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हरियाणा की राजनीति में परिवारवाद का बोलबाला

हर नेता अपने जिगर के टुकड़ों के लिए राजनीति में स्थान बनाने के लिए प्रयासरत 
 
हरियाणा की राजनीति में परिवारवाद का बोलबाला
चंडीगढ़, 16 फरवरी। जब तक राजनीति है तब तक उसमें परिवारवाद जिंदा रहेगा क्योंकि इतिहास गवाह है कि राजनीति में परिवारवाद का हमेशा से बोलबाला रहा है। हरियाणा के प्रसिद्ध  तीन लालों चौ. देवीलाल, चौ.बंसीलाल और चौ.भजनलाल के परिवार के संग-संग कई राजनीतिक घराने रहे हैं। ये राजनीतिक घराने आज भी हरियाणा की राजननीति में अपना खास वर्चस्व रखते हैं। इनकी राह पर ही चलते हुए हरियाणा के कई दिग्गज नेताओं ने अपनी राजनीतिक विरासत संभालने के लिए पुत्रों-पुत्रियों और रिश्तेदारों को आगे करना शुरू कर दिया है, कुछ अपने परिजनों को राजनीति में स्थापित कर चुके हैं। परिवारवाद की राजनीति के चलते अच्छे, ईमानदार और निष्ठावान नेताओं को राजनीति में पैर जमाने का मौका नहीं मिलता, जो लोग परिवारवाद की राजनीति को चुनौती देते हुए अगर राह पर चले वे मंजिल तक भी पहुंचे हैं। आज भी कई परिवार राजनीति की भंवर में हाथ-पांव मार रहे हंै।
हरियाणा की राजनीति में अगर किसी ने दबंग राजनीति की है तो एक ही नाम सामने आता है वह है चौ.देवीलाल। वे जिस भी राजनीतिक दल में रहे या अपना अलग राजनीतिक दल बनाकर रहे राज किया। उन्होंने अपनी राजनीतिक विरासत चौ.ओमप्रकाश चौटाला को सौंपी। इसके साथ ही उनके दूसरे पुत्रों चौ.रणजीत सिंह और प्रताप सिंह चौटाला ने भी राजनीति में अच्छा मुकाम हासिल किया। चौ. रणजीत सिंह परिवार से अलग होकर राजनीति कर रहे हैं और मौजूदा समय में भाजपा सरकार में बिजली मंत्री है। चौ. ओमप्रकाश चौटाला के पुत्र अजय सिंह चौटाला, अभय सिंह चौटाला ने राजनीतिक विरासत  बाखूब संभाली और आज भी अलग अलग संभाल रहे है। अजय सिंह के पुत्र दुष्यंत चौटाला डिप्टी सीएम है पत्नी विधायक है, पुत्र दिग्विजय सिंह के लिए राजनीतिक दरवाजा खोजा जा रहा है। अभय सिंह चौटाला की पत्नी कांता चौटाला, पुत्र कर्ण चौटाला और पुत्र अर्जुन चौटाला सब राजनीति में कदम रख चुके हैं। चौ.रणजीत सिंह चौटाला अपने पौत्र को राजनीति में लाने की तैयारी कर चुकी है। रानियां चुनाव में उनके पौत्र की सभाओं को लोग आज भी याद करते हैं।
उधर चौ.बंसीलाल का परिवार भी राजनीति में अपना अहम स्थान रखता है, परिवार के लोगों ने अलग अलग राजनीतिक दलों में रहकर भी अच्छा नाम कमाया। बंसीलाल के पुत्र सुरेंद्र सिंह मंत्री रहे, सुरेंद्र सिंह की पत्नी दिल्ली में भी विधायक रही और आज हरियाणा में शानदार ढंग से राजनीति कर रही है, कांगे्रस में दबंग नेता के रूप में उनकी गिनती है, उनके पुत्री श्रुति चौधरी सांसद रह चुकी है पर किरण चौधरी उनके लिए मजबूत राजनीतिक जमीन तैयार करने में लगी हुई है। चौ.बंसीलाल के पुत्र रणवीर सिंह महेंंद्रा ने भी राजनीति की, बंसीलाल के दामाद भी राजनीति में अच्छी पकड़ बनाए हुए हैं। इसी प्रकार चौ.भजन लाल का परिवार भी राजनीति में अपना अहम स्थान रखता है, चौ.देवीलाल को पटकी देने के लिए उन्हें याद किया जाता है। चौ.भजन लाल के पुत्र कुलदीप बिश्रोई सांसद रहे, बड़े पुत्र चंद्र मोहन डिप्टी सीएम रहे, पत्नी जस्मादेवी विधायक रही। कुलदीप बिश्रोई की पत्नी रेणुका बिश्रोई विधायक रही और अब राजनीतिक विरासत कुलदीप सिंह के पुत्र भव्य बिश्रोई को सौंप दी गई है जो आदमपुर से विधायक है। कुलदीप बिश्रोई के कांगे्रस छोड़कर भाजपा में जाने का सबसे बडा लाभ भाजपा को और नुकसान कांगे्रस को हुआ है। राजस्थान चुनाव में तो कांगे्रस को कुलदीप बिश्रोई की वजह से काफी घाटा उठाना होगा।
