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सिरसा में कांगे्रस के लिए सदैव घातक रही है गुटबाजी

गुटबाजी के चलते सैलजा ने सिरसा छोडक़र अंबाला को बनाया था अपना कार्यक्षेत्र 
 
सिरसा में कांगे्रस के लिए सदैव घातक रही है गुटबाजी  

सिरसा, 27 दिसंबर। जब देश में कांगे्रस राज था तब सिरसा में भी समय-समय पर कांगे्रस का राज रहा पर जब चो.देवीलाल ने कांगे्रस का दामन छोड़ा तो सिरसा में कांगे्रस का एक छत्र राज नहीं रहा। बाद में चौ.देवीलाल के गढ़ में कांगे्रस समय-समय पर सेंध लगाती रही पर जब भी कांगे्रस छोटा या बड़ा चुनाव हारी उसकी हार में कांगे्रस की गुटबाजी हावी रही और इतनी रही कि वरिष्ठ नेताओं को सिरसा छोडक़र या पार्टी छोडक़र जाना पड़ा। पर अब कांगे्रस के लिए आम आदमी पार्टी सबसे बड़ी मुसिबत बनकर सामने आई है जो कांगे्रस के वोट को चट करने में लगी हुई है। आजक ल कांगे्रस की गुटबाजी चरम पर है प्रदेश कांगे्रस खेमों में बंटी हुई है, राहुल गांधी की भारत जोड़ो यात्रा में हरियाणा के नेता एकजुटता का दिखावा कर रहे है, गुटबाजी का परिणाम को आने वाले चुनाव में साफ दिखाई देगा। राहुल गांधी को सबसे पहले पहले पार्टी जोडों यानि पार्टी को संगठित करने की ओर भी ध्यान देना चाहिए था। 
    हरियाणा कांगे्रस की प्रदेश में राजनीति गुटों में रही है जिसका साफ असर सिरसा में भी दिखाई देता रहा है। शुरूआत में चौ.देवीलाल ने कांगे्रस को पोषित किया पर कांगे्रस उन्हें वह सम्मान ने सकी जिसके वे हकदार थे। कांगे्रस का एकगुट देवीलाल की काट में लगा रहा। चौ: भजन लाल ने कांगे्रस की कमान संभाली तो उनके सम्मुख चौ.भूपेंद्र सिंह हुड्डा आकर खड़े हो गए। हुड्डा के सामने डा. अशोक तंवर को कांगे्रस में कद बढ़ाया गया तो हुड्डा को रास नहीं आया, फिर कमान सैलजा को सौंपी तो वह भी हुड्डा को रास नहीं आई और उदयभान को कमान सौंप दी। भले ही उदयभान अध्यक्ष बन गए पर कांगे्रस को एकजुट नहंी कर पाए बल्कि कांगे्रस आज चार पांच खेमों में बंंटी हुई है। सैलजा गुट, हुड्डा गुट, किरण चौधरी गुट, रणदीप सुरजेवाला गुट, कैप्टन अजय यादव गुट न जाने कौन कौन से गुट पैदा हो रहे है। जब एकता न हो तो कमजोर से कमजोर पड़ोसी भी गाली देकर निकलता है आज कांगे्रस के हालात कुछ ऐसे ही होते जा रहे हैं। 
    कांगे्रस की गुटबाजी से सिरसा जिला भी प्रभावित रहा है। यहां पर कांगे्रस हुड्डा गुट और सैलजा गुट में बंटी हुई है पर कु छ ऐसी भी कांगे्रस नेता है जो दोनों ही नावों में सवार है जिस गुट में फायदा मिलता दिखता है उसी ओर भाग जाते हैं। सिरसा लोकसभा क्षेत्र से चौ.दलबीर सिंह कांगे्रस से चार बार सांसद रहे। उनकी पुत्री सैलजा जो आइएएस बनना बनना चाहती थी उन्हें राजनीतिक विरासत सौंपदी गई और सिरसा से चुनाव लड़ी, जीती और केंद्र में मंत्री बनी। सबसे कम आयु में केंद्रीय मंत्री बनने का रिकार्ड उनके नाम था। उन्होंने कांग्रेस को अपने पसीने से सींचा, कांगे्रस को एक जुट किया पर उनका विरोध गुट उनके पैर उखाडऩे में लगा रहा। सैलजा दो बार सिरसा से सांसद चुनी गई, बाद में गुटबाजी से आहत होकर  अंबाला चली गई और वहां से दो बार सांसद चुनी गई। बाद में सिरसा सीट पर इनेलो का ही कब्जा रहा। बाद में कांगे्रस ने युवा कांगे्रस के राष्ट्रीय अध्यक्ष एवं राहुल गांधी के सखा डा.अशोक तंवर को पैराशूट उम्मीदवार के रूप में सिरसा में उतारा गया और उन्होंने जीत भी हासिल की। कांगे्रस में एक दलित नेता के रूप में वे चढा़ई चढ़ते गए और उन्हें सीएम कंडीटेट कहा जाने लगा बस यही से हुड्डा गुट पीछे पड़ गया और ऐसा पड़ा कि तंवर से प्रदेशाध्यक्ष की कुर्सी छीन ली बाद में तंवर कांगे्रस को बॉय बॉय कर गए।

