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तंवर के लिए बहुत कठिन है डगर पनघट की, कैसे भरेगी वोटों से मटकी

 दोस्त कम और दुश्मन हजार, सोच-सोचकर भाजपा हुई लाचार
 
 तंवर के लिए बहुत कठिन है डगर पनघट की, कैसे भरेगी वोटों से मटकी
 सिरसा,23 अप्रैल। नीति, अनीति और कुनीति ऐसी सारी नीतियों का मिश्रण ही  राजनीति है। राजनीति के मायने मौजूदा दौर में बदल गए हैं, राजनीति पर लोगों का भरोसा, विश्वास, यकीन कम होता जा रहा है, हालात ये है कि मतदान प्रतिशत भी कम होता जा रहा है। किसी ने अच्छा काम कर दिया तो चलो वोट डाल आते है, वोट अच्छे आदमी को डाला जाए तो समाज और देश का भला होता है और अगर किसी के खाते में गलती से डाल दिया तो समझो अपने पैरों में खुद ही कुल्हाडी मार ली। वोट जरूर डालो चाहे नोटा को ही डाला, पर सही जगह पर डाला गया वोट देश की तस्वीर बदल देता है यू तो देश में भ्रष्टाचार, बेरोजगारी, लूट मार के सिवाय कुछ नहीं चल रहा। लोकसभा चुनाव  का बिगुल बच चुका है पहला चरण का मतदान हो चुका है। सिरसा लोकसभा सीट पर मतदान 25 मई को होना है भाजपा  ने डा. अशोक तंवर को मैदान में उतार दिया है इनेलो ने वाल्मीकि संदीप लोट पर दावा खेला है। कांगे्रस की ओर से पूर्व केंद्रीय मंत्री कुमारी सैलजा का नाम लगभग तय है। तंवर के लिए इस बार राह आसान नहीं है, उनकी राह में कांटे हैं, पत्थर है, जनता के सवाल है। सैलजा  अभी मैदान में उतरी भी नहीं है कि भाजपा की नींद उड़ी हुई है, सट्टाबाजार सैलजा की जीत को पक्का मानकर चल रहा है क्योंकि सैलजा के सिर पर  सिरसा की जनता का प्यार भरा हाथ है और हर कोई उनके साथ खड़ा दिखाई दे रहा है।

भाजपा उम्मीदवार डा. अशोक तंवर सिरसा लोकसभा सीट पर नया चेहरा नहीं है, पहले उनकी धमक थी, राहुल गांधी की मित्रताभरा हाथ उनकी पीठ पर था, पूरा कांगे्रस आलाकमान उनकी जीत के लिए लगा हुआ था, तब प्रदेश की कांगे्रस में इतनी गुटबाजी न थी। तंवर ने पहला चुनाव जीता इसके बाद बदनसीबी के ऐसे बादल छाये की फिर कभी जीत नसीब न हुई, घर से बेघर हुए सो अलग। तंवर कांगे्रस के प्रदेशाध्यक्ष बने तो भूपेंद्र सिंह हुड्डा की नजरे ही बदल गई, ऐसा शिकंजा कसा की कांगे्रस छोडक़र अपनी मोर्चा बनाया, बात न बनी तो तृणमूल कांगे्रस में जाकर ठिकाना बना लिया, वहां एक ही उम्मीद थी कि दीदी शायद राज्यसभा का टिकट थमा दे पर ऐसा हो न सका। कुछ और अच्छा सोचकर तंवर आम आदमी के पास चले गए पर आप ने कांगे्रस का हाथ पकड़ लिया जिसे तंवर कभी छोडक़र आए थे, वहां पर न तो राज्यसभा का टिकट मिला और न वो सम्मान जिसे वे चाहते थे। ऐसे में तंवर ने भाजपा का दामन थाम लिया और इसमें उनके मामा पूर्व मुख्यमंत्री मनोहरलाल का बड़ा ही योगदान रहा, पूर्व सीएम कई बार मंच से कह चुके है कि तंवर उनका भांजा है और इन्हीं मामा की बदौलत तंवर को भाजपा की  टिकट भी मिल गई। पर टिकट देने में भाजपा ने जल्दबाजी दिखाई,  तीन लाख से अधिक वोट से जीतने वाली सुनीता दुग्गल का एक  ही झटके में टिकट काट दिया।

