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कैसे भरा जाएगा सिरसा जिला में कांगे्रस में आया खालीपन ?

कांगे्रस के दबंग नेता या तो दुनिया छोड़ गए या पार्टी को कह गए अलविदा 
 
कैसे भरा जाएगा सिरसा जिला में कांगे्रस में आया खालीपन ?​​​​​​​ 
सिरसा, 19 फरवरी। सिरसा जिला कभी कांगे्रस का गढ़ हुआ करता था पर आज कांगे्रस बिखरी हुई नजर आ रही है। जिला की पांच में से दो  विधानसभा सीटे कांगे्रस के पास है बावजूद इसके कांगे्रस गुटबाजी के चलते पतन की ओर जा रही है। जो बड़े नेता कांगे्रस को कंधे पर उठाए रहते थे आज स्वर्गवासी हो गए, युवा कार्यकर्ता कांगे्रस का बोझ़ उठाने को तैयार है पर गुटबाजी में सब एक ही स्थान पर खड़े होकर दौड़ लगा रहे हैं जहां पर नतीजा शून्य ही रहा। कांगे्रस की गुटबाजी का दूसरे राजनीतिक दल लाभ उठा रहे है। कांगे्रस के बीच जो खालीपन आया है उसे भरने के लिए कगे्रस की नजर दूसरे राजनीतिक दलों के कद्दावर नेताओं पर लगी हुई है। वो बात अगल है राहुल गांधी की भारत जोडों यात्रा का हरियाणा में ठहराव कांगे्रस को संजीवनी दे गई, युवा कार्यकर्ताओं में नए जोश का संचार हुआ है और कांगे्रस सक्रिय हुई है।
प्रदेश की राजनीति में सिरसा का अहम स्थान है, सिरसा के बिना प्रदेश की राजनीति अधूरी है। सिरसा कभी  कांगे्रस का गढ़ रहाद्व चौ.देवीलाल के कांग्रेस छोडऩे के बाद क्षेत्रीय राजनीतिक दल का प्रभाव बना रहा। सिरसा में लक्ष्मणदास अरोडा़, चौ जगदीश  नेहरा, होशियारी लाल शर्मा वे कद्दावर नेता थे जिन्होंने अपने दम पर कांगे्रस को जिंदा रखा। एलडी अरोड़ा ने करीब 40 साल तक राज किया, अधिकतर समय कांगे्रस के साथ रहे, कांंगे्रस को जिंदा रखने में उनका अहम योगदान रहा। उन्होंने अपनी राजनीति विरासत अपनी पुत्री सुनीता सेतिया को सौंपी।  किसी का राजनीतिक किला कैसे ध्वस्त किया जाता है यह जादुगरी भाजपा ही जानती है, सुनीता सेतिया को भाजपा में लाकर चुनाव लडाया मगर वे हार गई। बाद में उनके पुत्र गोकुल सेतिया ने इनेलो के सहयोग से आजाद उम्मीदवार के रूप में चुनाव लड़ा पर मामूली अंतर से चुनाव हार गए। एलडी अरोड़ा के परिजन उनकी विरासत का लाभ नहीं उठा पाए।
चौ.जगदीश नेहरा राजनीति के मझे हुए खिलाड़ी रहे। कांगे्रस के रहते हुए उन्होंने कांगे्रस को ऊंचाइयों तक पहुंचाया। वे कांगे्रस के शासनकाल में मंत्री रहे पर वे भी कांगे्रस की गुटबाजी से अछूते नहीं रहे। एक गुट उनकी राजनीतिक जड़े काटने में लगा रहा। दो गुटों के बीच वे पिसते रहे आखिर में उन्होंने कांगे्रस का अलविदा कहकर कमल का फूल सीने से लगा लिया जहां पर वे सात साल रहे पर भाजपा उन्हें वह सम्मान न दे सकी जिसके वे हकदार थे। भाजपा में घुटन बड़ी तो वे भाजपा को छोड़कर कांगे्रस में आ गए  यानि उन्होंनें घर वापसी की। आज उनकी वजह से कांगे्रस में शून्यता आ गई है। इसी प्रकार पंडित होशियारी लाल शर्मा ने कांगे्रस को जिंदा रखा। विपक्ष के तमाम प्रलोभनों को ठोकर मारकर शर्मा सदैव कांगे्रसी ही रहे। जो उनका पुत्र राजकुमार शर्मा और पौत्र मोहित शर्मा कांगे्रस को संजीवनी देने में लगे हुए है। दोनों पिता पुत्र यानि राजू शर्मा और मोहित शर्मा हुड्डा गुट का पल्लू थामे हुए है। दोनों ही टिकट के दावेदार है।