तंवर के जाने से कांगे्रस को हुआ बड़ा नुकसान
अशोक तंवर ने कांगे्रस में रहते हुए सिरसा में कांगे्रस को मजबूती प्रदान की और प्रदेशाध्यक्ष बनकर कांगे्रस को संगठित करने का कार्य किया पर उन्हें संगठन की मजबूती के लिए काम नहीं करने दिया गया। अशोक तंवर ने कांगे्रस से अलग होकर पहले अपनी पार्टी बनाई और बाद में तृणमूल कांगे्रस में चले गए, वहां पर उन्हें वह सम्मान नहीं मिला जिसके वे हकदार थे। बाद में वे आम आदमी पार्टी में चले गए। इसके साथ ही उनके साथी कुलदीप सिंह गदराना भी आप में चले गए। उनकी ही मेहनत का परिणाम है कि जिला परिषद में आप के छह सदस्य चुने गए।

लक्ष्मणदास अरोड़ा के बाद कांगे्रस की हालत हुई पतली
वर्ष 1967 में जनसंघ के टिकट पर चुनाव जीतने वाले लक्ष्मण दास अरोड़ा बाद में कांगे्रस में चले गए। वे ऐसे दबंग नेता बनकर उभरे की लोग उन्हें सिरसा नरेश कहने लगे। सिरसा में उनकी तूती बोलती थी, वे पंाच बार विधायक चुने गए और तीन बार कांगे्रस के टिकट से जीते।  वे जब भी हारे तो पाटी की गुटबाजी के चलते हारे। उनके जाने के बाद उनकी राजनीतिक  विरासत सुनीता सेतिया ने संभाली, कांगे्रस वह सम्मान नहीं दे रही थी जिसकी हकदार थे बाद में वे भाजपा में चली गई। अब उनके पुत्र गोकुल सेतिया राजनीतिक विरासत संभाल रहे है। उन्होंने आजाद चुनाव लड़ा  और महज 602 वोट से गोपाल कांडा से हार गए। आज उन्हें इनेलो का आशीर्वाद मिला हुआ है, कांगे्रस के हाथ यहां पर भी खाली है।

चौ.रणजीत सिंह ने भी गुटबाजी से आहत होकर छोड़ी थी  कांगे्रस  
चौ.देवीलाल का उत्तराधिकारी न बनने पर चौ.रणजीत सिंह ने पिता की पार्टी से किनारा करते हुए कांगे्रस का दामन थामा था। जिससे कांगे्रस को बहुत मजबूती मिली। रणजीत सिंह 1987 के बाद कोई चुनाव नहीं जीत पाए। वे कांगे्रस छोडक़र भाजपा में गए और बाद में कांगे्रस में आ गए। पार्टी में गुटबाजी से आहत होकर उन्होंने आजाद उम्मीदवार के रूप में रानियां से चुनाव लड़ा और जीत गए। बाद में उन्होंने भाजपा को सरकार बनाने में सहयोग दिया और मंत्री बने। चौ. रणजीत सिंह का अपना अलग वजूद है और उनका अपना वोट बैंक है। रणजीत सिंह के कांगे्रस से जाने का कांगे्रस आज तक खामियाजा उठा रही हैै। 

चौ.जगदीश नेहरा भी हुए थे गुटबाजी का शिकार
हरियाणा के पूर्व शिक्षा-सिंचाई मंत्री चौ.जगदीश नेहरा ने कांगे्रस को मजबूत करने में अहम योगदान दिया। जब उन्हें सम्मान मिलना चाहिए था कांगे्रस उन्हें भूल गई। उन्हें सैलजा का समर्थक माना जाता है, उपेक्षा से आहत होकर उन्होंने कांगे्रस का हाथ छोडक़र भाजपा का दामन थाम लिया। उनके राजनीतिक उत्तराधिकारी के तौर पर उनके  पुत्र सुरेंद्र नेहरा आगे बढ़ रहे थे पर उनके निधन से नेहरा परिवार को बड़ा झटका लगा। जगदीश नेहरा फिर से कांगे्रस में आ गए। कांगे्रस गुटबाजी छोडक़र उनके अनुभव का पूरा लाभ उठाकर स्वयं को मजबूत कर सकती है। 
पर सिरसा में आज भी कांगे्रस सैलजा और हुड्डा गुट में बंटी हुई है।

कांगे्रस के कट्टर सिपाही थे होशियारी लाल शर्मा
कांगे्रस के चाहे अच्छे दिन रहे हो या बुरे दिन पर होशियारी लाल शर्मा ने कभी भी कांगे्रस का दामन नहीं छोड़ा था। उन्हें अलग-अलग राजनीतिक दलों ने अपने साथ लाने का प्रयास किया पर शर्मा ने कांगे्रस के प्रति अपनी निष्ठा को कभी नहंी बदला। कांगे्रस का कोई कार्र्यक्रम होता वे भीड़ जुटाने मेें सबसे आगे रहते थे। उन्होंने सिरसा में कांगे्रस को खड़ा किया पर गुटबाजी उनके भी आडे आती रही। कांगे्रस के लिए जो कार्य शर्मा ने किया उसे भुलाया नहीं जा सकता। होशियारी लाल शर्मा की विरासत को उनके पुत्र राजकुमार शर्मा और पौत्र मोहित शर्मा संभाल रहे हैं।