं। इस बार हस्ताक्षर कुमारी सैलजा के हैं। उन्होंने बतौर महासचिव स्टार प्रचारकों की सूची जारी की है। इससे माना जा रहा है कि आने वाले समय में सैलजा का कद बढऩे जा रहा है।
चंडीगढ़, 06 नवंबर। हरियाणा विधानसभा चुनाव में कांगे्रस की हार के बाद भी रार कम होने का नाम नहीं ले रही है। हाईकमान की ओर से हार के कारणों का पता लगाने के लिए गठित कमेटी के सामानांतर प्रदेशाध्यक्ष ने आठ सदस्यीय कमेटी का गठन किया है और इस बार भी इस कमेटी में सैलजा गुट के लोगों को दूर रखा गया है। पर हाईकमान कुछ कुछ समझने लगा है और उसने हार के बाद संगठन स्तर पर बदलाव शुरू कर दिया है। राहुल गांधी के खास और पार्टी के वरिष्ठ नेता जितेंद्र बघेल को हरियाणा का नया सहप्रभारी लगाया है। साफ हैै कि हरियाणा प्रभारी दीपक बाबरिया को घर भेजने की तैयारी की जा चुकी है, वो बात अलग है कि अपना सम्मान बचाने के लिए बाबारिया पहले ही हार की जिम्मेदारी लेते हुए अपने इस्तीफे की पेशकश राहुल गांधी से कर चुके हैं। इसके बाद में प्रदेशाध्यक्ष बदला जाएगा।
कांगे्रस का हर बड़ा नेता और कार्यकर्ता अति उत्साह में था कि इस बार उनकी पार्टी की सरकार बनने जा रही है, उनकी ही जीत होगी ऐसा मानकर चुनाव परिणाम की प्रतीक्षा में बैठ गए जबकि भाजपा ने हारी हुई बाजी जीतकर अपनी ताकत का अहसास करवा दिया। गुटबाजी भी हार का प्रमुख कारण रहा, कुमारी सैलजा की अनदेखी ही कांगे्रस को सबसे ज्यादा भारी पड़ गई। हार के बाद कांगे्रस नेताओं खासकर हाईकमान को एक दलित नेत्री की उपेक्षा का दर्द जरूर सताया होगा। हार का प्रमुख कारण प्रभारी दीपक बाबरिया भी रहे जिन्हें हुड्डा और उदयभान के सिवाय कुछ दिखाई नहीं दिया। जब किरण चौधरी कांग्रेस को छोडक़र भाजपा में चली गई जब भी किसी कांगे्रस नेता और हाईकमान की नींद नहीं खुली। आठ अक्टूबर को आए विधानसभा चुनाव नतीजों के बाद से ही बाबरिया ने पार्टी के सभी कार्यक्रमों से आज तक दूरी बना रखी है क्योंकि उन्हें पता है कि हार का ठीकरा तो उन्हीं के सिर पर फूटेगा। ऐसे में सह प्रभारी पद पर जितेंद्र बघेल की नियुक्ति काफी अहम मानी जा रही है और इसे संगठन में बदलाव का पहला कदम भी माना जा रहा है।
हरियाणा में सहप्रभारी के खाली पड़े पद पर राहुल गांधी के करीबी जितेंद्र बघेल को लगाए कई दिन हो चुके ह। कांगे्रस हार्ईकमान की ओर से उनकी नियुक्ति से जुड़ा कोई आदेश जारी नहीं किया गया। जितेंद्र बघेल ने अपना राजनीतिक करियर कांग्रेस से ही शुरू किया। छात्र संघ चुनाव के जरिए कांग्रेस में एंट्री लेने वाले बघेल गुजरात समेत कई राज्यों में पार्टी संगठन का कामकाज संभाल चुके हैं। उधर हार के कारणों का पता लगाने के लिए प्रदेशाध्यक्ष चौधरी उदयभान की ओर से गठित आठ सदस्यीय कमेटी की मंगलवार को दिल्ली में हुई बैठक में सह प्रभारी बघेल भी शामिल हुए। इस कमेटी की 09 नवंबर को दिल्ली में दोबारा बैठक होगी जिसमें सभी हारे हुए उम्मीदवारों को बुलाया गया है। जितेंद्र बघेल हारे हुए सभी उम्मीदवारों से बातचीत करेेंगे। बघेल ने ही हारे हुए नेताओं को बुलाने की बात कही थी। इन नेताओं से न केवल हार के कारण पूछे जाएंगे, बल्कि इनके सबूत भी मांगे जाएंगे। इन सबूतों का कांग्रेस की लीगल टीम अध्ययन करेगी और अदालत का दरवाजा खटखटाएगी।