कांगे्रस को प्रदेशाध्यक्ष के रूप में डा.अशोक तंवर मिले, वे सिरसा से सांसद रहे। कांगे्रस को खड़ा करने में उन्होंने लोगों को एक मंच पर लाने का प्रयास किया पर दूसरे गुट यानि हुड्डा ने ऐसा चली कि अशोक तंवर कांगे्रस ही छोड़कर चले गए। पूर्व केंद्रीय मंत्री सैलजा का भी सिरसा से नाता रहा है, पहला चुनाव सिरसा से जीता और कम आयु में केंद्रीय मंत्री बनी। उन्होंने कांग्रेस को सिरसा में मजबूती से खड़ा किया पर वे भी गुटबाजी का शिकार हुई और सिरसा छोड़कर अंबाला चली  गई। कांग्रेस में सैलजा का कद बहुत ऊंचा है पर उन्हें उठने का मौका नहीं दिया जा जा रहा है, सिरसा में उनके समर्थकों की संख्या कम नहीं हैं। चौ.रणजीत सिंह ने भी कांगे्रस को सिरसा जिला में जिंदा रखने में अहम भूमिका निभाई पर कांगे्रस का उनका उपयोग केवल वोट बैंक हासिल करने में ही लगी रही, लोगों को यह बताकर कि चौ.देवीलाल का बेटा कांगे्रस में है वोट हासिल की जाती पर उन्हें कभी जीतने न दिया, एक अदद जीत के लिए रणजीत सिंह को करीब 31 साल तक इंतजार करना पड़ा था, यह जीत भी उन्हें तब मिली जब उन्होंने कांगे्रस को हाथ दिखाकर आजाद उम्मीदवार के रूप में चुनाव लड़ा। सिरसा जिला में रणजीत सिंह का आज भी अपना वोट बैंक है वे किसी भी विधानसभा क्षेत्र में अपने समर्थन से किसी भी उम्मीदवार को जिता सकते हैं।  
ओमप्रकाश केहरवाला भी जिला में कांगे्रस का संजीवनी देने वालो में शामिल है। उन्होंने लोकसभा चुनाव भी लड़ा मगर गुटबाजी ने उन्हें आगे नहंी बढऩे दिया। उनके पुत्र शीशपाल केहरवाला ने भी कांगे्रस में रहकर राजनीति करने का संकल्प लिया और पहले ही चुनाव में अच्छे मत हासिल कर विधानसभा में पहुंचे। राजनीति विरासत में मिली, पार्टी में रहकर अनुभव हासिल किया, गुटबाजी से दूर रहकर संगठन को मजबूत करने में लगे हुए है। नवीन केडिया शुरू से कांगे्रसी है और एलडी अरोड़ा के साथ रहकर राजनीति  की एबीसीडी सीखी। कांगे्रस ने उन्हें चुनाव लडऩे का मौका दिया, गुटबाजी हावी रहे और कांगे्रस का परंपरागत वोट भी नहीं मिल सका पर जिस मकसद से उन्हें चुनाव में उतारा गया था वह कांगे्रस ने हासिल किया। एक वैश्य समाज के उम्मीदवार को हराने में उनका योगदान रहा। कांगे्रस को जीवित रखने में आज भी लगे हुए है। सिरसा विधानसभा क्षेत्र में तो कांगे्रस का झंडा उठाने वाले कई कद्दावार नेता है पर रानियां में कोई नहीं है।