किसान आंदोलन तंवर की किस्मत पर डाल सकता है ताला
आंदोलनरत किसानों द्वारा तंवर का जगह जगह पर विरोध करना, काले झंडे दिखाना, विवाद पैदा करना तंवर की राह में सबसे बड़ी बाधा बना हुआ है। तंवर इस विरोध प्रदर्शन के  चलते मतदाताओं तक नहीं पहुंच पा रहे हैं। अगर विरोध करने वाले वाकई किसान है तो तंवर को खामियाजा उठाना ही होगा अगर किसी राजनीतिक दल द्वारा समर्थित है तो तंवर का कुछ भी बुरा होने वाला नहीं है क्योंकि किसानों के आंदोलन से जनता परेशान हो चुकी है ऐसे में जनता किसान के विरोध का शिकार उम्मीदवार के  साथ जा सकती है, क्योंकि ऐलनाबाद उप चुनाव में भाजपा उम्मीदवार गोबिंद कांडा का जिन जिन गांवों में किसानों ने ज्यादा विरोध किया था और काले झंडे दिखाए थे वहां पर उन्हें उम्मीद से ज्यादा वोट मिले। किसानों के आंदोलन से जनता ज्यादा परेशान हुई है इस आंदोलन को अभी तक जनसमर्थन नहीं मिला है। किसान आंदोलन पंजाब और पंजाब के साथ लगते हरियाणा के  कुछ जिलों तक ही सीमित है, वहां पर मतदान प्रभावित हो सकता है।

बार-बार दल बदलना तंवर के लिए बन सकता है गले की फांस
अशोक तंवर कांगे्रस में एक प्रभावशाली युवा नेता थे, एक बार को प्रदेश का दलित समाज उन्हें भावी सीएम के रूप में देखने लगा था, उनकी कांगेस हाईकमान में अच्छी पैठ भी थी पर जोश में होश खो बैठे, इसके  बाद कभी उसके घर कभी इसके घर। बार बार दल बदलने पर लोगों का भरोसा उन पर कम होता चला गया। आज भाजपा में है, कल को जीत हासिल न हुई तो उनके किसी और दल में जाने की संभावनाओं से इंकार नहीं किया जा सकता। तंवर जनता में अपनी विश्वसनीयता बरकरार नहीं रख पाए जिसका खामियाजा इस चुनाव में उन्हें उठाना पड़ सकता है।

कांडा, रणजीत और कैप्टन मीनू तंवर के लिए कितने मददगार होंगे?
एक समय था जब कांडा बंधुओं का अशोक तंवर के साथ 36 का आंकडा था और दुश्मनी ऐसी की दोनों  एक दूसरे पर वार का कोई मौका नहीं छोड़ते थे। सिरसा में अग्रवाल सेवासदन के शिलान्यास अवसर  से शुरू हुई अदावत का रतिया में लोगों ने देखी। सिरसा विधानसभा चुनाव में तंवर इनेलो समर्थित उम्मीदवार की मदद करने पहुंचे, ऐलनाबाद उप चुनाव में तंवर ने खुलकर इनेलो उम्मीदवार के पक्ष में प्रचार किया,यानि तंवर कांडा बंधुओं को किसी भी तरह से छोडऩे के  पक्ष में नहीं थे। खैर राजनीति कई रंग बदलती है, पूर्व सीएम मनोहरलान ने कांडा बंधुओं और तंवर के हाथ मिलवाए, उन्हें गले मिलाया पर वक्त ही बताएगा कि कांडा बंधुओं का मन भी क्या तंवर से मिला है। क्योंकि अदावत की चिंगारी बहुत मुश्किल से बुझा करती है। ऐसे ही स्थित चौ.रणजीत सिंह की है, उनका आरोप हुआ करता था कि तंवर की वजह से उनकी रानियां से कांगे्रस की टिकट कटी थी और इसके चलते उन्हें कांगे्रस छोडऩी पडी थी, कहने को रणजीत सिंह तंवर के साथ होने का दावा करते है पर रणजीत सिंह के समर्थन कहां वोट डालते है यह तो बाद में पता चलेगा। हां कैप्टन मीनू अशोक तंवर के लिए संजीवनी साबित हो सकते है, उनका तंवर के साथ कोई बैर नहीं है, उन्हें हाईकमान का जैसा आदेश मिलेगा वे वैसा ही करेंगे।

