शिक्षा के नाम पर गरीबों को बहकाने की स्कीम ‘चिराग’: कुमारी सैलजा

दो महीने की नाममात्र पढ़ाई के बदले निजी स्कूलों को साल भर की फीस का भुगतान क्यों?
मीडिया को जारी बयान में कुमारी सैलजा ने कहा कि 01 अप्रैल से शैक्षणिक सत्र शुरू होने के बाद 08 महीने बीतने पर चिराग योजना में दाखिले के लिए आवेदन लेना किसी भी सूरत में तर्कसंगत नहीं है। जो छात्र अब निजी स्कूलों में चले जाएंगे, वे सत्र के आखिरी महीनों के दौरान किसी भी तरीके से न तो वहां के माहौल में ढल पाएंगे और न ही अपने सिलेबस को पूरा कर पाएंगे। इनके लिए सरकारी स्कूल में कराए गए पाठ्यक्रम और निजी स्कूल में चल रहे पाठ्यक्रम के बीच सामंजस्य बैठाना मुश्किल हो जाएगा। पूर्व केंद्रीय मंत्री ने कहा कि निजी स्कूलों में दाखिले के लिए 24 नवंबर तक आवेदन गरीब परिवारों के बच्चों से मांगे गए हैं, जबकि हरियाणा विद्यालय शिक्षा बोर्ड ने 10वीं व 12वीं की परीक्षा के लिए बोर्ड में फॉर्म जमा कराने की अंतिम तिथि 21 नवंबर तय की हुई है। ऐसे में 24 नवंबर तक दाखिले के आवेदन जमा होने पर दाखिला प्रक्रिया में दिसंबर का आधा महीने बीतने की पूरी संभावना है। अगर 10वीं व 12वीं कक्षा में किसी छात्र ने निजी स्कूल में दाखिला ले भी लिया तो उन्हें बोर्ड की परीक्षा देने में परेशानी का सामना करना पड़ सकता है।
कुमारी सैलजा ने कहा कि देर से दाखिले होने की सूरत में इन छात्रों की पढ़ाई में होने वाले नुकसान की भरपाई के लिए भाजपा-जजपा गठबंधन सरकार के पास कोई प्लान भी नहीं है। इससे पता चलता है कि सरकार की मंशा इन्हें पढ़ाने की नहीं, बल्कि ओर अधिक पीछे धकेलने की है। सरकार खुद नहीं चाहती कि किसी गरीब परिवार का बच्चा पढ़-लिख कर बड़ा अधिकारी बने, इसलिए सोची-समझी साजिश के तहत इन बच्चों के देरी से दाखिले कराने का षड्यंत्र रचा जा रहा है। पूर्व केंद्रीय मंत्री ने कहा कि जब सभी को पता है कि नया शैक्षणिक सत्र 01 अप्रैल से शुरू होता है तो फिर इनके दाखिले मार्च महीने के अंतिम सप्ताह या फिर अप्रैल महीने के पहले सप्ताह में ही क्यों नहीं करवाए गए। सत्र में अंत में दाखिले कराने से साफ है कि सरकार तीन महीने की पढ़ाई के बदले निजी स्कूलों को पूरे साल की फीस का भुगतान कर उन्हें मोटा मुनाफा कमाना चाहती है। उन्होंने कहा कि शिक्षा पर सबका समान अधिकार है लेकिन दुर्भाग्यवश देश-प्रदेश में ऐसे गरीब परिवार के बच्चे है जो कि आर्थिक मजबूरियों के कारण या तो अपनी पढ़ाई पूरी नहीं कर पाते या फिर उनकी शिक्षा पैसों की तंगी के कारण बीच में ही छूट जाती है। इसके अलावा कई ऐसे गरीब परिवार के बच्चे है जो कि आर्थिक तंगी के कारण निजी स्कूलों में पढ़ाई भी नहीं कर पाते है और एक बेहतर भविष्य पाने की राह में पीछे रह जाते है। सरकार का दावा है कि इस समस्या के समाधान के लिए उसने हरियाणा चिराग योजना को शुरू किया है। ऐसी योजना का क्या लाभ जो कागजों तक सीमित हो। इसका लाभ जिन्हें मिलना चाहिए था उन्हें न मिलकर निजी शिक्षण संस्थानों को मिल रहा है, अगर सरकार इसकी निगरानी करती तो पात्र बच्चों को इसका लाभ जरूर मिलता पर सरकार की नीयत में पहले से ही खोट था। ये जनता है सब जानती है और आने वाले चुनाव में अपने बच्चों के भविष्य से खिलवाड़ करने वाली सरकार से बदला जरूर लेगी।