ऐलनाबाद विधानसभा क्षेत्र में कांगे्रस के  पास चौ.भरत सिंह बैनीवाल जैसा कद्दावर नेता है, गुटबाजी में उनकी टिकट कई बार काटी गई, पहला ही चुनाव जीतकर विधानसभा पहुंच गए थे। कांगेस को संजीवनी देने में उनकी अहम भूमिका है पर गुटबाजी में कांगे्रस उनका लाभ नहीं उठा पा रही है। डबवाली में डा.केवी सिंह कांगे्रस का झंडा बुलंद रखे हुए है हालांकि उन्हें चार चुनाव में हार का सामना करना पड़ा पर आखिर में वे पुत्र अमित सिहाग को विधानसभा में पहुंचाने में कामयाब रहे। कांगे्रस का उनकी अनदेखी भारी पड़ सकती है अगर कांगे्रस को सिरसा में कुछ हासिल करना है तो उसे गुटबाजी पर लगाम लगानी होगी।

कांग्रेस की कई नेताओं पर है नजर
क ांगे्रस अपनी खोई हुई भूमि हासिल करने के लिए उन नेताओं पर नजर लगाए हुए है जो कभी कांगे्रसी थे या कांगे्रस के सहयोगी थे। कांगे्रस की नजर इस समय मौजूदा विधायक गोपाल कांडा पर भी है जो हलोपा के सुप्रीमो हैं। गोपाल कांडा हुड्डा मंत्रिमंडल में गृहराज्यमंंत्री रहे और वे कांगे्रस की नीतियों से अवगत भी है, उन्हें कांगे्रस से तालमेल बनाने में देर नहीं लगेगी। गोपाल कांडा कांगे्रस के लिए तिरूप का पत्ता साबित हो सकता है क्योंकि गोपाल की वजह से वैश्य वोट कांगे्रस की ओर जा सकता है। कांगे्रस की दूसरी नजर गोकुल सेतिया पर लगी हुई है, गोकुल सेतिया के नाना लक्ष्णम दास कांगेे्रसी थे कांगे्रस की नीतियों से सेतिया परिवार भलीभांति परिचित है, एलडी अरोड़ा का अपना अलग ही वोट बैंक रहा जो इस समय गोकुल के साथ है पर गोकुल कांगे्रस में जाएंगे ऐसा कम ही दिख रहा है वे आजाद उम्मीदवार के तौर पर इनेलो के समर्थन से फिर चुनावी मैदान में उतरेंगे। उधर वीरभान मेहता पर भी कांगे्रस की नजर है, मेहता पुराने कांगे्रसी रहे है, गुटबाजी के चलते कांगे्रस छोड़कर हजकां में चले गए थे बाद में वे शिरोमणि आकली दल बादल में चले गए है और आज भी नहीं है। वीरभान के बजाए कांगे्रस उनके पुत्र राजन मेहता पर हाथ डाल सकती है।

सिरसा में सैलजा और हुड्डा गुट का है असर
सिरसा जिला में कांगे्रस दो गुटों में बंटी हुई है,हर कांगे्रस इस बात को अच्छी तरह से जानता है पर किसी के सामने मानता नहीं है। मंच से एकजुटता के गीत गाते है पर मंच से नीचे आते ही पारिवारिक शब्दावली में एक दूसरे की शान में गीत गाते हैं। जिला में कांगे्रस सैलजा और हुड्डा गुट में बंटी हुई है जब सैलजा प्रदेशाध्यक्ष थी तो सिरसा कांगे्रस के धुरंधर सैलजा के साथ चले गए जैसे ही सैलजा पद से हटी तो नेताओं ने जय हुड्डा जय हुड्डा करना शुरू कर दिया। कुछ कांगे्रस नेता ऐसे है जो दो नाव में सवार होकर राजनीतिक मुकाम हासिल करना चाहते हैं। सैलजा के साथ जो लोग लगे थे वे आज हुड्डा के साथ है। कुछ ऐसे भी नेता है जो जिसके साथ रहे थे आज भी उनके साथ ही खड़े हैं। किरण चौधरी के भी कुछ समर्थक सिरसा में है पर उनकी संख्या ज्यादा नहीं है। चौ.बंसीलाल और चौ.सुरेंद्र सिंह के ज्यादातर समर्थक राजनीतिक दल बदल चुके हैं। चौ.रणदीप सिंह सुरजेवाला का जिला में कोई असर नहीं हैं।