कांगे्रस प्रदेशाध्यक्ष की भी जल्द हो सकती है छुट्टी
हरियाणा कांगे्रस में एक बात जोर शोर से उठी कि प्रदेशाध्यक्ष ने निष्पक्ष होकर काम नहीं किया, उन्होंने जो भी फैसला किया या निर्णय लिया वह हुड्डा के कहने पर और रोहतक में बैठकर लिया। चौ. उदयभान ने जो चश्मा लगाया हुआ था उससे केवल हुड्डा और उनके समर्थक ही दिखाई देते थे अगर उन्होंने दूसरी गुट की अनदेखी न की होती तो कांगे्रस की इतनी दुर्गति न होती। पहले दस साल सत्ता से बाहर रहे और अब पांच साल सत्ता से बाहर रहने का फरमान जनता ने सुना दिया। अब माना जा रहा है कि किसी भी समय प्रदेशाध्यक्ष के नाम की घोषणा हो सकती है, अगर इसके लिए सैलजा के नाम की घोषणा न हुई तो उनके किसी समर्थक का नाम घोषित किया जा सकता है या ऐसा भी नया नाम सामने आ सकता है जिसे पर हुड्डा और सैलजा गुट को कोई आपत्ति न हो। कहने को तो चौ.बीरेंद्र सिंह का नाम लिया जा रहा है।
हरियााणा में पार्टी संगठन को खड़ा करना ही होगा
प्रदेश की भाजपा सरकार अब किसी भी समय स्थानीय निकाय चुनाव की घोषणा कर सकती है क्योंकि वह इस चुनाव को लेकर तैयारी कर चुकी है जबकि कांगे्रस हार के सदमें से बाहर ही नहीं निकली है, अभी तक उसे पता ही नहीं चल रहा कि वह क्योंं हारी, कांगे्रस की हार के कारण प्रदेश की जनता को पता है पर कांगे्रस को नहीं पता। बिना संगठन के चुनावी जंग नहीं जीती जा सकती, कांगे्रस ने 12 साल में देख लिया होगा, विधानसभा चुनाव हारने का सिलसिला जारी है। जो भी प्रदेशाध्यक्ष बने उसे सबसे पहला काम संगठन को खड़ा करना होगा। ऐसी कांगे्रस बनानी होगी जो सबकी हो, कांगे्रस से गुटबाजी खत्म करनी ही होगी, अगर ऐसा न हुआ तो स्थानीय निकाय चुनाव में भी कांगे्रस को हार का सामना करना होगा।
सैलजा का कद बढ़ाना चाहता है हाईकमान
कुमारी सैलजी की अनदेखी से कांग्रेस को जो नुकसान हुआ है, हाईकमान अब डेमेज कंट्रोल में जुटा हुआ है। महाराष्ट्र विधानसभा चुनाव के स्टार प्रचारकों की सूची में पूर्व मुख्यमंत्री भूपेंद्र सिंह हुड्डा और उनके सांसद बेटे दीपेंद्र हुड्डा का नाम नहीं है, जबकि वरिष्ठ नेता रणदीप सुरजेवाला को जगह मिली है। वहीं, स्टार प्रचारकों की जारी सूची में हस्ताक्षर सांसद कुमारी सैलजा के हैं। आमतौर पर कांग्रेस मुख्यालय की ओर से जारी होने वाले पत्रों में संगठन महासचिव के हस्ताक्षर होते हैं। इस बार हस्ताक्षर कुमारी सैलजा के हैं। उन्होंने बतौर महासचिव स्टार प्रचारकों की सूची जारी की है। इससे माना जा रहा है कि आने वाले समय में सैलजा का कद बढऩे जा रहा है।