उधर हुड्डा परिवार भी हरियाणा की राजनीति में अपना अहम योगदान रखता है। हुड्डा के बिना प्रदेश की राजनीति हिचकोले खाली हुई दिखती है। स्वतंत्रता सेनानी  चौ.रणवीर सिंह हुड्डा ने राजनीतिक विरासत पुत्र भूपेंद्र सिंह हुड्डा को सौंपी। उन्होंने तीनों लाल के बीच ऐसी राजनीति की कि सारे चित हो गए और दस साल तक प्रदेश में राज किया। उनके पुत्र दीपेंद्र हुड्डा पहले सांसद रहे और अब राज्यसभा के सदस्य है। हरियाणा कांगे्रस भूपेंद्र सिंह हुड्डा की उंगलियों पर नाचती है। भूपेंद्र सिंह हुड्डा अब दीपेंद्र सिंह को सीएम की कुर्सी पर देखना चाहते है और उनकी राजनीति भी इसी दिशा में है। उनकी भागदौड़ दीपेंद्र से शुरू होती है और दीपेंद्र पर आकर ही खत्म होती है।
प्रदेश का कोई बड़ा नेता ऐसा नहीं बचा, जो अपने जिगर के टुकड़ों के लिए राजनीति में स्थान बनाने के लिए प्रयासरत नहीं है। अब इस फेहरिस्त में पूर्व केंद्रीय इस्पात मंत्री बीरेंद्र सिंह भी शामिल है। पहले पत्नी प्रेमलता को विधानसभा तक पहुंचाया फिर आईएएस  बेटे बृजेंद्र सिंह को नौकरी छुडवाकर हिसार से सांसद बनवाया।  जाटलैंड रोहतक के गढ़ी सांपला में सफल रैली करने के बाद  चौ. बीरेंद्र सिंह का राजनीतिक कद बढ़ा। अब उनके पुत्र का राजनीतिक भविष्य अधर में दिख रहा है, भाजपा इस बार उन्हें टिकट  देना नहीं चाहती, गठबंधन में सीट जजपा के कोटे में गई तो भी बृजेंद्र सिंह का पत्ता साफ हो जाएगा। भाजपा इस बार कुलदीप बिश्रोई को टिकट देना चाहेगी। ऐसे में वीरेंद्र सिंह अलग से राजनीतिक दल बनाकर पुत्र के  लिए राजनीतिक जमीन तैयार कर सकते हैं। पूर्व सिंचाई मंत्री कैप्टन अजय सिंह यादव अपने बेटे चिरंजीव राव को राजनीति में स्थापित कर चुके हैं, पहले युवा कांग्रेस के प्रदेशाध्यक्ष रहे और मौजूदा समय में वे विधायक है।  हरियाणा कांग्रेस के पूर्व प्रदेशाध्यक्ष  और आप नेता अशोक तंवर  अपनी पत्नी अवंतिका माकन तंवर को भी राजनीति में सक्रिय कर रहे हैं।
केंद्रीय मंत्री राव इंद्रजीत सिंह सही ढंग से राजनीतिक विरासत को संभाले हुए है, अहीरवाल के दबंग नेता है उनका एक दर्जन सेे अधिक विधानसभा की सीटों पर प्रभाव है, वे भाजपा के काफी मुखर भी रहे है पर भाजपा उनके सामने कुछ बोल नहीं सकती। राव इंद्रजीत अपनी बेटी आरती राव को राजनीति में उतार चुके है और मौका मिलते ही विधानसभा पहुंचाने में सफल भी रहेंगे।  केंद्रीय राज्य मंत्री कृष्णपाल गुर्जर अपने बेटे देवेंद्र चौधरी के लिए चुनाव की तैयारी कर रहे हैं। पूर्व मंत्री संपत सिंह अपने पुत्र गौरव संपत को राजनीति में स्थापित करना चाहते हैं। पूर्व मंत्री निर्मल सिंह अपनी पुत्री चित्रा को राजनीतिक विरासत सौंप रहे हैं। पूर्व केंद्रीय मंत्री विनोद शर्मा अपने पुत्र कार्तिकेय शर्मा को राज्यसभा में पहुंचा चुके हैं।  हर दल में पूर्व मंत्री और पूर्व विधायक अपने रिश्तेदारों को आगे बढ़ाने के लिए पैरवी करने का कोई मौका हाथ से नहीं जाने दे रहे हैं। ऐसे में हरियाणा की राजनीति में परिवारवाद का शिकंजा कम होने के आसार नहीं हैं।