अब बार बार जुबां पर आ रहा है सुनीता दुग्गल का दर्द
आईआरएस की नौकरी से वीआरएस लेकर राजनीति के मैदान में उतरी सुनीता दुग्गल के लिए राजनीति में इतनी जल्दी जोर का झटका लगेगा दुग्गल ने सोचा न था। सिरसा लोकसभा सीट पर पहली बार कमल का फूल खिलाने वाली दुग्गल जिनके नाम सिरसा की सबसे बड़ी जीत दर्ज थी उनका टिकट काटकर भाजपा ने साफ संदेश दिया कि जनता से दूर रहने का खामियाजा तो उन्हें भुगतना ही होगा। दुग्गल ने ये भी कभी न सोचा था कि उनकी टिकट काटकर तंवर को दिया जाएगा जिन्हें उन्होंने करारी शिकस्त दी थी।  अब दुग्गल की जुबां पर दर्द आने लगा है, नौकरी भी गई और टिकट भी कट गई। दुग्गल के समर्थकों में निराशा है और घोर निराशा है, खास कर दुग्गल जिस वर्ग से आती है वह वर्ग स्वयं को ठगा हुआ महसूस करता है, उनके समर्थक तंवर के साथ जाएंगे या नहीं यह तो भविष्य के गर्भ में है। पर इस नाराजगी का तंवर को खामियाजा उठाना पड़ सकता है। दुग्गल वैसे तो भाजपा की कर्मठ कार्यकर्ता, सशक्त नेता है, राष्ट्रीय स्तर पर वे अपनी पहचान बना चुकी है। वे अपने समर्थकों को मनाने में सफल रही  तो तंवर को भला हो सकता है।

इनेलो ने वाल्मीकि उम्मीदवार उतार कर दिया जोर का झटका
पिछले दिनों वाल्मीकि समाज ने बैठककर इस बात पर नाराजगी जताई थी हर राजनीतिक दल वोट के लिए उनकी वोट का इस्तेमाल करता है पर जब बात सीट देेने की आती है तो हर दल उनकी ओर से आंखें बंद कर लेता है, शायद इसे इनेलो ने गंंभीरता से लिया और सिरसा सीट से उम्मीदवार मैदान में उतारा, भाजपा जिस वोट बैंक पर आंख लगाए बैठी थी उसका बड़ा हिस्सा इनेलो की ओर गया तो भाजपा को दोहरी मार झेलनी होगी। जेजेपी भाजपा को हराने के लिए पूरा जोर लगाएगी, राजनीति की पिच पर वह कोई भी शॉट लगा सकती है।  

सत्ता विरोधी लहर का भी करना होगा सामना
लोकसभा चुनाव भाजपा केवल और केवल मोदी के बलबूते पर लड़ रही है, विदेशों में भारत का सम्मान बढ़ा है, भाजपा ने मोदी की बदौलत श्रीराममंदिर बनाया है तो जम्मू कश्मीर से अनुच्छेद 370 को हटाया है, प्रदेश में भाजपा सरकार लोगों की उम्मीद पर खरी नहीं उतरी है, बेरोजगारी, भ्रष्टाचार, मंहगाई, की मार जनता ढेल रही है, भाजपा-जजपा गठबंधन के रहते कोई कुछ सुनने को तैयार न था,अधिकारी कार्यकर्ताओं की भी नहंी सुनते थे जनता तो दूर की बात। सरकार जनता के साथ पोर्टल-पोर्टल का खेल खेलती रही है और खेल रही है जिससे जनता एक कार्यालय से दूसरे कार्यालय के चक्कर काट रही है। तंवर को सत्ता विरोधी लहर का सामना भी करना होगा।