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हुनर से जिंदगी को शाद कर लिया ऐसे ही अपने को आबाद कर लिया...

 
हुनर से जिंदगी को शाद कर लिया ऐसे ही अपने को आबाद कर लिया...
सिरसा, 30 अगस्त। सिरसा जिले से ताल्लुक रखने वाले ख्यात सिने कलाकार संजीव शाद ने जिंदगी की आधी सदी बिता दी है लेकिन उनके चेहरे पर एक ‘शाद’ जिंदगी का सुकून साफ दिखाई देता है। अपने फन से दुनिया को दीवाना बना लेने वाले संजीव शाद बेशक अपनी पढ़ाई के हिसाब से आज एक शारीरिक शिक्षा के प्रशिक्षक होते लेकिन नियति ने उनके लिए कुछ और गढ़ रखा था। मंच के इस उम्दा और उम्मीद भरे कलाकार ने मिथकों को तोड़ते हुए अपनी कला के जरिए बहुत शानदार मुकाम हासिल किया है। 
दरअसल ‘शाद’ का अर्थ गुलजार होता है और संजीव ने अपने नाम के साथ शाद का तखल्लुस इसीलिए लगाया कि वास्तव में वे फकीराना जिंदगी को बड़े गुलजार ढंग से जीए हैं। शुरूआत में हर युवा की तरह सरकारी नौकरी पाने की चाहत थी लेकिन मंच से जुड़ाव और लगाव ने इस धारा को ही मोड़ दिया। अपने जीवन में संजीव शाद ने कच्ची मिट्टी को तराशकर सुंदर घटक का रूप कब दे दिया, पता ही न चला। इसीलिए शायद शायर ने लिखा कि, उसने कागज की कई कश्तियां पानी उतार दी, और ये कह के बहा दी कि समंदर में मिलेंगे। 
नाटक, कला, नुक्कड़ नाटक, फिल्म, गीत, गज़ल और न जाने कौन सी ऐसी विधा रही जिसमें शाद ने हाथ नहीं आजमाया। हर मंच को उन्होंने न केवल जीया बल्कि यूं कहें कि लूट लिया तो अतिश्योक्ति न होगी। सामाजिक मूल्यों को लेकर उनके किरदार ने सदैव लोगों को आकर्षित किया। सैंकड़ों उदीयमान कलाकारों को उन्होंने मंच प्रदान किया। अपनी कोरियोग्राफी से राज्य स्तर पर प्रथम स्थान प्राप्त किया बल्कि हरियाणा, पंजाब, राजस्थान समेत पूरे देश के अनेक राज्यों में वे अपनी कला के सशक्त हस्ताक्षर छोड़ते चले गए।  
सिरसा में 26 जनवरी 2003 में 700 बच्चों के साथ देशभक्ति कोरियोग्राफी आज भी लोगों के जहन में है। डबवाली कस्बे में 22 जुलाई 1972 को जन्मे संजीव नॉर्थ जोन कल्चर सेंटर पटियाला से जुड़े हुए हैं। उन्होंने शहीद, फकीरा, सर्कस, हम सब एक हैं जैसी कोरियोग्राफी में जीवंत अभिनय से छाप छोड़ी वहीं आतंकवाद के दौर पर बनी फिल्म ब्लड स्ट्रीट में भी अभिनय किया। इसके अलावा फिल्म नैन प्रीतो दे व धारावाहिक सरनावां में भी उन्होंने किरदार निभाया। पुलिस विभाग के कार्यक्रम:पहल, द टर्निंग प्वाइंट में उन्होंने नशे के खिलाफ एक अभियान की तरह काम किया। नैतिक शिक्षा के कार्यक्रम ‘बच्चा लोग’ में भी वे काम कर चुके हैं। यू ट्यूब पर जरा सी बात के जरिए वे लोगों के रूबरू होते हैं। 
संजीव का मानना है कि हमारे देश की खूबसूरती यूनिटी इन डायवर्सिटी से है। हम जो भी हैं हमारी जड़ भारत ही है। हमारा देश एकता का संदेश देने वाला है। आजकल इंटरनेट के जमाने को लेकर उनका कहना है कि लाइव परफॉर्मेंस का जो आनंद है, वह इंटरनेट पर नहीं मिल सकता। सरस मेला, लाल किले से भारत पर्व और उज्जैन के महाकुंभ में अपनी प्रस्तुतियां दे चुके संजीव शाद खुद को मिलने वाले मानदेय से संतुष्ट हैं बल्कि ये कहते हैं कि उनके लिए अच्छे श्रोता और दर्शक सबसे बड़ा मानदेय हैं। अगर कार्यक्रम का कंटेंंट अच्छा हो तो पैसा मायने नहीं करता। 
संजीव शाद कहते हैं कि खेलों की तरह ही म्यूजिक व थिएटर भी सब्जेक्ट की तरह पढ़ाए जाने चाहिए ताकि विद्यार्थी इसमें रुचि लेकर पढ़ें। कला के जरिए समाज में जागृति आए तो कला सार्थक हो जाएगी। समाज की निगाह में सफलता के मायने अलग हैं लेकिन खुशहाली से रोटी मिले, इससे ज्यादा अमीरी कुछ हो नहीं सकती। एक कलाकार का दर्शन अलग चीज होता है वरना चांद में कलाकार क्या, आशिक क्या और वैज्ञानिक क्या ढूंढता है। ख्याल जिंदा रहना जरूरी है।