धर्म की रक्षा के लिए हर हिंदू को जागना जरूरी है : सिद्धेश्वर ब्रह्मर्षि गुरुदेव

अपने प्रवचन में सिद्धेश्वर ब्रह्मर्षि गुरुदेव ने भगवद्गीता का उदाहरण देते हुए धर्म की रक्षा का महत्व बताया। आज के समय में धर्म की रक्षा के लिए हर हिंदू को जागना जरूरी है। उन्होंने हाल की उस हृदय विदारक घटना का उल्लेख किया, जहां आतंकवादियों ने धर्म जानकर निर्दोष हिंदुओं को निशाना बनाया, कपड़े उतरवाकर उनकी पहचान पूछी, और फिर उन्हें बेरहमी से मार डाला। उन्होंने कहा कि यह समय मौन रहने का नहीं है। हमें एकजुट होकर, बिना डर के, अपने धर्म, संस्कृति और अस्मिता की रक्षा के लिए खड़ा होना होगा। गुरुवर ने कहा कि हिंदू धर्म हमेशा से अहिंसा का पूजक रहा है। लेकिन जब धर्म पर संकट आता है, तो शस्त्र उठाना भी धर्म बन जाता है। ब्रह्मर्षि गुरुदेव ने भी अपने उद्बोधन में स्पष्ट किया कि हनुमान जी के पास गदा, राम के पास धनुष और कृष्ण के पास बांसुरी थी। लेकिन जब धर्म संकट में आया, तो बांसुरी छोडक़र सुदर्शन चक्र उठाना पड़ा। यही धर्म की सच्ची व्याख्या है। उन्होंने स्पष्ट किया कि अहिंसा का अर्थ कायरता नहीं है। भगवान शिव स्वयं शांत तपस्वी हैं, लेकिन जब अधर्म बढ़ा, तो उन्होंने त्रिशूल उठाकर तांडव किया। यही हमारा धर्म भी सिखाता है कि जहाँ जरूरत हो वहाँ फूल दो, लेकिन जहाँ संकट हो, वहाँ शस्त्र उठाने से मत डरो।
ब्रह्मर्षि गुरुदेव ने कहा कि अब समय बापू के तीन बंदरों का नहीं, बल्कि सुंदर सुनो, सुंदर देखो और सुंदर बोलो, और जहाँ जरूरत हो, वहाँ राक्षसी प्रवृत्तियों से डटकर सामना करो। उन्होंने यह स्पष्ट किया कि सनातन धर्म प्रेम, करूणा और शांति का मार्ग है, लेकिन जब उस पर चोट होती है, तब उसे बचाने के लिए बल, साहस और एकता की आवश्यकता होती है।
ब्रह्मर्षि गुरुदेव ने कहा कि हिंदू धर्म ने दुनिया को योग, प्राणायाम, व्रत, ध्यान और भक्ति जैसे गहरे साधन दिए हैं। लेकिन आज हम इन्हीं साधनों से दूर हो चुके हैं। अब समय है कि हम फिर से अपने मूल धर्म की ओर लौटें और आंतरिक शक्ति को जगाएँ। भक्तों से कहा कि योग, ध्यान, प्रार्थना व्रत और तप का सहारा लें और अपने शरीर, मन और आत्मा को मजबूत बनाएं। अपने धर्म, संस्कृति और देश की रक्षा करना आज का सबसे बड़ा काम है।