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हाईकाेर्ट में डेरासच्चा साैदा प्रमुख की अपील, 10 दिसंबर काे हाेगी सुनवाई

 सीबीआई कोर्ट पर आरोप, बिना उचित साक्ष्यों व गवाहों के ठहराया दोषी
 
  हाईकाेर्ट में डेरासच्चा साैदा प्रमुख की अपील, 10 दिसंबर काे हाेगी सुनवाई
चंडीगढ़, 25 नवंबर  पंजाब-हरियाणा हाईकोर्ट ने साध्वी यौन शोषण मामले में सजा काट रहे डेरासच्चा सौदा प्रमुख गुरमीत सिंह की अपील को सुनवाई के लिए स्वीकार कर लिया है लेकिन इसे 10 दिसंबर तक स्थगित कर दिया गया है। मामले की सुनवाई के दौरान कोर्ट ने सीबीआई द्वारा समय मांगने पर फटकार भी लगाई। डेरे की दो साध्वियों के यौन शोषण मामले में पंचकूला की सीबीआई कोर्ट ने अगस्त 2017 में डेरा प्रमुख को दोषी करार देते हुए उसे 10-10 साल की सजा सुनाई थी, साथ ही डेरा मुखी पर 30 लाख 20 हजार रुपये का जुर्माना भी लगा दिया था।
डेरासच्चा सौदा प्रमुख गुरमीत सिंह की पहले मामले में 10 वर्ष की सजा पूरी होने के बाद दूसरे मामले में 10 वर्ष की सजा शुरू होनी है। सजा को डेरा मुखी ने हाईकोर्ट में चुनौती देते हुए अपील दायर की गई थी। वहीं दोनों पीड़ित साध्वियों ने भी तब हाईकोर्ट में अपील दाखिल कर डेरा मुखी को उम्रकैद की सजा सुनाई जाने की मांग की थी। हाईकोर्ट ने इन अपील को एडमिट कर लिया था। अक्टूबर 2017 में हाईकोर्ट ने डेरा मुखी पर लगाए गए 30 लाख 20 हजार रुपये के जुर्माने पर रोक लगाते हुए उन्हें दो महीनों के भीतर जुर्माने की यह राशि सीबीआई कोर्ट में जमा करवाने के आदेश दिए थे। साथ ही जमा करवाई जाने वाली जुर्माने की इस राशि को किसी नेशनलाइज बैंक में फिक्स्ड डिपॉजिट (एफडी) करवाए जाने के भी आदेश दिए गए थे।
डेरा मुखी ने हाईकोर्ट में अपील दायर कर कहा है कि इस मामले में सीबीआई अदालत ने उसे बिना उचित साक्ष्यों और गवाहों के दोषी ठहराते हुए सजा सुना दी है, जोकि तय प्रक्रिया के अनुसार गलत है। डेरा मुखी ने कहा कि पहले इस मामले में एफआईआर ही दो-तीन वर्षों की देरी से दायर हुई। यह एक गुमनाम शिकायत पर दर्ज की गई, जिसमें शिकायतकर्ता का नाम तक नहीं था।
पीड़िता के बयान ही इस केस में सीबीआई ने छह वर्षों के बाद रिकार्ड किये थे। सीबीआई का कहना था कि वर्ष 1999 में यौन शोषण हुआ था लेकिन बयान वर्ष 2005 में दर्ज किये गए। जब सीबीआई ने एफआईआर दर्ज की, तब कोई शिकायतकर्ता ही नहीं था। अपनी अपील में डेरा मुखी ने सवाल उठाया कि यह कहना कि पीड़िताओं पर कोई दबाव नहीं था, गलत है। क्योंकि दोनों पीड़िता सीबीआई के संरक्षण में थी। ऐसे में प्राॅसिक्यूशन का उन पर दबाव था। 30 जुलाई 2007 तक बिना किसी शिकायत के जांच की जाती रही और पूरी की गई।
डेरा प्रमुख ने कहा कि उसके पक्ष के साक्ष्य और गवाहों पर सीबीआई अदालत ने गौर ही नहीं किया। यहां तक कि सीबीआई ने डेरा मुखी के मेडिकल एग्जामिनेशन तक की जरुरत नहीं समझी। यह जानने की कोशिश नहीं की गई कि डेरा मुखी के खिलाफ जो आरोप लगाए गए हैं, वह सही भी हो सकते हैं या नहीं। लिहाजा इन सभी आधारों को लेकर डेरा मुखी ने अपने खिलाफ सुनाई गई सजा को रद्द कर उसके खिलाफ लगाए गए सभी आरोपों को खारिज किये जाने की हाईकोर्ट से मांग की है। इस केस का पूरा रिकार्ड ट्रायल कोर्ट से हाईकोर्ट पहुंच चुका है।